श्रीमती घेवना देवी, मुसहर समाज से आती हैं और उनके साथ यह साक्षात्कार कुछ वर्ष पूर्व लिया गया था। इस साक्षात्कार में कुछ पात्रों के नाम भले ही बदल गए हों लेकिन जातीय अस्मिताएं और उनके पूर्वाग्रह बिलकुल वैसे ही हैं। गाँव में मुसहर समाज के साथ भेदभाव करने में मात्र ब्राह्मण, ठाकुर या भूमिहार ही नहीं हैं अपितु यादव, कुशवाहा और चमारों ने भी इसमें कोई कसर नहीं छोड़ी है। यह अलग बात है कि मुसहर अपने को अन्य दलित जातियों से ऊंचा मानते हैं और मौक़ा मिले तो वैसा ही करने से नहीं चूकते जैसे तथाकथित बड़ी जातियां उनके साथ करती हैं। इन्हीं गाँवों में घूमते समय मैंने मुसहरों को डोम लोगों के साथ भेदभाव करते देखा और अपने नल से पानी भरने से साफ़ तौर पर मना करते हुए देखा। हालाँकि राकेश पटेल जैसे अधिकारियों की संवेदनशीलता के चलते डोम बस्ती में पानी की किल्लत से छुटकारा मिल पाया, उन्होंने अपने व्यक्तिगत सहयोग से डोम बस्ती में भी एक हैण्डपंप लगवा दिया। लेकिन कहने का आशय यह है कि हम एक जाति से पूर्वाग्रहग्रस्त समाज हैं जो इस बीमारी के लिए दूसरों को दोष देते हैं लेकिन स्वयं बदलने को तैयार नहीं है।
फिर भी ये साक्षात्कार हमें गाँवों में जातियों में व्याप्त मतभेद और पूर्वाग्रह के दर्शन करता है और यह भी कि ‘क्रांति’ की बात करने वाले लोग हाशिये के इन समाजों से बहुत दूर हैं। ये भी देख लीजिये कि गाँव में दलित, बहुजन शब्द अभी भी दूर हैं और लोग अभी भी जातीय अस्मिताओं के आधार पर ही बात करते हैं। बाबा साहेब ने ये साफ़ किया कि हमारा समाज सीढ़ीनुमा असमानता का शिकार है और जब तक हम इस प्रश्न पर ईमानदारी से विचार नहीं करेंगे तो ऐसे ही होता रहेगा। भूख और अस्मिताओं से संघर्ष कर रहा मुसहर भी कहता हैं कि वह चमार, डोम और अन्य जातियों से बड़ा है। लेकिन इसके लिए मुसहर को दोष ठहराना गलत होगा।
आखिर क्या कारण है कि दलितों के नाम पर काम करने वाली पार्टियों के एजेंडे में भी मुसहर नहीं रहे। स्थिति यह है कि मुसहर बाहुल्य इलाकों में भी जब पंचायतों में आरक्षण की सुविधा है तो भी मुसहर चुनाव नहीं लड़ पाते और यदि लड़ते भी हैं तो उनसे ‘बड़ी’ कहलाये जाने वाली जातियां अपने खेल खेलती रहती हैं। कुशीनगर और देवरिया जनपदों में मुसहरों की संख्या बहुत है। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर, बलिया, मऊ आदि जनपदों में मुसहरों की बहुत आबादी है लेकिन हर एक स्थान पर मुसहर पूर्णतः भूमिहीन हैं और अपने रहने हेतु भी उनके पास भूमि नहीं है। देवरिया जनपद में हमारे हस्तक्षेप के बाद कुछ इलाकों में स्थितियां सुधरी क्योंकि कुछ न्यायप्रिय अधिकारी इन मसलों पर चिंतित थे और उन्होंने पूरा सहयोग किया। यदि अधिकारी अपनी जातीय निष्ठा से ऊपर उठकर कार्य करे तो गाँवों की 80 फीसदी समस्याओं का समाधान वहीँ हो सकता है लेकिन दुर्भाग्यवश जातीय निष्ठाएं और मनुवादी पूर्वाग्रह हमारे प्रशासन पर भी हावी है।
श्रीमती घेवना देवी के साथ इस छोटी से भेंट में कुछ तथ्यात्मक गलतियां हो सकती हैं क्योंकि ये तीन-चार साल पहले लिया गया था इसलिए थोड़ा बहुत राजनीतिक तथ्य बदल सकते हैं लेकिन इस बातचीत से आप आसानी से समझ सकते हैं कि हमारी सामाजिक विघटन के कारण क्या है और क्यों ऐसी शक्तियां अभी भी सत्ता पर काबिज हैं जो इस विघटन का लाभ ले रही हैं। आशा है ये छोटा सा वीडियो आपको हमारे समाज के एक वर्ग की सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक स्थिति से परिचय करायेगा।
पूरे साक्षात्कार को देखने के लिए youtube के इस लिंक को क्लिक करे और देखें –
श्रीमती घेवना देवी के साथ साक्षात्कार जो आलेख में लगा है शायद कुछ तकनिकी कारणों से नहीं चल पा रहा है. मै यहाँ उसका यू ट्यूब पर लिंक दोबारा शेयर कर रहा हूँ.
https://youtu.be/F8dLf4W8KlA