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सांस्कृतिक और भोगौलिक विभिन्नता लिए पहाड़ी पर स्थित शहर लद्दाख

भारतवर्ष का विशाल भूखंड कई देशों की सीमाओं से लगा हुआ है। चीन, पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, बांगला देश और श्री लंका आदि देशों से मिलने वाले सीमाओं में कभी-कभी भौगोलिक अस्थिरता उत्पन्न हो उठती है। आज इस समय जब पूरा विश्व एक अलग लड़ाई अपने-अपने सीमाओं के भीतर कोरोना वाइरस से मुक्ति के लिए लड़ […]

भारतवर्ष का विशाल भूखंड कई देशों की सीमाओं से लगा हुआ है। चीन, पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, बांगला देश और श्री लंका आदि देशों से मिलने वाले सीमाओं में कभी-कभी भौगोलिक अस्थिरता उत्पन्न हो उठती है। आज इस समय जब पूरा विश्व एक अलग लड़ाई अपने-अपने सीमाओं के भीतर कोरोना वाइरस से मुक्ति के लिए लड़ रहा है, ऐसे समय में घाटी में अशांति चिंता का विषय है। आज मानव जीवन एक नये मोड़ पर आ खड़ा हुआ है, जिसके हम सभी गवाह हैं। इस रोग ने हमें घर के चार दीवारों में आबद कर दिया है। लोग नए तरीके से अपने जीवन को सरल बनाने में जुटे हुए हैं। जहां एक ओर नयी तकनीकों से भविष्य का निर्माण कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पुरानी यादों में रंग भरने की कोशिश कर रहे हैं। इसी संदर्भ में भ्रमण के प्रति विशेष रूझान होने के कारण मैं आपसे लेह में बिताये उन स्मृतियों को साझा कर रही हूं और उम्मीद करती हूं कि घाटी में सब कुछ सामान्य हो जाएगा।

लेह प्रकृति की गोद में बसा एक बेहद साफ़ सुथरा और खुबसूरत शहर है। परिवार के हम दस सदस्यों ने लेह जाने का निर्णय किया। यह एक अलग तरह की रोमांचक यात्रा थी। लेह समुद्र तल से लगभग 11500 फीट उपर होने के कारण यहां आक्सीजन की कमी का सामना करना पड़ सकता है। हम गर्म कपड़े सभी आवश्यक दवाईयां और दस्तावेज साथ में रखे। लेह एयर पोर्ट पहुंचने पर हमें गाइड द्वारा पहले ही दिन होटल में रहने की सलाह दी गयी। हमने देखा कि होटल के छत पर रखा पानी टंकी पूरी तरह से थरमोकोल और पालीथीन से ढ़का हुआ है। पूछने पर पता चला कि इससे पानी बर्फ होने से बचा रहता है।

[bs-quote quote=”अप्रतिम सौन्दर्य से भरपूर लेह में हमारा दूसरा दिन पूरी व्यस्तता से भरा हुआ रहा। लेह से पांच किमी की दूरी पर स्थित ‘हाल आफ फेम’ देखने गये। यह सैनिकों द्वारा बनाया गया अभूतपूर्व सैनिक संग्रहालय है जो सीमाओं पर शहीद हुए जवानों को समर्पित करता है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

अप्रतिम सौन्दर्य से भरपूर लेह में हमारा दूसरा दिन पूरी व्यस्तता से भरा हुआ रहा। लेह से पांच किमी की दूरी पर स्थित ‘हाल आफ फेम’ देखने गये। यह सैनिकों द्वारा बनाया गया अभूतपूर्व सैनिक संग्रहालय है जो सीमाओं पर शहीद हुए जवानों को समर्पित करता है।

स्पीतुक गुम्फा

लेह से आठ किमी दूर ‘स्पीतुक गुम्फा’ एक दर्शनीय बौद्ध मठ है । यहां मुखौटों, भित्तिचित्रों, प्राचीन ग्रंथों, पुस्तकों, पत्रिकाओं का प्रचुर मात्रा में संकलन है। यहां कालीमाता मंदिर देखने के पश्चात हम गुरूद्वारा पत्थर साहिब दर्शन करने पहुंचे। बताया जाता है कि 1517 में गुरूनानक देव जी लेह पहुंचे थे। 1970 के बाद इस गुरुद्वारा का रख-रखाव भारतीय सेनाओं द्वारा किया जा रहा है। लेह के मैग्नेटिक हिल पहाड़ी क्षेत्र में चुंबकीय क्षमता अधिक होने के कारण न्यूटृल में खड़ी गाडियां अपने आप पहाड़ी की ओर चढ़ने लगती है, यह अनुभूति आश्चर्यजनक थी।

सिन्धु नदी

दोपहर पश्चात हम नींबू गांव के करीब ‘सिन्धु नदी और ज्यान्सकार नदी’ के संगम स्थल पर प्रकृति का आनंद लेने पहुंचे। यह लेह से तीस किमी दूर स्थित है और विश्व का सबसे ऊंचा राफ्टिंग रिवर है। इसे देखकर शाम होने से पहले हम होटल लौट आए।आज हम बहुत उत्साहित हैं, क्योंकि हम ठंडे रेगिस्तान के सफर में जा रहे थे। लेह से 125 किमी की दूरी पर स्थित नुब्रा उपत्याका के प्राकृतिक सौंदर्य से हमारा साक्षात्कार होना था। खारदुंगा ला पास इसका प्रवेश द्वार है। यह विश्व का सबसे ऊंचा मोटरेबल रोड है जो 18390 फीट ऊंचा है। यहां से चीन की सीमा और उनके सैनिकों के आवागमन को देखा जा सकता है। सेब, खुबानी, अखरोट यहां पाए जाते हैं। पहाड़ों का जहाज ‘याक’ यहां के जीवन की कठिन चुनौतियों का सामना करने में मदद करता है। नुब्रा वैली को फूलों की घाटी कहते हैं यह काराकोरम और लद्दाख के विस्तृत हिमालय क्षेत्र में है। लद्दाख के शुष्क पहाड़ों के बीच बसी नुब्रा घाटी जितनी उबड़-खाबड़ है, उतनी ही ऊंची है।

[bs-quote quote=”लेह से आठ किमी दूर ‘स्पीतुक गुम्फा’ एक दर्शनीय बौद्ध मठ है । यहां मुखौटों, भित्तिचित्रों, प्राचीन ग्रंथों, पुस्तकों, पत्रिकाओं का प्रचुर मात्रा में संकलन है। यहां कालीमाता मंदिर देखने के पश्चात हम गुरूद्वारा पत्थर साहिब दर्शन करने पहुंचे। बताया जाता है कि 1517 में गुरूनानक देव जी लेह पहुंचे थे।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

दोपहर भोजन के बाद हम वीरान गांव हुंडर पहुंचे, यहां विशाल क्षेत्र में फैला सफेद रेत का मैदान और रेतीले टीले हैं, दो कूबड़ वाले ऊंट की हमने सवारी की। हुंडरू में भारत और पाकिस्तान का बॉर्डर है यहां लद्दाखी और तिब्बती रहते हैं। यहां पहले सिल्क रूट था,जो व्यापारिक मार्ग का महत्वपूर्ण पड़ाव रहा है। हमने यहां मॉनेस्ट्री देखी, जहां बुद्ध की विशाल प्रतिमा आकर्षक का मुख्य केंद्र है, यहां बर्फीली हवाओं के बीच हमने रात्रि विश्राम टेंट में किया।

बौद्ध मंदिर

पैंगोंग लेक, लेह का सौंदर्य स्थल ही नहीं प्राण केंद्र भी है। कल शाम जब हम यहां पहुंचे थे, सूर्यास्त होने को था। सूर्यास्त के साथ ही अचानक देखते ही देखते मौसम बदल गया। ठंडी हवाओं का झोंका तेज बर्फीली हवाओं में तब्दील हो गया। टेंट तक जाने की जल्द बाजी में हमारी सांसें फूलने लगी, चलना संभव नहीं हो रहा था, वहां के कर्मचारियों ने हमारी मदद की। उनके द्वारा हर टेंट में चार से पांच गर्म पानी से भरा बैग पहुंचाया गया। टेंट किस प्रकार खोला जाता है और बंद किया जाता है के बारे में पूरी जानकारी दी। टेंट अटैच टॉयलेट के साथ था। इस बीच हल्की बर्फबारी शुरू हो गई थी।

हमारे पांचो टेंट लगातार लगे हुए थे टेंट के अंदर से ही दूसरे टेंट से बात कर सकते थे। रात्रि भोजन के लिए डाइनिंग टेंट तक पहुंचना कठिन था, सिर्फ हेमंत अपने बच्चों के साथ गया था। अत्यधिक मोटे रजाई के अंदर मुश्किल से घुस पाए जैसे इग्लू में लोग जाते हैं, इस तरह हम रजाई में घुसे थे। सुबह सूर्य की किरणें टेंट पर पड़ी जो कि बहुत तेज थी। कल की घटना पर हमने चाय पर चर्चा की। हेमंत के जोर से गाना गाने के कारण उसकी हथेली हल्की नीली हो गई थी और मेरे चेहरे में रात को ठंड के कारण झुनझुनी आ गई थी, जो लगभग 7-8 घंटे में ठीक हुई। नाश्ता करने के पश्चात हम लोग पुनः लेक में गए वहां के लैंडस्केप सौंदर्य को जी भर कर निहारा। कुछ देर वहां रहे और वहां से हम हेमिस मॉनेस्ट्री की ओर निकले।

[bs-quote quote=”लामाओ के देश लद्दाख में प्रायः हर गांव में बौद्ध गुफा बनी हुई है। इसमें से 12 विशेष रूप से उल्लेखनीय है। हेमिस मॉनेस्ट्री इसमें से एक है, जो गुफाओं में बृहत्तम है। यहां कई मंदिर, कई मूर्तियां, स्वर्ण जड़ित मूर्तियां उपासना केंद्र है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

लामाओ के देश लद्दाख में प्रायः हर गांव में बौद्ध गुफा बनी हुई है। इसमें से 12 विशेष रूप से उल्लेखनीय है। हेमिस मॉनेस्ट्री इसमें से एक है, जो गुफाओं में बृहत्तम है। यहां कई मंदिर, कई मूर्तियां, स्वर्ण जड़ित मूर्तियां उपासना केंद्र है। प्रथम तल के मंदिरों के चित्र अत्यंत मनोरम है। यहां अवलोकेतेश्वर बुद्ध की प्रतिमा है। चारों ओर बहुमूल्य धातु और रत्न से सुसज्जित मूर्तियां दर्शनीय है। तिब्बत के प्रधान लामा के सहस्त्र हाथों वाली मूर्ति भी दर्शनीय है। यहां पांडुलिपियों का अमूल्य संग्रह है। विश्व की वृहत तम थक्का चित्र ,कपड़े पर अंकित चित्र हेमिस में ही है। हर बारह वर्ष के अंतराल में उत्सव काल में इसे देखा जा सकता है। दूरदराज से परंपरागत पोशाकों में सजेधजे लामा यहां आते हैं,तीर्थ यात्रियों की भी बहुत अधिक भीड़ होती है।

बुद्ध की प्रतिमाएं

लेह के रास्ते हम रैंचो स्कूल भी गए। जो मिट्टी से बना हुआ है यहां पर सौर ऊर्जा से रोशनी की जाती है, साथ ही सौर ऊर्जा से कमरों में गर्मी बनाई जाती है। शिक्षा के क्षेत्र में यहां अभिनव प्रयोग किया जा रहा है। यहां अनुत्तीर्ण छात्र को प्रवेश में प्राथमिकता दी जाती है। अगस्त 2010 में यहां बादल फटने से भयंकर बाढ़ आ गई थी जिससे बहुत अधिक तबाही हुई थी । इस विद्यालय में गरीब और अनाथ बच्चे हॉस्टल में ही रहते हैं। बहुत प्रकार की प्रयोगशाला हमने देखी। विद्यालय का निर्माण किस प्रकार हुआ इसके बारे में हमें फिल्म में दिखाया गया। इसे देखकर हम शाम होने से पहले लेह अपने होटल में पहुंच गए।

[bs-quote quote=”लेह के रास्ते हम रैंचो स्कूल भी गए। जो मिट्टी से बना हुआ है यहां पर सौर ऊर्जा से रोशनी की जाती है, साथ ही सौर ऊर्जा से कमरों में गर्मी बनाई जाती है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

आज हम प्रस्थान कर रहे हैं द लास्ट संग्रीला से। यहां दूर-दूर तक फैले चॉकलेटी, स्लेटी, भूरे, गेरुआ, गुलाबी रंगों के पहाड़, ऊंची-ऊंची बर्फीली चोटियां, सफेद मरुस्थल, बांह फैलाए खुला आसमान, दूर तक बहती हुई नदियों की शीतल धारा, खूबसूरत वादियां, पहाड़ों पर मधुमक्खियों के छत्ते की तरह लगे हुए पत्थरों से बने हुए घर, गुम्फाएं। वो सब जो सहज ही सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। बौद्ध धर्म के पथ पर सदियों से चले आ रहे यहां के लोग बुद्ध के विचारों को सिर्फ जानते ही नहीं, वे इसे जीते भी हैं हमें इस चांद के देश का प्राकृतिक सौंदर्य देखने का अवसर मिला। स्वपन बनर्जी ने इन खुबसूरत लम्हों को अपने कैमरे में कैद किया है। साथ ही हेमंत चटर्जी और डीबी गांगुली ने इस यात्रा को सुगम बनाया। लद्दाख यात्रा की स्मृति अपने मानस पटल पर लिए हम सभी अपने-अपने घर लौटे ।

कल्याणी मुखर्जी

गाँव के लोग
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