Saturday, July 27, 2024
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बीएचयू में आयोजित जनमत संग्रह ने बेरोजगारी और युवाओं के मुद्दों पर भाजपा सरकार को बताया फिसड्डी

शिक्षा और रोजगार संबंधी मुद्दों पर मोदी सरकार के 10 साल के कामकाज पर यह जनमत संग्रह कराया गया, जिसमें बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं और युवाओं ने मतदान के माध्यम से  मौजूदा सरकार के कामकाज पर अपना पक्ष रखा।

देशभर के 50 विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में 7-8-9 फरवरी को यंग इंडिया रेफरेंडम का आयोजन किया गया। इसी क्रम में बीएचयू कैंपस में भी 8-9 फरवरी को छात्र संगठन AISA, NSUI, SCS और SF द्वारा संयुक्त रूप से यंग इंडिया रेफरेंडम कराया गया। इस रेफरेंडम में छात्र-छात्राओं ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया। शिक्षा और रोजगार संबंधी मुद्दों पर मोदी सरकार के 10 साल के कामकाज पर यह जनमत संग्रह कराया गया, जिसमें बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं और युवाओं ने मतदान के माध्यम से  मौजूदा सरकार के कामकाज पर अपना पक्ष रखा।

AISA, NSUI, SCS और SF की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में  बताया गया है कि 8 फरवरी को बीएचयू के आर्ट्स फैकल्टी और छित्तूपुर गेट तथा 9 फरवरी को BHU विश्वनाथ मन्दिर पर रेफरेंडम कराया गया। 9 फरवरी को रेफरेंडम शाम 4 बजे तक चला, उसके बाद मतगणना की गयी। मतगणना में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए नागरिक समाज से प्रवेक्षक भी मौजूद थे। पर्यवेक्षक के रूप में फादर आनंद, जागृति राही, कुसुम वर्मा और धनंजय त्रिपाठी जी मौजूद थे।

दो दिनों तक चलने वाले इस रेफरेंडम में कुल 1711 छात्र-छात्राओं ने वोट किया। जिसमें ज्यादातर स्टूडेंट्स ने मोदी सरकार के नीतियों के खिलाफ वोट किया। 90.60 फीसदी छात्रों ने माना कि शैक्षणिक संस्थानों में हो रही बेतहाशा फीस वृद्धि गलत है। 78.5 फीसदी ने स्वीकार किया कि मोदी सरकार छात्रों की मूलभूत जरूरतों जैसे हॉस्टल, छात्रवृत्ति और फेलोशिप देने में असफल साबित रही है। वही 87.40 फीसदी छात्रों ने अपने मत के जरिये बताया कि सरकार ने अपने रोजगार और नौकरी संबंधी वादों को पूरा कर पाने में नाकाम साबित हुई है। पर्यवेक्षकों ने रेफरेंडम का परिणाम जारी किया उसके बाद एक सभा भी आयोजित की गयी।

इस बाबत बीएचयू से रिसर्च कर रही अर्सिया खान कहती हैं कि वर्तमान सरकार छात्रों को रोजगार देने के मामले में फेल नजर आ रही है। सरकार के शुरूआती दौर के वादों को देखा जाय तो सारी पोल खुल जाती है। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों की फीस बेतहासा बढ़ा दी जा रही हैं लेकिन रिसर्च करने वाले छात्रों का पैसा नहीं बढ़ाया जा रहा है। रोजगार देने की बजाय सरकार छात्रों को मंदिर और मस्जिद के मुद्दों में भटका दे रही है।

बीएचयू की आइसा से जुड़ी छात्रनेता सोनाली कहती हैं कि यह सरकार छात्रों को दो करोड़ रोजगार देने का वादा करके भूल गई। सरकारी सस्थानों के निजीकरण पर पूरी तरह से उतारू यह सरकार नौजवानों को नौकरी क्या देगी? बीएचयू में डिप्लोमा की फीस 18 हजार कर दी गई। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की  फीस 300% तक बढ़ा दी गई है। शिक्षा का बजट 60 प्रतिशत कम कर दिया गया है। सरकार का सारा जोर मंदिरों और धर्म पर ही केन्द्रित है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के राजनीतिक विभाग के शोध छात्र मनीष कहते है कि यह सरकार रोजगार के मामले में पूरी तरह से फेल सिद्ध हुई है। दिन-ब-दिन विभिन्न विभागों के पद कम कर दिए जा रहे हैं। शिक्षा रोज महंगी होती जा रही है। विश्वविद्यालयों एवं कॉलेजों की फीस में लगातार बढ़ोत्तरी होती जा रही है। देखा जाय तो यह सरकार हर स्तर पर फेल नजर आ रही है। महंगाई पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के साइंस और आर्ट्स फैकल्टी से लेकर ईश्वर डिग्री डिग्री कॉलेज, सीएमपी डिग्री कॉलेज तथा पंत छात्रावास और राजकीय छात्रावास के स्टूडेंट सहित कुल 3040 लोगों ने शिक्षा, रोजगार,हॉस्टल और छात्रवृत्ति के तीन सवाल पर वोट किया जिसमें आठ अमान्य वोट भी पड़े। कुल 3032 वोट में 89.88% लोगों ने नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा बढ़ाई जा रही फीस वृद्धि के विरोध में वोट किया तथा 10.12% का यह मानना था कि मोदी सरकार द्वारा बढ़ाई जा रही हर साल फीस वृद्धि सही है।

दूसरे सवाल पर हुई वोटिंग में 87.31 प्रतिशत छात्र-छात्राओं का यह मानना है कि उन्हें पर्याप्त हॉस्टल और स्कॉलरशिप नहीं मिली है। जबकि 12.69 प्रतिशत छात्रों का यह मानना है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में पर्याप्त छात्रवृत्ति और हॉस्टल मिल चुके हैं। तीसरे सवाल के जवाब में 90.21% छात्र-छात्राओं का मानना है कि मोदी सरकार ने दो करोड़ का वादा पूरा नहीं किया है तथा 9.79 छात्र छात्राओं का यह मानना है कि मोदी सरकार ने दो करोड़ का अपना वादा पूरा कर दिया है। मतदान प्रक्रिया का निष्कर्ष यह निकलता है की लगभग 90% छात्राओं ने मोदी सरकार के शिक्षा, रोजगार और छात्रवृत्ति और हॉस्टल के सवाल पर नहीं में जवाब दिया है जिसका सीधा मतलब है शिक्षा रोजगार के सवाल पर मोदी सरकार को युवा नकार रहा है।

लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र शिवम इस बाबत पूछे जाने पर कहते है कि यह सरकार हर स्तर पर फेल है। हमें ऐसी सरकार नहीं चाहिए जो छात्रों का हर स्तर से शोषण करती हो। नौकरी के रास्ते बंद कर देना। सरकारी संस्थाओं का प्राइवेटाइजेशन कर देना। युवाओं को रोजगार मांगने पर लाठियों से पिटवाना। आज विश्वविद्यालयों के छात्र फीस वृद्धि की समस्या से ज्यादा परेशान हैं और सरकार है कि उसे इन समस्याओं से कुछ लेना देना नहीं है।

लखनऊ विश्वद्यिालय में कराए गए वोटिंग में 2914 छात्रों ने भाग लिया और 88 प्रतिशत छात्र फीस वृद्धि से खुश नहीं हैं। छात्रों को मिल रही सुविधाओं जैसे हास्टल आदि से 65 प्रतिशत छात्र नाखुश हैं जबकि 81 प्रतिशत छात्र मोदी सरकार के रोजगार देने के वादे को एक छलावा भर मानते हैं।

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