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ग्राउंड रिपोर्ट

‘नर्क’ में रहते हैं वाराणसी के बघवानालावासी, अपना मकान भी नहीं बेच सकते

वाराणसी। हुकुलगंज के बघवानाला की गलियों में मेरे घुसते ही जमीन के किनारों से सैकड़ों-हजारों मच्छर उड़ने लगे। हाथ के पंजों से झटका देते हुए मैं आगे बढ़ा लेकिन बदबू से सिर चकरा गया। उस गली की दुर्दशा की फोटो जल्दी-जल्दी खींचकर वहाँ से मैं बाहर निकला। तीन फुट चौड़ाई की गली के रहवासी इस […]

वाराणसी। हुकुलगंज के बघवानाला की गलियों में मेरे घुसते ही जमीन के किनारों से सैकड़ों-हजारों मच्छर उड़ने लगे। हाथ के पंजों से झटका देते हुए मैं आगे बढ़ा लेकिन बदबू से सिर चकरा गया। उस गली की दुर्दशा की फोटो जल्दी-जल्दी खींचकर वहाँ से मैं बाहर निकला। तीन फुट चौड़ाई की गली के रहवासी इस क्षेत्र को ‘नर्क’ कह रहे थे। लोग बताते हैं कि सांसद, महापौर, मंत्री और सभासद सभी एक ही पार्टी के हैं, बावजूद इसके इस इलाके की स्थिति दिनोंदिन नारकीय होती जा रही है। चारों तरफ कूड़े का अम्बार, बीच-बीच में बजबजाते कीचड़, इधर-उधर से गिरता मल-जल और उसकी दुर्गंध बघवानाला के विशाल क्षेत्र की पहचान बन गई है। पानी-सड़क-जर्जर विद्युत पोल और लटके तारों की समस्या बरसों से बरकरार है। नदी का किनारा होने के कारण प्रत्येक दो-चार बरसों में बाढ़ का दंश झेल रहे लोग इन समस्याओं के बाबत सरकारों सहित सम्बंधित विभागों पर काफी नाराज़ होते हैं। रहवासी बताते हैं कि चुनाव के पूर्व वोट माँगने आए स्थानीय सभासद से भी इन समस्याओं को लेकर बहसबाजी हो चुकी है। बावजूद इसके रहवासियों को सिर्फ आश्वासन ही मिला। हाँ, नगर निगम में शिकायतों की फाइलें जरूर मोटी हो गई होंगी।

वरुणा नदी की तरफ निकलने वाली हर गली का हाल ऐसा ही है

गलियों में सीवर लाइन के ऊपर लगे ऊबड़-खाबड़ पत्थर

बघवानाला के ठीक किनारे बघवावीर बाबा का अति प्राचीन मंदिर है। पूजा-पाठ के साथ मृत्यु कर्म के लिए भी इस मंदिर परिसर का उपयोग किया जाता है। मृतकों का सतनहना, दसवाँ-तेरही का कर्म भी महापातर यहीं से निपटाते हैं। एक जमाने में यह मंदिर सड़क के लेवल पर था। वर्तमान में बघवानाला रोड से यह मंदिर दस-बारह फुट नीचे हो गया है। आसपास के बुजुर्ग तसदीक करते हैं कि चालीस-पचास साल पहले यहाँ का वातावरण काफी मनोरम हुआ करता था। आबादी नहीं थी, इस कारण नाले का पानी इतना गंदा नहीं था कि दुर्गंध उठने लगे।

रवि

बुजुर्गों से बात करते हुए स्थानीय युवक रवि ने इस मंदिर की वर्तमान दुर्दशा से अवगत कराया। रवि बताते हैं कि यहाँ बरसों से एक ही हैंडपम्प लगा हुआ था। खराब होने पर स्थानीय लोग ही उसकी मरम्मत करते थे। शिकायत पर कोई भी सरकारीकर्मी इसे बनाने नहीं आता। समस्या को देखते हुए एक-दो बरस पहले सम्बंधित विभाग ने मंदिर परिसर में दो हैंडपम्प लगवा दिया। इनकी हालत यह है कि एक हैंडपम्प से पानी ही नहीं आता और दूसरे से दिनभर में आठ-दस बाल्टी पानी निकाल सकते हैं। पूजा-पाठ करने वाले लोग घर से ही लोटिया भरकर जल चढ़ाने आते हैं। रवि बताते हैं कि यहाँ सबसे बड़ी समस्या गाय-भैंस के मल-जल की है। सड़क के एक तरफ रवि ने इशारा किया। वहाँ कई मीटर तक सिर्फ गोबर ही दिख रही थी। मौके पर मौजूद कुछ महिलाओं ने भी इस गंदगी का पुरजोर विरोध किया। साथ ही नेताओं को भी जमकर कोसा।

बोले रहवासी- ‘नेताजी’ यहाँ सिर्फ वोट माँगने आते हैं और आश्वासन देकर चले जाते हैं

इस गली में दुर्गंध के कारण चलना भी मुश्किल

बघवानाला में गंदगी और कचरे की समस्या सैकड़ों मीटर तक फैली हुई है। नगर निगम और ‘सफेदपोशों’ पर इस इलाके की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए स्थानीय बुजुर्ग घनश्याम बताते हैं कि मेरी गली प्राइवेट है। ‘प्राइवेट’ का मतलब? पूछने पर वह बताते हैं कि इस गली में सीवर का काम यहाँ के रहने वालों ने चंदा इकट्ठा कर करवाया है। छह इंच का पाइप दो-चार हफ्ते बाद जाम हो जाता है। शिकायतों के बाद सभासद ने सिर्फ चैम्बर बनवा दिया। बारिश में सीवर जाम के साथ लोगों के घरों के पखाने भी जाम हो जाते हैं।

शकुंतला देवी

गली की रहवासी शकुंतला देवी बताती हैं कि यहाँ सफाईकर्मी हफ्तों-महीनों पर झाड़ू लगाने आता है। कूड़ा उठान होता है कि नहीं? इस सवाल पर शकुंतला गली के आखिरी मकान तक ले जाती हैं। वहाँ से लगभग 30 फुट नीचे कूड़ा-कचरा और नाले का पानी जमा था। वह बताती हैं कि सफाईकर्मी इसी जगह पूरा कचरा फेंक देता है। यहाँ कभी कूड़ा उठान नहीं हुआ अगर होता तो यह गंदगी नहीं होती। इसी के साथ यहाँ पानी की गम्भीर समस्या है। सरकारी नल में दो-तीन दिन से पानी नहीं आ रहा है। किससे शिकायत करें? कोई सुनने वाला ही नहीं है।

निशा

गली की निशा बताती हैं कि ‘यहाँ बारिश में हम लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं के कारण मेरे जैसी कई लड़कियाँ सही समय पर स्कूल नहीं पहुँच पातीं। अखबार और सोशल मीडिया के माध्यम से मालूम चला है कि इस बार बाढ़ की स्थिति भी बन रही है। हम हर बार भगवान से मनाते हैं कि बाढ़ न आए। बाढ़ के समय में हम अपने रिश्तेदारों के यहाँ चले जाते हैं। बाढ़ का पानी जब कम होता है तब तो और भी दुश्वारियाँ झेलनी पड़ती हैं। घर में किसी न किसी सदस्य को गम्भीर बीमारियाँ (डेंगू, मलेरिया वगैरह) हो ही जाती हैं। बाढ़ से फैली गंदगी को साफ करने में विभाग भी महीनों लगा देता है।’

लक्ष्मण प्रसाद अग्रहरि

लक्ष्मण प्रसाद अग्रहरि बताते हैं कि ‘बरसों की शिकायत के बाद इस गली में पत्थर बिछाया गया। इस काम को भी कई साल बीत गए। अब जगह-जगह पत्थर बैठने लगा है। इसकी भी शिकायत की गई है। देखिए इस बार कितने साल लगते हैं।’ लक्ष्मण प्राइवेट कर्मचारी हैं, बावजूद इसके अपने गली की मूलभूत सुविधाओं के लिए वह काफी गम्भीर दिखते हैं। गली में सीवर के चैम्बर का काम भी उन्होंने अपने सामने करवाया था, ताकि ठेकेदार की तरफ से कोई गड़बड़ी न हो जाए। लक्ष्मण बताते हैं कि ‘मना करने के बावजूद छह-एक (पाँच अढ़िया बालू और एक अढ़िया सीमेंट) का मसाला बनाकर काम करवा दिया। कुछ ही महीने बाद सीवर का ढक्कन उखड़ गया। वोट तो हम हर चुनाव में देते हैं लेकिन उसके बदले विकास हमें हर बार नहीं मिल पाता।’

आनंद विश्वकर्मा

आनंद विश्वकर्मा कहते हैं कि ‘इस गली में तीन सीवर लाइनें हैं। पुरानी सीवर लाइन छह इंच वाली है। गली में दर्जनों परिवार है, इस कारण वह जल्दी-जल्दी जाम हो जाती है। मैंने अपने मकान की साइड से चार लोगों का सीवर अलग करवा लिया है। वह भी काफी पुरानी हो गई है। सड़क के मुहाने पर, जहाँ मेन लाइन से अपनी सीवर मिलाई गई है, वह भी बैठ गई है। बारिश के दिनों में सीवर जाम की समस्या से हर दिन जुझना पड़ेगा। आनंद के यहाँ पानी की भी समस्या है। सरकारी पानी नहीं आने पर पड़ोसियों (जिनके यहाँ बोरिंग है) का सहारा रहता है। हम लोगों की बातचीत को सुन रहीं दूसरी गली की निवासी दुर्गा देवी कहती हैं  ‘भइया, हमरो पूरा गल्ली बस्साला.. केतनी दफे सभासदे से कहली, लेकिन उ एक्को बार ना सुनलन। हमार घर कच्चा हौ, एक बार ‘अवास’ बदे फारम भरले रहली, दुई साल हो गयल, अभी तकले कउनो रपोट ना आयल।’

फोटो खिंचवाने से दुर्गा मना कर देती हैं और सिर लटकाए आगे बढ़ जाती हैं।

मनोज

बघवानाले के पास मनोज कई बरस से पान-मसाले की दुकान चला रहे हैं। मीडिया और पत्रकार के नाम सुनते ही वहाँ आसपास के लगभग आधा दर्जन लोग इकट्ठा हो जाते हैं। सभी की अपनी-अपनी समस्याएँ थीं, लेकिन वह लोग सबसे पहले मनोज को अपनी समस्या बताने के लिए आगे करते हैं। इसकी पहली वजह यह है कि उनके गली की स्थिति काफी नारकीय है। दूसरी वजह यह कि इस गली की सचाई मीडिया के माध्यम से नगर निगम, जलकल सहित सम्बंधित विभागों और नेताओं को मालूम चले, जो यहाँ सिर्फ निरीक्षण करने या वोट बटोरने आते हैं। यही कारण है कि बीते निकाय चुनाव में वोट माँगने गए बृजेश चंद श्रीवास्तव से यहाँ के रहवासियों की कहा-सुनी भी हो गई थी। गली की दुर्दशा पर लोगों ने काफी नाराजगी जताई थी। लोगों ने साफतौर पर कहा कि चुनाव जीतने के बाद वह यहाँ दोबारा नहीं आए।

गली है या कूड़ाघर

मनोज के तीन-साढ़े तीन चौड़ाई वाली गली का आलम यह था कि यहाँ की दीवारों पर दोनों तरफ काई जमी हुई थी। मिट्टी की उबड़-खाबड़ गली में इधर-उधर गंदगी फैली हुई थी। दुर्गंध और मच्छर-मक्खियाँ भिनभिना रहे थे। सचाई यह है कि यहाँ के लोग कूड़े के बीच अपनी जिंदगी काट रहे हैं। बघवानाला की तरफ जो भी गली निकलती है उसके दोनों छोर पर कूड़ा-ही-कूड़ा नजर आ रहा था। मनोज बताते हैं कि खिड़की-दरवाजा खोलकर आप एक रात सो भी नहीं सकते, सोचिए हम कैसे रहते होंगे? गली के अंदर पहुँचने पर दर्जनों लोग इकट्ठा हो गए। वह बताते हैं कि बघवावीर बाबा मंदिर से लगायत एक सड़क बनाकर यहाँ के नेता उसे ‘विकास’ बताते हैं। गलियों में सैकड़ों घरों की आबादी बसी है, इस पर उन लोगों का कोई ध्यान नहीं जाता।

बसंती और गीता देवी

60 वर्षीय बसंती और 67 वर्षीय गीता देवी अपने ब्याह के बाद से ही इस मोहल्ले में रह रही हैं। वह बताती हैं कि ‘बाढ़ के बाद तो यहाँ गंदगी और भी बढ़ जाती है, लेकिन अभी जो स्थिति है, वह भी इस क्षेत्र में रहने लायक नहीं है।’ इस समस्या को लेकर वह इतनी भावुक हो गईं कि मकान बेच देने की भी बात कहने लगीं। वह कहती हैं कि ‘इतनी महंगाई में कहाँ जमीन मिलेगी और कैसे उसे बनवाया जाएगा? बाढ़ का पानी हमारे घरों में आ जाता है। यह सभी लोग जानते हैं, इसलिए कोई हमारे मकान को खरीदना नहीं चाहता या कम दाम में लेना चाहता है। हमारे मोहल्ले और इस गली की सफाई अगर हो जाती तो हम यहीं अपना गुजारा कर लेते। हमें बाढ़ जैसी समस्याएँ रोज झेलनी पड़ती हैं।’

गली, निर्माण के इंतजार में

बघवानाला का मेन रोड खराब होने का कारण लोग बताते हैं कि इस मार्ग से देर रात दर्जनों ट्रकों का आना-जाना होता है। उस पर बिल्डिंग मटेरियल्स लदे होते हैं। छोटी-सी सड़क कितना लोड सम्भालेगी? पुलिस से बचने के लिए ट्रक वाले इस रास्ते का उपयोग करते हैं। मंदिर के पास कभी-कभार एक-दो सिपाही खड़े हो जाते हैं, लेकिन थोड़ी देर रूककर वह भी अन्यत्र चले जाते हैं।

लल्लन यादव

उसी गली में ही लल्लन यादव का मकान है। गली के कई हिस्सों में बरसों से जमे गोबर और उसकी दुर्गंध से लल्लन काफी आजिज हैं। बताते हैं कि ‘जब बारिश हो, उस दिन या उसके दो-चार दिन बाद आप यहाँ आइए। समझ में आए जाएगा कि हम लोग यहाँ कैसे रह रहे हैं? जिन लोगों ने भैंस रखा है, उनसे अगर बात की जाए तो वे लोग बहसबाजी करने लगते हैं। हम इत्मीनान से रहना चाहते हैं। यह दुर्व्यवस्था भले ही हमारी जिंदगी का हिस्सा है, लेकिन इसके खिलाफ हमारे अंदर गुस्सा भी है। मौखिक तौर पर शिकायत तो कई बार की गई, लेकिन इसकी सफाई कौन करवाए, क्या पता?’

रिंकू श्रीवास्तव

रिंकू श्रीवास्तव बताते हैं कि सभासद बीते चुनाव के समय आए थे। हाथ जोड़कर वोट माँगा, समस्या बताने पर समाधान का आश्वासन दिया और चले गए फिर आज तक नहीं आए। खराब रास्ते के कारण बच्चों को पैदल ही ले जाकर स्कूल छोड़ना पड़ता है। इस रास्ते से गाड़ी पर परिवार बिठाकर ले जाना सम्भव नहीं है। सड़क पर गंदगी के कारण बच्चे घर में ही खेलकर अपना मन बहला लेते हैं। बाढ़ के समय यह किसी का भी रहना मुश्किल हो जाता है, लेकिन मन मारकर रहना पड़ता है।

हीरालाल

हीरालाल ने अपनी बचपन, जवानी इसी मोहल्ले में बिताई है। बुजुर्ग हीरालाल बताते हैं कि एक समय यहाँ ऐसा था, जब बघवानाला के किनारे लोग नहा भी लिया करते थे, कपड़े साफ करते थे, मछलियाँ पकड़ा करते थे। अब जमाना ही बदल गया है। मंदिर के किनारे दूर-दूर तक सिर्फ गंदगी और कूड़ा-करकट ही दिखता है। इस सफाई के लिए आपने कुछ किया? पूछने पर वह मंद मुसकान और ठेस अंदाज में बताते हैं कि हमहने केतनी बार सिकायत कइले हइ भइया, तू का जनबा?

राजन सोनकर

राजन सोनकर के यहाँ पानी की समस्या है। वह बताते हैं कि ‘लगभग डेढ़ साल पहले जलकल विभाग के कुछ लोग आए और पानी का कनेक्शन करके चले गए। कुछ खर्चा-पानी भी लिया था। तब से लेकर आज तक इस नल में पानी नहीं आया। राजन के मकान की सीढ़ियों के नीजे सरकारी नल सड़क से करीब आधा फुट ऊपर निकला हुआ है। नल पर जंग और उसके किनारे काई की मोटी परत जमी हुई है। राजन का परिवार बताता है कि यह नल हमारे किसी कम का नहीं है। जब पानी आएगा तब देखा जाएगा।

मृदुला

मृदुला और राजेश गुप्ता की समस्या सबसे अलग और गम्भीर है। पानी का कनेक्शन देने के लिए उनसे 1500 रुपये लिए गए और रसीद भी नहीं दी गई। पाइप अलग से मँगवाई गई। इस दम्पति की परेशानी यह है कि कनेक्शन के बावजूद इनके यहाँ एक बूँद भी पानी नहीं आया। उनके मकान को जाने वाला रास्ता अत्यंत ही जर्जर अवस्था में है। बजरिए मृदुला, उक्त ठेकेदार को सभासद ने ही भेजा था। इसके पहले भी पानी की समस्या को लेकर क्षेत्र की महिलाओं ने सभासद के यहाँ शिकायत की थी। विभाग की मानें तो पानी का नया कनेक्शन जेई के परमिशन पर ही मिलता है जिसका निर्धारित शुल्क लगभग साढ़े तीन हजार रुपये (लगभग) लिया जाता है।

‘विकास’ को मुँह चिढ़ाता गलियों का यह हाल

जनसमस्याओं पर बिफरे पूर्व पार्षद

महेंद्र सिंह शक्ति

बघवानाला में व्याप्त समस्याओं के बावत पूर्व पार्षद महेंद्र सिंह शक्ति ने गाँव के लोग को बताया कि ‘सन 2000 से 2015 तक अपने कार्यकाल के दौरान इस क्षेत्र में मैंने पहली बार सीवर-चौका, पानी की पाइप लाइन बिछवाने का काम करवाया था। बरसों बीत जाने के बाद जाहिर है कि स्थितियाँ जर्जर हो जाएँगी। वर्तमान पार्षद को इन जनसमस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। बघवानाला पर पुलिया मेरे कार्यकाल में ही बनवाई गई थी ताकि लोग सुगम तरीके से यातायात कर सकें। आज हालत यह है कि उस पुलिया के नीचे काफी मात्रा में कूड़ा जमा हो गया है। उस क्षेत्र में दुर्गंध का सबसे बड़ा कारण यह कूड़ा ही है। इसकी दैनिक सफाई से समस्या का समाधान आसानी से हो सकता है। बघवावीर बाबा मंदिर से लगायत जो इंटरलॉकिंग सड़क बनवाई गई है, उससे सिर्फ कॉलोनाइज़रों और पार्षद को ही ‘फायदा’ होता होगा। इसके बदले बघवावीर से दैत्रावीर मंदिर तक की सड़क बन गई होती तो जनता को काफी फायदा होता। इस मार्ग पर बाइक से चलना भी दुश्वार हो गया है।’

कूड़े के ढेर में रोटी की तलाश

अधिकारियों और नेताओं ने नहीं उठाया सीयूजी नम्बर

स्वच्छ शहर का ठप्पा लगाकर स्मार्ट सिटी घोषित कर दिए गए शहर वाराणसी के अधिकारियों और नेताओं को इन जनसमस्याओं से कोई सरोकार नहीं रह गया है। इस ग्राउंड स्टोरी की बाबत जब नगर आयुक्त, शहर उत्तरी के विधायक और राज्यमंत्री रविंद्र जायसवाल सहित हुकूलगंज के पार्षद बृृजेश चंद्र श्रीवास्तव से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने अपने-अपने सीयूजी नम्बर नहीं उठाए। यह हालत एक दिन की नहीं है, दूसरे दिन भी इन लोगों ने मोबाइल उठाने या वापस फोन करने की ज़हमत नहीं की। इसी रवैये से परेशान जनता के सामने सवाल खड़े हो रहे हैं कि हमारी परेशानी कौन सुनेगा या हम किससे कहे?

कभी-कभार आने वाला सफाईकर्मी  रहने की जगह को ही कूड़ाघर समझ लेता है

दूसरी तरफ, इन समस्याओं के बीच बघवानाला क्षेत्र के रहवासी ‘विकास’ की आस में बैठे है।

अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा गाँव के लोग के सहायक संपादक हैं।