Saturday, July 27, 2024
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चुनमुन की कागज की नइया कहां गयी..

कवि-नाटककार मोहनलाल यादव स्वतःस्फूर्त और सहज रचनाकार हैं जिनकी कविताओं में न सिर्फ आम-जन का दुख-दर्द और संघर्ष के साथ ही व्यवस्था और सत्ता की दुरभिसंधियों तथा पाखंडों के खिलाफ आक्रोश भी अंतर्निहित है। उनकी कवितायें उनके व्यक्तित्व की तरह सरल लेकिन विज़नरी कवितायें हैं। उनका जन्म 8 अप्रैल 1959 ग्राम तुलापुर झूँसी इलाहाबाद,उ.प्र. में […]

कवि-नाटककार मोहनलाल यादव स्वतःस्फूर्त और सहज रचनाकार हैं जिनकी कविताओं में न सिर्फ आम-जन का दुख-दर्द और संघर्ष के साथ ही व्यवस्था और सत्ता की दुरभिसंधियों तथा पाखंडों के खिलाफ आक्रोश भी अंतर्निहित है। उनकी कवितायें उनके व्यक्तित्व की तरह सरल लेकिन विज़नरी कवितायें हैं। उनका जन्म 8 अप्रैल 1959 ग्राम तुलापुर झूँसी इलाहाबाद,उ.प्र. में हुआ था। वे पेशे से अध्यापक रहे हैं। उन्होंने कलजुगी पंचाइत, भ्रष्टाचार का घोल, आदमखोर सहित 14 नाटकों का लेखन, मंचन एवं निर्देशन किया। नौटंकी, बिरहा आदि से गहरे जुड़े मोहनलाल यादव ने लोककलाओं और लोककलाकारों पर भी लिखा है। एक फिल्म चकरघिन्नी में वे अभिनय भी कर चुके हैं। वे शांत और विनम्र व्यक्ति हैं और ढेरों काम करने के बावजूद आत्मप्रचार से दूर रहकर लगातार सक्रिय हैं।

 

चुनमुन की कागज की नइया कहां गयी

पनघट पोखर  ताल-तलइया कहाँ  गयी

हमरी  प्यारी सोन  चिरइया  कहाँ गयी 

     खेल   खिलौना  हाथी  घोड़ा  माटी  के

     चुनमुन की कागज की नइया कहां गयी

रग्घू  काका  कै  आवां  ठंडा  होइगा     

भुजई दादा की भरसइया कहां गयी

     लंगड़ी आँधी में विकास के सब उड़ि गवा

     छप्पर-छानी  उड़ी  मड़इया कहाँ गयी

तरस गई कोयलिया गीत सुनावइ के

घनी-घनी बउरल अमरइया कहाँ गयी

     दादी गितिया काने  में मिसिरी घोलइ  

     पांड़े काका की कवितइया कहाँ गयी

फगुआ होरी बेलवरिया पुरबी  चैता

नभभेदी पीतम गवनइया कहाँ गयी

      घृना फैलिग जात-पात अउ मजहब के

      अलगू-जुम्मन असल मितइया कहाँ गयी

कंकरीट के जंगल सगरिउ  उगि आये

फली मटर फूली सरसइया कहाँ गयी

      काग  बड़ेरी ढूढ़ि-ढूढ़िके  हारि गवा

      फुर्र-फुर्र  उड़ती  गौरैय्या कहाँ गयी

खटिया बिछे नीम की छइयां दादा के

मंद-मंद झुरके  पुरवइया  कहाँ  गयी

  

ठगुअंन पे  कइ  लिहा भरोसा  इहइ भई नादानी

धन धरती जल जंगल लुटिग अउर आँख के पानी

हम का जानी जन विकास के असली इहइ कहानी

 

परबत परबत हीरा खोदी अउर धरती मा सोना

हमहिन  भूखा  नंगा  सोई  ई  देखा  बेइमानी

 

चालीस  रुपिया  दूध  बिकाये  नब्बे  में  गोमूत्र

अजब खेल माया के खेलइं जोगी ज्ञानी ध्यानी

 

नाहीं   भौरे गीत  सुनाए  न  मुस्काए  फूल

बँगले में ऋतुराज कैद भ बगिया में वीरानी

 

हमरे  लेखे  मंदिर  महजिद  दुइनउ  एक  समान

जेतना प्यारा रामजियावन ओतनइ  बा रमजानी

 

तोहरे राष्ट्रवाद में लुटिग जन जन के सुख चैन

जेठ के सावन जे ना बोलइ पक्का पाकिस्तानी

 

राजनीति के कठिन ककहरा हमरे समझ न आइ

ठगुअंन पे  कइ  लिहा भरोसा  इहइ भई नादानी

 

शब्द शब्द रसघोली अवधी

मनभावन मनभोली अवधी

शब्द शब्द रसघोली अवधी

भोजपुरी की बहिन दुलारी

हमराही हमजोली अवधी

खुसरो रहिमन अउर जायसी

तुलसी की  मुँहबोली अवधी

हिंदी   उर्दू   अउर   फारसी

सबको संग संजो ली अवधी

जाति धर्म के भेद न माने

ईद दिवाली होली अवधी

गुल्ली  डंडा  कूद  कबड्डी

गांव गदेलन टोली अवधी

दुपहरिया  बगिया  में बीतइ

भरे आम की झोली अवधी

सिल बट्टा मिसिरा लइ बइठे

पीसें भांग की गोली अवधी

शीतल  मंद बयार बसंती

मंद मंद रसडोली अवधी

 

                    अलगउझी

एक  बनावइ  दगाबाज  दूजा  बनवइ  बेइमान

जोखू अउर जवाहिर होइ गए भारत पाकिस्तान

 

नीति नीति धरम अधरम के दुइनउ देइं दुहाई

गरम गुलगुला जइसेन गारी काढ़इं दुइनउ भाई

कहइ जवाहिर जोखुआ सारे तइं त नमक हरामी

मेहरी  के चक्कर में  पड़िके करत  हए बदनामी

जोखुआ कहइ कि अबे जवहिरा ढेर न गाल बजाउ

केकरे  माथे  फूला  बाटे  हमके  तनी  बताउ

ताल  ठोकिके  दुइनउ  उछरै  भ  पटकी  के पटका

जोखुआ काला जंग लगाएस दहिना मोढ़ा खसका

नीचे गिरे जवाहिर ओनकर मूड़ होइ गवा लाल

एक के हाथ घुसा चड्ढी में दूजा पकड़ेस बाल

छाती पे चढ़ि हुमकइ जोखू आज निकारब जीव

मची  जंग भए दुइनउ भाई  बालि  अउर  सुग्रीव

         रामू  काका  के  होठन  पे  मंद  मंद  मुस्कान

         जोखू और जवाहिर होइ गए भारत पाकिस्तान

 

एहर जवाहिर और जोखू में होवे लत्तम जूत्ता

वोहर जेठानी अउर देवरानी में भ गुत्थम गुत्था

रान परोसी दउड़ि दउड़ीके लागिन ओन्हइ छुड़ावइ

दुइनौ एक दूजे की महिमा जोर जोर से गावइं

महुआ रस जइसे एक सांसे गारी चुअइ पचास

पत्रा खुला सात पीढ़ी के खुलइ लाग इतिहास

काकी दाई माई मौसी सबके भ गुणगान

नई-नई  उपमाएं गढ़ते  नए-नए उपमान

          शब्द शब्द में शहद चुवत बा चाटइं बूढ़ जवान

          जोखू अउर जवाहिर होइ गए भारत पाकिस्तान

 

आग लगा  पानी के धावइ में  हैं काका माहिर

तूं त समझदार बाट्या तोहईं चुप रहा जवाहिर

कहइ जवाहिर,काका !जोखुआ सार भवा कुलघाती

लहुरा होइके हाथ उठाएस मोर फटत बा छाती

आपन बेटवा जइसे पाला पहेलवान बनवावा

हम त सूखी रोटी एका दूध दही चभवावा

मेहरारू के गोड़ दबावइ बात उहीके मानइ

भाई भौजाई के सरवा रोवउं भर ना जानइ

जोखुआ बोला रड़रोवन न रोवा ससुर जवाहिर

जानत हौं आंसू गारइ में केतना बाट्या माहिर

दाँत के पीसा खाइ जात है दांत के जाइ ना खावा

काका एकरे संग ना रहबइ अलगउझी करवावा

काका के मन फूटइ लड्डू धीर धरज्जा भाई

जवन जवन तोहरे सबके मन उहइ उहइ होइ जाई

          हंसी खुशी कुल बांटि ल्या बचवा बाट्या चतुर सुजान

          जोखू और जवाहिर होइ गये भारत पाकिस्तान

 

जर्रा जर्रा बंटइ लाग सिल लोढ़ा मूसर ओखरी

खटिया मचिया भउंका दउरी बटा जात अउ चकरी

हंडा परात गगरा गगरी कलछुल टाठी लोटा

खांची खुरपा पीढ़ा बेलना लुंगी अउर लंगोटा

उपरी कंडी हेंगा हउदा खूंटा अउर पगहवा

बटी बाग बन बीरउ बटिग उसरहवा ककरहवा

भुअरी भइंस जवाहिर मरकहिया के जोखू पाएन

मउका ताड़ जवाहिर कर्जा दस हजार गोहराएन

करजइ तरे हड़प कइ डाएन माई के कुल गहना

जोखुआ गरजा हे बेइमनवा मइ मानब एकउ न

जेकर जस करनी तस भरनी काका जब समझावइं

जोखू करजा ओढ़ि लिहेन जोखुआइन आंख दिखावइं

             आंगन में दीवार खड़ी भइ काका जिया जुड़ान

             जोखू और जवाहिर होइ गए भारत पाकिस्तान

 

बटेन अंत में माई बाबू सोचइं अउर विचारइं

दरद कटार करेजा फारइ लागेन आँसू गारइ

बाबू पड़े जवाहिर हिस्से जोखू पाएन माई

सात जनम के वादा टूटा कइसे कटी बुढ़ाई

एक दूजे के टुक टुक देखइं मुँह से कछु न बोलइं

कांपइ होठ गील भइ आंखी मन मन पीरा तउलइं

तब बुढ़ऊ से बुढ़िया बोली हे ननका के बाबू

कउरा गहन न अलगे होई मोर जिया बेकाबू

हाथ जोड़ि तब बुढ़ऊ बोलेन पंचउ एतनइ कहबइ

संघेन जिअब मरब दुइनउ जन पल भर जुदा न रहबइ

भंवरी फिरी सात फेरा के जिअब मरब एक साथे 

देइ जवहिरा मोहे जहर जोखुआ बुढ़िया के हाथे

         राज करइं मेंहरी संग दुइनउ सरगे करी पयान

         जोखू और जवाहिर होइ गए भारत-पाकिस्तान

 

.                         लोकगीत                    

हमरा लूटिके बिहनवां तूं बजावा खजरी।

हम  धरती  के सीना चीरी  तब  फूटइ  हरियाली

हमरइ जांगर चमकइ तोहरा कोठा महल अटारी

    हमके खुला असमनवां तूं बजावा खजरी।

 

चारिउ ओरिया  सुरसा  जइसे  मुंह बाए महंगाई

पेटवा भभके भूख अगनिया कवने बिधी बुझाई

     कइसे पाली मइ ललनवां तूं बजावा खजरी।

 

तोरी  महलिया  पूरनमासी  हमरी रात अमावस

हमरे गउवां जेठ तपत बा तोरे शहर ऋतु पावस

    रिमझिम बरसे रे सवनवां तूं बजावा खजरी।

 

ठप्पा  मारत  बटन  दबावत पहुंची आइ बुढ़ाई

खेल्यो सत्ता खेल घिनौना लाज शरम बिसराई

     आपन बेच्या धइ इमनवां तू बजावा खजरी।

 

मंदिर-मस्जिद  हिंदू-मुस्लिम  मुद्दा इहइ तोहार

जात-धरम नफरत फइलावा इहइ तोरा बेवपार

     गावा घिरना के भजनवां तूं बजावा खजरी।

 

खेतवा में बंदूकिया बोउबइ होइहैं विकट लड़ाई

आपन सूरज कैद महल में  लड़िके लेब छुड़ाई

     लड़बइ दुश्मन से लड़नवां तू बजावा खजरी।

 

अब त जनता जानि गइल बा तोहरी सब धुरताई

इंकलाब  के  झंडा  नभ  में  लहर लहर  लहराई

      गउबै क्रांति के तरनवां तू बजावा खजरी।

 

                         लोकगीत (पुरबी)

 

अब ना करबइ कठिन किसनिया रनिया जाब बिदेसवा ना।

 

कहाँ  से  छोड़ी  बीज  खेत  में  खाद  यूरिया  डाई

कड़ा हवेल त पहिलेन बिकिग अब झुमकउ बिकि जाई

अबकी बिकी कमर करधनिया रनिया जाब बिदेसवा ना।

 

करजइ बीचे बचपन बीता बितल उमिरिया सारी

सेठ  महाजन  रोज  दुवारे  आई  सुनावइं  गारी

रोज बखानइं माई बहिनिया रनिया जाब बिदेसवा ना।

 

जल  जंगल जमीन लुटवावइ दिल्ली के सरकार

गांव गांव में शहर घुसि गवा घर में घुसा बाजार

लुटि गइ पुरबुज के निशनिया रनिया जाब बिदेसवा ना।

 

प्यासी नहर उदास टिबुलिया सूखल फसल जवानियां

गइल भाड़  में  खेती बारी  भाड़  में  जाए  किसनिया

मोहन खून से महंगा पनिया रनिया जाब बिदेसवा ना।

अब ना करबइ कठिन किसनिया रनिया जाब बिदेसवा ना।

 

कवि-नाटककार मोहनलाल यादव स्वतःस्फूर्त और सहज रचनाकार हैं

 

गाँव के लोग
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