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बीएचयू हॉस्टल आवंटन और बीबीएयू पीएचडी में ओबीसी कोटा क्यों नहीं?

लखनऊ। कहने को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान पिछड़ी जाति के हैं, फिर भी पिछड़ी जातियों के साथ उच्च शिक्षा संस्थानों में अन्याय किया जा रहा है। भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता लौटन राम निषाद ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में ओबीसी को हॉस्टल आवंटन और बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय […]

लखनऊ। कहने को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान पिछड़ी जाति के हैं, फिर भी पिछड़ी जातियों के साथ उच्च शिक्षा संस्थानों में अन्याय किया जा रहा है। भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता लौटन राम निषाद ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में ओबीसी को हॉस्टल आवंटन और बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय (केन्द्रीय विश्वविद्यालय) लखनऊ के पीएचडी प्रवेश में ओबीसी को कोटा नहीं दिए जाने की निंदा करते हुए इसे गम्भीर मुद्दा बताया है। उन्होंने बताया कि ओबीसी की ही जातियाँ हिन्दू बनने में सबसे आगे रहती हैं और हिन्दुत्व की बात करने वाली भाजपा सरकार में हिन्दू पिछड़ों के साथ हर स्तर पर सामाजिक अन्याय और संवैधानिक अधिकारों की हकमारी की जा रही है। पिछड़ों वंचितों की बदौलत ही भाजपा फर्श से अर्श पर पहुँची है एवं पिछड़ों व वंचितों के ही साथ उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश और नौकरियों में खुलेआम डकैती की जा रही है, क्या पिछड़े सिर्फ वोट के लिए ही हिन्दू हैं? उन्होंने बताया कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में ओबीसी फंड से 170 करोड़ की धनराशि केंद्र सरकार द्वारा आवंटित की गयी है। फिर भी ओबीसी के विद्यार्थियों को बीएचयू के छात्रावासों में कोटा नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ओबीसी फंड से जारी 170 करोड़ रुपये में 8,500 कमरे बनाये जा सकते हैं।

भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता लौटन राम निषाद

निषाद ने बताया कि लखनऊ स्थित बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय में पीएचडी प्रवेश विज्ञापन में 403 सीटों का विज्ञापन प्रकाशित किया गया है, जिसमें ओबीसी को कोई कोटा नहीं दिया गया है। उन्होंने बताया कि 403 सीटों में अनारक्षित श्रेणी (यूआर) को 179, ईडब्ल्यूएस को 22, एससी को 149, एसटी कोटे 53 सीटें आरक्षित की गयी हैं। वहीं, 60 प्रतिशत ओबीसी को शून्य रखा गया है। केन्द्रीय आरक्षण नियमावली के अनुसार, ओबीसी को 27 प्रतिशत, एससी को 15 प्रतिशत, एसटी को 7.5 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत कोटा निर्धारित हैं और 40.5 प्रतिशत अनारक्षित रखा जाता है। केन्द्रीय आरक्षण नियमावली के अनुसार, 163 सीटें अनारक्षित रखने के साथ ओबीसी को 109, एससी को 60, एसटी को 30, ईडब्ल्यूएस को 40 सीटें मिलनी चाहिए, लेकिन 163 के सापेक्ष 179 सीटें अनारक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए रखी गई है और एससी को 60 के सापेक्ष 149, एसटी को 30 के सापेक्ष 53, ईडब्ल्यूएस को 40 के सापेक्ष 22 सीटें आरक्षित की गयी हैं। उन्होंने बताया कि आरक्षण नियमावली के अनुसार यूआर को 16 सीटें, एससी को 89, एसटी को 23 सीटें अतिरिक्त दी गयीं हैं और ईडब्ल्यूएस को 18 सीटें कम देने के साथ ओबीसी की 109 सीटों की पूरी तरह हकमारी कर शून्य कर दिया गया है।

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निषाद ने कहा कि प्रधानमंत्री अपने को पिछड़ी जाति और नीच जाति का बताने में नहीं आघाते हैं, लेकिन ओबीसी के हिस्से का जितना संवैधानिक लूट इनके प्रधानमंत्रित्व काल में हुई है, कभी नहीं हुई। उन्होंने कहा कि आरएसएस ओबीसी जातियों के नेताओं को पिछड़ों को शिकार बनाने के लिए चारा के रूप में इस्तेमाल करती है। उन्होंने बताया कि 2018 में 102वां संविधान संशोधन द्वारा राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) को संवैधानिक दर्जा दिया गया, लेकिन य़ह सफेद हाथी और ढाक के तीन पात साबित हो रहा है। एसीबीसी को संवैधानिक दर्जा देने पर धर्मेन्द्र प्रधान, रामकृपाल यादव, भूपेंद्र यादव, अशोक यादव, लक्ष्मीनारायण यादव, हुकुम देव नारायण यादव, नित्यानंद राय, अन्नपूर्णा देवी यादव, डॉ. सुधा यादव, अनुप्रिया पटेल आदि इतने जोर-शोर से प्रचार में जुट गए थे, जैसे पिछड़ों-वंचितों को स्वर्ग मिल गया और आज जब पिछड़ी जातियों के संवैधानिक अधिकारों को लूटा जा रहा है तो चुप्पी साढ़े हुए हैं। उन्होंने एनसीबीसी के अध्यक्ष हंसराज गंगाराम अहीर और केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान (खंडायत) से बीएचयू में ओबीसी विद्यार्थियों को हास्टल न आवंटित करने और बीबीएयू लखनऊ (केन्द्रीय विश्वविद्यालय) में पीएचडी प्रवेश में ओबीसी का कोटा शून्य रखने के मामले को गंभीरता से लेने की शिकायत किया है।

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