सत्ता का मतलब ही ताकत है। एक ऐसी ताकत जो चाहे तो कुछ भी कर सकती है। उदाहरण भारत में मौजूदा सत्ता है। यह सत्ता की ताकत का ही असर है कि सुप्रीम कोर्ट के जज भी बाबरी विध्वंस के मामले में सारे आरोपियों को बेगुनाह तो बताते ही हैं, जमीन का बंटवारा भी आस्था के आधार पर कर देते हैं। यह सत्ता की ताकत ही है कि उत्तर प्रदेश में पिछले साल जब गंगा के घाटों पर लाशें तैर रही थीं, हुक्मरान चैन की बंशी बजा रहा था। यह सत्ता की ताकत ही है कि आज ‘जनसत्ता’ जैसा अखबार भी पहली पहली खबर का शीर्षक रखता है – ‘आठ दलितों को मिला टिकट।’ यह खबर पंजाब में विधानसभा चुनाव से जुड़ी है और इसके मुताबिक भाजपा ने कल 34 उम्मीदवारों की सूची जारी की है, जिसमें किसान परिवारों के 12, सिक्ख परिवारों के 13 और आठ दलित हैं। खबर को यूं परोसा गया है मानो ये आठ टिकट भाजपा ने गैर आरक्षित सीटों के लिए दिये हैं और ऐसा करके उसने पंजाब के दलितों पर अहसान किया है। जब ‘जनसत्ता’ बे-रीढ़ है मौजूदा सत्ता के सामने तो अन्य अखबारों की बात क्या की जा सकती है।
खैर, यह तो मानना ही पड़ेगा कि सत्ता ताकत का पर्याय है। और मैं तो यह मानता हूं कोई भी शासक कमजोर नहीं होता। अंतर केवल यह होता है कि वह जनता के प्रति कितना रहमदिल है और कितना उसके प्रति क्रूर। मौजूदा हुकूमत की बात निराली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न केवल ताकतवर हैं बल्कि इतने शातिर हैं कि मौजूदा समय में कोई उनकी बराबरी नहीं कर सकता है। वह खबरों में बने रहना चाहते हैं। वे मार्केटिंग के इस सिद्धांत को मानते हैं कि जो सुर्खियों में रहेगा, लोकतंत्र में उसीकी पूछ रहेगी। अब इसके लिए वे आए दिन कोई न कोई ऐसी हरकत करते ही रहते हैं। अभी हाल ही में उन्होंने ‘बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ’ के बदले ‘बेटी पढ़ाओ-बेटी पटाओ’ कह दिया। अब उनका ऐसा कहना था कि देश भर में उनकी चर्चा होने लगी। सोशल मीडिया पर तो जैसे बाढ़ ही आ गयी।
[bs-quote quote=”अब एक उदाहरण कल का है। कल हुकूमत ने तय किया कि अमर जवान ज्योति का विलय राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में कर दिया। इंडिया गेट पर इंदिरा गांधी की देन अमर जवान ज्योति अब अतीत का हिस्सा है। यह लौ 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के शहीदों की याद में जलायी गयी थी। अब इसे राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में विलय कर नरेंद्र मोदी ने कई निशाने साध लिये। पहला तो यही कि मुझ जैसे को भी यह बात अपनी डायरी में दर्ज करनी पड़ रही है, जो युद्ध के खिलाफ रहता है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
जाहिर तौर पर लोगों ने नाराजगी व्यक्त की। बात ही नाराज करनेवाली है। देश का प्रधानमंत्री जो कि एक अच्छा वक्ता रहा है, अचानक से ‘बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ’ के बदले ‘बेटी पढ़ाओ-बेटी पटाओ’ कैसे कह सकता है। सभी को यह लगा कि ऐसा टेलीप्रॉम्पटर की वजह से हुआ है। जबकि मेरा मानना है कि नरेंद्र मोदी ने अपनी खास रणनीति के तहत किया है। अब हो यह रहा है कि सोशल मीडिया, जहां इसके पहले यूपी में समाजवादी पार्टी के नॅरेटिव पर बहसें हो रही थीं, एकदम से रुक गयीं और उसकी जगह ‘बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ’ के बदले ‘बेटी पढ़ाओ-बेटी पटाओ’ ने जगह ले ली।
दरअसल, यही राजनीति है। अब एक उदाहरण कल का है। कल हुकूमत ने तय किया कि अमर जवान ज्योति का विलय राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में कर दिया। इंडिया गेट पर इंदिरा गांधी की देन अमर जवान ज्योति अब अतीत का हिस्सा है। यह लौ 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के शहीदों की याद में जलायी गयी थी। अब इसे राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में विलय कर नरेंद्र मोदी ने कई निशाने साध लिये। पहला तो यही कि मुझ जैसे को भी यह बात अपनी डायरी में दर्ज करनी पड़ रही है, जो युद्ध के खिलाफ रहता है।
दरअसल, नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट से अमर जवान ज्योति की लौ नहीं, इंदिरा गांधी के नाम को मिटाने की कोशिश की है। वह जानते थे कि यदि केवल यह किया तो लोग आलोचना करेंगे कि एक महिला प्रधानमंत्री के नाम को मिटाने की कोशिशें की गयीं। इसलिए नरेंद्र मोदी ने दूसरा काम कर दिया।उन्होंने अब यह कहा है कि इंडिया गेट पर सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित होगी। मेरे ख्याल से यह उसी जगह स्थापित होगी, जहां अमर जवान ज्योति की लौ जल रही थी। अब इससे हुआ यह है कि सुभाषचंद्र बोस के समर्थक सरकार की वाहवाही में लगे हैं और जो अमर जवान ज्योति को अहम मानते हैं, हुकूमत की निंदा कर रहे हैं। मतलब यह कि नरेंद्र मोदी ने दो पक्षीय निर्णय लिया। एक पक्ष यह कि लोग उनकी निंदा करें और दूसरा पक्ष यह कि लोग उनकी तारीफ करें।
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खैर, यह इस बात का प्रमाण है कि नरेंद्र मोदी चालाक और शातिर या कहिए कि धूर्त राजनेता हैं तथा इस मामले में उनका कोई सानी नहीं है। मैं तो यह सोच रहा हूं कि अमर जवान ज्योति और राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के बीच अंतर क्या है।
दरअसल, अमर जवान ज्योति विजय का प्रतीक है। पाकिस्तान पर भारत की जीत का प्रतीक। जबकि राष्ट्रीय युद्ध स्मारक, जिसका उद्घाटन नरेंद्र मोदी के द्वारा ही 25 फरवरी, 2019 को किया गया था, के केंद्र में कारगिल युद्ध है। यह युद्ध भारत की हार का परिचायक है क्योंकि यह पहला युद्ध है जब भारतीय सेना को युद्ध अपनी ही धरती पर लड़नी पड़ी। तब हुआ यह था कि पाकिस्तान के सैनिक कारगिल पर कब्जा कर चुके थे। या यूं कहिए कि देश को युद्ध की उन्माद में झोंकने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तानी सैनिकों को आमंत्रित किया था। ठीक वैसे ही जैसे आज अरुणाचल प्रदेश में चीनी सैनिकों को गांव बसाने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है। मुमकिन है कि एकाध सप्ताह में वहां भारतीय सैनिकों और चीनी सैनिकों के बीच टकराहट बढ़ेगी। कुछ भारतीय जवान मारे जाएंगे तथा इसके कारण देश का माहौल बदलेगा। इसका लाभ भाजपा को देश के पांच राज्यों में होनेवाले चुनाव में मिलेगा। ठीक वैसे ही जैसे 2019 में चुनाव के ठीक पहले पुलवामा हमले को अंजाम दिया गया। इसमें सीआरपीएफ के 45 जवान बेमौत मारे गए थे। याद करिए वे दिन जब पूरा देश अपने शहीद जवानों की शोक में डूबा था तब कैसे बालाकोट में तथाकथित सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया गया।
बहरहाल, नरेंद्र मोदी के पास सत्ता है। वे ताकतवर हैं। वे कुछ भी कर सकते हैं। वे चालाक और शातिर हैं।
मेरी जेहन में एक कविता है। इसका संबंध भी मुल्क से ही है–
हंसो मत गोया राही हूं मैं अंजान राहों का,
अपनी दास्तान अपने पास रखो, मुझे मत सुनाओ।
सांझ हुई है और फिर थोड़ी देर में रात आएगी,
अंधियारे में एक दिन मुल्क की नींद खुल जाएगी।
खेतों में पड़े धान के दाने भी अंकुरेंगे एक दिन,
जब बढ़ेगा जुल्म, हुक्मरां भी होंगे जमींदोज, एक दिन।
ख्वामख्वाह मयखाने को कसूरवार ठहराते हो,
नशे में क्यों दो घूंट पानी पर तलवार चलाते हो।
यह जो दुनिया है, न तुम्हारी है और ना मेरी है,
जो है सबका है, फिर किस बात की हेराफेरी है।
सलीके से रहो अगर आए हो इस दुनिया में तुम,
बंदर नहीं हो कि पकड़े हो अपनी हाथ में दुम।
इश्क से रखो नाता कि इश्क से होता है उजाला,
फिर क्या अंतर है अगर कोई है गोरा या काला।
मंदिर और मस्जिद में रहता है कौन, मत बताओ,
इस बस्ती में हैं इंसान, अपनी कहानियां मत सुनाओ।
हंसो मत गोया राही हूं मैं अंजान राहों का,
अपनी दास्तान अपने पास रखो, मुझे मत सुनाओ।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।