हमने चाणक्य नीति के बारे में कुछ न कुछ जरूर पढ़ा/सुना है। बचपन में इतिहास की पढ़ाई में चाणक्य के बारे में पढ़ाया भी जाता है। माना जाता है राजनीति में चाणक्य से बड़ा विद्वान शायद ही भारत के इतिहास में कोई दूसरा हुआ हो। इतिहास के अनुसार एक साधारण ब्राह्मण चाणक्य ने अपने साथ हुए दुर्व्यवहार का बदला लेने के लिए एक स्थापित राजवंश को उखाड़ फेंका था और एक नए साम्राज्य की स्थापना की थी, जिसे गुप्त साम्राज्य के नाम से जाना गया। चाणक्य की ऐसी ही नीति के बारे में बताया जाता है कि जो राज कर्मचारी अपने स्वामी के स्वभाव को अच्छी प्रकार से जानते हैं, वे उसी के अनुसार कार्य सम्पन्न करते हैं। ‘यथा राजा तथा प्रजा’ अर्थात जैसा राजा होगा, प्रजा या राजकर्मचारी भी वैसे ही होंगे। अत: राजा को धीर-धीर गंभीर, कर्मठ होना चाहिए। वीर होना चाहिए। परोपकारी और दयावान होना चाहिए। किंतु हमारे देश के राजा का आचरण जनता के सामने है जिसके आधार पर सत्ता के जनहित में होने के विषय में कैसे सोचा जा सकता है।
सरकार की गरीब और निरीह समाज के प्रति उपेक्षा का भाव और अमीरों के प्रति स्नेह स्पष्ट रूप से दिखाई देता है यथा 100 रुपए के कर्जदार को सजा और करोड़ों के चोरों को देश से बाइज्जत विदेशों में विचरण करने की छूट इस सरकार से पहले की सरकारों की कार्यकाल में कभी नहीं मिली। कमाल तो ये है कि सारे के सारे आर्थिक भगोड़े केवल और केवल गुजराज के ही रहे हैं। और सरकार यानि कि मोदी जी उन्हें बाइज्जत देश में वापिस लाने का प्रसाद बाँटते नहीं अधा रहे हैं।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहाँ सबको हर तरह की स्वतंत्रता प्राप्त है। परन्तु हमारे देश में इसी इसी प्रकार के भ्रष्टाचार का फैलाव दिन-भर-दिन बढ़ रहा है। लोग इसी स्वतंत्रता और हमारे देश के लचीले कानूनों की वजह से नहीं अपितु सरकारी पैरोकारों से अच्छे संबंधों के चलते का लाभ उठाते रहे हैं। ये बात अलग है कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में हेराफेरी का व्यवसाय कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है।
जनता के विकास के नाम पर हमारे नेता हज़ारों/लाखों रुपया डकार जाते हैं। काम किसी भी तरह का हो, शासन अथवा प्रशासन जनता से बिना पैसे लिए कोई कार्य सम्पन्न नहीं होता। इसकी चपेट में अब पूरा भारत जकड़ चुका है। मंत्री से लेकर संतरी तक को आपको अपना जायज काम कराने के लिए भी चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है। देश में रिश्वतखोरी ही की समस्या नहीं है। धार्मिक, जातीय, सामाजिक व राजनीतिक जाने कितनी प्रकार की विसंगतिया हमारे देश में मुँह बाए खडी हैं। कहना अतिशयोक्ति नहीं इनमें से ज्यादातर बुराइयां धार्मिक और राजनीतिक मान्यताओं के चलते वीभत्स होती चली जा रही हैं। धार्मिक और राजनीतिक कूटनीतिज्ञों को किसी को भी मारना एक साधारण सा काम हो गया है।
आज के नेता जनता वोट देने के बाद नेता से यह नहीं कह सकती मैंने आपको वोट दिया है क्योंकि उसने तो चुनाव पाइस के दम पर जीता है। जनता को पाँच साल के लिए खरीदा है। वह मानता है कि आप अपने छोटे से घर के लिए थोड़ा चिंतित हो। जबकि मैंने इस पद को हासिल करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए हैं। क्या उसके बाद भी मैं आपकी सेवा क्या करता रहूँगा? मुझे वो सारे पैसे वापस चाहिए। ये राजनीति नहीं, व्यापार है।
यथोक्त के आलोक में पहले यह जान लें कि एक जमाना था जब किसी नेता का सादा जीवन की उसकी पहचान हुआ करता था। राजनीति का मतलब था समाजसेवा, और इसमें वही लोग कदम रखते थे जो त्याग और सादगी की मिसाल कायम रख सकते थे। लेकिन समय के साथ राजनीति में भी बदलाव आया। अब धनी मानी लोग राजनीति को अपना करियर बना रहे हैं। हम आए दिन सुनते हैं कि कोई पूर्व आईएएस, आईपीएस या जस्टिस किसी राजनीतिक दल का दामन थाम रहे हैं। बिजनेसमैन, उद्योगपति या राजा-महाराजा भी पीछे नहीं हैं, वे भी राजनीति में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
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18वीं लोकसभा चुनाव के परिणाम सामने आ गए हैं। इस बार संसद पहुंचने वाले 543 सांसदों में से 93 फीसदी करोड़पति हैं जिसका विवरण इस प्रकार है- चुनाव अधिकार संस्था एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर, ADR) ने चुनाव लड़ते समय दाखिल किए गए नामांकन पत्रों के आधार पर सांसदों की संपत्ति की सूची तैयार की है। आंकड़ों के विश्लेषण से यह तथ्य भी सामने आया है कि चुनाव दर चुनाव संसद में अमीर सांसदों की संख्या बढ़ी है। एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार नवगठित 18वीं लोकसभा में 543 में से 504 यानी 93 प्रतिशत सांसद करोड़पति हैं। 2019 में 539 सांसदों में से 475 सांसद करोड़पति थे। यह कुल संख्या का 88वीं फीसदी था। 2014 में 542 में से 443 सांसद करोड़पति थे, यह कुल संख्या का 82 फीसदी था। 2009 के आंकड़ों से पता चलता है कि उस समय संसद में 58 फीसदी सांसद करोड़पति थे। यानी 543 में से 315 सांसद करोड़पति थे। इन आंकडों के अनुसार देखा जाए तो अमीर सांसदों की संख्या निरंतर बढ़ती ही जा रही है।
एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार इस बार संसद पहुंचने वाले सांसदों में से किस पार्टी के कितने सांसद करोड़पति हैं, वह आँकड़े इस प्रकार हैं – ‘बीजेपी के 240 में से 227 (95 फीसदी); कांग्रेस के 99 में से 92 (93 फीसदी); डीएमके 22 में से 21 (95 फीसदी); तृणमूल कांग्रेस के 29 में से 27 (93 फीसदी); सपा के 37 में से 34 (92 फीसदी); आप के 3 में से 3 (100 फीसदी); जदयू के 12 में से 12 (100 फीसदी) तथा टीडीपी के 16 में से 16 (100 फीसदी”।
दैनिक भास्कर के अनुसार नए चुने गए सांसदों में से 251 पर क्रिमिनल केस: 2019 में यह संख्या 233 थी; 2009 से 2024 तक 124% बढ़े दागी सांसद। 18वीं लोकसभा का रिजल्ट 4 जून को आ चुका है। नए चुने गए 543 सांसदों में से 46% यानी 251 पर क्रिमिनल केस दर्ज हैं। इनमें से 27 सांसदों को अलग-अलग अदालतों से दोषी करार दिया जा चुका है। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक दागी सांसदों का यह अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। इससे पहले 2019 में क्रिमिनल केस वाले 233 (43%) सांसद लोकसभा पहुंचे थे।
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नए चुने गए 251 सांसदों में से 170 पर बलात्कार, हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे केस हैं। भाजपा के 63, कांग्रेस के 32 और सपा के 17 सांसदों पर गंभीर अपराध दर्ज हैं। लिस्ट में तृणमूल कांग्रेस (TMC) के 7, DMK के 6, तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के 5 और शिवसेना के 4 सांसदों के नाम हैं। संसद पहुंचने वाले सबसे दागी सांसदों की बात करें तो केरल की इडुक्की सीट से कांग्रेस के डीन कुरियाकोस का नाम सबसे ऊपर है। डीन ने 1.33 लाख वोट से जीत हासिल की है। उन पर करीब 88 मामले दर्ज हैं। इस लिस्ट में दूसरा नाम कांग्रेस के शफी परम्बिल का और तीसरा नाम BJP के एतेला राजेन्द्र का है। ऐसे में जिस देश की संसद में अमीरों और अपराधियों की संख्या अधिकाधिक हो, उस देश में गरीबों के साथ न्याय की आशा कैसे की जा सकती है। अब सोचने की बात है कि इस अवस्था के लिए दोषी कौन है। स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि इन नेताओं चुनने वाले वोटर ही इस अवस्था के लिए जिम्मेदार हैं क्योंकि आज का भूख-प्यास का मारा हुआ वोटर किसी सज्जन आदमी चयन नहीं अपितु राजनीतिक दल का चयन करता है।
विदित हो कि बचपन में सुना था कि जैसा राजा वैसी प्रजा किंतु आज की तारीख में ये विचार सिरे से पलट गया है क्योंकि आजादी से पूर्व एकतंत्र अथवा राजतंत्र की व्यवस्था होती थी कि आज लोकतंत्र है मतलब लोगों/जनता का तंत्र। लोग अपनी इच्छा से अपना प्रतिनिधि चुनते हैं। चुना हुआ प्रतिनिधि संसद में उनका प्रतिनिधित्व करता है। लोकतंत्र में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा फैलाव इन्हीं प्रतिनिधियों के द्वारा फैलाया गया है। क्या इस बाबत यह नहीं कहा जा सकता कि जनता ही भ्रष्ट नेताओं को चुनती है..क्योंकि जनता के पास दो विकल्प होता है – कम भ्रष्ट वाला या ज्यादा भ्रष्ट वाला।
कहना अतिश्योक्ति न होगा कि हमारे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने वाले संगठन, दल, गैर सरकारी संस्थाएं और समाज के लोग खुद ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में लिप्त हैं। तो ऐसे में कैसे और किस आधार पर उम्मीद की जा सकती है कि देश से भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा। इस विशाल लोकतंत्र की जो वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक दुर्दशा है, उसे देखते हुए किसी ने ठीक ही कहा है, ‘जैसी प्रजा, वैसा राजा।‘