रायपुर। अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा ने राज्य में धान खरीद पुनः शुरू करने की मांग की है। किसान सभा ने सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के आधार पर दावा किया है कि अभी भी 2.13 लाख किसानों का 30 लाख टन धान अभी भी बिकने को है और इनमें से अधिकांश किसान सीमांत और लघु किसान तथा बहुसंख्यक आदिवासी और दलित समुदाय के हैं।
आज यहां जारी एक बयान में छत्तीसगढ़ किसान सभा के संयोजक संजय पराते ने कहा है कि राज्य में 26.85 लाख धान उत्पादक किसानों ने 33.51 लाख हेक्टेयर रकबे का पंजीयन कराया था, लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 24.72 लाख किसान ही 27.92 लाख हेक्टेयर रकबे का धान बेच पाए हैं। फरवरी के अतिरिक्त चार दिनों में 19000 किसानों ने 2.69 लाख टन धान बेचा है। इस प्रकार, 2.13 लाख किसानों का 5.59 लाख हेक्टेयर रकबे में उत्पादित धान अनबिका है। 21 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से और अंतिम चार दिनों में बिके धान के औसत के हिसाब से भी, लगभग 30 लाख टन धान बिकना शेष है और यह छत्तीसगढ़ के कुल धान उत्पादन का 17% है। राज्य सरकार द्वारा देय मूल्य पर इसकी कीमत 9300 करोड़ रुपए होती है।
किसान सभा नेता ने कहा कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही प्रदेश के 10 जिलों बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, सुकमा, मरवाही, मानपुर, बलरामपुर, कोरिया और मनेंद्रगढ़ में धान की बिक्री बहुत कम हुई है। इन आदिवासी जिलों से अभी तक हुई कुल खरीदी का मात्र 9% का खरीदारी हुई है। इन जिलों में धान बिक्री का औसत मात्र सवा लाख टन ही है। इससे साफ है कि सोसाइटी में धान बेचने से वंचित रहने वालों में अधिकांश सीमांत और लघु किसान हैं तथा इनमें भी बहुलांश आदिवासी-दलित समुदाय से जुड़े हुए हैं। यदि सरकारी खरीद पुनः शुरू नहीं की जाती, तो इन छोटे किसानों को अपनी फसल खुले बाजार में औने-पौने दामों पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
पराते ने कहा कि एक ओर तो सरकार अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने का दावा कर रही है, वहीं दूसरी ओर 2 लाख से ज्यादा छोटे और वंचित समुदाय के किसानों द्वारा उत्पादित 30 लाख टन धान न खरीदना दुर्भाग्यजनक है। किसान नेता पराते ने सरकार से मांग की कि आदिवासी बहुल दस जिलों में खरीद का जो लक्ष्य 145 लाख टन रखा गया है और उसके मुकाबले खरीद 14 लाख टन भी नहीं हुई है तो ऐसे में धान की खरीद के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए खरीद की समय सीमा को बढ़ाना चाहिए।