लालू प्रसाद और नीतीश कुमार दोनों ऐतिहासिक पुरुष नहीं हैं। दोनों के पास इतिहास बनाने का मौका था। लेकिन इतिहास रचने का साहस सब नहीं कर पाते। यह किसी व्यक्ति विशेष का अवगुण नहीं है। जैसे हर कोई शेर का सामना नहीं कर सकता। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह उसका ऐब हो। लालू प्रसाद और नीतीश दोनों पिछड़े वर्ग के हैं और दोनों को कुर्सी से प्यार रहा है। कुर्सी की लड़ाई में लालू प्रसाद को नीतीश कुमार ने पटखनी दी और आज कुर्सी पर काबिज हैं। उन्होंने भी लालू प्रसाद के बराबर यानी 15 साल राज करने का सुख उठा लिया है।

पिछड़े वर्ग के नेताओं में डॉ. राममनोहर लोहिया एकमात्र रहे, जिन्होंने पिछड़ों के लिए मुहिम चलायी। उनके विचारों और राजनीतिक पहलकदमी को मैं आंबेडकरवाद के जैसे ही लोहियावाद के रूप में एक सीमा तक स्वीकार करता हूं। 'पिछड़ा पावे सौ में साठ' यह पहला राजनीतिक नारा था जिसने देश भर के पिछड़ों को एकजुट करना शुरू किया। बिहार में इसका प्रभाव अधिक ही देखने को मिला। कर्पूरी ठाकुर ने मुंगरी लाल कमीशन का गठन किया और 1978-79 में जब पिछड़ों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की तब उन्हें बिहार के सवर्णों ने खुलेआम गालियां दी।

भारत में व्यक्तिवाद हमेशा से हावी रहा है। ‘वाद’ के मामले में भी। हमारे यहां मनु के नाम पर वाद है। आंबेडकर के नाम पर वाद है और अब मंडल के नाम पर वाद। लेकिन क्या वाकई यह वाद है? असल वाद तो भारत में जातिवाद और ब्राह्मणवाद है। और किसी वाद की गुंजाइश ही कहां है। आंबेडकर के विचारों और उनके द्वारा उठाए गए सवालों को एक हदतक ‘वाद’ की संज्ञा दी जा सकती है। लेकिन इसकी भी अपनी सीमायें हैं। पूर्णरूपेण ‘वाद’ तो नहीं कहा जा सकता है। यदि उनके विचारों को आंबेडकरवाद कहेंगे तो फिर जोतीराव फुले के विचारों को संबोधित करने के लिए कौन सा शब्द उपयोग में लाएंगे?
भारत में व्यक्तिवाद हमेशा से हावी रहा है। 'वाद' के मामले में भी। हमारे यहां मनु के नाम पर वाद है। आंबेडकर के नाम पर वाद है और अब मंडल के नाम पर वाद। लेकिन क्या वाकई यह वाद है? असल वाद तो भारत में जातिवाद और ब्राह्मणवाद है। और किसी वाद की गुंजाइश ही कहां है। आंबेडकर के विचारों और उनके द्वारा उठाए गए सवालों को एक हदतक 'वाद' की संज्ञा दी जा सकती है। लेकिन इसकी भी अपनी सीमायें हैं। पूर्णरूपेण 'वाद' तो नहीं कहा जा सकता है। यदि उनके विचारों को आंबेडकरवाद कहेंगे तो फिर जोतीराव फुले के विचारों को संबोधित करने के लिए कौन सा शब्द उपयोग में लाएंगे?


नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
[…] गैर-सवर्णों के बीच एका (डायरी 28 मई, 2022) […]