तेजी से बढ़ती बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। अनियमित बारिश और अत्यधिक गर्मी के कारण कृषि पर निर्भर लोगों को भी भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। यही कारण है कि कृषि अब कई लोगों के लिए आजीविका का साधन नहीं रह गई है। आजीविका के अन्य साधनों के सीमित विकल्प ने रोज़गार के संकट को चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
‘गांव के लोग’ ने 26 जुलाई 2024 को ‘मिर्ज़ापुर में शवदाह का ठेका : अब धरकार नहीं, ठाकुर साहब बेचेंगे चिता जलाने की आग’ शीर्षक से एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए मिर्ज़ापुर जिले के भोगांव गंगा घाट पर दशकों से चिंता को आग देते हुए आए धरकार समाज की चिंताओं को रेखांकित किया था। एक झटके में कैसे उनको रोजगार से वंचित कर दिया गया। कुछ लोगों की इस पर तीखी प्रतिक्रिया भी रही तो काफी लोगों ने इस रिपोर्ट को सराहते हुए जिला पंचायत के निर्णय पर सवाल खड़े किए थे। आखिरकार यह कैसा फैसला है? इस फैसले से धरकार समाज के समक्ष रोजी-रोटी की समस्या बढ़ गई और उसने आंदोलन का रास्ता चुना। मिर्ज़ापुर से संतोष देव गिरि की रिपोर्ट।
कालबेलिया सदियों से एक घुमंतू समुदाय के रूप में दर्ज रहा है। ऐतिहासिक रूप से इन्हें सांप पकड़ने वाला समुदाय माना जाता है। यह एक जगह स्थायी निवास की अपेक्षा गांव के बाहर खुले मैदानों या चरागाहों में अपना पड़ाव डाला करते थे। वर्तमान में इस समुदाय में साक्षरता की दर कम है। वहीं सरकार की ओर से कई कल्याणकारी योजनाएं चलाने के बावजूद रोज़गार के मामले में इस समुदाय को अभी भी काफी विकास करने की आवश्यकता है।
गांव में मनरेगा के अतिरिक्त रोजगार का कोई अन्य विकल्प नहीं है, इसलिए जब लोगों को मनरेगा के अंतर्गत काम नहीं मिलता है तो वह या तो मजदूरी करने शहर जाते हैं अथवा गांव से पलायन कर महानगरों या औद्योगिक शहरों की ओर चले जाते हैं। वर्ष 2024-25 के बजट में मनरेगा समेत रोजगार के कई क्षेत्रों में बजट आवंटन को बढ़ाया गया है। देखना यह होगा कि आने वाल समय में मनरेगा मजदूरों को काम मिलने के बाद समय पर उचित भुगतान मिलेगा या नहीं?
हर शहर के खुले और बाहरी क्षेत्रों में ऐसे लोग झोपड़ी बनाकर रहते हैं, जिनके पास किसी तरह का कोई काम नहीं होता। कभी-कभी मिल जानी वाली मजदूरी से परिवार चलते हैं। इस वजह से इनके पास शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी कोई सुविधा नहीं होती। इनमें अधिकतर लोगों के सरकारी दस्तावेज़ भी नहीं बन पाते हैं, जिससे इन्हें सरकारी योजना का फायदा मिल सके। ऐसे समुदाय के लिए कुछ करने की ज़िम्मेदारी राज्य की होती है लेकिन राज्य कभी ध्यान नहीं देता।
केन्द्र की मोदी सरकार की नीतियों से युवाओं में न सिर्फ निराशा और हताशा है बल्कि आक्रोश का एक गुबार भी उनके अन्दर है । बेरोजगार युवाओं के अन्दर का यह गुबार वोट की चोट के रूप में देखने को मिलेगा, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।
आखिर क्यों नरेन्द्र मोदी की मीडिया द्वारा गढ़ित छवि को तमिलनाडु की जनता नकार देती है, इस पर उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, गुजरात एवं महाराष्ट्र के युवाओं एवं आम नागरिकों को भी विचार करना चाहिए।
जहाँ एक तरफ सरकार देश के युवाओं को रोजगार मांगने वाला नहीं बल्कि देने वाला बता रही है वहीं फतेहपुर के युवा कॉलेज से डिग्रियां लेने के बाद भी रोजगार के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।
भ्रष्टाचार को लेकर सर्वे की बात की जाए तो 55% लोगों ने माना है कि देश में भ्रष्टाचार बढ़ा है। 25% लोगों ने भ्रष्टाचार के लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहराया है और 16% लोगों ने राज्यों को दोषी ठहराया है।
भारत में बीते 22 वर्षों के दौरान माध्यमिक या उससे ऊपर की शिक्षा प्राप्त बेरोजगार युवाओं की संख्या बढ़ी है। सन 2000 में सभी बेरोजगारों में शिक्षित युवाओं की हिस्सेदारी 54.2% थी अब यह संख्या बढ़कर 2022 में 65.7% हो गई है।
राजस्थान के कालू गाँव के लोग रोजगार न मिलाने से परेशान तो हैं ही रोजगार की तलाश में वे गाँव से पलायन भी कर रहे हैं । ग्रामीणों को रोज़गार के लिए पलायन करने पर मजबूर होना पड़े तो सरकार को अपनी बनाई नीतियों की फिर से समीक्षा करने की ज़रूरत है।
कन्नूर (भाषा)। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी ने आज कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अन्य संवैधानिक पदाधिकारियों की उपस्थिति में...
बिहार के कई ऐसे गांव हैं जहां प्रति वर्ष ग्रामीणों की एक बड़ी आबादी रोज़गार के लिए पलायन करती है। इनमें अधिकतर संख्या अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी और पसमांदा तबके की है। जो आर्थिक रुप से काफी कमज़ोर होते हैं।