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निज़ामाबाद के काले मृदभांड : कठिन परिश्रम और सूझबूझ से चमकदार बनते हैं ये बर्तन -2

इतने खूबसूरत बर्तन बनाने में मिट्टी तैयार करने से लेकर उसकी सजावट करने के बाद बाजार तक लाने में बेहिसाब मेहनत लगती है, आज की पूंजीवादी व्यवस्था में यह काम आसान नहीं है लेकिन निज़ामाबाद में यहाँ का कुम्हार समुदाय पूरे परिवार के साथ इस काम में लगा हुआ है। इसके बावजूद इन्हें इसकी उचित कीमत नहीं मिल पाती। इन शिल्पकारों की चिंता इसे कला को बचाने की है। पढ़िए अंजनी कुमार की ग्राउन्ड रिपोर्ट का दूसरा और अंतिम भाग।

उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में भाजपा ने मारी बाजी सभी सीटों पर मेयर बनाने में कामयाब

शहरी क्षेत्रों में भाजपा का दबदबा बरकरार, ग्रामीण क्षेत्रों में भी धीमी रही सायकिल की चाल मरणासन्न हाथी के लपेटे में कई उम्मीदवारों की उम्मीद...

सामंतवाद के खिलाफ उठी रमाकांत यादव की आवाज, सियासी गलियारे में पहुँचकर सामंती चेहरे में बदल गई

उत्तर प्रदेश के बाहुबली -9 आजमगढ़ के आतंक बाहुबल का ऐसा रसूख कि पत्नी के खिलाफ जब पूर्व मुख्यमंत्री ने चुनाव लड़ा तो पूर्व मुख्यमंत्री को...

मऊ का मुख्तार : पर्वाञ्चल के ठाकुर और भूमिहार माफिया के खिलाफ खड़ा माफिया

उत्तर प्रदेश के बाहुबली -3 पिता के अहम पर आंच तो आई तो हथियार उठाया, गुरुदक्षिणा में हत्या की और बन गया उत्तर प्रदेश का...

मिट्टी में मिला देने के दंभनाद के समानांतर हत्या, हथियार और अपराध के भय में थराथराता उत्तर प्रदेश

पुलिस की हिरासत में पूर्व सांसद और पूर्व विधायक की हत्या से उत्तर प्रदेश में अपराध की सच्चाई और सुरक्षा के दावे बेनकाब उत्तर प्रदेश...

यूपी के राज ठाकरे बन रहे मोदी-योगी (डायरी 11 फरवरी, 2022)

देश को गृह युद्ध की तरफ धकेला जा रहा है। इसे रोकने की जिम्मेदारी भारत की जनता को है और इसके लिए मीडिया को...

कांग्रेस का डबल अटैक, पंजाबियत और दलित कार्ड

पंजाब विधानसभा का चुनाव यूं तो भाजपा के लिए किसान आंदोलन से ही मुश्किल भरा चुनाव नजर आ रहा था, और कांग्रेस के लिए...

लगता है मेरा लिखा ग़लत साबित हो रहा है …

कई वर्ष पूर्व यह टिप्पणी लिखी थी: 2019 तक उत्तरप्रदेश को लूट कर चोखा बना दिया जाएगा। जनता त्राहिमाम करने लगेगी कि अबकी सबक सिखाना...

कहाँ गए वे मोटे अनाज

पिछले कई वर्षों से देश के कुछ हिस्सों की तरह हमारे पूर्वी उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों में मानसून कमजोर ही रहा था और...

क्या कोई मेरे गाँव का नाम बता सकता है

भाई संतोष कुमार भारत से यहाँ फरवरी में आये और मुझे मिले तो मुझे लगा जैसे भारत से मेरा कोई भाई आया है| हम एक ही भोजपुरी भाषा बोलते हैं जो की मेरे बचपन में यहाँ बोली जाती थी (आजकल लोग सिर्फ अंग्रेजी बिल्ट हैं जिसपर मुझे काफी दुःख होता है)| हमें अब अपनी पुरानी भाषा को वापस लाना है और अपने पुरानी संस्कृति को जिन्दा करना है|

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