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भदोही के भैयाजी : ब्राह्मण हैं इसलिए डरते हैं कि कहीं गाड़ी ना पलट जाए

उत्तर प्रदेश के बाहुबली -2 कमला पति त्रिपाठी ने उगाया, मुलायम ने पाला, अखिलेश ने बेघर किया और अब योगी सरकार में एनकाउंटर के खौफ में जी रहे हैं पंडित जी उत्तर प्रदेश की राजनीति में बाहुबल की बात हो तो बड़े रुआब के साथ जो नाम सामने आता है वह है भदोही के विजय […]

उत्तर प्रदेश के बाहुबली -2

कमला पति त्रिपाठी ने उगाया, मुलायम ने पाला, अखिलेश ने बेघर किया और अब योगी सरकार में एनकाउंटर के खौफ में जी रहे हैं पंडित जी

उत्तर प्रदेश की राजनीति में बाहुबल की बात हो तो बड़े रुआब के साथ जो नाम सामने आता है वह है भदोही के विजय मिश्रा का। दशकों तक भदोही और आस-पास के जिलों में राजनीति की हर हवा के खिलाफ जिस माफिया का बवंडर चला करता था आज वह एनकाउंटर के डर से कांप रहा है। 2017 में अखिलेश यादव ने अपराध और राजनीति के साझे को तोड़ने की जो कवायद की थी उसकी सबसे बड़ी गाज जिन कुछ अपराधियों पर गिरी, उनमें से एक हैं विजय मिश्रा। विजय मिश्रा भदोही के रहने वाले हैं। भदोही की दो चीजें चर्चित हैं पहला निःसंदेह यहाँ की अंधेरी और सीलन भरी कोठरियों में बुना जाने वाला कालीन है। कालीन की रेशमी चमक के पीछे जाने कितनी हथेलियाँ अपने जख्म सहला रही हैं। उनकी बुनाई में शामिल जाने कितने ही बाल श्रमिकों की जिंदगी में कानून की किताब कभी रोशनी के फूल नहीं खिला सकी। भदोही की दूसरी पहचान हैं बाहुबली विजय मिश्रा। सन 1990 में भदोही की राजनीति में जन्म हुआ एक ऐसे माफिया का जिसे राजनीति ने इतना प्यार-दुलार दिया कि वह हद से ज्यादा बिगड़ गया। वह यह भूल गया कि जो लोग बकरा पालने का शौक रखते हैं उन्हें कुर्बानी देने का हुनर भी आता है। कभी क्षेत्रीय बादशाहत की हैसियत रखने वाले विजय मिश्रा भी आज इसी डर के साये में जी रहे हैं कि क्या पता किस दिन, किस सड़क से सरकार उन्हें आदमी से खबर में तब्दील कर दे।

[bs-quote quote=”समाजवादी पार्टी के सुरक्षा तंत्र में विजय मिश्रा सुरक्षित रूप से और अपराजेय रहते हुए अपना साम्राज्य बढ़ा रहे थे। 2017 में समाजवादी पार्टी जब अखिलेश यादव के नेतृत्व में आगे बढ़ी तो अखिलेश ने लाभ-हानि की परवाह किये बगैर समाजवादी राजनीति को अपराध से अलग करने का रास्ता पकड़ लिया और इलाहाबाद के बाहुबली अतीक अहमद और अन्य आपराधिक छवि के नेताओं के साथ विजय मिश्रा को भी पार्टी के बाहर का रास्ता दिखा दिया।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

विजय मिश्रा की कभी सबसे बड़ी ताकत उनका ब्राह्मण होना था, पर यह ब्राह्मण होना ही आज उनका सबसे बड़ा डर बन चुका है। जिस भाजपा सरकार में कभी ब्राह्मण समाज अपने को सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस करता था, उसी सरकार में आज ब्राह्मण समाज सबसे ज्यादा डरा हुआ है। इस डर की वजह गोरखपुर का मठ है जिसकी तलवार हमेशा ब्राह्मण समाज के खिलाफ ही तनी रही है। गोरखपुर के माफिया वीरेंद्र प्रताप शाही की श्रीप्रकाश शुक्ला द्वारा की गई हत्या के बाद तो यह जातीय दुश्मनी कुछ ज्यादा ही चटख हो गई। आज जब उसी मठ के महंत योगी आदित्यनाथ सूबे के मुख्यमंत्री हैं तब इस डर का होना लाजिमी है। यही डर है जिसकी वजह से जब विजय मिश्रा को पुलिस गिरफ्तार करके ले जा रही थी तब उनकी बेटी ने कहा था कि, विकास दुबे की तरह गाड़ी नहीं पलटनी चाहिए, कहीं हो ना जाए एनकाउंटर । फिलहाल, विजय मिश्रा जेल में हैं। एक केस में जमानत मिलती भी है तो दूसरा वापस जेल में धकेल देता है। मुलायम सिंह यादव जैसा कोई सुरक्षा चक्र आज उनके पास नहीं है, जो उन्हें हर आपदा-विपदा से बचा ले। शिवपाल सिंह यादव के करीबी होने के चलते अखिलेश ने विजय मिश्रा से जो दूरी बनाई उसने पूर्वांचल की इस दहाड़ को मिमियाहट में बदल कर रख दिया है। विजय मिश्रा की स्थिति उन तमाम युवाओं के लिए किसी जरूरी सबक की तरह है जो किसी सत्ता की सरपरस्ती में साम्राज्य सजाने का मंसूबा लेकर हथियारों से दोस्ती कर रहे हैं। उन्हें समझना चाहिए कि राजनीति शतरंज के खेल की तरह होती है, जहां राजा कभी जीतता है कभी हारता है पर मरता कभी नहीं। मरते हमेशा हाथी, घोड़े, ऊंट, सैनिक और वजीर ही हैं।

कारोबार से बाहुबल में आए नहीं बुलाए गए थे विजय मिश्रा

विजय मिश्रा भदोही के अच्छे-भले कारोबारी थे। पेट्रोल पंप था, गाड़ियां भी चलती थीं और सामाजिक-राजनीतिक तौर पर सम्मानजनक रिश्ते भी थे। इन्हीं रिश्तों में एक रिश्ता था पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी का, जिन्होंने विजय मिश्रा में अपनी उम्मीद का अंकुर देखा और कहा, विजय, कारोबार तो चलता रहेगा। अब पाँव आगे बढ़ाओ, राजनीति को तुम्हारी जरूरत है । विजय मिश्रा तो जैसे इसी अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे। कमलापति के पाँव छूकर आशीर्वाद लिया और अपना पाँव राजनीति की दशा में बढ़ा दिया। ब्लाक प्रमुख का चुनाव लड़ने से शुरुआत की और अपने आगाज से ही अपने मंसूबे भी साफ कर दिए कि अब मैं ही मैं हूँ दूसरा कोई नहीं। पैसे की कमी नहीं थी, इसलिए वोट पैसे से खरीदे, जो बिकने को तैयार नहीं था उसे उठवा लिया और जिसे एक बार उठवा लिया उसने दुबारा विजय मिश्रा के सामने उठने की ही नहीं बल्कि आँख उठा कर देखने की भी हिम्मत नहीं दिखाई।

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प्रमुख बने तो कद और रुतबा इतना बढ़ गया कि उन्हें लगने लगा कि वह गड्ढे की मछली बनकर रहने के लिए राजनीति में नहीं आए हैं, उन्हें तो नदी के घड़ियाल-सी निरंकुशता चाहिए थी, जिसका शिकार करने की कूबत वाला मछुआरा अभी तक पैदा नहीं हुआ हो। अब नजर थी जिला पंचायत पर।

जिला पंचायत पर समाजवादी पार्टी के शिवकरण यादव काके लंबे समय से कब्जा जमाये बैठे थे। शिवकरण को बिना किसी राजनीतिक पार्टी के सहयोग के हरा पाना आसान नहीं था। इसी बीच कुछ संयोग ऐसा बना कि शिवकरण ने मुलायम सिंह को कहीं गाली दे दी थी और यह बात मुलायम सिंह को पता चल गई। वह किसी ऐसे हथियार की तलाश में थे जिससे साउंड प्रूफ तरीके से शिवकरण को जिबह कर सकें। मुलायम को भी यह डर था कि कहीं शिवकरण को किनारे लगाने में यादव वोटर उनसे दूरी ना बना लें, क्योंकि शिवकरण की यादवों पर अच्छी पकड़ थी। इसी बीच विजय मिश्रा की मुलाकात मुलायम सिंह से हुई। विजय मिश्रा ने अपनी ‘भावना’ मुलायम से कह दी। विजय मिश्रा समाजवादी पार्टी के टिकट पर जिला पचायत सदस्य का चुनाव लड़ना चाहते थे। मुलायम कुछ देर तक चुपचाप विजय मिश्रा को अपने मन के तराजू पर तौलते रहे और विजय मिश्रा हाँ-ना की प्रतीक्षा करते रहे। विजय मिश्रा की धड़कनें घड़ी कि हर अगली टिक-टिक के साथ तेज हो रही थीं। बढ़ते समय के साथ मन भारी होता जा रहा था। मुलायम सिंह शायद कुछ लोगों के वहाँ से हटने की प्रतीक्षा कर रहे थे।

उनके जाने के बाद विजय मिश्रा की ओर मुखातिब हुए और बोले, ‘कितने मुकदमे हो चुके हैं तुम पर?’ विजय मिश्रा को मानों सांप सूंघ गया हो। मुंह से कोई आवाज ही नहीं निकली। मुलायम सिंह समझ गए कि तीर सही निशाने पर लगा है। अब जख्म सहलाने का सही वक्त है। उन्होंने बात बदलते हुए कहा, ‘हाँ तुम क्या कह रहे थे ?… जीत पाओगे ?’ विजय मिश्रा की आँखों में चमक आ गई थी। बोले, ‘नेताजी बस आप पीठ पर हाथ रख देंगे तो कोई माई का लाल सामना करने की हिम्मत नहीं करेगा।’

मुलायम सिंह ने कहा जाओ तीनों सीट जीत कर आओ। जिसको जहां से लड़ाना हो तय कर लो हार कर मत आना, जीत कर आओगे तो मिठाई मैं खिलाऊँगा।’ विजय मिश्रा गए थे मछली मारने, पर पूरे तालाब का ही पट्टा अपने नाम करा लिए। विजय मिश्रा के निकलने से पहले ही मुलायम ने विजय से कह दिया कि ‘जाओ भदोही वालों से कह देना कि मुलायम सिंह ने अपने बेटे को चुनाव में उतारा है यह लड़ाई उनके सम्मान की है’।

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यह मुलायम ने कहा ही नहीं था बल्कि विजय को भविष्य में भी मुलायम सिंह ने उसी दुलार के साथ राजनीति में आगे बढ़ाया। विजय मिश्रा के बाहुबल में अब बाज के पंख लग गए थे। विजय ने यादव वोट के बिखराव को बचाने के लिए मुलायम सिंह के सम्मान का हवाला दिया तो शेष वोट को अपनी बाहुबली हनक से अपने पाले में ले लिया। शिवकरण कटे पेड़ की तरह ढह चुके थे और चुनाव में विजय मिश्रा तीनों सीट जीत कर जब मुलायम के पास पँहुचे तो मुलायम ने सबको दरकिनार कर विजय मिश्रा को गले लगा लिया, मिठाई मँगवाई, खिलाई और अगली मंजिल का पता भी निकलने से पहले ही बता दिया और कहा ‘जाओ अब ज्ञानपुर संभालने की तैयारी करो।’ विजय मिश्रा के साथ फिर वही हुआ था। मिठाई खाने गए थे और शुगर फैक्ट्री के मालिक होकर लौट रहे थे। अब विजय मिश्रा को रोक पाने की कूबत वाकई किसी माई के लाल में नहीं दिख रही थी। इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से वाराणसी तक उनकी धाक का तेवर बिना पोस्टर के चस्पाँ हो चुका था।

2002 के विधानसभा में मुलायम ने अपने कथनानुसार विजय मिश्रा को ज्ञानपुर का टिकट तो पकड़ाया ही, साथ ही साथ मीरजापुर और हड़िया सीट जिताने की जिम्मेदारी भी दे दी। विजय मिश्रा ने बिना ना-नुकुर के तीनों सीट जीत कर देने का न सिर्फ वायदा किया बल्कि जहां ज्ञानपुर सीट पर गोरखनाथ पांडे को हराकर खुद विधायक बन गए, वहीं हड़िया से महेश नारायण सिंह और मीरजापुर से कैलाश चौरसिया को भी जिताने में कामयाब हो गए। अब विजय मिश्रा का टेरर राजनीति और अपराध में बराबर आगे बढ़ रहा था। मुकदमों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही थी। विजय मिश्रा ने भदोही को समाजवादी पार्टी के अभेद्य किले में बदल दिया था। 2002, 2007 और 2012 में वह समाजवादी पार्टी  के टिकट पर ज्ञानपुर से चुनाव जीतते रहे।

इस बीच 2009 का एक किस्सा विशेष रूप से विजय मिश्रा और मुलायम सिंह के रिश्ते की मजबूती दिखाता है। 2007 में विजय मिश्रा ने बसपा की तेज लहर में भी भदोही के किले में मायावती को सेंध नहीं लगाने दिया था। इसकी नाराजगी मायावती के मन में थी और उसी बीच भदोही सीट पर उपचुनाव की स्थिति बन गई। बसपा से गोरखनाथ पांडे प्रत्याशी थे और दूसरी तरफ विजय मिश्रा पर ‘आर्म्स एक्ट’ का केस दर्ज हो चुका था। विजय मिश्रा का कहना है कि ‘इस सीट को मायावती किसी भी कीमत पर जीत लेना चाहती थी और उन्होंने अपने लगभग 30 मंत्रियों की फौज इस चुनाव में उतार दी थी। पर, इसके बाद भी जब उन्हें लगा कि सूबे में भले ही उनकी सरकार है पर भदोही में वही होगा जो विजय मिश्रा चाहते हैं, तो उन्होंने अपने लोगों से संदेश भिजवाया कि मैं अब उनके साथ हो जाऊँ, पर मेरे इनकार करने की वजह से उन्होंने मुझ पर मुकदमा करवा दिया।’

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इसी उपचुनाव के दौरान एक और दिलचस्प घटना घटी। भदोही में मुलायम सिंह अपने प्रत्याशी की रैली करने पहुँचे थे तभी आर्म्स एक्ट में फरार चल रहे विजय मिश्रा मंच पर आए और लोगों से भावुक अपील करते हुए बोले कि, ‘मायावती की पुलिस उन्हें मारना चाहती है और गिरफ्तार करने के लिए आ रही है, अब मेरी पत्नी रामलली के सिंदूर की रक्षा आप लोगों के हाथ में है। विजय मिश्रा का जनता से हाथ जोड़ना जनता को भावुक बना ही रहा था कि मुलायम सिंह कुर्सी से उठे और सीधे माइक थाम कर कहा कि ‘किसी की मजाल नहीं है जो भदोही के मान-सम्मान को कुचल सके। देखता हूँ कौन गिरफ्तार करता है? मुलायम ने अपनी बात पूरी की और विजय मिश्रा को अपने हेलीकाप्टर में अपने साथ ही बैठा कर उड़ गए।

बसपा सरकार के मंत्री नंद गोपाल गुप्ता पर बम चलवाना भारी पड़ा

12 जुलाई, 2010 को बसपा मंत्री नंद गोपाल गुप्ता जब एक मंदिर में पूजा करने जा रहे थे तभी पहले से एक स्कूटर की डिग्गी में प्लांट किये रिमोट बम का धमाका हो गया। नंदी बुरी तरह जख्मी हुए और उनके साथ चल रहे इलाहाबाद के पत्रकार विजय प्रताप सिंह, गनर और राकेश मालवीय की मौके पर ही मौत हो गई। नंदी की पत्नी अभिलाषा गुप्ता ने विजय मिश्र और दिलीप मिश्रा के खिलाफ मामला दर्ज करवाया। दिलीप गिरफ्तार हुए और विजय मिश्रा फरार हो गए। वह साधू के रूप में एक राज्य से दूसरे राज्य घूमते रहे। 8 फरवरी, 2011 को एसटीएफ ने दिल्ली से विजय मिश्रा को गिरफ़्तार कर लिया। उस समय तक विजय मिश्रा पर गंभीर धाराओं में लगभग 62 मुकदमें दर्ज थे। इतने अपराधों के बाद भी मुलायम का स्नेह विजय मिश्रा के लिए कम नहीं हुआ। 2012 में जेल में रहते हुए ही विजय मिश्रा सपा के टिकट पर चुनाव लड़कर भारी बहुमत से जीतने में कामयाब हो गए। सपा की सरकार बनी तो जेल से भी बाहर आ गए।

बाहुबल पर चला अखिलेश यादव का चाबुक

समाजवादी पार्टी के सुरक्षा तंत्र में विजय मिश्रा सुरक्षित रूप से और अपराजेय रहते हुए अपना साम्राज्य बढ़ा रहे थे। 2017 में समाजवादी पार्टी जब अखिलेश यादव के नेतृत्व में आगे बढ़ी तो अखिलेश ने लाभ-हानि की परवाह किये बगैर समाजवादी राजनीति को अपराध से अलग करने का रास्ता पकड़ लिया और इलाहाबाद के बाहुबली अतीक अहमद और अन्य आपराधिक छवि के नेताओं के साथ विजय मिश्रा को भी पार्टी के बाहर का रास्ता दिखा दिया। आकाश भले छिन गया था पर जमीन अब भी विजय मिश्रा के पास थी। वह निषाद पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और भाजपा की बड़ी लहर के बावजूद अपने सियासी चिराग को बुझने से बचा ले गए।

अब डर है कि ब्राह्मण हैं इसलिए कभी भी पुलिस की गाड़ी पलट सकती है

एक करीबी द्वारा आरोप लगाने के बाद कि विजय मिश्रा ने उसके 13 ट्रक डंपर उठवा लिए हैं, के मामले को योगी सरकार ने कुछ ज्यादा ही तूल दे दिया है। बेटा विष्णु मिश्रा, पत्नी रामलली मिश्रा और बेटी सीमा मिश्रा पर भी कई आपराधिक मामले दर्ज हो चुके हैं। कई संपतियाँ कुर्क की जा चुकी हैं और कई पर बुलडोजर चल चुका है। बेटा भी जेल में है। किसी एक केस में जमानत मिलती है तो दूसरे केस में वापस जेल भेज दिया जाता है। फिलहाल विकास दुबे एनकाउंटर का टेरर विजय मिश्रा और उनके परिवार के मन में भी भरा हुआ है कि कहीं किसी दिन कोर्ट-कचहरी घुमाते हुए पुलिस की गाड़ी न पलट जाए और विजय मिश्रा किसी खबर की शक्ल में अखबार के पन्ने में लिपटे मिलें या टीवी की ब्रेकिंग न्यूज बना दिए जाएँ।

कुमार विजय गाँव के लोग डॉट कॉम के मुख्य संवाददाता हैं।

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