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ग्राउंड रिपोर्ट

संघ के दोमुंहें व्यवहार और संविधान विरोधी गतिविधियों का खामियाजा देश की जनता भुगत रही है

अपनी जांच के बाद हेमंत करकरे ने संघ के साथ प्रज्ञा सिंह और उनके सभी साथियों के संबंध खोज निकाले थे। इसीलिए प्रज्ञा को छुड़ाने के लिए संघ की इकाई भाजपा और उसके शीर्षस्थ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने उनके लिए गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर उसे जेल में अच्छी तरह से रखने की सिफारिश की।

पिछले सौ साल से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तथाकथित हिंदुत्व और अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ संघ की शाखाओं में गीतों से लेकर बौद्धिक खेल तथा रोजमर्रे की कानाफूसी (Rumers Spreading Society) के माध्यम से बीमारी के स्तर पर अतिशयोक्ति से भरी बातें फैलाने का परिणाम हमने सबसे पहले देश के बंटवारे एवं उसी के नाम पर महात्मा गांधी की हत्या की साजिश में देखी।

नाथूराम संघ का सिर्फ़ सदस्य ही नहीं था, वह स्थानीय स्तर पर बौद्धिक प्रमुख भी था। वह समाज में विषवमन करने वाली अग्रणी नाम की पत्रिका भी निकालता था। पत्रिका को शुरु करने के लिए विनायक दामोदर सावरकर ने विशेष रूप से उसे पैसे दिए थे और उनके लेख भी वह छापता था, लेकिन गांधी की हत्या के बाद संघ ने बोलना शुरू कर दिया कि हमारा नाथूराम से कोई लेना-देना नहीं है।

ठीक इसी तरह मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस, अजमेर शरीफ, हैदराबाद की मक्का मस्जिद सहित अन्य जगहों पर बम विस्फोट मामले के अपराधियों में से एक प्रज्ञा सिंह ठाकुर का नाम सामने आते ही संघ ने तुरंत कह दिया था – ‘हमारा प्रज्ञा सिंह ठाकुर के कोई संबंध नहीं है।’

सन 2019 के लोकसभा चुनाव में मैं दो हफ्तों के लिए भोपाल में प्रज्ञा सिंह ठाकुर के खिलाफ चुनाव प्रचार में शामिल था। दूसरी तरफ से प्रज्ञा सिंह ठाकुर के समर्थन में संघ की महिलाओं से लेकर युवा और बुजुर्ग लोगों ने अपने आपको झोंक दिया था। जबकि माले गाँव विस्फोट के बाद संघ ने कहा था कि हमारे और प्रज्ञा सिंह ठाकुर के बीच कोई संबंध नहीं हैं।

इस महिला के खिलाफ अपनी जांच के बाद हेमंत करकरे ने संघ के साथ प्रज्ञा सिंह और उनके सभी साथियों के संबंध खोज निकाले थे। इसीलिए प्रज्ञा को छुड़ाने के लिए संघ की इकाई भाजपा और उसके शीर्षस्थ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने उनके लिए गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर उसे जेल में अच्छी तरह से रखने की सिफारिश की। प्रज्ञा सिंह का क्या योगदान है कि उसे भोपाल से भाजपा लोकसभा का टिकट देकर अमित शाह से लेकर निर्मला सीतारमण सहित भाजपा के वरिष्ठ नेता भोपाल में उसके प्रचार-प्रसार के लिए आए थे, जिसे मैंने खुद मई 2019 में देखा। प्रज्ञा ने चुनाव प्रचार में गोडसे का महिमामंडन करने से लेकर महात्मा गाँधी के खिलाफ अनर्गल और आपत्तिजनक टिप्पणी की है। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था- ‘मै प्रज्ञा सिंह ठाकुर को कभी भी माफ नही करुंगा….।

फिर भोपाल से चुनाव जीतने के बाद लोकसभा की रक्षा विभाग से लेकर कई संवेदनशील विभागों की कमेटियों में प्रज्ञा सिंह ठाकुर किसकी सिफारिश से हैं?

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वैसे ही, गांधीजी की हत्या के बाद नाथूराम के साथ संघ का कोई संबंध नहीं, कहने वाले संघी आज 78 वर्षों में नाथूराम के मंदिरों का निर्माण करने से लेकर उसका उदारीकरण करने के लिए नाटक, सिनेमा सहित उसका जन्मदिन एवं मृत्यु दिवस का अलग ही माहौल बना रहे हैं।

भीष्म साहनी ने तमस नाम के उपन्यास में संघ के स्वयंसेवकों के प्रशिक्षण से लेकर मस्जिदों में सुअरों का मांस फेंकने और मंदिरों में गोमांस फेंकने की संघी हरकतों को पचहत्तर साल पहले ही रेखांकित कर दिया था, जिस पर बहुचर्चित टीवी सीरियल भी बना था।

इसी तरह, आज संघ और भाजपा के लोग जिस सरदार पटेल का महिमामंडन कर रहे हैं, उन्हीं सरदार पटेल ने संघ के बारे में गृहमंत्री की हैसियत से प्रतिबंध लगाया था।  उन्होंने संघ द्वारा संविधान को नकारने, तिरंगा की जगह भगवा झंडा फहराने, नागपुर से लेकर जगह-जगह संवैधानिक रूप से चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंकने के षड्यंत्र का गंभीरता से संज्ञान लिया था और भारत के भविष्य के लिए बाद खतरा बताया था। संघ के तत्कालीन प्रमुख माधव सदाशिव गोलवलकर के साथ पत्राचार में सरदार पटेल ने उनको संविधान तथा राष्ट्रीय तिरंगे के प्रति निष्ठा के लिए और संघ का अपना संविधान लिखने के लिए कहा था। गोलवलकर ने अपने संगठन के ऊपर लगाए गए प्रतिबंध को हटाने के लिए उस समय तो यह सब लिखकर दे दिया लेकिन वास्तव में यह सिर्फ दिखावा था। उन्होंने कभी भी संविधान के प्रति आदर भाव प्रकट नहीं किया। उल्टा मनुस्मृति जैसे घटिया और लोकतंत्र तथा स्त्री-शूद्रों के बारे में अत्यंत अपमानजनक कानून का प्रावधान करने वाली किताब का समर्थन किया। ऐसे निकृष्ट और वाहियात ग्रंथ को संविधान का दर्ज़ा देने की कोशिश आज भी बदस्तूर जारी है।

संघ का अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ जहरीला प्रचार-प्रसार आज पतन की पराकाष्ठा तक पहुँच चुका है। इसका दुष्प्रभाव हर जगह दिख रहा है। भारत के सभी सांप्रदायिक दंगों, मॉब-लिंचिंग तथा मुजफ्फरनगर के स्कूल की शिक्षिका द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चे को अन्य विद्यार्थियों से पिटवाने के कुकृत्य से लेकर जयपुर-मुंबई एक्सप्रेस में रेलवे के एक सुरक्षा गार्ड द्वारा अपने अधिकारी और अल्पसंख्यक समुदाय के तीन यात्रियों की गई हत्याएं और हत्या करते हुए नरेंद्र मोदी और आदित्यनाथ जिंदाबाद के नारे लगाना नफरत के इसी ज़हर का परिणाम है। अगर हमारे देश के शिक्षक इस तरह जाति-धर्म के आधार पर बच्चों के साथ व्यवहार करेंगे तो आने वाली पीढ़ी किस तरह से संस्कारों को लेकर आगे समाज में जाएगी?

ऐसी घटनाओं देखते हुए मैं गत 35 वर्षों से (यानी भागलपुर दंगे के बाद -1989) लगातार बोल-लिख रहा हूँ। आने वाले पचास वर्षों में हमारे देश की राजनीति सिर्फ़ और सिर्फ़ सांप्रदायिकता के मुद्दे के ईद-गिर्द ही घूमेगी। हमारे रोजगार, महंगाई, कृषि, दलितों-आदिवासियों तथा महिलाओं, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण विषय दोयम दर्जे के हो जाएंगे।

वाराणसी के सर्व सेवा संघ के परिसर में जबरदस्ती घुसपैठ करते हुए वहां की इमारतों को जेसीबी से ध्वस्त कर दिया गया। उसी तरह वाराणसी के अगल-बगल के गांवों में किसानों की जमीन को बंजर घोषित करने के बाद उसे किसी परियोजना के लिए कब्जा करने का गुपचुप कार्य हो रहा है। (कल ही वाराणसी के गांव के लोग डॉट कॉम पोर्टल पर इस बात की विस्तृत जानकारी दी गई है। उसी पोर्टल पर इसी महीने के शुरुआत में सर्व सेवा संघ की जमीन पर कब्जा करने की भी स्टोरी दी गई है।)

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वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। क्या नरेंद्र मोदी को इन सब घटनाओं की जानकारी नहीं है? नहीं है तो उन्हें अपने संसदीय पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। ऐसा संसद सदस्य जो अपने क्षेत्र में इस तरह की असंवैधानिक गतिविधियों की अनदेखी कर रहा है। यह सब कुछ उनके इशारे पर ही हो रहा है तो उन्हें इस देश का प्रधानमंत्री बने रहने का कोई भी अधिकार नही है। क्योंकि वह अपने ही संसदीय क्षेत्र के लोगों के जान-माल की सुरक्षा नहीं कर पा रहे हैं तो इस देश के 140 करोड़ जनसंख्या के लोगों की हिफाजत क्या करेंगे?

नरेन्द्र मोदी ने भले ही लाल किले से देश की आबादी को टीम इंडिया और सबका साथ सबका विकास जैसी जुमलेबाजी की होगी, लेकिन नौ वर्षों में सिर्फ चंद धन्नासेठों की तिजोरियां भरने के अलावा लोगों को महीने में पांच किलो सड़े हुए अनाज की भीख और किसी को मामूली रुपये देकर नरेंद्र मोदी को लगता होगा कि वह लोगों को भ्रमित करने में कामयाब हो गए हैं, तो यह उनका भ्रम है।

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नौ वर्षों में संपूर्ण देश की सम्पत्ति को प्राइवेट मास्टर्स के हवाले करने के अलावा उन्होंनेऔर कोई महत्वपूर्ण कार्य किया नहीं है। भारत की आधी से अधिक आबादी युवाओं की है, लेकिन कितने युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध हुए हैं? आपको लगता होगा कि थोड़ी खैरात बाँटने से लोग खुश हो जाएंगे, तो यह आपकी गलतफहमी है। आम आदमी महंगाई और बेरोजगारी की वजह से परेशान है। यह परेशानी 2024 के चुनाव में प्रकट होने वाली है। (अगर वोटिंग मशीन से कुछ छेड़छाड़ नहीं की गई तो।)

सिर्फ राम मंदिर, चांद पर यान ले जाने से और चौबीसों घण्टे तथाकथित मीडिया में पाकिस्तानी सेना की तुलना में भारतीय सेना की वाहवाही करने से कुछ नहीं होगा। पाकिस्तानी सेना के मुकाबले भारतीय सेना भारी-भरकम है। वह देश पर संकट आने के समय किसी से भिड़ सकती है लेकिन नरेंद्र मोदी ने उसे मज़ाक बना दिया है। यह हमारी सुरक्षा को दाँव पर लगाने की गलतकरती है। राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करना है।  ऐसे चिल्ला- चिल्ला कर और ढोल पीटकर रक्षा के रहस्य उजागर करना हमारी रक्षा के लिए खतरनाक है। अमूमन कोई भी सशक्त देश ऐसी गलती नहीं करता है। आपकी हर बात को चुनाव प्रचार के लिए इस्तेमाल करने का कृत्य बीमार मानसिकता का परिचायक है।

जबकि आम लोगों के सवालों में कुछ भी फर्क नहीं पड़ा है। देश की जनता महंगाई तथा बेरोजगारी की मार झेल रही है। यह सब आने वाले चुनाव में शत-प्रतिशत प्रकट होने वाला है।

 

गाँव के लोग
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