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मिर्ज़ापुर : चिता को आग के अधिकार की बहाली के लिए धरकार समुदाय का धरना

‘गांव के लोग’ ने 26 जुलाई 2024 को ‘मिर्ज़ापुर में शवदाह का ठेका : अब धरकार नहीं, ठाकुर साहब बेचेंगे चिता जलाने की आग’ शीर्षक से एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए मिर्ज़ापुर जिले के भोगांव गंगा घाट पर दशकों से चिंता को आग देते हुए आए धरकार समाज की चिंताओं को रेखांकित किया था। एक झटके में कैसे उनको रोजगार से वंचित कर दिया गया। कुछ लोगों की इस पर तीखी प्रतिक्रिया भी रही तो काफी लोगों ने इस रिपोर्ट को सराहते हुए जिला पंचायत के निर्णय पर सवाल खड़े किए थे। आखिरकार यह कैसा फैसला है? इस फैसले से धरकार समाज के समक्ष रोजी-रोटी की समस्या बढ़ गई और उसने आंदोलन का रास्ता चुना। मिर्ज़ापुर से संतोष देव गिरि की रिपोर्ट।

मिर्ज़ापुर जिले के भोगांव के निवासी धरकार समुदाय के दर्जनों लोग जिलाधिकारी कार्यालय के पास कई दिनों से धरना दे रहे हैं। उनकी मांग है कि चिता को आग देने के उनके पारंपरिक अधिकार को उन्हें वापस किया जाय। गौरतलब है कि पिछले कुछ महीनों से आग देने का अधिकार जिला पंचायत ने अपने पास रखते हुये इस काम के लिए टेंडर जारी किया। जिसके नाम टेंडर होगा वही पैसे लेगा। भोगांव के ही ठाकुर समुदाय के एक व्यक्ति ने टेंडर प्राप्त किया। अब प्रति शव एक हज़ार रुपए की पर्ची वही काटते और आग देते हैं जिससे दशकों से चीता को आग देकर अपनी आजीविका चलानेवाला धरकार समुदाय एकाएक बेरोजगार हो गया।

धरकार समुदाय के लोगों का कहना है कि घाट पर उन्हें जाने से गाँव के ठाकुरों और उनके लोगों द्वारा रोका गया और गालियाँ दी गई। उन्हें खामोश रहने के लिए धमकाया जा रहा है। अब उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। पीड़ित धरकार समुदाय का कहना है कि हम सभी पीड़ित अपनी आजीविका वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। शव जलाने के पुश्तैनी काम से जुड़ी धरकार जाति की महिलाओं-पुरुषों ने बीते महीने 24 जुलाई 2024 को जिलाधिकारी कार्यालय पर दर्जनों की संख्या में पहुंचकर ज्ञापन सौंपा था। भोगांव के गोवर्धन धरकार, मीना देवी, मालती, भानू, रेखा देवी, भगंतू, बुटनू, टेघली, बसंती, हीरा, मुखांती, लवकुश, गुड्डी, पंचू, सिकंदर, नाथेराम, श्याम बिहारी, लल्लन धरकार और हरीलाल इत्यादि ने जिलाधिकारी से गुहार लगाई थी कि उन्हें अपने पुश्तैनी काम से अलग न किया जाय तथा दबंगों का ठेका निरस्त किया जाय।

कलेक्ट्रेट पर धरना-प्रदर्शन में शामिल होने आई महिलाओं ने कहा कि ‘भोगांव गंगा घाट पर शवदाह संस्कार करने का कार्य ण जाने कब से उनके पुरखे करते हुए आएं हैं। इसी से उनका तथा उनके परिवार का भरण-पोषण होता है। लेकिन इधर बीच जिला पंचायत अध्यक्ष और बड़े अधिकारियों ने बग़ैर सूचना के आनन-फानन में ठेका पास कर दिया गया।’

मिर्ज़ापुर और भदोही जिले की सीमारेखा पर स्थित ग्रामसभा भोगांव में एक श्मशान घाट है जहां दशकों से बिना किसी टेंडर और प्रशासनिक दखल के शवदाह के लिए आग देने का काम धरकार जाति के लोग करते आए हैं। इसी काम से मिले पैसे और अनाज आदि से उनकी आजीविका चलती थी, लेकिन अब जिला पंचायत मिर्ज़ापुर ने मोटी कमाई का जरिया मानते हुये इसे ठेके पर उठा दिया है। ठेका भी धरकारों को नहीं बल्कि गाँव के ठाकुरों को दिया गया है।

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धरकार समुदाय को नहीं मिली भागीदारी 

विगत 9 जुलाई 2024 से भोगांव ग्रामसभा में स्थित घाट पर शवदाह के लिए जिला पंचायत मिर्ज़ापुर की निर्धारित दर की सूची का लोहे का बोर्ड लगा दिया गया है। शवदाह निस्तारण के लिए 1000 रुपए प्रति शव का रेट तय किया गया है। इस काम के लिए टेंडर प्रक्रिया भी पूरी कर ली गई है। जब टेंडर जारी हुआ तब धरकार समुदाय को लगा कि वह उनको ही मिलेगा लेकिन टेंडर उनको न मिलकर गांव के एक सर्वण को मिला। इसके विरोध में उतरे धरकार जाति के लोगों ने जिला पंचायत प्रशासन को आड़े हाथों लेते हुए मौजूदा शवदाह प्रक्रिया को अपनी जीविका पर कुठाराघात बताया है।

कलेक्ट्रेट में मौजूद समुदाय की महिलाएँ बताती हैं कि ‘जानकारी होने पर जब हमने अधिकारियों से विरोध दर्ज कराया तो उन्होंने आश्वासन दिया था कि हमारा (ठेका लेने वाले) कार्य गंगा घाट की साफ-सफाई आदि का है। इसी का ठेका भी हुआ है। शवदाह का ठेका नहीं हुआ है।’

वे सवाल करती हैं कि ‘फिर 1000 रुपए प्रति शव का रेट बोर्ड क्यों लगाया गया है? क्या यह बोर्ड अवैध है? जबकि अधिकारियों द्वारा आश्वासन दिया गया था कि शवदाह संस्कार का कार्य सिर्फ धरकार समुदाय लोग ही करेंगे, जिसमें न तो प्रशासन, पुलिस और ना ही कांट्रेक्टर का कोई व्यक्ति हस्तक्षेप करेगा।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिन्हें टेंडर मिला है वे और उनके गुंडे हमलोगों को मारकर भागा रहे हैं। वहाँ उपस्थित एक महिला ने कहा ‘हमारे विरोध को देखते हुये उन लोगों ने कहा कि पर्ची तो कटती रहेगी। तुम लोग मुर्दा लेकर आए लोगों से पैसा ले सकते हो।जिला पंचायत के इस मनमाने फैसले से हम भुखमरी के कगार पर आ गए हैं। सैकड़ों परिवारों की आजीविका प्रभावित हुई है।’

धरकार समुदाय के साथ आई समाजवादी पार्टी

धरकार जाति के पुश्तैनी सामाजिक व्यवस्था पर हुए कुठाराघात पर ज़्यादातर दलों ने चुप्पी साध रखी है, जबकि ये सभी के लिए वोटर हैं। फिलहाल समाजवादी पार्टी के भदोही जिलाध्यक्ष ने जरूर पहल करते हुए इसका विरोध किया है और जिलाधिकारी से मिलकर मिर्ज़ापुर जिला पंचायत के फैसले को ग़लत करार देते हुए रद्द करने की भी मांग की।

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दिव्यांग लल्लन धरकार

भोगांव गंगा घाट पर शव की अन्त्येष्टि के नाम पर मिर्जापुर जिला पंचायत द्वारा प्रति शव एक हजार रुपये वसूलने के विरोध में 12 अगस्त 2024 को सपा के भदोही जिलाध्यक्ष प्रदीप यादव एवं सपा के मिर्ज़ापुर जिलाध्यक्ष देवी प्रसाद चौधरी के नेतृत्व में प्रतिनिधिमण्डल ने जिलाधिकारी मिर्ज़ापुर प्रियंका निरंजन से मिलकर विरोध जताया था।

सपा नेताओं का कहना है कि शव की अन्त्येष्टि के नाम पर जिला पंचायत मिर्ज़ापुर द्वारा जो कर वसूला जा रहा है, वह जनहित में उचित नही है। मिर्जापुर और जनपद भदोही के अन्य किसी भी घाट पर अन्त्येष्टि हेतु जिला प्रशासन द्वारा किसी भी प्रकार का कोई कर नहीं वसूला जाता है। भोगांव घाट पर कर वसूलने से जनता में आक्रोश है। जनहित में वसूली बन्द करना नितान्त आवश्यक है, अन्यथा सपा आन्दोलन के लिये बाध्य होगी। इस मौके पर पूर्व राज्यमंत्री मुन्नी यादव, सपा जिलाध्यक्ष मिर्ज़ापुर देवी प्रसाद चौधरी, शिवकुमार यादव, सत्यप्रकाश यादव, राममिलन यादव आदि मौजूद थे।

यह विडम्बना ही है कि जाति व्यवस्था के भीषण दुष्चक्र के शिकार बहुत सारे समाज अभी भी अपने पुराने पेशे को करने के लिए अभिशप्त हैं जबकि अपने इन्हीं पेशों के कारण वे न केवल बहिष्कृत रहे हैं बल्कि सामाजिक घृणा के शिकार भी रहे हैं। इन स्थितियों के कारण ही वे पढ़-लिखकर किसी अन्य पेशे में नहीं जा सके और न ही उन्हें अपने प्रति मौजूद सामाजिक घृणा का ही अहसास हुआ। विडम्बना यह भी है कि अब जब उनसे वह पेशा छिन रहा है तब उन्हें कोई भविष्य नहीं दिख रहा है क्योंकि पहले से चले आ रहे पेशे के अनुरूप ही उन्होंने अपने जीवन को पूरी तरह ढाल लिया है। इसी को उन्होंने अपनी जीवनशैली और हैसियत बना लिया जिससे आजीविका पर आए इस संकट ने उनके सामने बेरोजगारी और लाचारी की स्थिति पैदा कर दी है।

इससे बड़ी विडम्बना यह है कि रामराज का दावा करने वाली सरकार अब इस तरह के असंगठित और कमतर माने जाने वाले पेशों को भी ठेकेदारी में लेना शुरू कर दिया है और उनको देना शुरू किया है जो अपने को औरों से श्रेष्ठ समझ रहे थे। कई विडंबनाओं से भरी यह कहानी अर्थव्यवस्था की असफलता की एक करुन कहानी भी है।

संतोष देव गिरि
संतोष देव गिरि
स्वतंत्र पत्रकार हैं और मीरजापुर में रहते हैं।

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