डॉ. सुरेश खैरनार
लेखक चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।
विचार
मौलाना आजाद : अखंड भारत के प्रबल पैरोकार, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में विशेष काम किया
मक्का में पारंपरिक मुस्लिम तौर-तरीकों से तालीम होने के बाद भी मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने भारत में आईआईटी, यूजीसी , बंगलोर की विश्व स्तरीय विज्ञान संस्थान के लिए पर्याप्त मात्रा में संसाधनों की व्यवस्था करने का ऐतिहासिक काम किया। ये आज़ाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने और दस वर्ष तक इस पद पर रहे। शिक्षा के क्षेत्र में विशेष काम करने के कारण, हर वर्ष 11 नवम्बर उनके जन्मदिन को ‘राष्ट्रीय शिक्षा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
राष्ट्रीय
अमर्त्य सेन के बहाने फासिस्ट मंसूबों के खिलाफ एक सोच
अमर्त्य सेन को 1998 में "कल्याणकारी अर्थशास्त्र में उनके योगदान के लिए" अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे आज भी सक्रिय हैं। वे कभी भी नरेन्द्र मोदी को प्रधानमन्त्री के रूप में देखना नहीं चाहते थे, यह बात उन्होंने अपने एक साक्षत्कार में कही थी, जिसके बाद विरोधियों ने उनसे भारत रत्न वापस कर देने की बात कही। देश में चल रही फासिस्टों की सरकार ने उन्हें लगातार प्रताड़ित कर डराने और दबाने की कोशिश की, यहाँ तक कि उन्हें उनके पैतृक आवास से बेदखल करने की भी कोशिश की गई। आज उनके 92वें जन्मदिन पर याद करते हुए डॉ सुरेश खैरनार का लेख
विचार
भागलपुर से बहराइच तक : दंगों की राजनीति में आरएसएस पिछड़ी जाति के लोगों को कमान सौंपता है
वर्ष 1947 में भारत-पाक विभाजन के बाद से देश में मुसलमानों को लेकर हिंदूवादी संगठनों ने लगातार कट्टरता दिखाई। जब-जब मौक़ा मिला, तब-तब निशाना बनाया। इन दंगों को कराने में साम्प्रदायिक नेताओं, प्रशासन और सोशल मीडिया की अहम् भूमिका होती है। ध्रुवीकरण की राजनीति को साधने के लिए धार्मिक दंगे कराये जाते रहे हैं और आगे कब तक जारी रहेंगे कह नहीं सकते। खैरलांजी से लेकर भागलपुर, गुजरात तक के दंगों में, प्रत्यक्ष भागीदारी ज्यादातर पिछड़ी जातियों के लोगों की रही है। जब तक जाति उन्मूलन के लिए काम करने वाले लोग इस पर संज्ञान नहीं लेंगे, दंगों की परंपरा जारी रहेगी।
विचार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सौ साल : सांप्रदायिकता के एजेंडे से भारतीय सामाजिकता को बांटने का हासिल
राष्ट्रीय सेवक संघ अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। हिन्दू राष्ट्र के अपने झूठे संकल्प को पूरा करने के लिए संघ हिन्दू-मुस्लिम का खेल लगातार खेल रहा है। वर्ष 2002 में गुजरात में प्रायोजित गोधरा दंगों के बाद भाजपा ज्यादा मजबूती से ध्रुवीकरण करने में सफल रही है। लगातार अल्पसंख्यक समुदायों, किसानों, आदिवासियों और महिलाओं पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष हमले करवाकर उन्हें भयभीत कर रही है। बोलने वालों को जेल और अपने साथ खड़े होने वालों को ऊंचा पद दे सम्मानित कर रही है। 'सबका साथ सबका विकास' की जगह ' सबका साथ अपना विकास' का नारा मजबूत हो रहा है। संघ और भाजपा ने इन सौ वर्षों में और क्या कुछ किया, इसके आकलन के लिए पढ़िए डॉ सुरेश खैरनार का विश्लेषणपरक लेख।
विचार
मानवाधिकार की दुहाई देने वाले अमेरिका और इंग्लैंड, युद्ध में इजरायल की क्रूरता को लेकर मौन क्यों हैं?
दो देशों के बीच होने वाले युद्ध से युद्ध ग्रसित क्षेत्र में जो तबाही होती है, उससे मानव पूंजी पर तात्कालिक और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इससे कौशल की हानि होती है, विस्थापन होता है और मानसिक आघात होता है, जिससे उबरने में वर्षों लग सकते हैं, यदि कभी उबर भी पाएं तब।
राष्ट्रीय
क्या पूना पैक्ट में गाँधी को जबरन खलनायक बनाया गया है?
आज से 92 साल पहले 26 सितंबर, 1932 के दिन ऐतिहासिक पूना समझौते पर यरवदा जेल के अंदर हस्ताक्षर हुए थे। हमेशा की तरह, इस समय भी उस पैक्ट को लेकर कुछ लोग गलतबयानी करते थे। बाद में गलतबयानी भी तथ्य की तरह स्थापित हो गई। अस्सी के बाद के दशकों में तो यह प्रवृत्ति इतनी परवान चढ़ी कि गांधी इसके एकतरफा खलनायक बना दिये गए। फिर भी आज पूना पैक्ट की 92वीं सालगिरह पर कुछ बात करना जरूरी है।
राजनीति
इंडिया गठबंधन के शिल्पकार सीताराम येचुरी
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव तथा शीर्ष वामपंथी नेता सीताराम येचुरी का निधन हो गया। छात्र-जीवन से राजनीति में आये येचुरी आजीवन अपने विचारों और जनसरोकारों के लिए जाने जाते हैं। परमाणु उर्जा समझौते के विरोध में वामपंथियों ने यूपीए गठबंधन से समर्थन वापस ले लिया था। उसमें येचुरी की मुखरता पूरी दुनिया ने देखी थी। वह इंडिया गठबंधन के प्रमुख शिल्पकार थे। उनके प्रति श्रद्धांजलि प्रकट कर रहे हैं जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक डॉ सुरेश खैरनार।
राजनीति
भारत में बुलडोजर की राजनीति इज़राइल से आई है
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए, दो सिंतबर, सोमवार को साफ-साफ शब्दों में कहा कि 'अगर कोई व्यक्ति आरोपी है तो प्रॉपर्टी गिराने की कार्रवाई कैसे की जा सकती है? जस्टिस विश्वनाथ और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने कहा कि ‘अगर कोई व्यक्ति दोषी भी हो तब भी ऐसी कार्रवाई नहीं की जा सकती है।' जमीयत ने आरोप लगाया है कि ‘बीजेपी शासित राज्यों में मुसलमानों के ऊपर कार्रवाई की जा रही है।' जबसे उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और अब मोहन यादव ने मुख्यमंत्री का पदभार संभाला, उनके भीतर जैसे कोई स्पर्द्धा चल रही है कि सबसे उग्र हिंदूत्ववादी कौन है?।
विचार
ए जी नूरानी : सांप्रदायिकता के खिलाफ एक साहसी और कद्दावर वकील
देश के प्रसिद्ध संविधान विशेषज्ञ और न्यायविद ए जी नूरानी का निधन मुम्बई स्थित उनके आवास पर हो गया। वह विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित कानूनी और राजनीतिक घटनाक्रमों पर अपने लेखों के लिए जाने जाते हैं। हमारे देश ने आज मानवाधिकारों के एक महान वकील को खो दिया है। मैं व्यक्तिगत रूप से अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
विचार
अपराधों का सेलेक्टिव विरोध और समर्थन भाजपा की रणनीति है
बंगाल, बिहार, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और अब महाराष्ट्र में एक हफ्ते में हुई रेप की घटनाओं के बाद यदि विश्लेषण करें तो मालूम होगा कि त्वरित कार्रवाई वहीं हुई जहां जनता ने दबाव बनाया। बंगाल को छोड़कर सभी प्रदेश भाजपा शासित हैं या फिर वहाँ भाजपा समर्थित सरकारें हैं। जब-जब भाजपा शासित प्रदेशों में घटनाएं हुईं, वहाँ सरकार किसी तरह का कोई कार्रवाई न कर अपराधी को संरक्षित किया है। सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा की मानसिकता अपराधी या गुनहगार को बचाकर ऐसे अपराधों को सीधे-सीधे बढ़ावा देना नहीं है?
राजनीति
बंगलादेश की आड़ में महाराष्ट्र चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण का खेल शुरू कर चुके हैं सांप्रदायिक दल
भाजपा का यह रिकॉर्ड रहा है कि जब-जब केंद्र या राज्यों में चुनाव होना होते हैं, वे ऐसी परिस्थिति पैदा कर देते हैं ताकि धार्मिक ध्रुविकारण का पूरा लाभ मिल सके। अभी हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद जिस तरह की स्थितियाँ पैदा हुई हैं, उसके लिए वे चिंतित कम नजर आ रहे हैं बल्कि महाराष्ट्र चुनाव में वहाँ के हिंदुओं को लेकर धार्मिक ध्रुवीकरण का खेल शुरू कर चुके हैं।
विचार
बुद्धदेव भट्टाचार्य : मैंने उन्हें हरदम सर्वहारा की कसौटी पर जीते देखा
पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के नहीं रहने पर मीडिया में लोग अपने-अपने तरीके श्रद्धांजलि दे रहे हैं। वे पक्के कम्युनिस्ट थे, विचार से भी और कर्म से भी। उनके कुछ संस्मरण यहाँ साझा कर रहे हैं लेखक डॉ सुरेश खैरनार
विचार
आरएसएस का इतिहास देशप्रेम का नहीं है सभापति महोदय..
राज्यसभा संसद में सभापति जगदीप धनखड़ ने सांसद रामजीलाल सुमन द्वारा आरएसएस का नाम लेने पर आपत्ति दर्ज कराते हुए आरएसएस को देशसेवा करने वाली ईकाई कहा। चूंकि धनखड़ महोदय खुद आरएसएस से तैयार हुए हैं, ऐसे में उसकी तारीफ करना उनका फर्ज बनता है जबकि महात्मा गांधी की हत्या से लेकर देश में हुए अनेक दंगों में उसकी क्या भूमिका रही है सभी जानते हैं।
राजनीति
संविधान का उल्लंघन करने वाले ही घोषणा कर रहे हैं संविधान हत्या दिवस मनाने का
संविधान की धज्जियां उड़ाने वाली वर्तमान केंद्र सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने की घोषणा की है। इनका कहना है कि 1975 में 25 जून को आपातकाल का लगाया जाना संविधान की हत्या करना ही था। यह आपातकाल एक बार लगा था लेकिन वर्ष 2014 से जब से भाजपा सरकार सत्ता में है, तब से पूरे देश में अघोषित आपातकाल लगा हुआ है और देश के संविधान के विरुद्ध ही सभी निर्णय लिए जा रहे हैं। सवाल यह है कि ऐसे में संविधान हत्या दिवस की घोषणा करना क्या उचित है?
विचार
देश की संस्कृति, सभ्यता, इतिहास पर हमला करने वाले कब नियंत्रित होंगे?
वर्ष 2014 में बीजेपी के आ जाने के बाद संघ और मजबूती से अपनी रणनीतियों को लागू करने की तेजी दिखा रही है। एक तरफ संविधान बदलकर हिन्दू राष्ट्र बनाने की जल्दी है, वहीं दूसरी तरफ देश की शिक्षा व कानून में बदलाव कर उसे अपने कब्जे में करने की रणनीति तैयार की जा रही है।
विविध
टेबल पत्रकारिता के दौर में गौर किशोर घोष की याद
जाने-माने पत्रकार गौर किशोर घोष की आज जयंती है। लेखक गौरदा के गहरे मित्र रहे हैं। उन्हें करीब से जानने और साथ रहने का मौका मिला। उन्होंने साथ रहते हुए उन्हें जाना। उन्हीं बातों को लेकर एक संस्मरणात्मक लेख।
विचार
दिल्ली के उप राज्यपाल वी के सक्सेना की संस्था एनसीसीएल ने गुजरात में मानवाधिकार के लिए क्या किया?
दिल्ली के वर्तमान राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना का गुजरात में नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज (एनसीसीएल) नाम से एक एनजीओ था। नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में इस एनजीओ ने मानवाधिकार के खिलाफ जाकर सरकार के पक्ष में काम किया और शायद इसी का इनाम है कि उन्हें दिल्ली का उप राज्यपाल बना दिया गया। अरुंधति रॉय और मेधा पाटकर के खिलाफ पुराने मामले निकालकर केस करने को लेकर सामाजिक चिंतक डॉ सुरेश खैरनार ने कुछ सवाल उठाते हुए एक खुला पत्र लिखा
विचार
एक वर्ष बाद मणिपुर पर दिए बयान से संघ और संघ प्रमुख मोहन भागवत का पाखंड सामने आया
18वीं लोकसभा में 400 पार का दावा करने वाली भाजपा 240 सीट पर ही सिमट गई। मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने लेकिन 32 सीटें गठबंधन से उधार लेकर। ऐसे में भाजपा के मातृ दल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को एक वर्ष बाद मणिपुर हिंसा की याद आई और एक कार्यक्रम में बयान दिया 'मणिपुर में पिछले एक वर्ष से अधिक समय से शांति की राह देख रहा है। इस पर प्राथमिकता से विचार करना चाहिए।' इस बयान से संघ, संघ प्रमुख और संघ से जुड़े सभी संगठनों की मानसिकता एक बार फिर सामने आई।
विविध
पंडित जवाहरलाल नेहरू : लोकतन्त्र को शासन व्यवस्था नहीं बल्कि एक संस्कार मानते थे
आज देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की 60वीं पुण्यतिथि है। नेहरू जी केवल प्रधानमंत्री ही नहीं थे बल्कि वे आधुनिक भारत के निर्माता थे। वे भारतीय राष्ट्र के समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष के प्रणेता माने जाते हैं । उन्होंने 1947 के बाद देश को किस तरह आगे ले जाना है इसकी बेहतर नींव रखी। लोकतन्त्र को केवल शासन-व्यवस्था नहीं, एक संस्कार मानते थे। वे स्वयं को देश का प्रधान सेवक मानते थे लेकिन आज के प्रधानमंत्री की तरह नहीं।
राजनीति
नब्बे साल की यात्रा में कहाँ पहुंचा भारतीय समाजवाद
आजादी से पहले से लेकर आजतक अनेक समाजवादी दलों का गठन हुआ लेकिन उनमें शामिल लोग खुद को समाजवादी होने दावा करते हुए दलों को तोड़कर या उससे अलग होते हुए किसी न किसी तरह संघ का साथ दिए।
राजनीति
पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह चुनावी मंचों से मातृशक्ति और स्त्री सशक्तिकरण के खोखले दावे करते हैं
अपने चुनावी भाषणों में देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री देश की महिलाओं को मातृ शक्ति का दर्जा दे सम्मान की बात कर रहे हैं लेकिन उनके मुंह से भाजपा के कथित गुंडों और बलात्कारियों द्वारा की गई करतूतों पर एक बोल नहीं निकलता। आरएसएस की शाखाओं में शामिल होने वाले युवाओं को कभी नारी सम्मान की बात नहीं सिखाई जाती।
विचार
गैर कांग्रेसवाद के गर्भ से निकली सांप्रदायिक सरकार के मुखिया की हताशा क्या कहती है?
सन 1950 से 1977 अर्थात 27 सालों में जनसंघ को सिर्फ छह प्रतिशत मतदाताओं ने पसंद किया था लेकिन 1963 के बाद डॉ. राम मनोहर लोहिया के गैर कांग्रेसी राजनीतिक कदम के चलते शिवसेना से लेकर मुस्लिम लीग और जनसंघ जैसे घोर सांप्रदायिक दलों के साथ गठजोड़ की वजह से जनसंघ को बहुत लाभ हुआ। इस लेख में जाने-माने लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ सुरेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक विरासत के बहाने उनकी हताशा पर बात कर रहे हैं।
विचार
प्रधानमंत्री मोदी पद की गरिमा के प्रतिकूल बातें क्यों कर रहे हैं?
वर्ष 2014 के बाद देश की स्थिति से सभी वाकिफ हैं। बीजेपी ने सांप्रदायिक घृणा फैला कर ध्रुवीकरण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और इस काम का नेतृत्व किसके हाथ में है, सभी जानते हैं। इन्हीं बातों को उल्लेखित करते हुए डॉ सुरेश खैरनार ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम खुला पत्र लिखा।
विचार
पाखंड को बढ़ावा देने वाली पार्टी है भाजपा, अवैज्ञानिक सोच और धार्मिक कट्टरता का कर रही प्रसार
केंद्र की राजनीति में भाजपा भले ही सबसे बड़े दल के रूप में स्थापित हो लेकिन जनता के लिए उसने केवल धार्मिक नेरेटिव गढ़ने के अलावा कोई काम नहीं किया। जिसके परिणामस्वरूप देश के हर धर्म में कट्टरता सिर चढ़कर बोल रही है।
विचार
वर्तमान राजनीति को समझने के लिए जरूरी है कार्ल मार्क्स को याद करना
कार्ल मार्क्स अर्थशास्त्र का अध्ययन करने के लिए समय निकालने के लिए हमेशा आतुर रहते थे। उन्होंने अपने जीवन के कुल पैंसठ साल के जीवन में से लगभग चालीस साल से भी ज्यादा समय समाजवाद के चिंतन और उसके अनुसार आदर्श समाज की स्थापना के लिए लगा दिया।
राष्ट्रीय
भारत की राष्ट्रमाता की भूमिका निभाई थी सावित्रीबाई फुले ने
एक सावित्री पुराणों में हैं, जहां उनके द्वारा अपने पति के प्राण तक वापस लाने की कहानी बचपन से ही सुनते आ रहे हैं। यह आधुनिक युग की सावित्री, जिसने स्त्री-शूद्र तथा पददलित लोगों के लिए शिक्षा की शुरुआत की, जिसने निष्ठा के साथ जो काम किया। इन्हीं सावित्री बाई फुले की आज 139वीं पुण्य तिथि है।
विचार
संदेशखाली और आमार शोनार बांगला की सच्चाइयाँ : मोदी जी की संवेदना कहाँ है
दो लाख आबादी वाले संदेशखाली की घटनाओं का राजनैतिककरण में भाजपा ने पूरा दम लगा दिया है। मोदी से लेकर केंद्रीय मंत्रियों और राज्यपाल तक ने इसका संज्ञान लिया। लेकिन आज से 22 वर्ष पहले हुए गोधरा के दंगों को भूल जाते हैं जबकि उन दिनों मोदी खुद वहाँ मुख्यमंत्री थे। दंगे में हजारों लोगों का कत्ल हुआ, घर जला दिये गए। महिलाओं के साथ गैंगरेप हुआ।
विचार
गुजरात दंगा : बाइस साल बाद भी गोधरा के सवाल खत्म नहीं हुये हैं
यात्रियों में 1700 कारसेवक थे, जो अयोध्या से वापस आ रहे थे। हर स्लीपर कोच की तरह एस-6 कोच की क्षमता भी 72 यात्रियों की थी लेकिन 27 फरवरी 2002 के दिन पूरा कोच खचाखच भरा हुआ था और गोधरा स्टेशन पर कोच के बाहर भी दो हजार लोग थे। गोधरा के मुसलमानों ने पूरी ट्रेन को घेरकर सिर्फ एस-6 कोच को आग लगा दी। क्यों? क्या यह प्रश्न मन में उठना जरूरी नहीं है?
राजनीति
क्या संदेशखाली भाजपा के लिए बंगाल में बड़ी जीत का रास्ता तय करेगा
चुनाव आते ही भाजपा सांप्रदायिक भाईचारे को बिगाड़ने की शुरुआत कर देती है। इस बार लोकसभा की ज्यादा सीट हासिल करने के लिए बंगाल के संदेशखाली में उपद्रव मचाने का काम शुरू कर दिया है। विस्तार से जानने के लिए पढ़िए यह लेख
विचार
सर्वोच्च न्यायालय का चुनावी बॉन्ड रद्द करने का फैसला बीजेपी के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है
बीस राजनानैतिक दलों ने चुनावी बॉन्ड से चन्दा उगाही की है। केवल माकपा ने चंदा भी नहीं लिया और कोर्ट में इस गोरखधंधा को उजागर करने के लिए चुनौती दी है।सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी बॉन्ड रद्द करते हुए मतदाताओं के पक्ष में कहते हुए फैसला दिया कि कंपनियां भारी फंडिंग करती है, तो क्या निर्वाचित लोग मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी होंगे?
विचार
आडवाणी को भारतरत्न देने से इस सम्मान का मूल्य कम हुआ है
जिन्होंने बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि विवाद शुरू करते हुए 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विध्वंस कराया और संपूर्ण देश में सिर्फ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण किया।...
सामाजिक न्याय
22 जनवरी ग्राहम स्टेंस और उनके दो मासूम बच्चों को ज़िंदा जलाने का काला दिन भी था
फादर ग्राहम स्टेंस और उनके मासूम बच्चों की हत्या को हिन्दू जाति-व्यवस्था के ऊपरी सतह पर रहनेवाले लोगों की धार्मिक घृणा का परिणाम मानना चाहिए। इस घृणा का राजनीतिक स्वरूप यह है कि वर्तमान समय में तथाकथित हिंदुत्ववादी धर्मसंसद खुलेआम अल्पसंख्यकों की हत्या को अपना एजेंडा बनाकर पेश करती है। वह संसद से लेकर संविधान की धज्जियाँ उड़ा रही है। इनके खिलाफ शांति-सद्भावना के साथ सर्वधर्म समभाव को मानने वाले लोगों ने इकठ्ठा होकर सक्रिय रूप से गतिशील होने की जरूरत है।
विचार
कांग्रेस ने ही बोए थे भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने वाले सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बीज
कांग्रेस पार्टी की कुछ बुराइयां शुरुआत से है। उदाहरण के लिए जाति, धार्मिक और वैयक्तिक मिल्कियत जैसे विषयों पर शुरुआत से ही गफलत चली आ रही है। उसके पीछे शुद्ध रूप से सवर्ण समाज से आई हुई लीडरशिप है।
संस्कृति
कठमुल्लावाद और सांप्रदायिकता के विरोधी थे मुस्लिम सत्यशोधक समाज के संस्थापक हमीद दलवाई
कोंकण क्षेत्र के छोटे से गाँव में हमीद ने उम्र के 14वें साल में सिर्फ 9 साल पहले शुरू किए गए राष्ट्र सेवा दल नाम के बच्चों के संगठन में शामिल हुए। 25 साल अपनी जान जोखिम में डालकर वे महात्मा जोतिबा फुले की तरह सामाजिक जागृति के काम में लगे रहे।
संस्कृति
सनातन के हर शोषित-पीड़ित को सनातन को उखाड़ फेंकने का अधिकार है
भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाई हिंदू धर्म में उदारवाद और कट्टरता की है, पिछले पांच हजार सालों से भी अधिक समय से चल रही है। उसका अंत अभी भी दिखाई नहीं पड़ता। इस बात की कभी कोशिश भी नहीं की गई। इस लड़ाई को मद्देनजर रखकर हिंदुस्तान के इतिहास को देखा जाए तो देश में जो कुछ भी होता है, उसका बहुत बड़ा हिस्सा इसी कारण होता है
राजनीति
सांप्रदायिक सोच के खिलाफ थे जहीरुद्दीन अली खान
जहीरुद्दीन अली खान का निधन मेरे लिए दुखद है। हाल के दो महीने में मैं आधा दर्जन मृत्यु-लेख लिख चुका हूँ। कल ही गदर की स्मृति में लिखी पोस्ट में मैंने उल्लेख किया था कि 'मेरी और गदर की भेंट जहीरुद्दीन अली खान के अखबार सियासत के हैदराबाद स्थित दफ्तर में पंद्रह साल पहले हुई थी।'
राजनीति
मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय धनंजय चंद्रचूड़ के नाम खुला पत्र!
कुछ माह पहले राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी गई। यह निर्णय किस संविधान के तहत लिया गया। सभी का नाम मोदी क्यों होता है? इस बात में क्या आपत्तिजनक है। कौन से कानून के अनुसार राहुल की लोकसभा की सदस्यता समाप्त हो जाती है? यह हमारी सभी संवैधानिक संस्थाओं का फेल्युअर है।
राजनीति
भारत के अतिविशाल भूतकाल और असीमित भविष्यकाल के बीच सेतु थे राजा राममोहन राय
सामाजिक परिवर्तन में राजा राममोहन राय एक बड़ा नाम थे, जिन्हें कट्टरपंथियों के विरोध के बावजूद आज स्त्री शिक्षा से लेकर, सती हो जाने की कुप्रथाओं को रोकने के लिए इन्हें याद किया जाता है।
राजनीति
त्र्यंबकेश्वर मंदिर में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति
हिंदुत्ववादी संगठन जो लगातार धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं। देश में मंदिर की राजनीति ज़ोरों पर हैं।
सामाजिक न्याय
फुले दम्पति को सामाजिक क्रांति का नायक बनाने वाली पुरखिन
ज्योतिबा फुले की व्यक्तिगत जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी जिस कारण उन्हें तत्कालीन सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ काम करने की प्रेरणा और सामान्य से अधिक अध्ययन का मौका मिला। सगुणाबाई ने ज्योति को अच्छी शिक्षा-दीक्षा देने के लिए मिस्टर जॉन की भी मदद ली। सगुणाबाई ने ज्योति-सावित्रीबाई फुले के जीवन को आकार देने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी।