यह एक ऐसा फैसला था, जिसने भाजपा के लिए आगे की राह को आसान कर दिया था। हालांकि इस मामले में महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष यदि चाहते तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज कर सकते थे और बागियों को मजबूर कर सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और संभवत: इस वजह से नहीं किया क्योंकि इसमें सुप्रीम कोर्ट परंपरा के विरुद्ध जाकर हस्तक्षेप कर चुका था।
कल ही ओवैसी की पार्टी के चार विधायकों ने राजद की सदस्यता ग्रहण कर ली और इस लिहाज से बिहार में सबसे बड़ी पार्टी राजद हो गई। लेकिन इस मामले में बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने अड़ंगा डाल दिया है। उन्होंने ओवैसी की पार्टी के चार सदस्यों के राजद में शामिल होने को सहमति प्रदान नहीं की। अब यह भी विधानसभा के अध्यक्ष का विवेकाधिकार ही है कि वह चाहे तो सहमति दे या फिर नहीं दे। यह भी मुमकिन है कि विधानसभा के अध्यक्ष चूंकि भाजपाई हैं और वे यह समझते हैं कि सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद राजद के कौन-कौन से अधिकार मिल जाएंगे, इसलिए उन्होंने अबतक सहमति नहीं दी है।

नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
नरेंद्र मोदी जानते हैं अग्निवीर की जान की कीमत (डायरी, 29 जून, 2022)
[…] महाराष्ट्र में भाजपा की जीत की कही-अनक… […]
[…] महाराष्ट्र में भाजपा की जीत की कही-अनक… […]