हिन्दी के सुपरिचित वरिष्ठ नाटककार और कवि रामेश्वर प्रेम के देहावसान की ख़बर से मर्माहत हूं। दिल्ली में वर्षों तक उनसे बेहद अंतरंगता रही। लेकिन पहले महामारी के विलगाव और फिर दिल्ली छोड़ने के कारण हमारे बीच केवल फ़ोन ही सम्पर्क का माध्यम रह गया था। महामारी से पहले घर में ही फिसल कर गिरने से उनकी एक टांग में प्लास्टर चढ़ाना पड़ा था, उस समय वे नितांत अकेलेपन की बेचैनियों से घिरे थे और चाहते थे कि मैं प्रतिदिन उनके साथ बैठूं, लेकिन ऐसा संभव नहीं था। तब भी हर सप्ताह मिलना होता था। फ़ोन पर रोज़ाना बात होती थी।
महामारी के दौरान ही मुम्बई के एक अस्पताल में उनकी सर्जरी हुई थी, तब भी उनसे रोज़ बात होती थी। लेकिन उनके दिल्ली लौटने से पहले ही मैं बिहार लौट गया था। रामेश्वरजी की बातों में गूढ़ार्थ छिपे होते थे और साहित्य तथा रंगमंच की दुनिया के स्याह-सफ़ेद पन्ने उधेड़ते हुए वे अचानक शून्य में चले जाते थे। मुझे काफ़ी समझाते थे कि तुम जिस तरह संस्थानों और थिएटर के मठाधीशों से सीधे-सीधे उलझते हो, यह बेहद ख़तरनाक रास्ता है। ये सभी मिलकर एक दिन तुम्हें परिधि के बाहर किसी खाई-खंदक में फेंक आयेंगे। मैं उनसे कहता कि मैं तो बाहर ही हूं इस परिधि के, अगर भीतर होता तो मेरी ज़बान पर भी ताला होता और मैं भी कहीं का दरबान होता। अफ़सोस कि मैं भी उन्हें अकेलेपन के साथ अकेला छोड़ आया। इसका मलाल हमेशा रहेगा। रामेश्वरजी की प्रबल इच्छा थी कि मैं उनकी रचनावली का संपादन करूं, लेकिन रोज़ी-रोटी की लड़ाई ने यह अवसर ही नहीं दिया।
यह भी पढ़ें…
वंचना और गरीबी के दुष्चक्र में जी रहे दस्तकार बेलवंशी समाज के लोग
तीन अप्रैल, 1943 को निर्मली, बिहार में जन्मे रामेश्वर प्रेम ने बी.ए. ऑनर्स करने के बाद हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। नाटक अजातघर से लेखन की शुरुआत की, जिसके प्रदर्शन कई शहरों में हुए। बेन जॉनसन के नाटक वोल्पोने का आपने लोमड़वेश नाम से रूपान्तरण किया, जिसका बंसी कौल के निर्देशन में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्रों द्वारा भवई शैली में मंचन हुआ। उनके अन्य प्रसिद्ध नाटक हैं- अन्तरंग, चारपाई, शस्त्र-संतान, कैम्प, जल डमरू बाजे आदि। बरफ की अरणियां, हरियंधा सुनो और निकोबेरिये आदि उनकी प्रकाशित काव्य कृतियां हैं। रामेश्वरजी भारत भवन, भोपाल के आवासीय नाटककार भी रहे। संस्कृति विभाग, भारत सरकार की सीनियर फेलोशिप से भी उन्हें सम्मानित किया गया। वर्ष 2013 में नाट्य-लेखन में विशिष्ट योगदान के लिए आपको संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। आजीवन निरंतर सृजनरत रहे रामेश्वरजी की बहुत-सी रचनाएं अभी भी अप्रकाशित हैं।
रामेश्वर प्रेम जी को श्रद्धांजलि देते हुए अत्यंत वेदना महसूस हो रही है।
राजेश चन्द्र जाने-माने रंगकर्मी, समीक्षक और लेखक हैं।