लाल्टू ने नजर दौड़ाई दोपहर धीरे- धीरे सुरमई शाम में तब्दील होने लगी थी। उसने एक बार रेंड़ी को छुआ। फिर, उन बर्तनों पर सरसरी निगाह दौड़ाई। बिस्तर को निहारा। ये सब वो आखिरी बार निहारा रहा था। पिछले दस- बारह सालों से वो कश्मीर के इस हिस्से में रेंड़ी लगाता आ रहा था। सब छूटा जा रहा था ..।
अचानक से चचा के शब्दों में अफसोस उतर आया। वो नदीम को घूरते हुए बोले- ‘आज सालों पहले लाल्टू यहाँ आया था। और पता नहीं कितने मजदूर यहाँ काम की तलाश में आयें होंगे। ये देश जैसे तुम्हारा है वैसे लाल्टू का भी है। कोई भी कहीं भी देश के किसी भी हिस्से में जाकर मजदूरी कर सकता है। कमाने- खाने का हक सबको है। लाल्टू आज भी मुझे अपने वालिद की तरह ही मानता है। गोलगप्पे मैं बेलता हूँ, छानता वो है। रेंड़ी मैं लगता हूँ, रेंड़ी धकेलता वो है। मैंने कभी तुममें और लाल्टू में अंतर नहीं किया। बेचारा हर महीने जो कमाता है। अपने घर भेज देता है। साल-छह महीने में वो कभी घर जाता है तो अपने बूढ़े बाप और बाल-बच्चों से मिलने l मेरा खुदा गवाह है कि मैंने कभी इसे दूसरी किसी नजर से देखा। इस ढंँग की हरकतें सियासदाँ करें, उनको शोभा देता होगा। हम तो इंसान हैं ऐसी गंदी हरकतें हमें शोभा नहीं देतीं। हम तो मिट्टी के लोग हैं और हमारी जरूरतें रोटी पर आकर सिमट जाती हैं। रोटी के आगे हम सोच ही नहीं पाते। हिंदू – मुसलमान भरे-पेट वालों लोगों के लिए होता है। खाली पेट वाले रोटी के पीछे दौड़ते हुए अपनी उम्र गँवा देतें हैं। इसलिए नदीम दुनियाँ में आये हो तो हमेशा नेकी करने की सोच रखो। बदी से कुछ नहीं मिलता बेटा। बेकार की अफवाहों पर ध्यान मत दो बेटा। इस तरह की अफवाहों पर कान देने से अपना ही नुकसान है, नदीम। ऐसी अफवाहें घरों में रौशनी नहीं करतीं, ना ही शाँति के लिये कँदीलें जलातीं हैं। बल्कि पूरे घर को आग लगा देतीं हैं। मै उन नौजवानों से भी कहना चाहता हूँ l जो इस तरह के कत्लो- गैरत में यकीन रखतें हैं l बेटा उनका कुछ नहीं जायेगा। लेकिन तब तक हमारा सब कुछ जल जायेगा!’
बाहर की खिली हुई धूप में कुछ कबूतर उतर आयें थें। बूढ़ा असगर गेंहू के कुछ दाने कोठरी से निकाल लाया। और, उनकी तरफ फेंकनें लगा। ढ़ेर सारे कबूतर वहाँ दाना चुगने लगें।

अच्छी कहानी