
इस नरसंहार की पृष्ठभूमि के बारे में लालू प्रसाद ने 28 मार्च, 1990 को बिहार विधानसभा में जानकारी दी थी। उन्होंने बताया था कि इस घटना के मास्टरमाइंड जगदीश शर्मा थे, जो कि वहां के विधायक थे। चुनावी लाभ के लिए उन्होंने लोगों पर दबाव बनाने के लिए गुंडे भेजे थे। अपने इसी संबोधन में लालू प्रसाद ने दो बातें कही थीं। पहली यह कि हमारा निर्णय सेक्रेटेरियट में बैठकर नहीं होना चाहिए और दूसरी यह कि हथियार का लाइसेंस का आधार केवल आर्थिक नहीं होगा तथा अब सभी गरीब-मजलूम जो बेदाग होंगे, उनको दिया जाएगा।
ज्योफ्री डेवलपमेंट का अर्थ सामने रखते हैं। वे आधारभूत संरचनाओं यानी सड़क और पुल आदि के निर्माण को विकास की परिधि में रखते तो हैं, लेकिन तवज्जो नहीं देते। उनके लिए सामाजिक विकास की अलग अवधारणा है जो उन्होंने बिहार की राजधानी पटना के नजदीक एक गांव में रहकर महसूस किया और फिर उसे कलमबद्ध किया। उन्होंने यह लिखा है कि लालू प्रसाद के राज में किस तरह से मूक समाज ने हुंकार भरना सीखा। पिछड़े वर्ग की जातियों में राजनीतिक चेतना का उभार इस तरह हुआ कि सभी सत्ता में हिस्सेदार बने। फिर 1979 में कर्पूरी ठाकुर के आरक्षण के कारण अति पिछड़ा वर्ग भी आगे बढ़कर अपना हक लेने को आगे बढ़ा।

नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
[…] अलबेले लालू प्रसाद (डायरी 10 जून, 2022) […]