किसी ने सच कहा है- डेमोक्रेसी में मंत्री होना बड़ी फजीहत का काम है। जो कहीं डेमोक्रेसी अपने इंडिया टाइप की हो‚ तब तो कहना ही क्याॽ बताइए‚ यूपी वाले नंदगोपाल गुप्ता‚ मिर्जापुर में दलित गंगाधरी के घर भोजन के लिए पधारे‚ पर उसकी खबर तो बनी मुश्किल से चार लाइन की। गुप्ताजी की जात गई और दलित उद्धार के प्रचार का मजा भी नहीं आया। पर गुप्ताजी के पांव घर में पड़ने के बाद भी दलित गंगाधरी के उद्धार में क्या-क्या कसर रह गई‚ इसकी कहानियां सुर्खियों में हैं।
बेचारे मंत्री लोगों के दलितों का उद्धार करने में मुश्किलें ही मुश्किलें हैं। दलितों के साथ खाना नहीं खाएं, तो सब कहते हैं कि दलितों के साथ रोटी का रिश्ता ही नहीं रखना चाहते। दलितों के साथ रोटी का रिश्ता बनाने किसी दलित को अपने घर बुलाएं‚ तो लोग कहते हैं कि अपने हाथ का छुआ दलित को खिलाया तो क्या हुआ‚ दलित के हाथ का छुआ खाकर दिखाओ तो जानें। और किसी दलित के घर खाने जाएं तो और मुसीबत को न्योतें‚ जैसे गुप्ताजी न्योत बैठे। गंगाधर के घर पर खाने तो पहुंच गए‚ पर खाएं तो क्याॽ चलो पनीर की सब्जी तो स्पेशल थी‚ जो सरपंचजी के घर से बनकर आ गई। दाल वगैरह भी पड़ोस में किसी और ने बनाकर भेज दी। पर कम-से-कम बाजरे की रोटी तो दलित के घरवाली के ही हाथ की बनी थी। पर इतने में भी पट्ठे दलित को दिक्कत हो गई। कहता है मांग-जांच के कहीं से सौ रुपये का देसी घी लाया‚ तब मंत्रीजी ने चुपड़ी रोटी का भोग लगाया। हमारे नसीब में ऐसी चुपड़ी कहां!
और मंत्रीजी ने छककर अच्छी तरह से हाथ धोए भी नहीं थे कि बंदों के रोने शुरू हो गए। दलित गंगाधरी के पास तो राशन कार्ड भी नहीं है। गंगाधरी के पास सरकारी मदद वाला पक्का तो क्या, अधपक्का मकान भी नहीं है। गंगाधरी के घर में नल नहीं है। गंगाधरी के घर में शौचालय नहीं है। गंगाधरी के घर पर बिजली का कनेक्शन नहीं है। और भी न जाने क्या-क्या नहीं हैॽ काश! कोई यह तो बताता कि दलित गंगाधरी के पास अब क्या है? जो पहले नहीं था। गंगाधरी के पास उद्धार है‚ जो उसकी झोपड़ी में अपनी जूठन गिराकर गुप्ताजी ने उसे दिया है।