इतने खूबसूरत बर्तन बनाने में मिट्टी तैयार करने से लेकर उसकी सजावट करने के बाद बाजार तक लाने में बेहिसाब मेहनत लगती है, आज की पूंजीवादी व्यवस्था में यह काम आसान नहीं है लेकिन निज़ामाबाद में यहाँ का कुम्हार समुदाय पूरे परिवार के साथ इस काम में लगा हुआ है। इसके बावजूद इन्हें इसकी उचित कीमत नहीं मिल पाती। इन शिल्पकारों की चिंता इसे कला को बचाने की है। पढ़िए अंजनी कुमार की ग्राउन्ड रिपोर्ट का दूसरा और अंतिम भाग।
भाई संतोष कुमार भारत से यहाँ फरवरी में आये और मुझे मिले तो मुझे लगा जैसे भारत से मेरा कोई भाई आया है| हम एक ही भोजपुरी भाषा बोलते हैं जो की मेरे बचपन में यहाँ बोली जाती थी (आजकल लोग सिर्फ अंग्रेजी बिल्ट हैं जिसपर मुझे काफी दुःख होता है)| हमें अब अपनी पुरानी भाषा को वापस लाना है और अपने पुरानी संस्कृति को जिन्दा करना है|