मिर्ज़ापुर के चुनार कस्बे में ढोलक बनानेवाले तीन परिवार बताते हैं कि हमारी दाल-रोटी चल जाती है लेकिन पहले वाली बात इसमें नहीं रही। इसलिए नई पीढ़ी के बच्चे अब इस काम में कोई दिलचस्पी नहीं रखते और दूसरे काम करते हैं। सामान्य आमदनी के चलते इनमें शिक्षा के प्रति ललक भी नहीं पैदा हुई इसलिए ज़्यादातर कारीगरी से विमुख हो मजदूरी की ओर जा रहे हैं।
मिर्ज़ापुर जिले में बड़ी संख्या में लोग पत्थर खदानों में काम करते हैं और अनेक लोग कई साल तक सिलिका धूल के संपर्क में रहने के कारण सिलकोसिस के शिकार हैं। इनमें से कइयों का इलाज टीबी की दवाओं द्वारा होता रहा है। जबकि सिलकोसिस एक असाध्य बीमारी है। इस पर कोई ठोस काम करने की बजाय स्वस्थ्य विभाग और सरकार लगातार चुप्पी बनाए हुये है।
'किसान अन्नदाता हैं' सुनने में यह बहुत अच्छा लगता है लेकिन किसान आज किस हाल में खेती कर पा रहे हैं, यह उनसे पूछने पर मालूम होगा। कहीं बीज नहीं मिल पा रहा है, तो कहीं खाद की समस्या है, कहीं बिजली नहीं तो कहीं सिंचाई के लिए पानी का अभाव है। किसानों के लिए अनेक योजनायें हैं लेकिन या तो कागज पर हैं या जो लागू हैं उनमें बहुत ही घालमेल है, जिसकी वजह से वह किसानों तक नहीं पहुँच पा रही हैं। मिर्जापुर जिले के अति पिछड़े इलाके मड़िहान तहसील में सिरसी पम्प कैनाल में पानी नहीं आ पाने के कारण किसानों की फसल सूखने की कगार पर है। पढ़िए संतोष देव गिरि की रिपोर्ट
मनुष्य के सामाजिक सरोकार का सबसे सशक्त माध्यम है उसकी मातृभाषा। शैशवास्था से युवावस्था तक मातृभाषा के साथ सांस्कृतिक धरोहर विरासत के रूप में प्राप्त हो जाती है। हम सभी की मातृभाषा ही हमारे भावनात्मक और वैचारिक अभिव्यक्ति का सहज और सुगम माध्यम है। लगभग 5 दशकों से भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की जाती रही है लेकिन किसी भी सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया।
Wyndham fall : पूर्वांचल के मिर्जापुर अपने टूरिस्ट स्पॉट के लिए जाना जाता है। लखनिया दरी, चुनादरी, विंढम फाल, टांडा फाल, बोकाड़िया दरी, सिद्धनाथ की दरी आदि दर्जनों ऐसे वाटरफॉल हैं, जो प्राक्रतिक दृष्टि से समृद्ध हैं। वहीं विंढम फाल के सौंदर्य के आगे शहर की खूबसूरती फीकी पड़ जाएगी.
विंध्य की पहाड़ियों की गोद में बसा मिर्जापुर अपने में कई गौरवशाली इतिहास संजोए हुए है। उन्हीं ऐतिहासिक कहानियों में एक है विंध्याचल के रास्ते में बने ओझला पुल की। कहा जाता है कि रास्ता न होने के चलते कॉटन के व्यापारियों ने अपने एकदिन की कमाई से इस पुल का निर्माण कराया था। लेकिन आज यह पुल जर्जर हो गया है।
मिर्ज़ापुर जिले के अहरौरा थाना पुलिस और क्राइम ब्रांच की संयुक्त टीम ने अवैध रूप से डीजल कटिंग के ठिकानों पर छापेमारी करते हुए तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। भारी मात्रा में डीजल की बरामदगी के साथ कई टैंकरों को भी सीज किया है। यह कारोबार वर्षों से चल रहा है। सोनभद्र जिले से लेकर पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश की कई बड़ी परियोजनाओं में डीज़ल आपूर्ति होती है। एनटीपीसी, रिहंद, एनसीएल, बीना परियोजना, ककरी, जयंत, अमलोरी सहित कई बड़ी परियोजनाओं के चलते यह इलाका डीज़ल कटिंग कारोबार से जुड़े हुए लोगों के लिए काफी मुफीद रहा है। यहाँ उनकी मजबूत पकड़ का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुछ वर्ष पूर्व सोनभद्र में एक टीवी चैनल के रिपोर्टर ने अपने कुछ साथियों के साथ जब इस कारोबार का खुलासा किया था तो पुलिस ने कार्रवाई के बजाए उलटे मीडियाकर्मी पर ही झूठे केस में फंसा दिया था।
मिर्ज़ापुर जिले में भोगांव स्थित श्मशान घाट पर पीढ़ियों से धरकार समुदाय के लोग शव जलाने के लिए आग देकर अपनी आजीविका चलाते आ रहे थे लेकिन पिछले महीने जिला जिला पंचायत ने आग देने का ठेका इसी गाँव के एक ठाकुर को दे दिया। जाति व्यवस्था में तय मानकों के हिसाब से समाज को देखने वाले लोगों को यह अनोखा मामला लग सकता है लेकिन असल में यह कई बातों की ओर इशारा करता है। इससे यह पता चलता है कि जात-जमात से अलग रोजी-रोजगार के साधनों पर सम्पन्न लोग कैसे कब्जा जमा लेते हैं। जाति और पैसे के बल पर लोगों ने उन सभी कामों पर कब्ज़ा जमा लिया है जिसे बिना किए भी मोटा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है। इससे यह भी पता चलता है कि ठेके में कितना अधिक मुनाफा होता है। और यह भी कि सफाई का ठेका कोई भी ले लेकिन सफाई का काम तो स्वीपर को ही करना पड़ता है। यह ठेका भी इसी रणनीति के तहत जारी किया गया है।
मिर्जापुर के राजगढ़ ब्लॉक के ग्राम पंचायत दरवान के अंतर्गत वनवासी मुसहरों की बस्ती है। इन मुसहरों का एक आसरा था जंगल, जहां से वनोपज और लकड़ी इकट्ठा करने के बाद बेचकर जीवनयापन करते थे, आज वन विभाग इन्हें जंगल से भगाते हैं और वनोपज लेने पर रोकते हैं। दूसरे रोजगार के अभाव में इनका जीवन कठिन हो गया है। देखें ये ग्राउंड रिपोर्ट
हर घर नल जल का वर्तमान देखकर यही कहा जा सकता है कि राजनीतिक घोषणाएँ और सरकारी दावे एक तरफ लेकिन वास्तविकता बिलकुल दूसरे ढंग से अपनी कहानी कहती है। मिर्ज़ापुर जिले के ग्रामीण इलाकों में पानी को लेकर कहीं कतार लगानी पड़ रही है तो कहीं पहाड़ों की खाक छाननी पड़ रही है। भीषण गर्मी के बीच महिलाओं को दो-दो, तीन-तीन किलोमीटर दूर से पानी लाकर चूल्हा-चौका करना पड़ रहा है।
किसी मंडलीय अस्पताल उर्फ मेडिकल कॉलेज के पर्ची काउंटर पर साँड़ आराम फरमा रहा हो और अस्पताल के ठीक पीछे मेडिकल वेस्ट का डम्पिंग ग्राउंड हो तो आप आसानी से समझ सकते हैं कि यह अस्पताल शहर और जिले का स्वास्थ्य कितने बेहतरीन ढंग से दुरुस्त रखता होगा। इसके लिए कहीं दूर जाने की आवश्यकता भी नहीं है। बस विंध्याचल मंडल के मुख्यालय मिर्ज़ापुर आइये और यह नज़ारा देख लीजिये।
मिर्जापुरी कजरी को आज जो भी मुकाम हासिल है उसमें बप्फ़त का केंद्रीय योगदान है। कहा जा सकता है कि वह मिर्जापुरी कजरी के पितामह थे। वह वैसे ही थे जैसे आगरे में नज़ीर अकबराबादी थे।
मोदी सरकार ने जीएसटी को पीएमएलए कानून से जोड़कर व्यापारियों के लिए एक मुसीबत खड़ा कर दिया है। इस कानून के कारण व्यापारियों द्वारा की गयी छोटी सी भूल उन्हें जेल तक भेज सकती है। इसे लेकर व्यापारियों में भारी रोष है और उन्होंने सरकार को चुनाव में सबक सिखाने का फैसला कर लिया है।
नेता जनता को ठगने और बेवकूफ बनाने का काम हमेशा से करते आए हैं। जनता उनकी बातों पर भरोसा कर अंत में खुद को ठगा महसूस करती है। मिर्जापुर की ग्राम सभा गड़ौली के ग्रामीण यह बात समझ चुके हैं और आने वाले दिनों में अपनी मांगों को पूरा होता न देख चुनाव के बहिष्कार की घोषणा किए हैं। पढ़िये हरिश्चंद्र की यह ग्राउंड रिपोर्ट
जब भी हम किसी गाँव में चुनाव की ग्राउंड रिपोर्ट के लिए जाते हैं तो कुछ लोग राममन्दिर, देश की सुरक्षा और धारा 370 की बात करते हैं। ऐसे लोगों की बात से दूसरे लोग भी भ्रमित और प्रभावित होते हैं। कुछ देर बात करने के बाद ही लोगों की वास्तविक समस्याएँ सामने आती हैं। मिर्ज़ापुर जिले के सिंधोरा गाँव के लोगों में भी आर्थिक स्तर पर कई धड़े हैं जिनकी अपनी ऐसी समस्याएँ हैं कि उनका हल दूर-दूर तक निकलता नहीं दिखता। अब देखना यह है कि जिंदगी की बुनियादी चुनौतियों से जूझ रहे लोग लोकसभा चुनाव में बदलाव लाना चाहेंगे या पुराने प्रतिनिधि पर ही भरोसा कायम करेंगे।
चुनाव के इस माहौल में मिर्ज़ापुरवासियों के मन में गहरी ऊहापोह चल रही है। पिछले दो बार से इस संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करनेवाली अनुप्रिया पटेल दो बार केंद्र में मंत्री रही हैं लेकिन व्यवसायियों का कहना है कि उन्होंने उनके हित में कुछ नहीं किया। फिलहाल वे ऐसे प्रतिनिधि को जिताने के बारे में सोच रहे हैं जो उनके शहर को नई रौनक से भर दे।
देखा जाय तो मिर्जापुर जिले में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। यहां के पीतल उद्योग को सरकार की ओर से अगर प्रोत्साहन मिलता तो यह बडे़ पैमाने पर लोगों की रोजी रोटी का साधन बनता। लेकिन दुख की बात है कि स्थनीय जनप्रतिनिधियों का जनता से कोई सरोकार नहीं है, जिसे लेकर जनता में आक्रोश भी है। इसका असर आने वाले चुनाव में भी देखने को भी मिलेगा।