पाकिस्तान के नाम से आरएसएस के भड़कने का निहितार्थ (डायरी 27 अक्टूबर, 2021)

0 414

सियासत की एक खासियत रही है कि इसने अपने मकसद में कभी बदलाव नहीं किया है। हालांकि सियासत ने अपने रूप जरूर बदले हैं। मेरी तो पैदाइश ही 1980 के दशक में हुई तो उसके पहले की सियासत के बारे में उतना ही जानता हूं जितना पढ़ने को मिला है। फिर चाहे वह प्राचीन इतिहास का हिस्सा हो या मध्यकाल का या फिर आधुनिक भारत का इतिहास। मेरी दिलचस्पी पात्रों यानी राजाओं-बादशाहों से अधिक सियासत में रही है। मेरा अपना आकलन है कि सियासत दो तरह से की जाती है। एक तो यह कि शासक जनता के कल्याणार्थ काम करके लंबे समय तक शासक बना रह सकता है और दूसरा तरीका जनता को बरगलाकर।

अभी जो देश में सियासत की जा रही है, उसमें जनता को बरगलाना ही मुख्य तत्व है। ऐसी सियासत करने वाले पीढ़ियों के बारे में नहीं सोचते। वे तो वर्तमान की भी परवाह नहीं करते कि वर्तमान उन्हें किस रूप में देख रहा है। उदाहरण हैं आरएसएस के मुखौटे नरेंद्र मोदी। आरएसएस ने देश की सियासत में धर्म का जहर इस तरह से घोल दिया है कि अब केवल एक ही विभाजक रेखा है। या तो आप आरएसएस के साथ हैं या फिर आरएसएस के साथ नहीं हैं। आप यदि आरएसएस के साथ हैं तो फिर चाहे आप कितने भी बड़े व्यभिचारी, चोर, डकैत और भ्रष्टाचारी क्यों न हों, सियासत आपको संरक्षण देगी। और यदि आप आरएसएस के साथ नहीं हैं तो आप कभी भी कटघरे में खड़े किए जा सकते हैं।

अभी कल ही गौतम नवलखा की पत्नी का पत्र पढ़ा। उस पत्र में ऐसी ही सियासत का असर दिखता है। शासक नंगा है और वह अपनी नंगई पर हंस रहा है।

घाटी में हालात बदल चुके हैं। आरएसएस और मुस्लिम कट्टरपंथी दोनों एक-दूसरे के मुकाबले में हैं। ऐसे में आम कश्मीरी जो कि सुकून के साथ रोटियां खाना चाहता है, उसके लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं। भारतीय हुक्मरान अभी भी यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि करना क्या है। मेरे पत्रकार मित्र वहां हाल की घटनाओं के बारे में बता रहे थे कि मजदूरों पर हमला करने वाले कौन लोग हैं, यह यहां की पुलिस भी अच्छे से जानती है। उन्होंने कहा कि यदि शेष भारत के जैसे यहां भी सीबीआई इन मामलों की जांच करती तो जानकारियां सामने आतीं।

कल ही जानकारी मिली कि जम्मू-कश्मीर में 7 नौजवानों को यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। उनके उपर आरोप है कि बीते रविवार को दुबई में हुए भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच में पाकिस्तान की जीत के बाद पटाखे फोड़े।

मैं तो अपनी बात कहता हूं। जब मैच चल रहा था तब मैं भी देख रहा था। मैं तो मैच देखता हूं फिर चाहे खेलने वाले खिलाड़ी किसी भी देश के क्यों न हों। हां, पहले जब किशोर था तब लगता था कि भारत हर मैच जीते। यहां तक कि भारत की जीत हो, इसके लिए कामना भी करता था। यदि भारत की हार हो जाती तो मैं उदास भी होता था। परंतु, पत्रकारिता में आने के बाद मेरे सोचने-समझने का नजरिया बदला और मैंने यह समझा कि खेल तो खेल है। फिर चाहे कोई भी टीम क्यों न हो।

तो हुआ यह कि बीते रविवार को जब पाकिस्तान की ओर से उसके सलामी बल्लेबाजों बाबर आजम और रिजवान ने खेलना शुरू किया तो उनकी लय देखने लायक थी। दोनों ने भारतीय गेंदबाजों के हर दांव का जवाब दिया और 17.5 ओवरों में ही मैच को जीत लिया। 1992 के बाद वर्ल्ड कप प्रतियोगिता में पाकिस्तान की भारत पर यह पहली जीत थी। लिहाजा पाकिस्तान के लिहाज से यह बड़ी जीत थी। मैंने फेसबुक पर पाकिस्तान की टीम को जीत की बधाई दी।

मुझे नहीं पता कि कश्मीरी युवकों ने किस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त की। पटाखे फोड़ना भी एक अभिव्यक्ति का एक तरीका हो सकता है। वैसे भी कश्मीर एक सवाल तभी से रहा है जब जब देश दो भागों में बंटा। तब तो वहां एक हिंदू राजा हरि सिंह का राज था। हरि सिंह ने अपने शर्तों पर भारत के साथ विलय को स्वीकार किया था। यदि वहां का राजा यदि कोई मुसलमान होता तो यह मुमकिन था कि कश्मीर पाकिस्तान के साथ चला गया होता। मुमकिन है कि अब भी वहां के कुछ लोगों में पाकिस्तान के प्रति लगाव हो। यह इसके बावजूद कि 1847 के बाद भारतीय हुक्मरान जम्मू-कश्मीर के लोगों को भारतीयता का पाठ हर तरीके से पढ़ाते रहे हैं। अभी तो हालात और भी बुरे हो गए हैं।

अब यह मुमकिन है कि समान धर्मावलंबी होने की वजह से उसके मन में पाकिस्तान के प्रति लगाव रहा हो। यह कोई अनोखी बात नहीं है। मैं तो अपनी बात कर रहा हूं कि जब फुटबॉल का वर्ल्ड कप होता है तो मैं एशियाई देशों का समर्थन करता हूं। वजह यह कि मैं भी एशियाई हूं। मेरा इतना सा संबंध भी मुझे प्रभावित करता है। मैं तो तब भी खुश होता हूं जब चीन के खिलाड़ी ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतते हैं।

कल ही कश्मीर टाइम्स के एक पत्रकार से बात हो रही थी। उनका कहना था कि घाटी में हालात बदल चुके हैं। आरएसएस और मुस्लिम कट्टरपंथी दोनों एक-दूसरे के मुकाबले में हैं। ऐसे में आम कश्मीरी जो कि सुकून के साथ रोटियां खाना चाहता है, उसके लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं। भारतीय हुक्मरान अभी भी यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि करना क्या है। मेरे पत्रकार मित्र वहां हाल की घटनाओं के बारे में बता रहे थे कि मजदूरों पर हमला करने वाले कौन लोग हैं, यह यहां की पुलिस भी अच्छे से जानती है। उन्होंने कहा कि यदि शेष भारत के जैसे यहां भी सीबीआई इन मामलों की जांच करती तो जानकारियां सामने आतीं।

अभी जनसत्ता में एक खबर देख रहा हूं। राजस्थान की एक महिला जो कि एक निजी स्कूल में शिक्षिका थीं, को स्कूल वालों ने नौकरी से निकाल दिया है। महिला पर आरोप है कि उसने पाकिस्तान की जीत के बाद व्हाट्सएप पर अपना स्टेटस लिखा– ‘हम जीत गए’। जबकि बाद में महिला ने अपना बयान साझा किया है और कहा है कि वह भारत को प्यार करती है और पूरी तरह से भारतीय है।

अब यह मुमकिन है कि समान धर्मावलंबी होने की वजह से उसके मन में पाकिस्तान के प्रति लगाव रहा हो। यह कोई अनोखी बात नहीं है। मैं तो अपनी बात कर रहा हूं कि जब फुटबॉल का वर्ल्ड कप होता है तो मैं एशियाई देशों का समर्थन करता हूं। वजह यह कि मैं भी एशियाई हूं। मेरा इतना सा संबंध भी मुझे प्रभावित करता है। मैं तो तब भी खुश होता हूं जब चीन के खिलाड़ी ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतते हैं।

बहरहाल, मेरा ख्याल है कि आरएसएस इस देश को बर्बाद करने के लिए ही काम कर रहा है। अब ऐसा वह अमरीका के इशारे पर कर रहा है या किसी और मुल्क के। मैं नहीं जानता। मैं तो यह कामना करता हूं कि जल्द ही भारत के लोग इसे सत्ता से बाहर करें और जो हुकूमत बने, वह आरएसएस को प्रतिबंधित करे।

 नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।

Leave A Reply

Your email address will not be published.