जीवन में रंगों का बड़ा महत्व है। लेकिन रंगों का उपयोग भी अलग-अलग अर्थों में किया जाता है। मतलब यह कि रंगों का उपयोग अलगाव के संदर्भ में भी किया जाता है। मुझे तो अपना बचपन याद आता है जब घर में तीन-चार भैंसें रहती थीं और उनके साथ उनके बच्चे भी। भैंस के बच्चों को पाड़ा और पाड़ी के नाम से जानते थे। लेकिन समस्या यह हाेती कि सभी देखने में एक जैसे ही लगते थे। ऐसे में बड़ी परेशानी होती थी कि उन्हें पहचाना कैसे जाय। अब वे इंसान तो थे नहीं कि उन्हें नाम से बुलाता।
तो उन दिनों एक बहेलिया आया था गांव में। उसके पास तोते थे और कुछ और पंछी भी। उसने पंछियों के परों पर अलग-अलग रंग लगा रखा था। पूछा तो उसने कहा कि इन रंगाें का उपयोग वह दाम याद रखने के लिए करता है। दाम भी इस आधार पर तय करता था कि कौन सी चिड़िया कितनी कम उम्र की है। तोतों के बारे में तो यह आज भी कहा जाता है कि तोता हमेशा कम उम्र का ही पालना चाहिए। बूढ़ा सुग्गा (ताेता) कभी भी पोस नहीं मानता।
दरअसल, पंछियों के परों को रंगने की उसकी यह प्रक्रिया मुझे बेहद अच्छी लगी थी। तब मैंने भी अपनी भैंसों के बच्चों को अलग-अलग रंग के माले पहनाया था। एक पाड़ी जो मुझे बेहद पसंद थी, उसे मैंने इंद्रधनुषी रंग का माला पहनाया था और उसके गले में पीतल की दो घंटियां थीं। तो होता यह था कि उसकी आवाज से ही मैं पहचान जाता था कि कौन मुझे सबसे अधिक प्रिय है।
[bs-quote quote=”उत्तर प्रदेश के बनारस में आगामी 13 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आगमन होना है। वे काशी विश्वनाथ मंदिर के सौंदर्यीकरण का उद्घाटन करेंगे। दिलचस्प यह कि मंदिर परिसर में सौंदर्यीकरण के सारे काम सरकारी कोष से किया गया है जो कि भारत में धर्मनिरपेक्ष संविधान के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन है। प्रावधान है कि धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने के कारण सरकारें किसी भी धर्म के संदर्भ में सरकारी कोष का इस्तेमाल नहीं करेंगीं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए संविधान का कोई महत्व ही नहीं है। उन्हें केवल धर्म के आधार राजनीति करने में महारत हासिल है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
बचपन में रंगों का इस्तेमाल इसी तरह के कामों के लिए करता था। कपड़ों कें रंगों से वास्ता तब पड़ा जब कॉलेज गया। उन दिनों जींस पहनने का खूब शौक चर्राया था। हालत यह थी कि एक समय मेरे पास आठ जींस थे। सबके रंग अलग-अलग। यह कुछेक दोस्तों की संगत का असर था।
खैर, रंगाें से वास्तविक वास्ता तो तब पड़ा जब पत्रकार बना। झंडों और रंगों के बारे में सोचना शुरू किया। हालांकि तिरंगा के तीन रंगों की कहानी से तो बचपन से ही परिचित था। अलबत्ता मैं यह जरूर सोचता था कि किताब में जो अशोक चक्र नीले रंग का है, वह असल में काले रंग का क्यों दिखता है। क्या यह तिरंगे का अपमान नहीं है? उन दिनों केसरिया रंग केवल केसरिया होता था। यह बलिदान का प्रतीक कैसे है, यह सोचकर परेशान हो जाता। यदि यह सेनानियों की कुर्बानी का प्रतीक है तो इसका रंग लाल होना चाहिए था। लेकिन यह तो केसरिया है।
तब कोई नहीं था मेरे पास जो मुझे यह समझाता कि तिरंगे का केसरिया असल में भगवा रंग है जो कि भारत में ब्राह्मणवाद का प्रतीक है जो कि सबसे ऊपर है। इसका एक मायने यह कि भारत में भले ही धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, लेकिन असल में यह धर्म प्रधान देश है। धर्म में भी वह धर्म, जो कि वर्चस्वाद को पोषक है और इंसानों को जातियों व उपजातियों में बांटता है।
आरएसएस से बहुत अधिक परिचित नहीं था एक समय। लेकिन धीरे-धीरे आरएसएस के इतिहास और उसकी गलत मंशाओं से परिचित हुआ। तब जाकर जाना कि केसरिया भगवा रंग है। इसका प्रभाव 2014 के बाद से बहुत बढ़ा है। हालत तो यह है कि अब यह रंग हिंसात्मक रंग बन चुका है। यह वर्चस्ववाद का द्योतक है। जबकि असल में यह गेरूआ रंग है जो बुद्ध व उनके समकालीन आजीवकों का रंग हुआ करता था। यहां तक कि सिद्ध और नाथ पंथ के लोगों ने भी गेरूआ रंग को अपनाया था। लेकिन अब यह रंग केवल और केवल ब्राह्मणों का रंग रह गया है।
गेरूआ रंग से एक बात याद आयी। उत्तर प्रदेश के बनारस में आगामी 13 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आगमन होना है। वे काशी विश्वनाथ मंदिर के सौंदर्यीकरण का उद्घाटन करेंगे। दिलचस्प यह कि मंदिर परिसर में सौंदर्यीकरण के सारे काम सरकारी कोष से किया गया है जो कि भारत में धर्मनिरपेक्ष संविधान के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन है। प्रावधान है कि धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने के कारण सरकारें किसी भी धर्म के संदर्भ में सरकारी कोष का इस्तेमाल नहीं करेंगीं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए संविधान का कोई महत्व ही नहीं है। उन्हें केवल धर्म के आधार राजनीति करने में महारत हासिल है।
बात परसों की है। उत्तर प्रदेश सरकार ने मोदी के बनारस आगमन के मौके को खास बनाने के लिए उन सभी मकानों को भगवा रंग से रंगवा दिया है जो मोदी के रास्ते में नजर आएंगे। इस क्रम में प्रशासन ने एक मस्जिद जो कि मोदी के रास्ते में नजर आया, भगवा रंग से रंग दिया। लेकिन बाद में जब स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया तब करीब 36 घंटे बाद प्रशासन ने मस्जिद की इमारत पर उजला रंग लगवा दिया है।
मूल सवाल यह कि एक प्रधानमंत्री को क्या इतना कमजारे होना चाहिए? उन्हें केवल एक खास रंग से इश्क क्यों है। मेरी जेहन में पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की याद आ रही है। वे कहा करते थे कि यदि किसी बाग में केवल एक ही रंग के फूल खिले, तो इसका मतलब यह कि बाग का माली चोर है। हालांकि पासवान की कोई निश्चित राजनीति नहीं थी। वे ढुलमुल किस्म के नेता थे। अपनी विचारधारा पर टिके रहना उन्हें नहीं आता था।
बहरहाल, नरेंद्र मोदी के आगमन पर सभी घरों को भगवा रंग से पुतवाने के पीछे उनकी सनक भी है और राजनीति भी। वे एक संदेश देना चाहते हैं। वही संदेश, जो माफीवीर सावरकर देना चाहते थे।

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।




