Monday, May 13, 2024
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नारी शक्ति वंदन के दावे के बावजूद दो चरणों के चुनाव में महज आठ प्रतिशत महिला उम्मीदवार

लोकसभा के दो चरणों के चुनाव हो चुके हैं लेकिन कुल उम्मीदवारों में महिलाएँ केवल आठ प्रतिशत हैं। यह नारी शक्ति वंदन मंशा और सामाजिक न्याय की अवधारणा के लिए गंभीर संकेत है।

मोदी सरकार ने जितने ज़ोर-शोर से नारी शक्ति वंदन विधेयक को संसद में पास करा कर वाहवाही लूटी उतनी ही सक्रियता महिलाओं को भागीदारी देने में नहीं दिखाई है। जानकारों का कहना है कि भले ही अभी यह बिल लागू नहीं हुआ है लेकिन भागीदारी देने का इंतज़ार करना या हीलाहवाली करना एक राजनीतिक धोखेबाज़ी है। इसका एक अर्थ यह भी है कि विधेयक भी राजनीतिक लाभ लेने का एक हथियार था।

महिलाओं की भागीदारी इस चुनाव में बहुत कम है। लोकसभा चुनाव के शुरुआती दो चरण के दौरान चुनावी मैदान में उतरे कुल 2823 उम्मीदवारों में से केवल आठ प्रतिशत महिलाएं थीं।

राजनीतिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह आंकड़ा लैंगिक आधार पर पूर्वाग्रह की गंभीर समस्या को दर्शाता है और महिलाओं को सशक्त बनाने की बातें खोखली लगती हैं।

लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 135 महिला उम्मीदवार थीं, जबकि दूसरे चरण में 100 महिला उम्मीदवार थीं यानी शुरुआती दो चरण में कुल मिलाकर 235 महिला उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरीं।

पहले चरण में महिला उम्मीदवारों की संख्या के मामले में तमिलनाडु शीर्ष पर रहा। राज्य में पहले चरण में 76 महिला उम्मीदवार थीं, लेकिन राज्य के कुल उम्मीदवारों में उनकी हिस्सेदारी केवल आठ प्रतिशत थी, जबकि दूसरे चरण में सबसे अधिक 24 महिला उम्मीदवार केरल से चुनावी मैदान में उतरीं।

पार्टी-वार देखा जाए तो शुरुआती दो चरण में कांग्रेस ने 44 महिलाओं, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 69 महिलाओं को मैदान में उतारा।

इस लैंगिक असंतुलन की राजनीतिक विश्लेषकों और कार्यकर्ताओं ने आलोचना की। उनका सवाल है कि दल महिलाओं को अग्रसक्रिय तरीके से टिकट देने के बजाय महिला आरक्षण विधेयक के लागू होने का इंतजार क्यों कर रहे हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय के जीसस एंड मैरी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुशीला रामास्वामी ने कहा कि राजनीतिक दलों को महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘राजनीति दलों को अधिक अग्रसक्रिय होना चाहिए था और अधिक महिला उम्मीदवारों को खड़ा करना चाहिए था।’

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. इफ्तिखार अहमद अंसारी ने कहा कि भारत के कुल मतदाताओं में लगभग आधी संख्या महिलाओं की है, ऐसे में उम्मीदवारों के रूप में उनका कम प्रतिनिधित्व राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की पूर्ण भागीदारी को रोकने वाली बाधाओं को लेकर सवाल खड़े करता है।

उन्होंने प्रतीकात्मक कदम उठाने और वादे करने के बजाय राजनीति में महिलाओं के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने की खातिर संरचनात्मक सुधारों के महत्व पर जोर दिया और लैंगिक विविधता को बढ़ावा देने में पार्टी नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला।

बीजू जनता दल (बीजद) एकमात्र ऐसी पार्टी है, जो महिला उम्मीदवारों को नीतिगत तौर पर 33 प्रतिशत टिकट देती है।

बीजद के बीजू महिला दल की राज्य इकाई की उपाध्यक्ष मीरा परिदा ने महिला सशक्तीकरण की दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता पर बल दिया और महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीट आरक्षित करने की अपनी पार्टी की पहल की सराहना की।

उन्होंने व्यापक सुधारों की वकालत करते हुए कहा, ‘केवल सीट आरक्षित करना पर्याप्त नहीं है। हमें एक सांस्कृतिक बदलाव की जरूरत है जिसमें महिलाओं को नेता और निर्णय लेने वालों के रूप में देखा जाए।’

 

 

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