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बिहार में आई शिक्षक भर्ती की बहार पर यूपी में सिर्फ इंतजार ही इंतजार

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार एक तरफ प्रदेश में बेरोजगारी दर कम करने और रोजगार सृजन का दावा कर रही है वहीं दूसरी तरफ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र सरकार पर भर्ती प्रक्रिया न शुरू करने का आरोप लगा रहे हैं।

साल 2023 को बिहार में शिक्षक भर्ती के क्षेत्र में क्रांति का साल कहा जा रहा है। इस साल के अंत तक बिहार में लगभग ढाई लाख शिक्षकों की भर्ती प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा में हुई। लाखों परिवारों के लिए नये साल 2024 का जश्न कई गुना तब बढ़ गया, जब दिसंबर, 2023 के अंतिम सप्ताह में नव चयनित शिक्षकों को स्कूल आबंटित कर दिए गए। बिहार में 2023 में हुई शिक्षक भर्ती को दो चरणों में पूरा किया गया। दूसरे चरण में रिकॉर्ड डेढ़ महीने के भीतर विज्ञापन से ज्वाइनिंग तक की प्रक्रिया को पूरा किया गया।

बिहार की इस शिक्षक भर्ती के लिए उत्तर प्रदेश के वे प्रतियोगी बड़ी उम्मीद से लगे थे जिन्हें अपने प्रदेश में पिछले पाँच वर्षों से शिक्षक भर्ती का इंतजार है। बिहार की शिक्षक भर्ती भी उत्तर प्रदेश के लाखों प्रतियोगियों के लिए ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित हुई और आँकड़ें बताते हैं कि बिहार में चयनित कुल शिक्षकों में से अन्य राज्यों के महज बारह फीसदी अभ्यर्थी ही हैं।

इन अन्य राज्यों में उत्तर प्रदेश के अलावा झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, असम, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, हरियाणा आदि प्रमुख हैं परंतु चयनित शिक्षकों की संख्या की बात करें तो सबसे अधिक उत्तर प्रदेश के अभ्यर्थियों की ही है। फिर भी उत्तर प्रदेश के लाखों प्रतियोगी साल 2024 के आगमन पर भी अपने प्रदेश में शिक्षक भर्ती न आने से निराश, हताश और सरकार से असन्तुष्ट नजर आ रहे हैं।

वहीं चुनाव से चंद दिनों पहले उत्तर प्रदेश पुलिस कांस्टेबल की 60244 पदों पर, कम्प्यूटर ऑपरेटर के 985 पदों पर और उत्तर प्रदेश पुलिस एसआई/एएसआई की 921 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया गया है, लेकिन प्रतियोगी छात्र इसे अपर्याप्त बता रहे हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार का दावा और जमीनी हकीकत?

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार एक तरफ प्रदेश में बेरोजगारी दर कम करने और रोजगार सृजन का दावा कर रही है वहीं दूसरी तरफ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र सरकार पर भर्ती प्रक्रिया न शुरू करने का आरोप लगा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में पिछले पांच वर्षों में प्राथमिक शिक्षक की कोई भर्ती नहीं निकली है। बड़ी संख्या में प्रतियोगी छात्र भर्ती प्रक्रिया का इंतजार कर रहे हैं। पूर्व बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. सतीश चंद्र द्विवेदी ने विधान परिषद में बसपा विधायक विनय शंकर तिवारी के रिक्त पदों को लेकर उठाए गए सवाल का जवाब देते हुए कहा कि शिक्षा का अधिकार कानून के तहत प्राथमिक स्कूलों के लिए 30 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक (1:30) की तैनाती का प्रावधान है लेकिन प्रदेश में यह औसत 1:36 का है। वहीं उच्च प्राथमिक विद्यालयों के लिए 1:35 के अनुपात का प्रावधान है, लेकिन प्रदेश में यह 1:53 है।

जबकि  उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देते हुए कहा कि प्रदेश में प्राथमिक शिक्षकों के 51112 पद रिक्त हैं जिसे जल्द से जल्द भरा जाएगा। वहीं दूसरी ओर प्राथमिक शिक्षक के लिए बीएड को अयोग्य ठहराये जाने के बाद बीएड डिग्री धारी अभ्यर्थियों में व्यापक असंतोष फैल गया है। सबसे बड़ा सवाल है कि प्रति वर्ष शिक्षक बनने के सारे मापदंड पूरा करने वाले लाखों छात्रों का भविष्य क्या होगा?

उत्तर प्रदेश सरकार से शिक्षक भर्ती की मांग करते छात्र संगठनों के पदाधिकारी

हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन्वेस्टर्स सम्मिट में दावा किया कि इस सम्मिट में मिले निवेश से 1 करोड़ 10 लाख नौजवानों को सीधे-सीधे यूपी में नौकरी मिलेगी। यूपी के नौजवानों को नौकरी ढूंढने के लिए कहीं जाना नहीं होगा, बल्कि दुनिया यूपी नौकरी ढूंढने आएगी।

युवा मंच संयोजक राजेश सचान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दावे को हवा-हवाई बताते हैं। सचान कहते हैं, उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि उसने रिकॉर्ड सरकारी नौकरियां दी हैं लेकिन आंकड़े बताते हैं कि इस सरकार के आने के बाद सरकारी नौकरियों की संख्या घटी है। स्वास्थ्य विभाग से लेकर शिक्षा और बिजली विभाग तक में नए पदों के सृजन की आवश्यकता है जबकि जो 6 लाख पद खाली हैं उसे ही इस सरकार में नहीं भरा गया है।

सचान आगे कहते हैं, 2018 में ग्लोबल मीट हुई जिसमें 4 लाख करोड़ इन्वेस्टमेंट एमओयू हुई, लेकिन कोई उल्लेखनीय काम हुआ हो धरातल पर ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता। दुनिया यूपी नौकरी ढूंढने आएगी यह हवा-हवाई बात है। सच्चाई यह है कि अभी यूपी के नौजवान रोजगार के लिए बिहार जा रहे हैं।

लाखों पद खाली, नहीं हो रही शिक्षक भर्ती

जुलाई-2017 में शिक्षामित्रों का समायोजन इसलिए रद्द कर दिया गया था क्योंकि राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के निर्देशानुसार शिक्षामित्रों की न्यूनतम अहर्ता प्राथमिक स्तर की शिक्षक पात्रता परीक्षा (टेट) पास नहीं थे। इस तरह लगभग एक लाख सैंतीस हजार शिक्षमित्रों का समायोजन रद्द होने के बाद सहायक अध्यापक के इतने ही पद खाली हो गये। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार योगी सरकार ने क्रमश: 68500 और 69000 दो भर्तियों का विज्ञापन जारी किया। जिसमें प्रथम भर्ती 68500 में लगभग 51000 सहायक अध्यापकों को नियुक्त किया गया। वहीं 69000 के विज्ञापित लगभग सभी पदों पर सहायक अध्यापकों को नियुक्ति मिली ।

योगी सरकार ने अपने प्रथम कार्यकाल में कुल एक लाख 51 हजार सहायक अध्यापकों के पदों पर नियुक्ति दी। सन्-2020 में 69000 शिक्षकों की नियुक्ति के समय ही सुप्रीम कोर्ट में योगी सरकार ने हलफनामा देते हुए बताया कि प्रदेश में कुल 51112 सहायक अध्यापकों के पद रिक्त हैं। लेकिन दिसंबर-2018  के बाद से प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक पद के लिए सरकार की ओर से कोई विज्ञापन जारी नहीं किया गया है। जबकि अनुमानित प्रति वर्ष लगभग 15 हजार शिक्षक सेवानिवृत हो रहे हैं। यानी पिछले पांच वर्षों में अनुमानित लगभग 70 हजार शिक्षक सेवानिवृत हो चुके हैं जबकि उनकी जगह पर नए शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं की गई।

वहीं दूसरी ओर योगी सरकार अपने विज्ञापनों में दावा करती रहती है कि उनकी सरकार में आने के बाद निरंतर रूप से छात्रों का नामांकन दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। सवाल यह है कि यदि छात्रों का नामांकन बढ़ रहा है तो शिक्षकों की संख्या क्यों नहीं बढ़ाई जा रही है?

यदि हम 2012 से 2017 के बीच शिक्षक भर्ती के आंकड़ों पर नजर डालें तो हमें मिलता है कि भाजपा सरकार से अधिक शिक्षकों की भर्ती समाजवादी पार्टी की सरकार में हुई। नवंबर 2011 में 72825, अक्टूबर 2012 में 9770, अप्रैल 2013 में 10800, जुलाई 2013 में 29334, अगस्त 2013 में 4280, अक्टूबर 2013 में दस हजार, दिसंबर 2014 में 1500, जनवरी 2016 में 3500, जून 2016 में 16448, और दिसंबर 2016 में 12460 में शिक्षक भर्ती आई।

टीजीटी, पीजीटी एवं एडेड कॉलेजों में शिक्षक भर्ती की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों में से एक मनोज का कहना है कि ‘उत्तर प्रदेश में नए शिक्षा आयोग के गठन की तैयारियों ने सभी भर्तियों पर लंबे अरसे से विराम लगा दिया है। मनोज कहते हैं कि माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन आयोग से अंतिम भर्ती अक्टूबर 2021 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार पूरी हुई, लेकिन उसके बाद से तीसरा साल चल रहा है और अभी तक टीजीटी, पीजीटी की कोई भी भर्ती अपने आखिरी अंजाम तक नहीं पहुँच सकी।’

दूसरी ओर यही स्थिति कमोवेश एडेड कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति की है जिसका अंतिम परिणाम जुलाई 2022 में आया था। उसके बाद से एडेड कॉलेजों के शिक्षकों की कोई भी भर्ती फाइनल नहीं हो सकी है।

लाखों छात्रों को शिक्षक भर्ती का इंतजार

 उत्तर प्रदेश में बीटीसी/डीएलएड पास लगभग दस लाख छात्र प्राथमिक शिक्षक भर्ती का इंतज़ार कर रहे हैं। यदि इसमें बीएड पास छात्रों की संख्या भी जोड़ दी जाय तो यह संख्या बीस लाख के आस-पास पहुंच जाएगी।

डीएलएड संयुक्त प्रशिक्षित मोर्चा के संयोजक रजत सिंह कहते हैं, ‘पांच साल पहले 2017 में बीटीसी का नाम बदलकर डीएलएड कर दिया गया। सरकार ने चालाकी दिखाते हुए इसे डिप्लोमा कोर्स बना दिया। बीटीसी की पहले पूरे प्रदेश में 80 हजार सीटें होती थीं, डीएलएड होने के बाद सीटों की संख्या दो लाख के ऊपर पहुंच गई। सीटें बढ़ी, छात्र बढ़े लेकिन कोई भर्ती नहीं निकली। जबतक यह बीटीसी था तबतक इसके तहत सरकार को भर्ती देना पड़ता था। प्रति वर्ष प्रशिक्षण पूर्ण होने के बाद शिक्षक भर्ती कराई जाती थी लेकिन पिछले पांच सालों से कोई शिक्षक भर्ती नहीं आई है।’

सुल्तानपुर जिले के रहने वाले सच्चितानंद मिश्रा ने तीन साल पहले बीटीसी पास किया लेकिन प्राथमिक शिक्षक की कोई भर्ती नहीं आई। आर्थिक तंगी से परेशान सच्चितानंद ने प्राइवेट कम्पनी में काम शुरू कर दिया है।

सच्चितानंद कहते हैं, ‘डेढ़ लाख रूपये लगाकर मैंने बीटीसी पास किया, यूपीटेट पास किया लेकिन प्राथमिक शिक्षक भर्ती का कोई अता-पता नहीं है। मज़बूरी में मैंने प्राइवेट कम्पनी में नौकरी शुरू किया। मेरे परिवार की इतनी कमाई नहीं है कि वे हमें अधिक समय तक खर्च देकर इलाहाबाद या बनारस जैसे शहर में पढ़ा सकते। ऐसे हालात सिर्फ मेरे नहीं हैं बल्कि लाखों छात्र इसी तरह की मुसीबतों का सामना कर रहे हैं। मज़बूर होकर बहुत सारे छात्र आत्महत्या की तरफ कदम बढ़ाते हैं।’

मंहगी पढ़ाई करके खाली बैठे हैं लाखों डिग्रीधारी

उत्तर प्रदेश में डीएलएड की कुल दो लाख 33 हज़ार सीटें हैं। जिसमें 10600 सीटें सरकारी प्रशिक्षण संस्थानों में है। शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) की दो सालों की फीस दस हजार रुपये और निजी प्रशिक्षण संस्थानों की फीस लगभग 71 हज़ार रुपये है। वहीं बीएड में कुल दो लाख 53 हज़ार सीटें हैं जिसमें सरकारी संस्थानों की फीस लगभग दस हजार जबकि निजी संस्थानों की फीस पचास हजार से अधिक है।

जौनपुर के रहने वाले विवेक यादव बीएड करके भर्ती का इंतजार कर रहे हैं। विवेक कहते हैं, ‘भर्ती न आने से बेरोजगारी बढ़ रही है। प्रतियोगिता बढ़ती जा रही है। छोटे तबके से आने वाले लोगों के सामने शहर में रहकर पढ़ाई करना दूभर हो रहा है।’

इसी तरह सुधांशु सिंह इलाहाबाद में रहकर पढ़ाई करते हैं। सुधांशु शिक्षक भर्ती न निकालने को लेकर आशंका जाहिर करते हैं कि सरकार प्राथमिक शिक्षकों का पद ठेके पर दे देना चाहती है इसलिए पिछले पांच सालों से कोई भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं कर रही है।

सुधांशु कहते हैं, ‘2018 में लास्ट 69000 शिक्षक भर्ती आई थी। उसके बाद से प्राथमिक  विद्यालयों में शिक्षक की कोई भर्ती नहीं आई। लगभग बीस से तीस लाख युवा भर्ती का इंतजार कर रहे हैं। सरकार कह रही है कि शिक्षकों का पद रिक्त नहीं है जबकि प्रति वर्ष दस से बारह हजार शिक्षक सेवानिवृत हो रहे हैं। पांच साल में न्यूनतम 50 हजार शिक्षक रिटायर्ड हुए होंगे। यानी 50 हजार सीट रिक्त हुई होगी। असल में सरकार नियमित शिक्षक रखने के मूड में ही नहीं है, ठेके पर शिक्षक रखकर पढ़वाना चाहती है।’

उत्तर प्रदेश सरकार में शिक्षा मंत्री संदीप सिंह प्राथमिक विद्यालयों में सरप्लस शिक्षकों के होने की बात कह रहे हैं। हालांकि इस सन्दर्भ में ‘गांव के लोग’ ने बात करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं हो सकी।

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