Thursday, November 7, 2024
Thursday, November 7, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमविचार‘अंतरात्मा’ की आवाज़ डायरी (23 सितंबर 2021)

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

‘अंतरात्मा’ की आवाज़ डायरी (23 सितंबर 2021)

आज बात बिहार की। बीते कई दिनों से बिहार की याद भी बहुत आ रही है। इसकी वजह शायद यह कि दिल्ली से बिहार आने-जाने का मेरा अंतराल तीन महीने का होता है। मतलब यह कि हर तीन महीने पर बिहार अपने घर जाता ही हूं। लेकिन इस बार मैंने इस अंतराल को बढ़ाने का […]

आज बात बिहार की। बीते कई दिनों से बिहार की याद भी बहुत आ रही है। इसकी वजह शायद यह कि दिल्ली से बिहार आने-जाने का मेरा अंतराल तीन महीने का होता है। मतलब यह कि हर तीन महीने पर बिहार अपने घर जाता ही हूं। लेकिन इस बार मैंने इस अंतराल को बढ़ाने का निर्णय लिया है। अब निर्णय तो मैंने लिया है लेकिन मेरी अंतरात्मा को यह कहां कबूल होता है। उसे और भी कई सारे बातें कबूल नहीं होती हैं। लेकिन आदमी हर बार अपनी अंतरात्मा की तो नहीं ही सुन सकता।

अंतरात्मा शब्द से एक बात याद आयी। यह विशुद्ध रूप से राजनीतिक शब्द है बिहार में। खासकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए। वे हर कार्य अंतरात्मा की आवाज सुनकर करते रहे हैं। फिर चाहे वह 1993 में लालू प्रसाद की पीठ में खंजर भोंकना हो या फिर 1995 के विधानसभा चुनाव में भाकपा माले के साथ मिलकर चुनाव लड़ना हो या 1997 में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ना। बाद के दिनों में भी नीतीश कुमार ने अपनी अंतरात्मा को महत्व दिया है। मसलन वर्ष 1999 में गैसल रेल दुर्घटना के बाद उनकी अंतरात्मा इतनी आहत हुई कि उन्होंने केंद्रीय रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। यह अंतरात्मा की ही आवाज रही कि दिसंबर, 2005 में उन्होंने लालू प्रसाद को सत्ता से बेदखल करने के बाद सबसे पहले जस्टिस अमीरदास आयोग को भंग किया। यह आयोग इस मामले की जांच कर रहा था कि रणवीर सेना को संरक्षण कौन-कौन दे रहे हैं।

[bs-quote quote=”वर्ष 2015 के विधानसभा में नीतीश कुमार की अंतरात्मा ने लालू प्रसाद का नेतृत्व स्वीकार किया और उनके साथ मिलकर चुनाव लड़े। परिणाम यह हुआ कि चीफ मिनिस्टर का पद उनके पास रहा और उनके कबीना में लालू प्रसाद के दोनों बेटे शामिल हो गए। लालू प्रसाद के बड़े बेटे यानी तेजप्रताप यादव से नीतीश कुमार की अंतरात्मा को कोई परेशानी नहीं थी। लेकिन छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने उपमुख्यमंत्री के रूप में उनकी अंतरात्मा को बहुत दुख पहुंचाया।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

ऐसे ही बहुत सारे काम नीतीश कुमार ने अपनी अंतरात्मा का कहा मानकर किया है। एक तो बंद्योपाध्याय आयोग (भूमि सुधार आयोग) का गठन सबसे खास है। उनकी अंतरात्मा ने कहा कि बिहार में भूमि सुधार होनी चाहिए, हर भूमिहीन को रहने के लिए, खेती करने के लिए जमीनें दी जानी चाहिए तो उन्होंने आयोग का गठन कर दिया। लेकिन बाद में जब बंद्योपाध्याय आयोग ने रिपोर्ट समर्पित कर दी तो नीतीश कुमार की अंतरात्मा ने जवाब दे दिया कि अब उसे भूमि सुधार नहीं चाहिए। फिर वह रिपोर्ट गतलखाने की भेंट चढ़ गई। ऐसे ही समान स्कूल शिक्षा आयोग के साथ भी हो। उनकी अंतरात्मा ने कहा – ‘ब्राह्मण हो या भंगी की संतान, सबको मिले शिक्षा एक समान’। नीतीश कुमार ने मुचकुंद दूबे के नेतृत्व में आयोग का गठन कर दिया। फिर अंतरात्मा ने इनकार किया तो रिपोर्ट गतलखाने में।

तो इस तरह नीतीश कुमार की अंतरात्मा बहुत बोलती रहती है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले उनकी अंतरात्मा ने कहा कि गुजरात के अपराधी का नेतृत्व स्वीकार नहीं करना है तो उन्होंने भाजपा को छोड़ अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया। अकेले लड़कर बेचारे हार गए तो उनकी अंतरात्मा ने उन्हें बहुत धिक्कारा। अंतरात्मा की बात सुनकर उन्होंने जीतनराम मांझी को सीएम बना दिया। उनकी अंतरात्मा खुश हो गई। लेकिन कहते हैं न कि न अच्छे दिन बहुत दिनों तक बने रहते हैं और ना ही बुरे दिन, वैसे ही नीतीश कुमार की अंतरात्मा की खुशी कुछ ही महीने में काफूर हो गई। नतीजा यह हुआ कि दलित समुदाय से आनेवाले जीतनराम मांझी को कुर्सी से नीचे पटक दिया और अंतरात्मा की बात मानकर खुद कुर्सी पर काबिज हो गए।

[bs-quote quote=”वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्हें लालू प्रसाद के बेटे ने बड़ी शिकस्त दी। राजद सबसे बड़ी पार्टी बनी। परंतु भाजपा के साथ मिलकर और कुछ अन्यों को मिलाकर नीतीश कुमार ने तीसरे पायदान पर रहने के बावजूद अंतरात्मा के कहने पर सरकार का गठन किया।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

वर्ष 2015 के विधानसभा में नीतीश कुमार की अंतरात्मा ने लालू प्रसाद का नेतृत्व स्वीकार किया और उनके साथ मिलकर चुनाव लड़े। परिणाम यह हुआ कि चीफ मिनिस्टर का पद उनके पास रहा और उनके कबीना में लालू प्रसाद के दोनों बेटे शामिल हो गए। लालू प्रसाद के बड़े बेटे यानी तेजप्रताप यादव से नीतीश कुमार की अंतरात्मा को कोई परेशानी नहीं थी। लेकिन छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने उपमुख्यमंत्री के रूप में उनकी अंतरात्मा को बहुत दुख पहुंचाया। परिणाम यह हुआ कि अंतरात्मा ने विद्रोह कर दिया और नीतीश कुमार ने राजद से गठबंधन तोड़ लिया और अंतरात्मा के कहने पर रातोंरात भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना लिया।

वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्हें लालू प्रसाद के बेटे ने बड़ी शिकस्त दी। राजद सबसे बड़ी पार्टी बनी। परंतु भाजपा के साथ मिलकर और कुछ अन्यों को मिलाकर नीतीश कुमार ने तीसरे पायदान पर रहने के बावजूद अंतरात्मा के कहने पर सरकार का गठन किया।

तो इस तरह बिहार की राजनीति में अंतरात्मा का इतिहास रहा है। पहले नीतीश कुमार इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस कहते थे। शायद उनकी अंतरात्मा आज भी यही कहती है। लेकिन इन दिनों बिहार में उनकी अंतरात्मा कहर ढा रही है। अभी दो दिन पहले की ही बात है। बिहार पुलिस मेंस एसोसिएशन का अध्यक्ष नरेंद्र कुमार धीरज पकड़ा गया है। उसके पास उसकी आय से 541 फीसदी अधिक की संपत्ति बरामद हुई है। कभी नीतीश कुमार की पसंद के पुलिस अधिकारी रहे राकेश दूबे और सुधीर पोरिका के पास भी करोड़ों (अरब भी हो सकता है) की संपत्ति बरामद हुई।

दरअसल, मैं कंफ्यूज हो गया हूं कि आखिर यह सब किसकी अंतरात्मा करवा रही है? अब बिहार के मौजूदा उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने सरकारी ठेका अपने रिश्तेदारों को दिला दिया है। करोड़ों की कमाई हुई है। मैं सोच रहा हूं कि जब अन्यों की कमाई करोड़ों में है तो वे जिनके पास अंतरात्मा है, उनकी अपनी कमाई कितनी होगी? नहीं होगी यह तो मान ही नहीं सकता। वजह यह कि पुलिस महकमा तो स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास है और ऐसा कैसे हो सकता हे कि उनके मातहत काम करनेवाला अधिकारी करोड़ों की संपत्ति बना ले और नीतीश कुमार की अंतरात्मा मुंह बाए देखती रहे।

खैर, राजनीति की बात छोड़ते हैं। किसान और साहित्य की बात करते हैं। एक कविता जेहन में आयी और केंद्र में रहे बिहार के लाखों बटाईदार किसान, जिन्हें कोई सरकारी सहायता केवल इसलिए नहीं मिल पाती क्योंकि बिहार में बटाईदार किसानों के लिए कोई नीति ही नहीं है। सरकार की नजर में वे किसान हैं ही नहीं, जबकि सबसे अधिक खेती वे ही करते हैं।

पिछली बार की तरह नहीं होगा
इस बार का जाड़ा
ऐसी उम्मीद मैं हर बार करता हूं
जब धान की बालियां पकने लगती हैं खेतों में
और आंखों के सामने होते हैं
खूब सारे सपने कि
धान बिकते ही खरीद लूंगा
एक रजाई मां के लिए
बेचारी एक ही पैबंद लगी रजाई
कई सालों से ओढ़ रही है
और एक नरम लेकिन असरदार चादर
अपने बाबूजी के लिए
अब उनकी चादर बहुत पतली हो गई है
और खरीदने हैं इस बार एक स्वेटर
अपनी गृहणी के लिए
नहीं तो इस बार भी गुजार देगी पूरा जाड़ा
गौना में मिले शॉल के सहारे।

हां, इस बार भी उम्मीद है
धान के बदले
खेतों में उगेंगे हमारे सपने
और हम जाड़े संग करेंगे ठिठोली।

नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस में संपादक हैं।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।
3 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here