भारत की आजादी के साठ वर्ष बाद उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी आरक्षण लागू किया गया, लेकिन सच्चाई यह है कि अप्रैल 2008 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत ओबीसी आरक्षण आज भी अधिकांश उच्च शिक्षण संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में लागू नहीं है। दिल्ली विश्वविद्यालय सहित देश के तमाम केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के छात्रावासों में ओबीसी आरक्षण आज भी लागू नहीं है जबकि फरवरी 2019 में गरीब सवर्णों के लिए लागू 10% सुदामा कोटा को इन्हीं विश्वविद्यालयों में सवर्ण कुलपतियों, शिक्षक संगठनों के सवर्ण अध्यक्षों,छात्र संगठनों के सवर्ण अध्यक्षों, सवर्ण प्रोवोस्ट एवं सवर्ण वार्डेन की आपसी एकता, एकजुटता एवं जातिवादिता के कारण रातोंरात लागू कर दिया जाता है।
दिल्ली विश्वविद्यालय में कुल 20 छात्रावास हैं। इसके अतिरिक्त अधिकांश कॉलेजों के पास अपने-अपने छात्रावास हैं और उनमें भी ओबीसी आरक्षण लागू नहीं है। दिल्ली विश्वविद्यालय के 20 छात्रावासों में से सिर्फ चार में ओबीसी आरक्षण के कॉलम हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय की वेबसाइट परउपलब्ध इन 20 छात्रावासों का अध्ययन-विश्लेषण एवं उसका जनेऊ जातिवाद, मनुवाद और ब्राह्मणवाद यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।
जुबली हॉल दिल्ली विश्वविद्यालय का एक प्रसिद्ध छात्रावास है। इसमें सीटों की कुल संख्या 206 है, जिसमें सामान्य श्रेणी के लिए 133, अनुसूचित जाति के लिए 30, अनुसूचित जनजाति के लिए 15 और विदेशी छात्रों के लिए 18 सीटें हैं। इस छात्रावास में अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों के लिए एक भी सीट आरक्षित नहीं है। अर्थात ओबीसी वर्ग के छात्रों को सवर्ण प्रोवोस्ट एवं सवर्ण वार्डेन की ख़ुशामद करके 133 में से दो-चार सीट मिलती है। इस छात्रावास में सवर्ण छात्रों के लिए लगभग 65% आरक्षण का प्रावधान दिल्ली विश्वविद्यालय ने किया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के विभागों एवं कॉलेजों में 27% ओबीसी आरक्षण के तहत पिछड़े समाज के छात्रों का एडमिशन हो सकता है लेकिन उन्हें जुबली हॉल छात्रावास में रहने के लिए कमरा नहीं मिल सकता है। इस छात्रावास के प्रोवोस्ट प्रोफेसर सुनील कुमार शर्मा और वार्डेन प्रोफेसर सुभाष आनंद हैं।
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ग्वयेर हॉल छात्रावास में 158 सीटें हैं। इसमें भी अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं है। इसमें अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण लागू है। जो छात्र व शिक्षक ओबीसी प्रमाण पत्र बनवाते हैं, उन्हें यह बात समझ में क्यों नहीं आती है कि उनके लिए ओबीसी आरक्षण इन छात्रावासों में लागू नहीं है? वे इसके लिए कब आंदोलन करेंगे? दिल्ली विश्वविद्यालय में ओबीसी कोटे से चयनित प्रोफेसर कब तक ओबीसी छात्रों की इन असुविधाओं पर अपने जीवन की रंग-रेलियाँ मनाते रहेंगे? आख़िर वे कब तक ब्राह्मण प्रोफेसरों की चमचागिरी करते रहेंगे? इसके प्रोवोस्ट प्रोफेसर गजेन्द्र सिंह एवं वार्डेन डॉ. कमाखिया नरेन तिवारी हैं।
पोस्ट ग्रेजुएट मेन्स छात्रावास में100 सीटें हैं, जिनमें अनारक्षित श्रेणी के लिए 53, अनुसूचित जाति के लिए 15, अनुसूचित जनजाति के लिए 7 और शेष अन्य कोटों के लिए आरक्षित हैं। लेकिन इसमें भी अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों के लिए एक भी सीट आरक्षित नहीं है। दिल्ली विश्वविद्यालय में पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए एडमिशन लेना आसान है लेकिन उसके छात्रवासों में कमरा लेने के लिए सवर्ण प्रोवोस्ट एवं वार्डेन की जी-हुजूरी, चापलूसी एवं ख़ुशामद करनी पड़ती है। यह सिलसिला तब तक चलेगा जब तक इन छात्रावासों में 27% ओबीसी आरक्षणलागू नहीं किया जाएगा। इसके प्रोवोस्ट प्रोफेसर के. पी. सिंह एवं वार्डेन प्रोफेसर मुश्ताक अहमद कादरी हैं।
डी. एस. कोठारी छात्रावास में 99 सीटें हैं, जिनमें अनारक्षित श्रेणी के लिए 77 एवं अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए 22 सीट आरक्षित हैं। इसमें भी ओबीसी वर्ग के छात्रों के लिए 27% ओबीसी आरक्षण लागू नहीं है। आख़िर किस दुर्भावना के कारण दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ओबीसी वर्ग के छात्रों को छात्रावास की सुविधाओं से वंचित रख रहे हैं? इसके प्रोवोस्ट प्रोफेसर आशीष रंजन और वार्डेन डॉ. हेमंत कुमार सिंह हैं।
अंतर्राष्ट्रीय छात्रावास में 98 सीटें हैं। इनमें 78 सीटों का 20% स्नातक डिग्री वाले विदेशी छात्रों के लिए आरक्षित हैं और 20 सीटों का 15% अनुसूचित जाति एवं 7.5% अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। इस छात्रावास में भी पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए आरक्षण नहीं है। आशय यह है कि विदेशी छात्रों की संगति में रहने का अधिकार सवर्ण, दलित एवं आदिवासी छात्रों को ही है, पिछड़े वर्ग के छात्रों को नहीं. दिल्ली विश्वविद्यालय का यह भेदभाव आजादी के 77 साल बाद भी जारी है। इसी भेदभाव को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सवर्णों का अमृतकाल कहते हैं। इसके प्रोवोस्ट प्रोफेसर बी. डब्ल्यू. पाण्डेय और वार्डेन डॉ. आदित्य कुमार गुप्ता हैं।
डिपार्टमेंट ऑफ़ सोशल वर्क हॉस्टल में ओबीसी आरक्षण लागू है. इसके प्रोवोस्ट प्रोफेसर नीर अग्निमित्र और वार्डेन प्रताप चन्द्र बेहरा हैं। इसके अतिरिक्त मानसरोवर छात्रावास, वी. के. आर. वी. राव छात्रावास,WUS विश्वविद्यालय छात्रावास, अरावली छात्रावास, गीतांजलि छात्रावास, सरामती छात्रावास में भी ओबीसी आरक्षण लागू नहीं है।
राजीव गांधी महिला छात्रावास में कुल 772 सीटें हैं। अनुसूचित जाति के परास्नातक छात्राओं के लिए 160 सीट और शोध छात्राओं के लिए 40 अर्थात कुल 200 सीट आरक्षित है। उत्तर-पूर्वी राज्यों के परास्नातक छात्राओं के लिए 214 और शोध छात्राओं के लिए 86 सीट आरक्षित हैं। इसमें 232 सीटें अनारक्षित, पिछड़ी, दलित, आदिवासी एवं दिव्यांग श्रेणी की छात्राओं के लिए आरक्षित हैं, शेष 40 सीटें अन्य कोटे के लिए आरक्षित हैं। अर्थात इस छात्रावास में ओबीसी आरक्षण लागू है। इसकी प्रोवोस्ट प्रोफेसर महिमा कौशिक और वार्डेन डॉ. प्रतिमा राय हैं।
स्नातक महिला छात्रावास में कुल 662 सीटें हैं, जिसमें 84 अनुसूचित जाति, 49 अनुसूचित जनजाति, 151 अन्य पिछड़ा वर्ग एवं 274 अनारक्षित श्रेणी की छात्राओं के लिए आरक्षित हैं। शेष 104 सीटें दिव्यांग, विदेशी छात्राओं एवं अन्य कोटों के लिए आरक्षित हैं। इसमें प्रथम वर्ष की छात्राओं के लिए 220 सीटें आरक्षित हैं। इसकी प्रोवोस्ट के. एन. सरस्वथी और वार्डेन डॉ. सुमन यादव हैं।
आंबेडकर गांगुली महिला छात्रावास में 50% सीटें अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और भूगोल पढ़ने वाली छात्राओं के लिए और 50% सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की छात्राओं के लिए आरक्षित हैं। इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग की छात्राओं के लिए 27% सीट आरक्षित नहीं है। इसकी प्रोवोस्ट प्रोफेसर गुंजन गुप्ता और वार्डेन डॉ. श्रुति राय हैं।
अंतर्राष्ट्रीय महिला छात्रावास में कुल 98 सीटें हैं। इनमें 90% सीट विदेशी छात्राओं और 10% सीट भारतीय छात्राओं के लिए आरक्षित हैं। इसमें SC,ST एवं OBC आरक्षण लागू नहीं है। इसकी प्रोवोस्ट अंजू वाली टिक्को हैं।
नार्थ ईस्टर्न महिला छात्रावास और विश्वविद्यालय महिला छात्रावास में भी ओबीसी छात्राओं के लिए आरक्षण लागू नहीं है जबकि CIE हॉस्टल में ओबीसी आरक्षण लागू है। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि एक ही विश्वविद्यालय के अलग-अलग छात्रावासों में ओबीसी आरक्षण को लेकर अलग-अलग नियम-कानून क्यों है? जाहिर है कि मनुवादी मानसिकता से संचालित भारतीय विश्वविद्यालय पिछड़ी जातियों का हक़-हकूक मारते रहते हैं।
मेघदूत छात्रावास में SC,ST और सुदामा कोटा EWS भी लागू है जबकि ओबीसी आरक्षण लागू नहीं है। फरवरी 2019 में लागू हुआ सुदामा कोटा 10% सभी जगहों पर लागू कर दिया जाता है जबकि अप्रैल 2008 में लागू हुआ अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण आज भी अधिकांश जगहों पर लागू नहीं है। इसकी प्रोवोस्ट प्रोफेसर प्रतिभा मेहता लूथरा और वार्डेन डॉ. शशि रानी हैं।
अतः स्पष्ट है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकांश छात्रावासों में ओबीसी आरक्षण लागू नहीं है। डीयू में राजनीति करने वाले छात्र संगठन एवं शिक्षक संगठन ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर मौन व्रत धारण किये हुए हैं। अपनी वेतन एवं सुविधाओं को लेकर आंदोलन करने वाले शिक्षक संगठन एवं प्रोफेसर ‘छात्रावासों में ओबीसी आरक्षण’ के मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं। यही चुप्पी दिल्ली विश्वविद्यालय में मनुवादियों के वर्चस्व को बनाये रखती है।