Saturday, August 23, 2025
Saturday, August 23, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमराष्ट्रीयइलाहाबाद विश्वविद्यालय में पिछड़े, दलित, आदिवासी और दिव्यांगों के आठ पदों को...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पिछड़े, दलित, आदिवासी और दिव्यांगों के आठ पदों को NFS क्यों किया गया?

आज से 70 वर्ष पहले ऐसे वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था संविधान में लाई गई थी, जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से हाशिये पर जीवन जीने को मजबूर थे क्योंकि देश का सवर्ण तबका, खासकर ब्राह्मण, उन्हें आगे बढ़ने देना नहीं चाहते थे लेकिन संविधान के सामने विवश थे। हाशिये के इन समाजों ने शिक्षित हो आगे आना शुरू किया। यही बात भारतीय सवर्णों के लिए अपच हो गई। फिर भी भारतीय संविधान हाशिये के समाजों के अधिकारों की सुरक्षा करता रहा है। अब आरएसएस के दिमाग से संचालित भाजपानीत सरकार ने हाशिये के समाज के लोगों को फिर से हाशिये पर ढकेलने के लिए अलग षड्यंत्र कर रही है। देश का अपना संविधान होने के बावजूद आरएसएस यहाँ अपना एक अलग मनुवादी संविधान थोपने के प्रयास में है। प्रायः सभी चयन समितियों में अपने वर्चस्व का लाभ उठाकर शिक्षा और नौकरियों के मामले में उन्हें NFS कर हटाने के प्रयास में है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ताजा मामले में जानिए कि कैसे आठ उम्मीदवारों को NFS कर दिया गया।

देश की आजादी के 77 साल बाद, उच्च शिक्षा में दलित-आदिवासियों के आरक्षण के 27 साल बाद एवं पिछड़ों के आरक्षण के 16 साल बाद भी दलित, आदिवासी और पिछड़ी जातियों के लोग प्रोफेसर बनने के योग्य नहीं हैं। देश के विश्वविद्यालयों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शासित भाजपा सरकार इस सत्य को पूरी तरह सही साबित कर रही है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कॉमर्स एंड बिजिनेस एडमिनिस्ट्रेशन विभाग ने 26 जुलाई, 2024 को प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर एवं असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों का परिणाम जारी कर यह बता दिया कि साक्षात्कार आधारित भर्तियों में जाति, जनेऊ एवं जुगाड़ आधारित मनुवाद और भ्रष्टाचार का किस कदर बोलबाला होता है? इसीलिए इस विभाग ने कुल 32 पदों में से 28 पदों का परिणाम जारी किया, जिसमें 19 अभ्यर्थियों का चयन किया गया, 9 पदों को NFS (नॉट फाउंड सूटेबल) कर दिया गया और शेष 4 पदों का परिणाम ही गायब कर दिया गया है।

भारत में एक तबका ऐसा है जो आरक्षण से नफरत करता है। उसका कहना है कि आरक्षण लागू होने के 70 साल हो गये हैं, इसलिए उसे बंद कर देना चाहिए। अब इस तबके से पूछना चाहिए कि वह किस आरक्षण की बात कर रहा है?

इस सवाल पर वह दांत चियारने लगता है क्योंकि उसे आरक्षण के बारे में न विस्तार से बताया गया है और न ही समझाया गया है जबकि उसे आरक्षण के नाम से नफरत करना जन्म से ही सिखा दिया जाता है। इसलिए उसे कभी यह एहसास ही नहीं होता है कि उसके लिए जातीय श्रेष्ठता आधारित ब्राह्मण आरक्षण सदियों से विराजमान है। इसी के तहत वह मंदिरों में पुजारी और यजमान बनता है।

जबकि डॉ. बीआर अंबेडकर ने अपनी पुस्तक ‘एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’ में लिखा है कि ‘हिंदू धर्म में पुजारियों की व्यवस्था ख़त्म हो जाए। अगर यह मुमकिन नहीं है तो इसे वंशानुगत न रहने दिया जाए यानी यह न हो कि पुजारी का बेटा पुजारी बने, जो भी हिंदू धर्म में विश्वास रखता हो, उसे पुजारी बनने का अधिकार हो। ऐसा कानून बने कि सरकार द्वारा निर्धारित परीक्षा पास किये बगैर कोई भी हिंदू पुजारी न बने और सरकारी सनद होने पर ही कोई आदमी पुजारी का काम कर पाए।‘

सच्चाई यह है कि आजादी के 77 साल बाद बने राम मंदिर में भी जातीय श्रेष्ठता आधारित आरक्षण को स्वीकार करते हुए एक ब्राह्मण को मंदिर का पुजारी बना दिया जाता है।

इस देश में यह एक मिथ की तरह स्थापित हो चुका है कि हजारों जातियों में से सिर्फ ब्राह्मण जाति के लोग ही प्रतिभाशाली होते हैं।  इसीलिए उनका वर्चस्व विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में दिखाई देता है। वे इसी को मेरिट का नाम देते हैं। भले ही साक्षात्कार में उनकी जाति के लोग बैठकर उनका चयन किए हों। ऐसा अक्सर विश्वविद्यालयों की नियुक्तियों में देखा जाता है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने तो एनएफएस का कीर्तिमान ही स्थापित कर दिया है। कॉमर्स एंड बिजिनेस एडमिनिस्ट्रेशन विभाग ने प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर एवं असिस्टेंट प्रोफेसर के कुल 32 पदों में 9 पदों का एनएफएस और 4 पदों का परिणाम गायब कर नया रिकॉर्ड बना दिया है। इसमें दो ऐसे अभ्यर्थियों का चयन किया गया है, जिनका नाम साक्षात्कार के लिए 15 जुलाई 2024 को जारी की गई सूची में नहीं था।  यदि इनके लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय सवर्ण या मनुवादी कोटे के तहत कोई दूसरी सूची गुप-चुप तरीके से जारी करता है तो यह वही बता सकता है। असिस्टेंट प्रोफेसर पद के साक्षात्कार के लिए विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर प्रकाशित अभ्यर्थियों की सूची में ‘कुमार सौरभ’ और ‘कोमल राघव’ का नाम नहीं है जबकि अंतिम परिणाम में ये दोनों व्यक्ति असिस्टेंट प्रोफेसर बना दिए गये थे। यह साक्षात्कार में होने वाले भ्रष्टाचार का जीता जागता सबूत है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कॉमर्स एंड बिजिनेस एडमिनिस्ट्रेशन विभाग ने प्रोफेसर के 4 पदों का विज्ञापन 12 दिसंबर, 2023 को निकाला था, जिसकी आवेदन की अंतिम तिथि 02 जनवरी 2024 थी।  इसमें अनारक्षित श्रेणी (UR) के दो पद, ओबीसी का एक पद और एक पद दिव्यांग श्रेणी का था। इसमें अनारक्षित श्रेणी के दो पदों पर कुल 14 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए चयनित किया गया था, जिनमें से एक का चयन किया गया और एक पद को नॉट फाउंड सूटेबल कर दिया गया। इसमें ओबीसी के एक पद के लिए 5 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए चयनित किया गया था और इन पाँचों अभ्यर्थियों में से एक भी अभ्यर्थी साक्षात्कार समिति की नज़र में योग्य नहीं ठहरा। इसलिए पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित प्रोफेसर के एक पद को एनएफएस कर दिया गया। इसी में दिव्यांग श्रेणी के 1 प्रोफेसर पद पर न किसी अभ्यर्थी को साक्षात्कार के लिए चयनित किया गया और न ही उसका परिणाम जारी किया गया।

यह परिणाम विश्वविद्यालयी शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा सवाल उठाता है। हैरानी की बात यह है कि जो देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट और एसोसिएट प्रोफेसर पद पर लंबे समय से कार्यरत हैं और प्रोफेसर बनने के लिए योग्यता और अनुभव रखते हैं, उन्हें भी साक्षात्कार में अयोग्य ठहराते हुए एनएफएस कर दिया जाता है। क्या उनकी नियुक्ति असिस्टेंट प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर पद पर योग्यता देखकर नहीं की गई थी?

इसी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के तीन पद अनारक्षित श्रेणी (UR) के थे, जिस पर 24 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए चयनित किया गया था, जिनमें से तीन पदों के सापेक्ष तीनों सवर्ण अभ्यर्थियों का चयन किया गया, ओबीसी के तीन पदों के लिए 13 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए चयनित किया गया था, जिनमें से एक पद पर चयन किया गया बाकी दो पदों को एनएफएस कर दिया गया, अनुसूचित जाति के एक पद के लिए 5 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए चयनित किया गया था, पाँचों दलित अभ्यर्थियों को नॉट फाउंड सूटेबल बताते हुए पद को ही एनएफएस कर दिया गया, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग अर्थात सुदामा कोटा और दिव्यांग श्रेणी के एक-एक पद के साक्षात्कार और परिणाम संबंधी रिकॉर्ड विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है।

इसी विभाग ने असिस्टेंट प्रोफेसर के कुल 19 पदों का विज्ञापन किया था, जिसमें क्रमशः अनारक्षित श्रेणी के 6 पद, ओबीसी के 5 पद, अनुसूचित जाति के 3 पद, अनुसूचित जनजाति के 1 पद, दिव्यांग श्रेणी के 2 पद और सुदामा कोटे के 2 पद थे। इसमें विभाग ने अनारक्षित के पांच पदों पर चयन किया और एक पद का परिणाम ही गायब कर दिया, ओबीसी के पाँचों पदों पर चयन किया गया, अनुसूचित जाति के 3 पदों के लिए 25 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए चयनित किया गया था, जिनमें से एक अभ्यर्थी का चयन कर शेष दो पदों को एनएफएस कर दिया गया, अनुसूचित जनजाति के एक पद के लिए 8 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था, जिन्हें अयोग्य ठहराते हुए साक्षात्कार समिति ने पद को एनएफएस कर दिया, दिव्यांग श्रेणी के दो पदों के लिए 16 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए चयनित किया गया था, जिनमें से एक पद पर चयन किया गया और एक को एनएफएस कर दिया, सुदामा कोटा के दोनों पदों पर चयन कर लिया गया।

निष्कर्ष यह है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कॉमर्स एंड बिजिनेस एडमिनिस्ट्रेशन विभाग ने आधिकारिक रूप से कुल 9 पदों का एनएफएस किया है, जिनमें तीन पद पिछड़ों के, तीन पद दलितों के, एक पद आदिवासियों का, एक पद दिव्यांगों का और एक पद अनारक्षित श्रेणी का भी शामिल है. इस विभाग ने इसके आलावा 4 पदों के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी साझा नहीं की है.

                                       

 

ज्ञानप्रकाश यादव
ज्ञानप्रकाश यादव
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं और सम-सामयिक, साहित्यिक एवं राजनीतिक विषयों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन करते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Bollywood Lifestyle and Entertainment