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नेहरू के भूत से ही नहीं राहुल गाँधी के वजूद से भी डरते रहे हैं मोदी
नरेंद्र मोदी को प्रधानमत्री बने 11 साल हो गए हैं, इन ग्यारह वर्षों में वह प्रायः अप्रतिरोध्य रहे। हाल के वर्षों में राहुल गांधी को छोड़ दिया जाय तो पक्ष या विपक्ष का कोई भी नेता उन्हें चुनौती देने की स्थिति में नहीं रहा। बावजूद इसके वे बुरी तरह किसी से परेशान रहे तो वह नेहरू-गांधी परिवार है। इस कारण वे विगत ग्यारह वर्षों में समय-समय इस परिवार को लेकर तीखी आलोचना करते हुए अपनी परेशानी जाहिर करते रहे हैं। ताज़ी घटना संसद के मानसून सत्र की है, जिसमें ऑपरेशन सिंदूर पर अपनी बात रखने के क्रम में उन्होंने 14 बार पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का जिक्र किया। उन्होंने अपने 102 मिनटों के भाषण में नेहरू की इतनी गलतियाँ गिनाई कि श्रोता ऊंघने लगे। संसद के बाहर एक जनसभा में उन्होंने कहा कि नेहरू-गांधी परिवार सबसे भ्रष्ट परिवार है। बहरहाल एक बार फिर नेहरू को निशाने पर लेने के बाद राजनीतिक विश्लेषक उन कारणों की खोज में व्यस्त हो गए है , जिन कारणों से वह नेहरु-गांधी परिवार को निशाने पर लेने का कोई अवसर नहीं चूकते।
क्यों विवादों के घेरे में हैं एक बार फिर भारत माता?
केरल के राज्यपाल राजेन्द्र अर्लेकर ने स्काउट विद्यार्थियों के लिए राजभवन में एक पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित किया। कार्यक्रम केरल सरकार के शिक्षा विभाग के सहयोग से आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में मंच की पृष्ठभूमि में भारत माता का चित्र लगा था। वह वही चित्र था जिसे आरएसएस प्रचारित करता आया है और जिसमें भारत माता भगवा वस्त्र हाथ में लिए एक हिन्दू देवी जैसी दिखती हैं। केरल सरकार के शिक्षा मंत्री ने कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया। पुरस्कार विजेताओं को बधाई देने के बाद वे कार्यक्रम स्थल से चले गए। इस प्रकरण से एक बार फिर भारत माता विवादों के घेरे में आ गई हैं।
भारत में यूरोपीय ढंग के राष्ट्रवाद की विकास यात्रा कैसे चल रही है
हिंदू महासभा भी थी और हिंदू राष्ट्रवादी तत्वों के एक तबके ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भी घुसपैठ कर ली थी। जवाहरलाल नेहरू को इसके कारण भारतीय राष्ट्रवाद के लिए उत्पन्न हुए खतरे का एहसास हो गया था किंतु विभिन्न कारणों से वे इसे जड़ से उखाड़ नहीं पाए, जिनमें से एक था भारत में जमींदारी प्रथा का कायम रहना। यह समाज में बढ़ती धार्मिकता में भी प्रतिबिंबित होता था।
राष्ट्रीय झंडे को लेकर संविधान सभा में नेहरु द्वारा दिया गया भाषण
आज महान क्रांतिकारी, देश के पहले प्रधानमंत्री, शांतिदूत, चिंतक एवं लेखक पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन है। परम्परा के अनुसार दुनिया में अपने पुरखों को याद किया जाता है। हमारे पुरखे कैसे भी हों हम उन्हें याद करते हैं। एक चपरासी का पुत्र यदि आईएएस बन जाता है तो उसका सारा श्रेय वह अपने पिता को देता है। दूसरे देशों में भी यह परम्परा कायम है। चीन में भले ही कम्युनिस्ट क्रांति हुई हो और कम्युनिस्टों का राज आ गया हो फिर भी वहां सुन यात-सेन को याद किया जाता है। क्यूबा में फिडेल केस्ट्रो अपने देश के अनेक क्रांतिकारियों को याद करते हैं। मैंने स्वयं अपनी क्यूबा यात्रा के दौरान केस्ट्रो को वहां के पूर्वजों को याद करते सुना है। अमरीका में वहां के राष्ट्र की स्थापना करने वाले वाशिंगटन को अमरीका की क्रांति के दिवस पर याद किया जाता है। अमरीका ने उन्हें सबसे बड़ी श्रद्धांजलि अपनी राजधानी को उनके नाम पर रखकर दी है। देश के अनेक अखबार 14 नवंबर को जवाहरलाल नेहरू को याद नहीं करते हैं। मेरे घर प्रतिदिन अनेक अखबार आते हैं। मैं देख रहा हूं कि एक-दो अखबारों को छोड़कर किसी ने उन्हें याद नहीं किया आखिर क्यों? उनके जन्मदिन पर उन्हें हम याद करते हुए, अपनी ओर से और अपने साथ जुड़ी संस्थाओं की ओर से पंडित जवाहरलाल नेहरू को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। न सिर्फ भारत के नेता के रूप में बल्कि एक विश्व नेता के रूप में भी। इस अवसर पर मैं जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिये गये एक भाषण को जारी कर रहा हूँ जो उन्होंने हमारे तिरंगे झंडे के सम्मान में संविधान सभा में दिया था।
नेहरू कश्मीर समस्या के लिए उत्तरदायी नहीं थे
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी सहित संपूर्ण संघ परिवार जवाहरलाल नेहरू को कश्मीर की समस्या के लिए उत्तरदायी मानते हैं। परंतु कश्मीर...
नेहरू की विरासत पर सरकार की सेंधमारी, संग्रहालय से हटेगा नाम
प्रधानमंत्री मोदी अपने तमाम प्रयास के बावजूद अब तक कहीं न कहीं नेहरू और गांधी के बरक्स खुद को खड़ा करने के लिए उनके नाम को गायब करने का उपक्रम रच रहे हैं। पहले गांधी और अब नेहरू की विरासत को इस तरह हथियाने या फिर उनका नाम हटाने को लेकर कांग्रेस ने भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री के साथ उनकी विचारधारा पर सवालिया निशान उठाया है। नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और लाइब्रेरी का नाम बदलकर प्रधानमंत्री संग्रहालय और लाइब्रेरी करने पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी का बयान सामने आया है। राहुल ने जवाहर लाल नेहरू के जरिए पीएम मोदी पर हमला बोला है।
भगत सिंह और उनकी शहादत आज भी प्रासंगिक
सावरकर और भगत सिंह में कोई तुलना नहीं है। अपने जीवन के शुरुआती दौर में भले ही सावरकर ने ब्रिटिश सरकार से लोहा लिया हो परंतु कालापानी की सजा मिलने के बाद तो वे पूरी तरह से अंग्रेजों के आगे नतमस्तक हो गए थे। उन्होंने कई दया याचिकाएं लिखीं और जेल से रिहा किए जाने के बाद अंग्रेजों की मदद की। उन्हें सरकार की ओर से 60 रूपये प्रतिमाह की पेंशन मिलती थी। उस समय सोने का दाम 10 रूपये प्रति दस ग्राम था।
भारतीय राजनीति के विपरीत ध्रुव हैं अम्बेडकर और सावरकर
इंडियन एक्सप्रेस (3 दिसंबर, 2022) में प्रकाशित अपने लेख नो योर हिस्ट्री में आरएसएस नेता राम माधव लिखते हैं कि राहुल गांधी, अम्बेडकर और...
कश्मीर के इतिहास को तोड़ना-मरोड़ना शांति की राह में बाधक होगा
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाते समय यह दावा किया गया था कि इससे घाटी में शांति स्थापित होगी और परेशानहाल कश्मीरी पंडित समुदाय को...
कौन थे समाज को चौरस करने की चाहत रखनेवाले शिवदयाल सिंह चौरसिया
18 सितम्बर:पुण्यतिथि पर विशेषमान्यवर जी (जन्म-13-03-1903, मृत्यु-18-09-1995) का जन्म ग्राम खरिका (वर्तमान नाम तेलीबाग) लखनऊ में 13 मार्च, 1903 को हुआ। इनके पिता का...
गैर-सवर्णों के बीच एका (डायरी 28 मई, 2022)
एकता की परिभाषा क्या है और इसकी बुनियाद में कौन-कौन से तत्व शामिल होते हैं? कल यही सवाल दिनभर मेरे मन में चलता रहा।...
फैज़ की रचनाओं से तानाशाह का डरना लाज़िम है (डायरी 24 अप्रैल, 2022)
बीती रात राजस्थान की राजधानी जयपुर आया। यहाँ की यह मेरी पहली यात्रा है। इस यात्रा में जाे कुछ हासिल हो रहा है, वह...
प्रधानमंत्रियों के चुनावी भाषण पहले कैसे थे अब कैसे होते हैं
वैसे तो प्रधानमंत्री जी के संसद में दिए गए भाषण भी चुनावी भाषणों की भांति होते हैं और इनमें कटुता तथा व्यक्तिगत आक्षेपों की...
सभ्यता पर संकट
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भाजपा को छोड़ कर देश के 37 राजनीतिक दलों को एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने कहा है...
नेहरू और सुभाष के बीच पत्र व्यवहार
पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा संपादित एक ग्रंथ है जिसमें उन्हें संबोधित अनेक पत्र प्रकाशित किए गए हैं। इन पत्रों का चयन स्वयं श्री जवाहरलाल...
जिन्ना पर अखिलेश यादव की टिप्पणी : समकालीन राजनीति पर साम्प्रदायिकता की छाया
हमारे देश में जैसे-जैसे साम्प्रदायिकता का बोलबाला बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे राजनैतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सांप्रदायिक प्रतीकों और नायकों के...
कौन बनाता है मुख्यमंत्री?
तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने एक बार कहा था कि पंडित नेहरू के समय मुख्यमंत्री नामजद नहीं होते थे. उनकी इस टिप्पणी के...
लगातार भूलों के बाद भी नेहरू-गांधी परिवार पर टिकी कांग्रेस की उम्मीद
कांग्रेस शासित प्रदेशों में से मध्यप्रदेश में पहले ही कांग्रेस ने अपनी अंतर्कलह के कारण बहुत कठिनाई से अर्जित सत्ता गंवा दी थी। कांग्रेस...

