31 जुलाई, बुधवार के दिन राज्यसभा में चल रही कार्यवाही के समय सभापति जगदीप धनखड़ ने समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन के बहस के दौरान नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) के नवनियुक्त अध्यक्ष प्रदीप सिंह खरोला के आरएसएस से जुड़े होने पर सवाल उठाए। जैसे ही सपा सांसद ने यह सवाल उठाया, सभापति जगदीप धनखड़ ने इनके उठाए गए सवाल पर आपत्ति दर्ज करते हुए कहा, ‘इस टिप्पणी को रिकॉर्ड में नहीं आने देंगे। साथ ही कहा कि आरएसएस देश के सेवा में आगे है और संसद में इसका नाम लेने की इजाज़त नहीं है। इनसे संबंध रखने वाले लोग नि:स्वार्थ भाव से काम करते हैं। संघ की साख साफ-सुथरी है, इसकी आलोचना करना संविधान के खिलाफ है।’
सभापति महोदय मुझे नहीं मालूम कि आपके और आरएसएस के कितने करीब से संबंध रहे हैं? लेकिन सन 1965-66 में हाईस्कूल की पढाई करते समय मैं हर शाम संघ की शाखा में जाता था। जहां खेल से लेकर बौद्धिक चर्चा होती और कहानी सुनाते समय बीच-बीच में स्वयंसेवकों को कहा जाता था ‘हिंदुओं का हिंदुस्तान।‘ सभी स्वयंसेवकों को मैदान में एक बड़े गोल में बैठाया जाता, जहां एक-एक स्वयंसेवक को गोले का चक्कर लगाते हुए, एक सांस में ही ‘हिंदुओं का हिंदुस्तान’ बोलना होता। जिसने भी बीच में सांस लेने की गलती की, उसे खेल से आऊट कर दिया जाता। अंत में जो बचता, उसे विजयी घोषित कर दिया जाता।
शाखा में वैसे भी बँटवारे के समय हिंदुओं के साथ हुए अत्याचार को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता, खासकर महिलाओं के साथ हुए अत्याचार की बात सुनकर, मैं आगबबूला हो शाखा से घर वापसी पर जानबूझकर मुस्लिम बस्ती से होते हुए उन्हें अनाप-शनाप बोलते हुए जाता था।
उस मोहल्ले में रहने वाले तांगा चालक, रजाई-गद्दे तैयार करने वाले, बैंड-बाजे या ढोल-ताशे बजाने वाले, कसाई व खटिक लोग, अपने घर के चबूतरों से चुपचाप टुकुर-टुकुर सिर्फ मुझे देखते रहते लेकिन किसी ने भी कभी भी मुझे नहीं टोका और न ही कोई आपत्ति जताई। मुझे लगता मुझ जैसे बहादुर हिंदू स्वयंसेवक को घबराकर कोई भी मुस्लिम व्यक्ति मुझे कुछ नहीं कह रहा है। वास्तविता यह थी यह सभी किसी न किसी तरह से हमारे परिवार में अपने काम के अनुसार सेवाएँ देते रहते थे।
मैं एक मराठा जमींदार परिवार में पैदा हुआ हूँ। हमारा बड़ा संयुक्त परिवार था। इस कारण हमारे घर से कई प्रकार की जरूरतों के लिए इस बस्ती में रहने वालों का आना-जाना था। जिनमें से अधिकतर लोग खेतों में काम करने के लिए आते थे। बकरे का मांस काटने के बाद हमारे घर पर ताजा मांस पहुचाने वाले खाटिक, घर के जरूरत के हिसाब से रजाई-गद्दे बनाकर पहुंचाने वाले पिंजारी, घर में हो रहे शादी-ब्याह या अन्य अवसरों पर बैंड-बाजे बजाने वालों का आना-जाना था। इस कारण शाखा से लौटते समय मेरे द्वारा दी जाने वाली गाली-गलौज को अनदेखा करते थे। भले उस समय मैं 12-13 साल का रहा होऊंगा लेकिन मुझे लगता था कि वे सब मुझसे डर रहे हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के बाद से ही वे शाखाओं में अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ खेल से लेकर, गीत तथा कथा-कहानी व बौद्धिक चर्चा के माध्यम से स्वयंसेवकों के जेहन में नफरत भरने का काम करते रहे हैं। जिसकी परिणीति दंगा रही है।
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आरएसएस द्वारा किए गए दंगे का लंबा इतिहास है
महोदय यही बात गुजरात के दंगों से लेकर भागलपुर, मेरठ-मुजफ्फरनगर तथा देश के किसी भी हिस्से में हुए दंगों में दिखाई देती है।
1970-72 के दौरान महाराष्ट्र के जलगांव और भिवंडी के दंगों की जांच करने वाले जस्टिस मादान साहब ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा है कि, ‘इन दंगों के लिए प्रत्यक्ष रूप से कौन सहभागी था?’ यह सभी जानते हैं कि कौन था? लेकिन यह दीगर बात है कि सभापति और आप देश के सर्वोच्च सदन के सभापति की कुर्सी पर बैठकर संघ के पाक साफ होने का सर्टिफिकेट दे रहे हैं। यह हमारे देश के संविधान के विपरीत है क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को महात्मा गांधी की हत्या के बाद से लेकर अभी तक अलग-अलग सांप्रदायिक हिंसा के लिए संगठन को बैन भी किया गया। आखिर किसलिए?
मैंने 6 अप्रैल, 2006 को मैंने अपने दो सहकारी मित्रों की मदद से महाराष्ट्र के नांदेड के पाटबंधारे नगर के ‘नृसिंह निवास’ नाम के घर में हुए बम विस्फोट की जांच-पड़ताल की है। यह मकान राजकोंडावार परिवार का था, जो घोर संघी था। इनके घर के सामने संघ की शाखा चलती थी। इस नृसिंह निवास में बम बनाने का काम होता था। एक दिन आधी रात के बाद भयंकर विस्फोट हुआ, जिसमें नरेश राजकोंडावार तथा हिमांशु पानसे नाम के दो स्वयंसेवकों के चिथड़े-चिथड़े हो गए। राहुल देशपांडे नामक स्वयंसेवक बुरी तरह से जख्मी हो गया था।
इस हादसे के दो महीने के भीतर नागपुर के संघ मुख्यालय (पुराना महल की बिल्डिंग) को एक जून 2006 को रात में तीन बजे उड़ाने की कोशिश करने के लिए पाकिस्तान से आए हुए चार फिदायीन पुलिस की मुठभेड़ में मारे जाने की खबर 2 जून को अखबारों में पढ़ने को मिली। यह पढ़ते ही मेरे मन में एक सवाल आया कि यह कौन-सा आतंकवादी संगठन है, जो भारत के सबसे बड़े हिंदुओं के संगठन के मुख्यालय उड़ाने की कोशिश कर रहे थे? मारे गए चार फिदायिनों को आधी रात के अंधेरे में दफनाया गया।
मेरा साफ मानना है कि नागपुर संघ मुख्यालय के तथाकथित फिदायीन हमले की योजना नांदेड़ के संघ परिवार के घर में बम बनाने की करतूतों से ध्यान भटकाने के लिए की गई सुनियोजित तरीके से की गई फर्जी मुठभेड थी। जिसे संघ को यह सब करना पड़ी।
इसी तरह साबरमती एक्सप्रेस के एक कोच की आग में 59 लोगों के जलकर मर जाने के बाद गुजरात में दो हजार से अधिक लोगों में जिसमें अधिकतर मुस्लिम समुदाय के लोग थे को मार दिया गया और उनके परिवार की बहू-बेटियों के साथ बलात्कार किया गया।
और एक आप हैं कि इस संघ के देश की सेवा करने से लेकर उसके निस्वार्थ भाव से काम करने के सर्टिफिकेट दे रहे हैं और इस संघठन के बारे में सभागृह में नाम नहीं तक लेने दे रहे हैं। सवाल है कि क्यों नहीं लेने देंगे?
सभापति महोदय आपको इस संगठन के बारे में कितनी जानकारी है, मुझे मालूम नहीं है लेकिन आपको इस संगठन के सौ साल के काम की जांच-पड़ताल जरूर करना चाहिए। आपको गांधीजी की हत्या से लेकर अब तक के विभिन्न आतंकवाद की घटनाओं में संघ के संलिप्त रहने के आरोप का पता चल जाएगा और अगले साल संघ के शताब्दी समारोह के लिए संघ की देशभक्ति और संविधान के प्रति संघ की निष्ठा के मामले में जो भी विवाद फैले हुए हैं, उसकी साफ-साफ जानकारी हो जाएगी।