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सियासत और समाज  ( डायरी 6 अक्टूबर, 2021)  

सियासत यानी राजनीति की कोई एक परिभाषा नहीं हो सकती है। साथ ही यह कि सत्ता पाने का मतलब केवल प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनना...

विज्ञापनों के बारे में कभी ऐसे भी सोचिए डायरी (29 सितंबर, 2021)

अखबारों का संबंध राजनीति से बहुत सीधा है। इसे स्थापित करने के लिए प्रमाणों की कोई कमी नहीं है। अखबारों में विज्ञापनों का प्रकाशन...

बातें नौकरशाहों की डायरी (21 सितंबर, 2021)

 स्मार्टफोन हमेशा स्मार्ट नहीं होते। कल यह नई जानकारी मिली। यह इसके बावजूद कि आजकल के स्मार्टफोन में एंड्रायड जैसा आपरेटिंग सिस्टम होता है...

जगदेव प्रसाद की हत्या से जुड़ा एक दस्तावेज, जिसे गायब कर दिया गया डायरी (5 सितम्बर,2021)

कल फिर एक तथाकथित महान पुरूष ने मीडिया और जाति का सवाल छेड़ दिया। खुद को दलित वैचारिकी का स्तंभ माननेवाले इस महान पुरूष...

भावनाएं केवल ताकतवालों की आहत होती हैं जज साहब! डायरी (3 सितंबर, 2021)

कल का दिन बेहद खास रहा। खास कहने के पीछे कोई व्यक्तिगत कारण नहीं है। वैसे भी जब आदमी तन्हा हो तो व्यक्तिगत कारणों...

जातिगत जनगणना का सवाल और बदलते संदर्भ  डायरी (24 अगस्त, 2021)

मनुष्यों के बीच तुलना के लिए अनेकानेक क्राइटेरिया हैं और इनके आधार पर ही कुछ खास गुणों की पहचान होती है। मतलब यह कि...

ब्राह्मणवाद पर अदालती प्रहार डायरी (19 अगस्त, 2021)

परिस्थितियां एक जैसी कभी नहीं रहतीं। बदलती रहती हैं। यह मनुष्य पर निर्भर करता है कि वह बदल रही परिस्थितियों के अनुरूप खुद को...

बात, जो पूंजीवाद और नवउदारवाद के विमर्श के परे भी है डायरी (17 अगस्त, 2021)

पूंजीवाद मेरे जीवन में पहली बार तब आया जब मैं पत्रकार बना ही था। पटना से प्रकाशित दैनिक आज में मुझे जो बीट दिया...

पत्रकारिता, संसद, न्यायपालिका और बेपरवाह हुक्मरान (डायरी, 16 अगस्त, 2021)  

प्रधानमंत्री के पद पर बैठा व्यक्ति बेहद महत्वपूर्ण होता है। उसे अपना अपना महत्व बनाए रखना चाहिए। इसके लिए उसका उदार होना, सौम्य होना...

जाति गणना के बिना जाति असमानता का पता नहीं लगाया जा सकता

जातिगणना की मांग जोर पकड़ने लगी है। पक्ष और विपक्ष में दावे अपनी जगह हैं और जनगणना जैसी जरूरी और वैज्ञानिक प्रक्रिया से समाजिक...

 विमल, कंवल और उर्मिलेश (तीसरा भाग) डायरी (12 अगस्त, 2021) 

संस्कृतियां आसमानी नहीं होतीं। संस्कृतियों का निर्माण किया जाता है। और फिर ऐसा भी नहीं कि संस्कृति का निर्माण कोई एक दिन में हो...

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