विज्ञापनों के बारे में कभी ऐसे भी सोचिए डायरी (29 सितंबर, 2021)
नवल किशोर कुमार
एक प्रमाण है वर्ष 2008 का। तब कोसी नदी कहर बरपा चुकी थी और बाढ़ के उपरांत बीमारियों से कोसी के इलाके में हाहाकार जैसा दृश्य था। तब राजद के बड़े नेता श्याम रजक अखबारों में विज्ञापन देना चाह रहे थे। विज्ञापन में नीतीश कुमार की आलोचना की गई थी। पटना में सबसे बड़े विज्ञापन एजेंसी के मालिक ने हाथ खड़ा कर लिया। हालांकि हाथ खड़े करने से पहले उसने पटना के सभी अखबारों के मालिकों से बात की थी। अंतत: पटना से प्रकाशित एक छोटे अखबार ने उस विज्ञापन को छापा था।
कल से कुछ लोग मुझे यह कह रहे हैं कि बिहार के एक युवा भूमिहार नेता के बारे में कुछ लिखूं। ऐसा कहनेवाले भूमिहार ही हैं। वे चाहते हैं कि मैं चाहे युवा भूमिहार नेता की आलोचना ही करूं, लेकिन लिखूं जरूर। दरअसल, वे ऐसा इसलिए चाहते हैं ताकि भूमिहारों के नाम की चर्चा हो। वे केवल चर्चा में बने रहना चाहते हैं ताकि ब्राह्मणों व बनियों के गंठजोड़ को परास्त कर सकें।
एक बड़े टीवी स्क्रीन पर विज्ञापन आ रहा था। विज्ञापन उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा जारी किया गया था और दिखाया दिल्ली के लोगों को जा रहा था। मतलब यह कि उत्तर प्रदेश की जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा दिल्ली में विज्ञापनों पर खर्च किया जा रहा है। यह कोई अनोखी बात नहीं है। आम जनता को वैसे भी अपनी गाढ़ी कमाई की चिंता कब रहती है। वह तो अपनी ही जाति और मजहब के नशे में चूर रहती है।
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