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ग्राउंड रिपोर्ट

लोकसभा चुनाव : पश्चिमी यूपी में चौधरी चरण की विरासत, मोदी के चेहरे और नकली ‘राम’ की उम्‍मीदवारी के सहारे भाजपा

गदर और क्रांति की धरती मेरठ में मोदी को राम का सहारा लेने की जरूरत इसलिए पड़ी क्‍योंकि अबकी चार साल से पक रहे किसान आंदोलन और राष्‍ट्रीय लोक दल के पालाबदल ने भाजपा को मुश्किल में डाल दिया है।

कार्यवाहक प्रधानमंत्री और बनारस से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्‍याशी नरेंद्र मोदी ने मेरठ से अपने लोकसभा चुनाव प्रचार की औपचारिक शुरुआत इतवार को कर दी। मेरठ सहित पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश की 14 सीटों पर पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान होना है। मोदी ने पिछले दो लोकसभा चुनावों में भी मेरठ को ही लॉन्चिंग पैड के रूप में चुना था। अबकी अंतर ये रहा कि ‍अयोध्‍या में ‘राम को लाने’ के बाद वे मेरठ के मोदीपुरम में प्रचार का बिगुल फूंकने नकली राम यानी अरुण गोविल के साथ उतरे, जिसे भाजपा ने मेरठ से टिकट दिया है।

गदर और क्रांति की धरती मेरठ में मोदी को राम का सहारा लेने की जरूरत इसलिए पड़ी क्‍योंकि अबकी चार साल से पक रहे किसान आंदोलन और राष्‍ट्रीय लोक दल के पालाबदल ने भाजपा को मुश्किल में डाल दिया है। राष्‍ट्रीय लोक दल भले ही एनडीए का घटक बन गया हो लेकिन जाटों का विश्‍वास उसने खो दिया है और मतदाता बहुत नाराज है, जिसकी झलक यहां कुछ समय से दिख रही है।

सिर मुंड़ाते ओले

मोदी ने मेरठ से जैसे ही वापसी की, रालोद का एक बड़ा विकेट गिर गया। पूर्व सांसद, वरिष्‍ठ पत्रकार और रालोद के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष शाहिद सिद्दीकी ने पार्टी से यह कहते हुए इस्‍तीफा दे दिया कि वे अपनी आंखों के सामने लोकतंत्र को मरता हुआ नहीं देख सकते। शाहिद सिद्दीकी पढ़े-लिखे हिंदुओं और मुसलमानों में रालोद का सार्वजनिक चेहरा थे और पार्टी सहित क्षेत्र के मुद्दों को लंबे समय से राष्‍ट्रीय टेलिविजन पर कामयाबी से रखते आए थे। जयन्‍त चौधरी को ऐन मौके पर अपने सबसे बड़े प्रवक्‍ता की कमी जरूर अखरेगी।

बात हालांकि यहीं तक नहीं है। जिस तरह से मोदी की सभा में जयन्‍त ने अपने दादा चौधरी चरण सिंह को भारत रत्‍न दिए जाने के पीछे नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व को श्रेय दिया, उससे जाट मतदातओं का गुस्‍सा और बढ़ गया है। सोशल मीडिया पर जयन्‍त के लिए ‘नो वोट, नो सपोर्ट’ का अभियान शुरू हो चुका है जिससे लगता है कि‍ भाजपा को रालोद को साथ लाने का तो कोई खास फायदा नहीं होने वाला, लेकिन जयन्‍त की सियासी मिट्टी जरूर पलीद होने जा रही है।

गांवों में नो एंट्री

भाजपा की बेचैनी इससे भी समझी जा सकती है कि पश्चिमी यूपी में उसके सबसे बड़े नेता और कभी यूपी के मुख्‍यमंत्री पद के दावेदार माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान सहजता से प्रचार भी नहीं कर पा रहे हैं। मोदी की सभा से पहले की रात बालियान के प्रचार काफिले पर खतौली में जबरदस्‍त पथराव हुआ और आठ-दस गाडि़यों के शीशे तोड़ दिए गए। माना जा रहा है कि भाजपा की प्रचार बैठक में हुई कहासुनी के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं ने ही यह हमला कर दिया था।

इससे हफ्ते भर पहले मुजफ्फरनगर के कपसाड़ गांव में लोगों ने बालियान को प्रचार करने के लिए घुसने से मना कर दिया था। विरोध कर रही भीड़ को समझाने के लिए मंत्री को हाथ जोड़ कर कहना पड़ा था- ‘’भैया, मैं तो तुम्‍हारा ही हूं।‘’

चरण सिंह का सहारा

भाजपा को हालांकि खास मेरठ सीट पर बहुत चुनौती मिलती नहीं दिख रही। समाजवादी पार्टी ने मेरठ से भानुप्रताप सिंह को भाजपा के अरुण गोविल के सामने उतारा है। मूल रूप से बुलंदशहर से आने वाले और गाजियाबाद में रहने वाले भानुप्रताप सिंह सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं और इधर बीच ईवीएम के खिलाफ आंदोलन से उनका चेहरा चमका है, हालांकि उनकी पारिवारिक विरासत राजनीतिक ही है। उनके पिता पद्म सिंह दिल्‍ली में एडीजे थे और चौधरी चरण सिंह के साथ उन्‍होंने काम किया था। वे चुनाव भी लड़े थे।

जाहिर है, दोनों ही पक्षों से चौधरी चरण सिंह की विरासत का आह्वान चुनाव प्रचार मे किया जाएगा। शायद इसीलिए इतवार को मोदी की सभा के मंच पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था, ‘भारत रत्‍न चौधरी चरण सिंह जी गौरव समारोह’। इस बार भाजपा मोदी के चेहरे, सीरियल वाले राम अरुण गोविल के सहारे मतदाताओं की स्‍मृति और चरण सिंह की विरासत- तीनों के सहारे पश्चिम की 14 सीटों पर नाव पार लगाने की उम्‍मीद में है।

PM Modi Rally In Meerut
मेरठ से लोकसभा चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

जाहिर है, इन तीनों के केंद्र में नरेंद्र मोदी ही हैं। मंच की तस्‍वीर में सबसे बाएं से भाजपा के प्रत्‍याशी गोविल आगे झुक कर झांकते हुए अपना चेहरा दिखाने की कोशिश में हैं तो रालोद के जयन्‍त चौधरी का चेहरा तक नहीं दिख रहा।

सीटों पर एक नजर

लोकसभा की 14 सीटों वाला पश्चिम उत्तर प्रदेश जाट बहुल किसान बहुल गन्ने की खेती का क्षेत्र है। पश्चिमी यूपी में सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, अलीगढ़, बुलंदशहर, हाथरस, मथुरा की लोकसभा सीटें आती हैं। खड़ी बोली का यह प्रदेश अब भी खुद को एक चक्रव्‍यूह में फंसा हुआ पाता है। भारत की पहली क्रांति 1857 की जन्मभूमि में किसानों की राजनीतिक ताकत को पहचान यहीं से चौधरी चरण सिंह व महेन्दर सिंह टिकैत ने दी, लेकिन आज तक इस क्षेत्र के हालात को सुधारने में राजनीतिक दल कुछ गंभीर कर नहीं पाए।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की एक प्रयोगशाला रही। भाजपा को यहां की हिन्दू आबादी ने भरपूर समर्थन दिया, लेकिन 10 साल के काल के बाद भी किसानों की समस्याओं का कोई स्थाई समाधान डबल इंजन की सरकार निकाल नहीं पाई। गन्ना किसान आज भी अपने पिछले भुगतान के लिए आंदोलनरत हैं। बार-बार ठगे जाने का दंश झेल रहे इस प्रदेश में अबकी बार एक नई निर्णयक लड़ाई के आसार धरातल पर पसरने लगे हैं। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार मेरठ से अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत करना चुना है।

जाट, त्यागी, राजपूत, गुर्जर, सैनी, ब्राह्मण, बनिया, जाटव, वाल्मीकि, खटीक, गड़रिया के साथ-साथ एक बड़ी आबादी मुस्लिम समुदाय की यहां बसती है। कुछ भाग में ब्रज बोली का भी प्रभाव यहां है। 2011 की जनगणना के अनुसार 72.29 प्रतिशत हिन्दू, 26.31 प्रतिशत मुस्लिम आबादी यहां रहती है। सिख भी यहां काफी संख्या में बासते हैं जो कृषि के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।

वर्तमान में 14 लोकसभा सीटों में सहारनपुर, नगीना, बिजनौर, अमरोहा, ये चार सीटें बहुजन समाज पार्टी के पास हैं जबकि 10 सीटें भाजपा के पास हैं- मुजफ्फरनगर, बागपत, कैराना, मेरठ, बुलन्दशहर, अलीगढ़, गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, हाथरस और मथुरा।

अंतिम छोर पर उत्‍तराखंड से सटे सहारनपुर लोकसभा में पांच विधानसभा क्षेत्र बेहट, सहारनपुर, सहारनपुर नगर, देवबंद, रामपुर मनिहारान आते हैं। 2022 के विधानसभा चुनावों में तीन सीट सहारनपुर नगर, देवबंद और रामनगर मनिहारान भाजपा के खाते में आईं जबकि दो सीटें सहारनपुर और बेहट समाजवादी पार्टी के खाते में आईं। मुस्लिम और जाट बहुल आबादी के इस क्षेत्र में जातीय व सामुदायिक समीकरणों पर चुनाव टिका रहता है। समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी के इस गढ़ में भाजपा की सेंध अब ग्रामीण क्षेत्र में भी भीतर तक है। राष्ट्रीय लोकदल यहां अपनी राजनीतिक जमीन बना नहीं पाया। कांग्रेस कभी यहां मजबूत स्थिति में थी, लेकिन उसकी जड़ें अब काफी कमजोर हो चुकी हैं।

2004 में समाजवादी पार्टी के रशीद मसूद, 2009 में बहुजन समाज पार्टी के जगदीश राणा, 2014 में भाजपा के राघव लखनपाल, 2019 में बहुजन समाज पार्टी के हाजी फजलुर रहमान सहारनपुर से सांसद चुने गए थे। यहां मुकाबला 2019 की पुलवामा लहर के चलते काफी कड़ा रहा और जीत का अंतर 22417 मतों का ही था। 2014 के चुनाव में इमरान मसूद ने भाजपा प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दी थी। कांग्रेस को कुल मतों में से 34.14 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे जबकि राघव लखनपाल को 39.53 प्रतिशत मत मिले थे। 2019 के चुनाव में बसपा के हाजी फजलुर्रहमान को 514139 , भाजपा के राघव लखनपाल शर्मा को 491722 और कांग्रेस के इमरान मसूद के 207068 वोट मिले थे।

सहारनपुर में करीब 6.5 लाख मतदाता मुस्लिम, 5 लाख मतदाता दलित और 1 लाख मतदाता जाट समुदाय से हैं। भाजपा से एक बार फिर राघव लखनपाल शर्मा को प्रत्याशी बनाया गया है तो कांग्रेस से इमरान मसूद मैदान में हैं। बहुजन समाज पार्टी ने मजीद अली को उमीदवार बनाया है। इस सीट पर सैनी-गुज्जर मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं।

इमरान मसूद सपा में जाने से पहले पश्चिमी यूपी में कांग्रेस का बड़ा चेहरा होते थे लेकिन पिछले साल कांग्रेस में वापस आने के बाद से उनका वह भाव नहीं रह गया है। पार्टी ने मजबूरन उन्‍हें ही टिकट दिया है लेकिन गाड़ा समुदाय के मुसलमानों में इससे खासी नाराजगी बताई जाती है।

2013 के दंगों का केंद्र रहे मुजफ्फरनगर को भाजपा की मजबूत सीट माना जाता है, जहां से संजीव बालियान फिर चुनाव लड़ रहे हैं। 1991 में नरेश कुमार बालियान और 1996 व 1998 में सोहनवीर सिंह यहां से भाजपा के सांसद बने थे। 1999 में सैदु जमां कांग्रेस से, 2004 में मुनवर हसन समाजवादी पार्टी से, 2009 में कदीर राणा बहुजन समाज पार्टी के सांसद यहां रहे। 2014 और 2019 में भाजपा से संजीव बालियान ने लगातार जीत हासिल की है। तीसरी बार संजीव बालियान मुजफ्फरनगर से भाजपा के प्रत्याशी के बतौर चुनाव मैदान में हैं। समाजवादी पार्टी ने हरेन्द्र सिंह मलिक को जबकि बहुजन समाज पार्टी ने दारा सिंह प्रजापति को चुनाव में उतारा है।

मुजफ्फरनगर लोकसभा में पांच विधानसभा आती हैं- बुढ़ाना, चरथावल, मुजफ्फरनगर, खतौली और सरधना। बुढ़ाना में राजपाल सिंह बालियान और खतौली में मदन भैया राष्ट्रीय लोक दल के विधायक हैं। चरथावल में पंकज कुमार मालिक और सरधना में अतुल प्रधान समाजवादी पार्टी के विधायक ‍हैं। मुजफ्फरनगर के विधायक कपिल देव अग्रवाल भाजपा से हैं।

मुजफ्फरनगर में वोटों के समीकरण को अगर देखें तो यहां 20% मुस्लिम, 18% अनुसूचित जाति, 12% जाट, 6% गुर्जर, 4% ब्राह्मण, 4% सैनी, 3% राजपूत व 3% कश्यप व अन्य सामान्य वर्ग हैं जिनमें त्यागी, बनिया आदि मतदाता हैं। कुल मतदाता 16 लाख 93 हजार के लगभग हैं। 67.70 % मतदाता ग्रामीण हैं, शहरी मतदाता 32.3% हैं।

2019 में पुलवामा की लहर के चलते संजीव बालियान को यहां 573780 (49.34%) वोट मिले थे जबकि राष्ट्रीय लोकदल के चौधरी अजीत सिंह को 567254 (49.01%) वोट मिले थे। नोटा में 5061 वोट पड़े थे। अन्य प्रत्याशियों को 13843 वोट मिले थे। चौधरी अजीत सिंह बहुत कम मतों के अंतर 6526 वोट से चुनाव हार गए थे। 2014 में अपेक्षाकृत संजीव बालियान को अधिक मात्रा में वोट मिले थे- 653391 (58.98%) जबकि बहुजन समाज पार्टी के कदीर राणा को 252241 (22.77%) वोट ही मिले थे। समाजवादी पार्टी के चौधरी वीरेंद्र सिंह को 160810 वोट यहां मिले थे। कांग्रेस के पंकज अग्रवाल चौथे स्थान पर महज 12939 वोट ही पा सके थे। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का सीधा लाभ यहां भाजपा को मिला था। 2019 में यहां राष्ट्रीय लोक दल, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठनबंधन था।

दलित समाज के समीकरण को साधने के लिए बहुजन समाज पार्टी की भूमिका अहम हो जाती है। बसपा सुप्रीमो मायावती की लम्बी खमोशी और ऐन वक्‍त पर राजनीतिक चाल को कितना विश्वास दलित समाज से मिलता है और उनके पीछे कितना दम मुस्लिम समाज लगाएगा यही कारक निर्णायक हो सकता है। बहुजन समाज पार्टी की सक्रिय भूमिका और मायावती के साहसपूर्ण निर्णयों से निराश कुछ छिटका हुआ मुस्लिम मतदाता आने वाले समय में अपने अस्तित्व के सवाल में उलझा हुआ है।

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