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किशन पटनायक के चिंतन में अच्छी राजनीति का विकल्प बचा हुआ था
किशन पटनायक विकास के विनाशकारी मॉडलों का विरोध करने वाले आंदोलनों में सक्रिय रहे, कभी अपने स्वास्थ्य की परवाह नहीं की। एक सच्चे दार्शनिक की तरह निरंतर लिखते और सोचते रहे। वे एक लोकतांत्रिक समाजवादी थे, इसमें कोई शक नहीं, लेकिन उन्होंने अपने लेखों या भाषणों में कभी किसी नेता का हवाला देते नहीं देखा। सच्चे अर्थों में एक स्वतंत्र विचारक थे। ‘विकल्पीन नहीं है दुनिया’ से लेकर ‘भारत शूद्रों का होगा’ तक, समाजवाद, किसानों के मुद्दे, सांप्रदायिकता, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और लैंगिक संबंधों को कवर करने वाली उनकी रचनाएँ, विचारों की मौलिकता को दर्शाती हैं। पढ़िये, उनके साथ बिताए लेखक के अनुभव और संस्मरण।
भाजपा शासन के ग्यारह वर्ष : संविधान और धर्मनिरपेक्षता का लगातार दमन
सवेरा -
पिछले 11 वर्षों से केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारों पर नियंत्रण रखते हुए, ये ताकतें संविधान के तीन स्तंभों..धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और संघवाद को कमज़ोर करने और उसकी जगह समाज के एक अंधकारमय, मध्ययुगीन दृष्टिकोण पर आधारित एक फ़ासीवादी हिंदू राष्ट्र स्थापित करने के लिए जी-जान से जुटी हैं।
हिंदुत्ववादी राजनीति ने इतिहास के पाठ्यक्रम से गायब किया मुस्लिम शासन का पाठ
भारतीय शिक्षा प्रणाली पर हिंदू साम्प्रदायिक तत्वों के पहले भी आरएसएस के साम्प्रदायिक संस्करण के माध्यम से प्रतिभाओं, एकल संप्रदायों और शैक्षणिक संस्थानों को बढ़ावा दिया जा रहा था। एनसीईआरटी की इतिहास की किताब से कक्षा सात से मुगलकालीन शासकों का पाठ हटाकर कुम्भ मेला का पाठ शामिल किया गया।
पहलगाम त्रासदी : आतंकवाद के चलते क्या कभी कश्मीर में शान्ति संभव हो पाएगी
आतंकवाद का खात्मा कैसे हो सकता है? स्थानीय लोगों को राज्य के मामलों से दूर रखने का निरंकुश तरीका आतंकवाद से निपटने में सबसे बड़ी बाधा है। सुरक्षा में बार-बार विफल होना, पुलवामा और अब पहलगाम में सुरक्षा व्यवस्था का विफल होना गहरी चिंता का विषय है।
क्या नेहा सिंह राठौर पर एफआईआर से आतंकवाद की कमर टूट जाएगी
नेहा राठौर और लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ माद्री ककोटी उर्फ डॉ मेडुसा के ऊपर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर लिया गया। गोदी मीडिया और भाजपा के ट्रोल ने उनके खिलाफ ज़हर उगलना शुरू कर दिया है।न तो नेहा राठौर और न ही माद्री ककोटी ने इस मामले में कोई खेद व्यक्त किया बल्कि नेहा लगातार आलोचना जारी रखे हुये हैं। एक वीडियों में उन्होंने गोदी मीडिया को देश का गद्दार और अपराधी भी कहा।
धर्म, अंधविश्वास और अखबार डायरी (4 अगस्त, 2021)
धर्म को जो बातें जिंदा रखती हैं, उनमें भय और आस्था सबसे महत्वपूर्ण हैं। भय का महत्व इसलिए कि बिना भय के कोई भी...
नामवरों की बात डायरी (3 अगस्त, 2021)
जाति भारतीय समाज की सच्चाई है। इसे बीमारी कहना भी उचित ही है। इस बीमारी से सभी ग्रस्त हैं। फिर चाहे वह सरकार हो,...
मैंने आजतक किसी सवर्ण महिला को डायन प्रथा का शिकार होते नहीं देखा डायरी (2 अगस्त, 2021)
दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है और ना ही किसी को स्थायी होना चाहिए। यह बहुत बुनियादी बात है मानव सभ्यता के मामले...
‘आत्मा’ के भंवरजाल से बाहर निकले देश डायरी (1 अगस्त, 2021)
शब्द बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। बाजदफा तो कोई एक शब्द ऐसा होता है जिसका असर आदमी के पूरे जीवन पर रहता है। असर कहने...
मक्खलि गोशाल और बुद्ध डायरी (31 जुलाई, 2021)
जीवन में प्रश्नों की महत्वपूर्ण भूमिका है। बाजदफा तो लगता है कि प्रश्न और जीवन दोनों एक-दूसरे के पर्याय हैं। प्रश्नों को यदि प्राणवायु...
अमरदेसवा में बेखौफ आंखें ( डायरी जुलाई, 2021)
पत्रकार के रूप में मेरे प्रारंभिक दिन कमाल के थे। तब हर खबर से रोमांच होता था। खासकर उन खबरों से जिनमें मेरा नाम...