तुर्की में जब युवकों की एक संस्था यूथ फॉर इन्टरनैशनल हैवीटैट की ओर से ग्लोबल मीटिंग ऑफ जेनरेशन में हिस्सा लेने का निमंत्रण मिला तो मन में बहुत प्रसन्नता थी। वह इसलिए कि तुर्की को मैंने हमेशा ही एक ऐसा देश माना जिसके उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि मुसलमान केवल’ फन्डामेनटलिस्ट‘ ही नहीं होते, बल्कि प्रगतिशील भी होते हैं। तुर्की जाने का मतलब यह भी था कि मैं एशिया की विशालता और भव्यता को देखूं।नई दिल्ली के पालम हवाई अड्डे से मैंने शायद 7 या 8 मई की रात्रि में एमीरेट्स की उड़ान से दुबई के लिए प्रस्थान किया। करीबन दो घंटे के सफर के बाद मैं दुबई पहुंचा जहां से मुझे टर्की के सबसे बडे़ शहर इस्तांबुल के लिए दूसरी उड़ान पकड़नी थी।
दुबई से इस्तांबुल का सफर लगभग 4.30 घंटे का है। ऐमीरेट्स के हवाई जहाज काफी अच्छे हैं और प्रत्येक सीट पर एक पोर्टेबल टीवी सेट है। इस्तांबुल हवाई अड्डा यूरोप के जैसै ही अन्य हवाई अड्डों की अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त है और बहुत बड़ा है। हवाई अड्डे पर अपना सामान लेकर मेरा पहला प्रयास यह देखना है कि क्या कोई प्रतिनिधि मुझे लेने आये हैं या नहीं। मैं आगंतुकों के इंतजार में खड़ी पंक्तियों को देखता हूं, डिसप्ले कार्डस आदि को देखता हूं। लेकिन कोई भी मुझे लेने नहीं पहुंचा है तो मैं पुनः सूचना पट्ट की ओर देखता हूं और हवाई अड्डे के अन्दर जाकर मुद्रा परिवर्तित करता हूं। मैं 150 यू.यस.डी. को चेंज कराने की सोचता हूं। मुझे तुर्की की मुद्रा लीरा के बारे में पता है कि वह 1 डालर 6,11,400 तुर्की लीरा के बराबर होते हैं। इस प्रकार मेरे पास 8,88,21,132 तुर्की लीरा आये। अब आप सोंचेगे कि भारत में इसका दसवां हिस्सा भी हमारे पास हो तो गरीबी मिट जाये लेकिन टर्की में लगभग 1 करोड़ लीरा आपके दो दिन में खत्म हो जायेंगे।
हवाई अड्डे से बाहर आने पर मैंने इस्तांबुल सेन्ट्रल के लिए बस देखने का प्रयास किया। लेकिन फिर टैक्सी वाले से बात की। ग्रेस होटल जहां मुझे ठहरना था और जो ब्रिटिश कन्सूलेट के पास था, का किराया 7500000 तुर्की लीरा था। मुझे इसका इस्तेमाल करने में बहुत पेरशानी हो रही थी। बार-बार हिसाब लगाकर नोट गिनने पड़ रहे थे। दस लाख 1 करोड़ तक का नोट होता है लेकिन उसे गिनने की अभ्यस्तता नहीं थी। खैर करीब एक घंटे के बाद मैं ग्रेस होटल पहुंच गया। होटल में प्रवेश करते ही, हमारे मित्र पवन सिंह दिखाई दिये और उन्होंने हमारा स्वागत किया और फिर मुझे मेरे कमरे तक ले गये। मैने नहाने के बाद, थोड़ी देर आराम करना उचित समझा और फिर नीचे खाने के लिये चला आया।
यहां खाने में काफी विविधता है। दाल, आलू और टमाटर का सूप रोज मिलता है और फिर कोई एक डिश जैसै-बीफ मिलता था, लेकिन सुअर का मांस प्रतिबन्धित था। कारण तुर्की में मुस्लिम सम्प्रदाय की भावनाओं का सम्मान। हां, शराब की यहां कोई कमी नहीं है। तुर्की आकर यह नहीं लगता कि आप किसी एशियाई अथवा मुस्लिम बाहूल्य देश में हैं। कम से कम इस्तांबुल का रात्रि जीवन बहुत उम्दा है… डिस्को, कैफे, बार और उन्मुक्त लड़कियां, तुर्की ने यूरोपियन सभ्यता को गले लगाया है। खुलापन होने के कारण क्लबों, डिस्को, टी.वी. चैनलों पर सेक्स व्यापार दिखाई पड़ता है।टर्की की राजधानी अंकारा है और टर्क यहां की भाषा है हालांकि अंग्रेजी समझने वालों की संख्या काफी है। ‘इस्तांबुल’ टर्की का सबसे बड़ा शहर है जिसकी आबादी लगभग एक करोड़ पचास लाख है…. यूरोप और एशिया की दो सभ्यताओं का गवाह इस्तांबुल एक खूबसूरत शहर है। और इसकी ऐतिहासिकता का मुकाबला केवल रोम ही कर सकता है। बोस्फोरस जो कि मारमरा और काले सागर को जोड़ता है। इस्तांबुल की ऐतिहासिक विरासत है जहां पर यूरोप और एशिया अलग-अलग होते हैं।
[bs-quote quote=”तुर्की कई मायनों में भारत से समानता रखता है। ये तो हम सभी जानते हैं कि तुर्क ने भारत पर आक्रमण भी किया। यहां पर भारतीय फिल्में भी देखी जाती हैं। यहां की भाषा के कई शब्द हिन्दी से मिलते जुलते हैं। काफी को कहवा, चीनी को शक्कर, वाइन को शराब, चावल को विलाव और चाय को चाय यहां पर भी बोला जाता है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
तुर्की कई मायनों में भारत से समानता रखता है। ये तो हम सभी जानते हैं कि तुर्क ने भारत पर आक्रमण भी किया। यहां पर भारतीय फिल्में भी देखी जाती हैं। यहां की भाषा के कई शब्द हिन्दी से मिलते जुलते हैं। काफी को कहवा, चीनी को शक्कर, वाइन को शराब, चावल को विलाव और चाय को चाय यहां पर भी बोला जाता है। खाने के वक्त जब मैंने एक फल का नाम पूछा तो मुझे बताया गया ‘येनी दुनिया‘ जिसका अर्थ नई दुनिया होता है। इस्तांबुल पूरे मध्य यूरोप, तुर्कमेनिस्तान और मध्य एशिया के अन्य देशों का राजनैतिक और व्यापारिक केन्द्र है। पूरा शहर 7,500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसकी लम्बाई 150 कि.मी. और चैड़ाई 50 कि.मी. है। शहर की जनसंख्या 5 लाख प्रतिवर्ष बढ़ रही है।
बताया जाता है करीब 20 लाख यात्री प्रतिवर्ष इस्तांबुल आते हैं। 11 मई 330 को रोमन सम्राट कान्सटेन्टाइन ने इस शहर का नाम कान्सटेन्टीपोल रखा और इसे रोम की दूसरी राजधानी बनाया। सन 391 में ईसाई धर्म इस राज्य का मुख्य धर्म बन गया। 395 में सम्राट थियोडोसियस की मृत्यु के बाद यह शहर रोमन साम्राज्य से अलग हो गया और पूर्वी रोमन राज्य या बीजन्टाइन साम्राज्य की राजधानी बन गया। सन् 666 से 870 तक इस शहर के ऊपर अरबों के हमले हुए। कैथोलिक और पुरातनपंथी चर्च के मतभेद होने पर कान्सटेन्टीपोल पुरातनपंथी लोगों के साथ रहा। 1517 में आटमस द्वारा मिस्त्र को जीतने के बाद इस शहर को इस्तांबुल नाम दिया गया जो बारसा और एडिर्न के बाद आरन साम्राज्य की तीसरी राजधानी बना।
यहां पर खलीफे लाये गये और यह इस्लामी दुनिया का एक केन्द्र बना। 15 मार्च 1919 को यह शहर मित्र राष्ट्रों की सेनाओं द्वारा हथिया लिया गया। 13 अक्टूबर 1923 को टर्की ने एक गणराज्य के रूप में जन्म लिया और खलीफा और सुल्तानी को खत्म कर एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के रूप में अपने को आगे बढ़ाया। अंकारा को राजधानी बनाया लेकिन इस्तांबुल अभी भी टर्की का मुख्य मरकज है। जनसंख्या की दृष्टि से यह शहर दुनिया का नौवां बड़ा शहर है। शहर में लगभग 1500 बैंक, 1000 होटल, 4500 रेस्टोरेन्ट, 50,000 कैफे, 1800 ब्रेकरी, 36,000 हेयर सैलून, 15000 डॉक्टर्स हैं। इसके साथ ही 1200 प्राथमिक विद्यालय, 900 हाईस्कूल और 12 विश्वविद्यालय हैं। लगभग 2,800 मस्जिदें, 120 चर्च और 15 सिनेगोग्स भी शहर की शोभा है और 70 सिनेमा घर, 35 म्यूजियम, 60 पब्लिक पुस्तकालय यहां की सांस्कृतिक और बौद्धिक जीवन का हिस्सा है।
हम लोगों के दस दिन के कार्यक्रम में दुनिया के हर हिस्से से कार्यकर्ता आये थे, जो आने वाले दिनों में होने वाले जानसांख्यिक परिवर्तन से काफी चिंतिंत थे। सन् 2024 तक दुनिया के विभिन्न भागों में 60 से 80 वर्ष के लोगों की संख्या बढेगी। तो पारिवारिक संकट बढ़ने की संभावना है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या आयोग के अध्यक्ष ने अपने भाषण में चिंता व्यक्त की, कि युवकों और वृद्धों के विचारों का समावेश हर निर्णायात्मक संस्था में करना पड़ेगा। तुर्की में एक जमाने में युवकों के लिए रोजगार अवसर मुहैया कराने हेतु सरकारी नौकरियों में रिटायरमेंट एज 35 वर्ष थी। वहां की सरकार ने संकट आने से पूर्व ही इसको बढ़ाकर 55 वर्ष कर दिया।
[bs-quote quote=”तुर्की को एक आधुनिक राष्ट्र बनाने में वहां के प्रथम राष्ट्रपति मुस्तफा कमाल अतातुर्क का योगदान अविस्मणीय है। उनके मजबूत इरादों के आगे इस्लामिक कट्टरपंथियों की कुछ नहीं चली।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
तुर्की को एक आधुनिक राष्ट्र बनाने में वहां के प्रथम राष्ट्रपति मुस्तफा कमाल अतातुर्क का योगदान अविस्मणीय है। उनके मजबूत इरादों के आगे इस्लामिक कट्टरपंथियों की कुछ नहीं चली। हालांकि स्वतंत्रता प्राप्ति से कुछ समय पहले गांधी ने एक बहुत गन्दी राजनीति खेली। भारतवर्ष में कठमुल्लाओं के समर्थन पाने हेतु गांधी ने तुर्की के खलीफाओं को समर्थन दिया जो वहाँ की धर्मनिरपेक्ष सरकार के विरूद्ध जंग छेड़े हुए थे। उस समय मोहम्मद अली जिन्ना ने गांधी के कदम की घोर भर्त्सना की और कहा गांधी धर्म को राजनीति में मिला रहे हैं। जो भारत की एकता के लिये खतरा पैदा कर सकता है। और वास्तव में पाकिस्तान की मांग के पीछे की अवधारणा यहीं से उपजी। तुर्की ने तो अपने आपको बचा लिया लेकिन हमारे देश की राजनीति में धर्म का हस्तक्षेप बहुत बढ़ गया।
इस्तांबुल के हयात रीजेन्सी में शाम को विशेष कार्यक्रम था। सभी देशों के लोग अपनी वेशभूषा और संगीत की धुनों पर थिरक रहे थे। सामने फव्वारों और स्विमिंग पूल की ठंडी हवाओं के मध्य हमने तुर्की के बेहतरीन भोजन का आनन्द लिया। वहां के राष्ट्रीय बैंक के अध्यक्ष ने अपने देश की आर्थिक स्थिति की जानकारी दी। तुर्की ने वैश्वीकरण को गले लगाया है और यूरोपीय संघ में शामिल होने के लिये वे लगातार प्रयास कर रहे हैं। तुर्की के प्रधानमंत्री के सलाहकार भी हमारे कार्यक्रम में तशरीफ़ लाये और उन्होंने वैश्वीकरण और आधुनिकता के प्रति अपनी सरकार के दृष्टिकोण को स्पष्ट किया। इस दौरान बहुत बहस हुई और हम लोगों के सवाल-जवाब भी हुये। मैंने उन्हें बताया कि भारत जैसे विविधता वाले देश से होने के नाते मुझे तुर्की आने में अपार हर्ष हुआ है।
मैं यह बताना चाहता हूं कि मुस्लिम बहुतायत में होने के कारण भी तुर्की एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। इसका क्या कारण है? और धर्म तुर्की की राजनीति में कितना प्रभावी है। प्रधानमंत्री के सलाहकार ने बताया कि तुर्की निःसन्देह एक मुस्लिम बाहुल्य राज्य है परन्तु यहां पर रोमन और ओटम साम्राज्र्यों का भी व्यापक प्रभाव है। और विविध धर्मों के होने के कारण यहां पर एक दूसरे के धार्मिक रीति- रिवाजों के लिए सम्मान है। लोग जानतें हैं कि उन्हें साथ ही रहना है और आर्थिक तौर पर वह एक दूसरे पर निर्भर है। अतः धर्म यहां नितान्त व्यक्तिगत मामला है और राजनीति में उसकी कोई भूमिका नहीं है। हां, कुछ इस्लामिक देश तुर्की के अन्दर इस्लाम के नाम पर अपनी दुकानदारी चलाना चाहते हैं परन्तु वह सफल नहीं होगा।
[bs-quote quote=”जिन लोगों ने तुर्की को देखा-पढ़ा है, वे जानते है कि उनके राज्य की साइप्रस, इराक और आर्मेनिया से कई सीमा विवाद बहुत समय से चला आ रहा है। ईराक तुर्की पर हमेशा से आरोप लगाता आ रहा है कि वह कुर्दिश विद्रोहियों को शह दे रहा है। लेकिन तुर्की के अन्दर भी यही हालात हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
जिन लोगों ने तुर्की को देखा-पढ़ा है, वे जानते है कि उनके राज्य की साइप्रस, इराक और आर्मेनिया से कई सीमा विवाद बहुत समय से चला आ रहा है। ईराक तुर्की पर हमेशा से आरोप लगाता आ रहा है कि वह कुर्दिश विद्रोहियों को शह दे रहा है। लेकिन तुर्की के अन्दर भी यही हालात हैं। समझा जाता है कि तुर्की में इस्लामिक कट्टरपन भड़काने में सऊदी अरब की अहम भूमिका रही है।इसी वर्ष अप्रैल में तुर्की के प्रधानमंत्री भारत आये और विश्वभारती विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद डॉक्टर की उपाधि से सम्मानित किया। वहां के प्रधानमंत्री ने रविन्द्र नाथ टैगोर के साहित्य पर व्यापक अध्ययन किया है और वह संस्कृत भाषा के विद्वान हैं। यहां तुर्की की एक संस्था ने हमारे सम्मान में रात्रिभोज का आयोजन किया और शराब की मस्ती में स्थानीय कलाकारों ने धुन बजाई। बाद में तुर्की के तेज संगीत में सब लोगों ने नृत्य किया। रात्रि में जाने से पहले होटल स्टाफ ने अतिथि पुस्तिका मुझे देकर अपने विचार लिखने को कहा और मैने हिन्दी भाषा में तुर्की के लोगों को शुक्रिया कहा और उनकी प्रगति की सराहना की।
हम लोग अपने सरकारी कार्यक्रम समयानुसार करते रहे और सुबह-शाम तुर्की के सांस्कृतिक वैभव को भी देखते रहे, जिस इलाके में हम रह रहे थे उसका नाम ’’तकसीम स्क्वैयर‘‘ था। यह इस्तांबुल का एक प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र है। 1928 में इटली के वास्तुशिल्पी पियेट्रो कैनोनिका ने यहां पर एक गणराज्य स्मारक बनाया जिसकी ऊंचाई लगभग 12 मीटर है। यह स्मारक तुर्की की स्वाधीनता की लड़ाई और उसके गणराज्य होने का प्रतीक है। तकसीम स्क्वेयर के पास ही ’इस्तीकलाल स्ट्रीट‘ है जहां पश्चिमी देशों के दूतावास बने हैं। तुर्की के इस स्थान पर सैलानियों से लेकर स्थानीय नागरिकों की भीड़ देखी जा सकती है। यूरोप के अन्य स्थानों की भांति तुर्की भी महिला वस्त्रों, सौंदर्य प्रसाधनों की बढ़ती दौड़ में शामिल है। हां, यहां पर काटन के कपड़े काफी सस्ते हैं। होटलों में रात्रि के समय लड़कियों के नग्न नृत्य भी देखे जा सकते हैं और इसे आधुनिक भाषा में स्ट्रिप कहा जाता है।
एक दिन समय निकालकर मैं अपने दो तीन मित्रों रूक्सान्द्रा जो कि रूमैनिया से हैं। मार्टिन जर्मनी से और जेलेना जो यूगोस्लाविया से है, के साथ इस्तांबुल की सबसे खूबसूरत इमारत देखने गया। द ब्लू मॉस्क या नीली मस्जिद के नाम से जाने जानी वाली यह मस्जिद खूबसूरत ऑटम साम्राज्य की एक निशानी है। 14 वें ऑटम सम्राट सुल्तान अहमद प्रथम ने सन् 1603-1617 में इस मस्जिद का निर्माण करवाया। सन 1609 में वास्तुशिल्पी मेहमत आगा ने इसका निर्माण शुरू किया और 1616 में यह बनकर तैयार हुआ। मस्जिद के भीतर एक मदरसा, अस्पताल, बाजार, स्कूल और एक फव्वारा है। मस्जिद के अन्दर प्रवेश करने के लिए आपको अपने जूते उतारकर एक प्लास्टिक की थैली में ले जाने को कहा जाता है। महिलाओं को अपना शरीर ढंककर अन्दर जाने की इजाजत है। मस्जिद बहुत विशालकाय है और इसके गुम्बदों, दीवारों पर ऑटम साम्राज्य की छाप स्पष्टतया दृष्टिगोचर होती है। हर दीवार की छत पर कलाकृतियां हैं। हां इतना अवश्य बता दूं कि नमाज पढ़ने वालों की संख्या कम है और इसकी ऐतिहासिकता को देखने वालों की तादाद अधिक है। मस्जिद के बाहर वाकई बहुत हरियाली है और छोटे-छोटे लट्टू स्कार्फ और अन्य सामान बेचने वाले बच्चों और महिलाओं की कतारें आप से भाव नाप-जोख़ करके सामान बेचा जाता है। पहले दिन जब ’तकसीम स्क्वेयर‘ से होटल आ रहा था तो दो छोटे बच्चे मेरे पीछे लग लिए ’जूता पालिश‘ करने के लिए हालांकि मैने उन्हें भगा दिया, लेकिन मुझे अपने देश की याद आ गई जहां बच्चों से यह काम जबरन कराया जाता है। क्या बच्चों को अभी तक हम आजाद नहीं कर पाये हैं?
थोड़ी देर बाद हम सभी मित्र यहां के कवर्ड मार्केट में पहुंचते हैं जहां तुर्की के स्थानीय परिधान, कांच और सेरेमिक पर बने बर्तन, चमड़े के बैग इत्यादि मिलते हैं। यह अपने जनपथ की तरह बाजार है लेकिन खुले में नहीं है और यहां पर केवल कपड़े ही नहीं अपितु जवाहरात भी मिलते हैं। यह बाजार भी बहुत भीड़-भाड़ वाला है। यहां पर एक विशेष बात देखने में आती है और वह यह कि तुर्क बहुत अच्छे व्यापारी होते हैं। यदि आपने किसी दुकान में प्रवेश कर लिया तो फिर क्या मजाल कि आप खाली हाथ बाहर आएं। हमारी लेबनानी मित्र अपने लिए एक बैग खरीदना चाहती हैं और एक बैग अपने भाई और माँ के लिए परन्तु पैसे एक सीमा से अधिक नहीं देना चाहती। और अंततः पूरा सौदा आधे से भी कम में तय होता है। यहां पर व्यापारी आपको आकर्षित करने के लिए एक नीले रंग का कांच का बैन आपके बनियान में लगा देगें जिसे यह कहा जाता है कि आप पर नजर न लगे। पूरे तुर्की में नजर की यह दुकानदारी बहुत चलती है। कांच की विशेष आकृति के ये गोल घर की दीवारों पर लगाये जाते हैं या छोटे वाले कपड़ों के अन्दर पहने जाते हैं ताकि आपको बुरी नजर न लगे। हमारे बहुत से मित्रों ने लकड़ी के सामान की खरीददारी की। फिर हम ’बेस्फोरस‘ देखने चल दिए।
[bs-quote quote=”थोड़ी देर बाद हम सभी मित्र यहां के कवर्ड मार्केट में पहुंचते हैं जहां तुर्की के स्थानीय परिधान, कांच और सेरेमिक पर बने बर्तन, चमड़े के बैग इत्यादि मिलते हैं। यह अपने जनपथ की तरह बाजार है लेकिन खुले में नहीं है और यहां पर केवल कपड़े ही नहीं अपितु जवाहरात भी मिलते हैं” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
बेस्फोरस एशिया और यूरोप को जोड़ने वाला जलडमरू है जो मरमरा और काले सागर के मिलने पर बनता है। एशिया का कोस्ट 35 किलोमीटर लम्बा और यूरोप का 55 कि.मी. लम्बा है। इसकी औसत गहराई 50-120 मीटर तक है। हालांकि इसकी सर्वाधिक गहराई 660 मी. है। बोस्फोरस रूमानिया, बुल्गारिया, यूक्रेन और रूस को भूमध्य सागर से मिलाता है और यह सागर एक अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि के तहत तुर्की के नियंत्रण में है।
इसके तट पर चाय बागान है, कॉफ़ी हाउस, बार और रेस्टोरेंट है जो सप्ताहांत में काफी भीड़ खींचते हैं। बताया जाता है कि बोस्फोरस 7500 वर्ष पूर्व इस स्थिति में आया। बोस्फोरस के विषय में एक दंत कथा प्रचलित है और वह यह कि देवताओं के देवता जेऊस ने अपनी प्रेमिका ’लो‘ की सुरक्षा के लिये उसे गाय के रूप में परिवर्तित कर दिया ताकि उसकी पत्नी को ईष्र्या न हो। हीरा को इसका पता चल जाता है और वह एक मक्खी को भेजता है ताकि ’लो‘ को परेशान कर सके। मक्खी से बचने के लिए लो इस जलडमरू को पार करती है इसीलिए इसे बौस (गाय) और फोरस (गेट) कहते हैं। 1973 में बौस्फोरस के ऊपर एशिया से यूरोप को जोड़ने वाला पुल बना। दूसरा पुल 1988 में बना। बौस्फोरस दुनिया की सर्वाधिक खतरनाक और महत्वपूर्ण जलडमरू है।
आज हमने अपने कार्यक्रम के अंतिम पड़ाव को पार किया। बहुत दिन घर से बाहर रहने के कारण घर की याद भी आ रही थी। लेकिन मुझे अपना कार्यक्रम समयपूर्व ही निपटाना पड़ा क्योंकि उत्तर प्रदेश का दौरा करना था और अपने अंग्रेज मेहमान डिक टेंचर्ड का स्वागत करना था। अतः मैं अपने मित्र जैनब से यह सवाल करता हूं कि जब दुनिया के बड़े हिस्से में वैश्वीकरण के खिलाफ आवाजे उठ रही हैं, तुर्की में स्थानीय व्यवसाय दूसरा मुकाबला कैसे करेगा। जैनब अपनी प्रधानमंत्री की बात दोहराती है, ’’वैश्वीकरण ने तुर्की की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया, आज हमारी इण्डस्ट्रीज से यूरोप और पुराने सोवियत संघ के अनेक देशों में सामान निर्यात हो रहा है। खैर मुझे उनकी बात में कोई विशेष दम नजर नहीं आया लेकिन इतनी हकीकत है कि सालभर में दो भयानक भूकम्पों की त्रासदी झेलकर भी तुर्की अपनी प्रगति के रास्ते पर चल रहा है तो उसकी कोई खासियत होगी और जहां तक तुर्की का सामान बाहर जाने की बात है तो जैसे ही मैं हवाई अड्डे पहुंचा, वहां की दुकानों में अधिकांश सामान जर्मनी का था, तुर्की का पड़ोसी जर्मनी तुर्की के बाजार को नियन्त्रित करता हुआ…. हां जो लोग सऊदी के भक्त हैं उनकी जानकारी के लिए तुर्की में सर्वाधिक ’न्यूड शो‘ अरबी भाषा में होते हैं। इसके क्या अभिप्राय है यह आप खुद ही समझ जाइए……।
विद्याभूषण रावत प्रखर सामाजिक चिंतक और कार्यकर्ता हैं। उन्होंने भारत के सबसे वंचित और बहिष्कृत सामाजिक समूहों के मानवीय और संवैधानिक अधिकारों पर अनवरत काम किया है।