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पहलगाम त्रासदी : आतंकवाद के चलते क्या कभी कश्मीर में शान्ति संभव हो पाएगी

आतंकवाद का खात्मा कैसे हो सकता है? स्थानीय लोगों को राज्य के मामलों से दूर रखने का निरंकुश तरीका आतंकवाद से निपटने में सबसे बड़ी बाधा है। सुरक्षा में बार-बार विफल होना, पुलवामा और अब पहलगाम में सुरक्षा व्यवस्था का विफल होना गहरी चिंता का विषय है।

पहलगाम आतंकी हमला : कश्मीरी जनता का अमन छीननेवाले अपराधी कौन हैं

पहलगाम पर आतंकियों द्वारा किया गया हमला 100% सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का जीता-जागता उदाहरण है। पिछले कुछ वर्षों में, सांप्रदायिक तत्वों ने देश में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा करने में सफलता प्राप्त की है। यह पहली बार नहीं हुआ है बल्कि इसके पहले पुलवामा अटैक भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का एक बड़ा हिस्सा था। इसी तरह अगस्त 2016 में बुरहान वानी की हत्या के बाद हुए बंद के दौरान दो सप्ताह जम्मू-कश्मीर में रहकर वहाँ की स्थितियों पर लिए गए जायजे के अनुभव साझा कर रहे हैं सुरेश खैरनार।

पहलगाम आतंकी हमला : सुरक्षा की नाकामियाँ छिपाने के लिए गलत बयानी करती केंद्र सरकार

यदि पहलगाम हमले में पाकिस्तान का हाथ है, तो भारत सरकार की आंख और कान (इंटेलीजेंस) कहां थी, क्या कर रही थी? जैसी कि खबरें छनकर आ रही है कि ऐसी अनहोनी होने की भनक इंटेलीजेंस को थी, उसका सक्रिय न होना या निष्क्रियता की हद तक जाकर ऐसी सूचनाओं को नजरअंदाज करना हमारी इंटेलीजेंस की सक्षमता पर और बड़े सवाल खड़े करता है। इतना ही बड़ा सवाल खड़ा होता है कश्मीर मामले को डील करने में केंद्र सरकार की नीतियों की विफलता पर।

नेहरू कश्मीर समस्या के लिए उत्तरदायी नहीं थे

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी सहित संपूर्ण संघ परिवार जवाहरलाल नेहरू को कश्मीर की समस्या के लिए उत्तरदायी मानते हैं। परंतु  कश्मीर...

जम्मू में अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास गोलाबारी में बीएसएफ जवान की मौत

जम्मू(भाषा)। जम्मू-कश्मीर में सांबा जिले के रामगढ़ सेक्टर में बुधवार देर रात अंतरराष्ट्रीय सीमा (आईबी) के पास पाकिस्तानी रेंजर्स की बिना उकसावे वाली गोलीबारी...

जम्मू का एक गाँव जहाँ हर घर में दिव्यांग पैदा होते हैं बच्चे

भारत में गांव हो या शहर, कहीं ना कहीं कोई दिव्यांग पुरुष और महिला नजर आ ही जाती है। लेकिन देश में एक ऐसा...

कश्मीर विवाद में नेहरू-पटेल को विपरीत ध्रुव साबित करने की कवायद

भारतीय सेना ने कश्मीर को पाकिस्तानी सेना द्वारा समर्थित कबाइलियों के हाथों बर्बाद होने से बचा लिया। युद्धविराम इसलिए घोषित किया गया ताकि नागरिकों की जिंदगी बचाई जा सके और संयुक्त राष्ट्रसंघ के जरिए समस्या का कोई शांतिपूर्ण समाधान निकाला जा सके। कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले जाने के निर्णय की आज आलोचना करना बहुत आसान है परंतु तथ्य यह है कि तत्कालीन परिस्थितियों में यह सबसे बेहतर विकल्प था।

कश्मीर के इतिहास को तोड़ना-मरोड़ना शांति की राह में बाधक होगा

कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाते समय यह दावा किया गया था कि इससे घाटी में शांति स्थापित होगी और परेशानहाल कश्मीरी पंडित समुदाय को...

कश्मीर में हिंसा के दौर के बीच कुछ ज़रूरी सवाल

एक तरफ मोदी सरकार के आठ साल की उपलब्धियों के गौरवगान में उनके मंत्री और मीडिया व्यस्त हैं दूसरी तरफ, कश्मीर घाटी आतंकवादी हिंसा...

भाजपा ने ही परिवार आधारित पार्टियों को पोसा है

कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि परिवार आधारित राजनीतिक दल लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। मोदीजी के इस...

पाकिस्तान के नाम से आरएसएस के भड़कने का निहितार्थ (डायरी 27 अक्टूबर, 2021)

सियासत की एक खासियत रही है कि इसने अपने मकसद में कभी बदलाव नहीं किया है। हालांकि सियासत ने अपने रूप जरूर बदले हैं।...

परिंदे की जात

लाल्टू ने घर को आखरी बार निहारा। घर जैसे उसके सीने में किसी कील की तरह धँस गया था। उसने बहुत कोशिश की लेकिन,...

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे

लोहिया और बाद में जे.पी. के समय जो ग़लती समाजवादियों से हुई उसके प्रायश्चित का समय नजदीक आता जा रहा है। पर क्या यह...

पंडित नेहरू और शेख अब्दुल्ला के कारण ही कश्मीर बन सका भारत का हिस्सा

भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समेत कई व्यक्ति व संगठन जवाहरलाल नेहरू को कश्मीर समस्या के लिए जिम्मेदार मानते हैं। परंतु इसके...

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