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पर्याप्त कर्मचारियों के अभाव में हाँफती भदोही की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था

भदोही। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में छिटपुट बारिश और गर्मी के चलते संचारी (संक्रामक) रोगों का प्रकोप तेजी से फैला हुआ है। लोग-बाग मलेरिया, टायफाइड, चेचक, इन्फ्लुएन्जा, डेंगू, डायरिया और कंजक्टिवाइटिस (नेत्र संक्रमण) से ग्रस्त हो रहे हैं। गौरतलब है कि बरसात और उमस भरे मौसम में यह संक्रामक बीमारियां सबसे ज़्यादा होती हैं। […]

भदोही। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में छिटपुट बारिश और गर्मी के चलते संचारी (संक्रामक) रोगों का प्रकोप तेजी से फैला हुआ है। लोग-बाग मलेरिया, टायफाइड, चेचक, इन्फ्लुएन्जा, डेंगू, डायरिया और कंजक्टिवाइटिस (नेत्र संक्रमण) से ग्रस्त हो रहे हैं। गौरतलब है कि बरसात और उमस भरे मौसम में यह संक्रामक बीमारियां सबसे ज़्यादा होती हैं। ऐसे में झोलाछाप डॉक्टरों के पौ बारह हैं। पूर्वांचल के पिछड़े और ग़रीब जिले में शुमार भदोही की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से झोला-छाप डॉक्टरों के कंधे पर है। जहां-तहां बंगाली, मद्रासी फलाने-ढकाने दवाख़ाना या फार्मेसी के बोर्ड लगे क्लीनिकों में मरीज़ों की भीड़ लगी हुई है।

कोइरौना निवासी लालमणि मौर्य बताते हैं कि उनके क्षेत्र की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था खस्ताहाल है। घंटों लाइन में लगने के बाद नंबर लगाकर डॉक्टर तक पहुंचो, तो वह मरीज़ को देखकर जांच लिख देता है और दवाइयाँ भी। पर वहां कभी जांच किट नहीं होती तो कभी दवाइयाँ नदारद। जब दवाई और जांच दोनों बाहर से ही लेनी-करानी है, तो फिर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र क्यों जाना?

गांव बहुता निवासी दिहाड़ी पेशा रामरतन गौतम बताते हैं कि स्वास्थ्य केंद्र में ओपीडी आदि की एक तय समय सीमा है। जबकि मरीज़ अपने से तो चलकर अस्पताल जाएगा नहीं, उसे कोई एक तीमारदार ही लेकर अस्पताल जाएगा। उसका भी दिन भर का अकाज होता है। दिहाड़ीपेशा आदमी तो रोज कमाएगा तभी रोज़ खाएगा। वहीं दूसरी ओर, निजी अस्पताल या झोलाछाप डॉक्टरों की क्लीनिक पर ओपीडी आदि की कोई तय समय-सीमा नहीं है। आप अपनी सहूलियत के मुताबिक, काम से लौटकर भी मरीज़ को शाम या देर शाम तक भी दिखाने ले जा सकते हो। झोलाछाप डॉक्टर जल्दी जांच नहीं लिखता है, न डॉक्टर का चार्ज लेता है। वह सिर्फ़ दवा देता है और उसके पैसे लेता है। एक तो दलित बहुजन दिहाड़ीपेशा समुदाय के लोग जांच आदि के भारी-भरकम ख़र्च से बच जाते हैं। चूंकि यह गांव या आस-पड़ोस के जान-पहचान के होते हैं तो दवा-इलाज-उधार-बाढ़ी भी हो जाता है।

सुरियांवा सीएचसी के एक स्टाफ जांच किट और दवाइयों की कमी के सवाल को एक सिरे से नकार देते हैं। वह दावा करते हुए कहते हैं कि ऐसा हर्गिज़ भी नहीं है। सीएचसी में दवाइयाँ और जांच किट इफ़रात मात्रा में आती है। हां, लगातार बंट रही है, कभी तो घटेगी। हो सकता है कि किसी मरीज को एकाध दिन न मिली हो। उसका नंबर आने तक दवा खत्म हो गयी हो, लेकिन आपूर्ति व्यवस्था अच्छी है। कुछ ही घंटों में स्टॉक पर्याप्त आ जाता है। कोरोना में एक लैब असिस्टेंट गुज़र गए तब से वह पद खाली पड़ा है। इससे भी जांच कार्य प्रभावित हुआ है।

झोलाछाप डॉक्टरों के मकड़जाल के बाबत वह कहते हैं कि इस मामले मौजूदा सीएमओ डॉक्टर संतोष कुमार चक बहुत सख्त मिज़ाज व्यक्ति हैं। झोलाछाप और फर्जी प्राइवेट अस्पतालों के खिलाफ़ इतनी जांच होती है, कार्रवाई होती है, बावजूद इसके वह फिर से खड़े हो जाते हैं। सरकारी अस्पताल में हर सुविधा होने के बावजूद लोग झोलाछाप डॉक्टरों के पास क्यों जा रहे हैं? इस सवाल के जवाब में वह बताते हैं कि सरकारी अस्पताल में 10-20 रुपये का ख़र्चा होता है, पर पता नहीं लोगों की क्या मानसिकता है कि कोई भी बीमारी होने पर वह पहले झोलाछाप के यहां जाते हैं, जब वहां से आराम नहीं मिलता है, तब सरकारी अस्पताल की ओर भागते हैं। वह कहते हैं कि सुरियांवा सीएचसी के आस-पास दो-तीन किलोमीटर के दायरे वाले गांवों का हाल बता रहा हूं। वहां दूरी का कोई बहाना भी नहीं है, लेकिन बीमार होने पर लोग पहले झोलाछाप के यहां जाएंगे। जब बीमारी से आराम नहीं मिलेगा तब सरकारी में आएंगे।

आधा-अधूरा निर्माण और स्टाफ की कमी

क़रीब 20 लाख की आबादी वाले जिले में 2 जिला अस्पताल, 1 आधा अधूरा जिला अस्पताल, 6 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और 16 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं, 3 प्रस्तावित हैं। जिले में 108 नंबर सेवा में कुल 18 एम्बुलेंस उपलब्ध एवं क्रियाशील हैं। 102 नंबर सेवा में 20 एम्बुलेंस और 3 एडवांस लाइफ सपोर्ट एम्बुलेंस क्रियाशील हैं।

ज्ञानपुर में महाराजा चेत सिंह सरकारी अस्पताल और भदोही में महाराजा बलवंत सिंह सरकारी अस्पताल हैं। जिन्हें जिला अस्पताल का दर्ज़ा प्राप्त है। यहां मुख्य चिकित्साधीक्षक की तैनाती है, लेकिन इन अस्पतालों में भी आधुनिक सुविधायें उपलब्ध नहीं हैं, जिसके चलते यहां से बड़ी संख्या में मरीज़ बनारस या प्रयागराज रेफर किए जाते हैं। जिला अस्पतालों के अलावा यहां सीएचसी और पीएचसी में भी डॉक्टरों की कमी है। कई बीमारियों के विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं हैं। जनरल डॉक्टर हैं, जो नार्मल इलाज करते हैं। इन स्वास्थ्य केंद्रों पर औसतन पांच से सात हजार मरीज़ रोज़ाना ओपीडी में आते हैं। जबकि गंभीर मरीजों को वाराणसी या प्रयागराज रेफर कर दिया जाता है।

भदोही जिले में कुल 6 सीएचसी सुरियावां, गोपीगंज, डीघ, भदोही, भानीपुर, औराई में स्थित हैं। अभोली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र 13 साल बाद भी अधूरा है। साल 2010 में तत्कालीन सांसद और मंत्री रंगनाथ मिश्र ने इसका शिलान्यास किया था। 30 बेड की क्षमता वाले इस सीएचसी का बजट तब 25 लाख था। साल 2014 तक इसका निर्माण चला। लेकिन केंद्र सरकार बदलते ही अचानक कार्यदायी संस्था बीच में ही काम छोड़कर चली गयी। तब से ही काम बंद पड़ा है। अभोली सीएचसी का निर्माण न होने से इसके आस-पास के 30 गांवों के हजारों लोगों को झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाना पड़ता है, जबकि इस क्षेत्र से भानीपुर सीएचसी 8 किलोमीटर और सुरियावां सीएचसी 12 किलोमीटर दूर है।

भदोही के सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे में डॉक्टर के कुल 97 पद स्वीकृत हैं और 46 फॉर्मासिस्ट के पद, जिसमें कई पद खाली हैं। सुरियावां सीएचसी के एक स्टाफ बताते हैं कि जिले में डॉक्टर के 30-40 प्रतिशत पद खाली हैं। आज के समय में डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में काम नहीं करना चाहते हैं। जबकि डॉक्टर को छोड़कर स्वास्थ्य महकमे के अन्य सभी पदों पर लोग सरकारी नौकरी करना चाहते हैं। वह बताते हैं कि प्राइवेट प्रैक्टिस में मोटे मुनाफे ने सरकारी डॉक्टर बनने के लिए एक अनिच्छा पैदा की है। सरकारी डॉक्टर को एक तयशुदा वेतन मिलता है और अलग से प्रैक्टिस न करने पर प्रतिबन्ध होता है। जबकि प्राइवेट डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस करके हर महीने लाखों-करोड़ों रुपये कमाते हैं।

सरपतहां स्थित सौ शैय्या अस्पताल में अभी स्टाफ पर्याप्त नहीं हैं। बिना स्टाफ के कोई भी संस्था सुचारू रूप से नहीं चल सकती है। बाकी सीएचसी में पर्याप्त स्टाफ नहीं हैं। जैसे सुरियावां सीएचसी में केवल 3-4 डॉक्टर हैं। उसी में किसी तरीके चला रहे हैं। यह भी एक समस्या है।

भदोही में झोलाछाप डॉक्टर सीएचसी भी चला रहे हैं। अक्टूबर 2022 में भदोही सीएचसी में एक मामला सामने आने पर बहुत बवाल हुआ था। दरअसल, अक्टूबर माह में आयोजित ‘परिवार नियोजन-नसबंदी शिविर’ में पुरुषों की नसबंदी झोलाछाप डॉक्टरों को बुलाकर उनसे करवा दिया गया। पोल तब खुली जब वाहवाही लूटने के चक्कर में नसबंदी करते हुए लोगों के साथ सेल्फी लेकर एक कर्मचारी ने कार्यालय के वॉट्सअप ग्रुप पर डाल दिया। वायरल तस्वीर में नसबंदी कर रहे डॉक्टरों की पहचान स्वास्थ्य महकमा नहीं कर सका। इस मामले में स्वास्थ्य सचिव ने भदोही के सीएमओ संतोष कुमार चक से जवाब-तलब किया था।

सुरियावां सीएचसी में भी बिन्द समुदाय की एक महिला की नसबंदी में ऐसा ही मामला सामने आया था।

जिला अस्पताल बनाने का दावा, पर न स्टाफ, न टेक्निशियन

साल 2008 में मायावती के शासनकाल के दौरान 14 करोड़ की लागत से भदोही में सौ शैय्या अस्पताल की आधारशिला रखी गयी थी। सूबे की सरकारों के बदलने के साथ ही इसे बनाने वाले ठेकेदार भी बदलते रहे। लागत भी बढ़ती गयी। घोटाले का भी शोर मचा। फिर सूबे में विधानसभा चुनाव से पहले 31 दिसम्बर, 2020 को इसका लोकार्पण हो गया।

सरपतहां स्थित सौ शैय्या चिकित्सालय में फरवरी 2022 से इस अस्पताल की ओपीडी सेवा चालू की गयी है, लेकिन बाकी सेवायें अभी तक बंद पड़ी हैं। आलम यह है कि जांच के लिए ख़रीदे गए करोड़ो रुपये के उपकरण बंद कमरे में पड़े-पड़े धूल फांक रहे हैं। बता दें कि अस्पताल के इनडोर और आउटडोर के संचालन के लिए साल 2015-17 के दरम्यान क़रीब 4 करोड़, 85 लाख रुपये की जांच मशीनों की ख़रीदारी हुयी थी। जिसमें पैथोलॉजी, ऑपरेशन थिएटर, इमरजेंसी, लैब, ऑंख, एक्स-रे आदि की जांच करने वाली अत्याधुनिक मशीनें शामिल हैं। इन मशीनों को ख़रीदे हुए पांच साल से ज़्यादा का वक्त बीत गया, पर इन्हें अभी तक इंस्टॉल तक नहीं किया गया।

जबकि मरीजों को एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड और ख़ून आदि जैसी साधारण जांच के लिए भी यहां से चार-पांच किलोमीटर दूर स्थित जिला अस्पताल में जाना पड़ता है।

अस्पताल के सीएमएस डॉ. सुनील कुमार बताते हैं कि जांच उपकरणों का इंस्टॉलमेंट करवाने के लिए संबंधित कंपनियों से कई बार संपर्क किया गया, पर कंपनियां फोन तक नहीं रिसीव कर रही हैं। इस संबंध में शासन को पत्र भेजकर बताया गया है।

निजीकरण और खराब ढांचे ने सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था में लोगों का विश्वास डिगा दिया 

जनरल इंश्योरेंस का काम करने वाले और जीआई हेल्थकेयर में कार्य कर चुके सुरियावां के रविकान्त उपाध्याय कहते हैं कि आज अमीर और ग़रीब में सिर्फ़ एक मेडिकल बिल का फर्क़ है। आर्थिक रूप से एक ठीक-ठाक परिवार में किसी व्यक्ति को ब्रेन हेमरेज या कार्डियक अरेस्ट आ गया तो इतना ख़र्च आ जाता है कि वह ग़रीब हो जाता है। उसे कर्ज़ भी लेना पड़ता है। खेत, जेवर आदि गिरवी रखने पड़ते हैं। वह पर्सनल लोन, गोल्ड लोन भी लेता है, जिसके पास सम्पत्ति नहीं है वह ब्याज पर पैसे लेता है। ऐसे समय में कोई भी अपने घर के सदस्य को आसानी से नहीं जाने देता है।

वैश्वीकरण-निजीकरण से पूंजी और बाज़ार के बेतहाशा दबाव से बदले सम्बंधों पर वह कहते हैं कि बीमारी का इलाज अब बिजनेस हो गया है। लोगों के मन में जो इज़्ज़त डॉक्टरों के प्रति पहले थी, अब वह नहीं है। इसमें लगे लोगों का एक ही टारगेट है, मोटा-से-मोटा मुनाफ़ा कमाना। हर आदमी त्रस्त है। आज आलम यह है कि क्लिनिक खुले एक साल नहीं हुआ और आप 25 लाख की गाड़ी से चल रहे हैं।

वह ढांचे की बात करते हुए बताते हैं कि निजी की तुलना में सरकारी स्वास्थ्य ढांचा आज उतनी अच्छा नहीं है। इससे लोगों को उन पर विश्वास नहीं है। सरकारी अस्पतालों की कार्य संस्कृति पर सवाल उठाते हुए वह दावा करते हैं कि प्राइवेट अस्पतालों का अपना एक सिंडिकेट होता है, तो अगर आप सरकारी अस्पताल में पहुंच भी गए तो वह वहां ऐसा माहौल पैदा कर दिया जाता है कि आपको घुमा फिराकर प्राइवेट में पहुंचा देंगे। 70 प्रतिशत केसों में ऐसा होता है। लोग वापस प्राइवेट अस्पतालों में भागे हैं।

वह विश्वास और अविश्वास की लकीर को विभाजित करते हुए कहते हैं कि लोग एक बार अपने इलाज के लिए सरकारी अस्पताल में चले भी जाएंगे पर जहां बच्चों की बात होगी वह प्राइवेट अस्पताल की ओर भागेगा। बिल्कुल उसी तरह जैसे वह अपने बच्चों की शिक्षा के लिए वह प्राइवेट स्कूल की ओर भागता है। पैसा नहीं होगा तो कर्ज़ लेगा पर जाएगा वहीं। विकल्पहीन होने पर ही आज कोई व्यक्ति जाता है, सरकारी अस्पताल में।

जिले में झोलाछाप डॉक्टरों के मकड़जाल के सवाल पर वह कहते हैं कि इलाके में चाय की जितनी दुकान नहीं है। उतने अस्पताल हैं। प्राइवेट अस्पताल, झोलाछाप क्लीनिक, यहां दो-चार अस्पताल को छोड़कर बाक़ी सब अस्पताल झोलाछाप लोग ही चला रहे हैं। वह किसी-न-किसी डॉक्टर से टाईअप कर रखा है। उनकी कमीशन फिक्स है, उनकी डिग्री पर अस्पताल चल रहा है। किसी के नाम से रजिस्टर्ड है, नहीं रजिस्टर्ड है, सेटिंग है तो चल रही है। वह बताते हैं कि पिछले जिलाधिकारी से उन्होंने पूछा था कि क्या जितने प्राइवेट अस्पताल है, जिले में वह सभी सरकारी नियम और दिशा-निर्देशों का पालन करते हैं। उसके बाद कुछ प्राइवेट अस्पतालों पर कार्रवाई हुई थी। एकनिजी अस्पताल बंद हो गया। फर्ज़ी तरीके चला रहे थे। वह आज भी आगे से सील है, पीछे से डॉक्टर देखते हैं मरीजों को वहां।

भदोही में झोला छाप और निजी क्लीनिक के कुछ मामले

छोटी-मोटी मौसमी बीमारियों में कई बार इनका इलाज कारगर हो जाता है। मरीज चंद खुराक़ दवाई-सुई में चंगा हो जाता है। लेकिन गंभीर बीमारियों में नीम-हकीम ख़तरे में जान वाली स्थिति बन जाती है। भदोही के कोइरौना थाना क्षेत्र का ही एक केस है। 5 फरवरी, 2023 रविवार को सेमराध स्थित एक झोलाछाप डॉक्टर राजन विश्वकर्मा द्वारा ग़लत इंजेक्शन लगा देने से दलित महिला पत्ती देवी (48) की मौत हो गयी थी। बाद में पति रमाशंकर की तहरीर पर पुलिस ने उस झोलाछाप को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। पुलिस की जांच में उक्त झोलाछाप डॉक्टर के पास से चिकित्सा सम्बन्धी कोई भी डिग्री नहीं मिली थी।

ऐसा नहीं है कि पिछड़ा जिला होने के नाते केवल भदोही में ही झोलाछाप डॉक्टरों की दुकानें फल-फूल रही हैं। एक पखवारे पहले प्रयागराज जिले के फूलपुर तहसील के उतरांव थाना क्षेत्र के दमगड़ा गांव में एक झोलाछाप डॉक्टर द्वारा इलाज में लापरवाही बरतने से किशोरी की मौत हो चुकी है। ओम प्रकाश हरिजन विदेश में रहकर मज़दूरी करते हैं। 14 जुलाई (शुक्रवार) की रात में उनकी किशोर बेटी बेबी की अचानक तबीयत खराब हो गई। उसकी मां अनीता देवी गांव स्थित एक झोलाछाप डॉक्टर के यहाँ इलाज के लिए लेकर गए। जहां इंजेक्शन लगाते ही किशोरी हालत और बिगड़ गयी और कुछ मिनट बाद ही उसकी मौत हो गई। चाचा की तहरीर पर पुलिस ने झोलाछाप डॉक्टर के ख़िलाफ़ ग़ैरइरादतन हत्या का मुक़दमा दर्ज़ किया। वह पांच बच्चों (तीन भाई-दो बहनों) में दूसरे नंबर पर थी।

17 जून (2023) को भदोही, सुरियांवा थानाक्षेत्र के असईपुर निवासी रामफल मौर्या की गर्भवती बीवी सीमा देवी की सीजेरियन से बच्चा पैदा किया गया। डिलिवरी के बाद उनकी तबीयत बिगड़ने लगी तो उन्हें भदोही रेफर कर दिया गया लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गयी।

17 अप्रैल, 2023 को औराई इलाके के विनय तिवारी पेट दर्द की शिक़ायत लेकर 30 नवंबर (2022) को शहर के रामरायपुर स्थित ईशी अस्पताल गए, वहां अस्पताल संचालक डॉ. गणेश यादव और पत्नी डॉ. सुशीला यादव ने अपेंडिक्स बताकर ऑपरेशन की सलाह दी।

चिकित्सकों की सलाह पर मरीज को भर्ती करवा दिया गया। ऑपरेशन से पहले मरीज को बेहोशी का इंजेक्शन लगाया गया। तभी डॉक्टरों को एहसास हो गया कि बेहोशी की दवा ज़्यादा दे दी गयी है। लिहाजा, उन्होंने ऑपरेशन नहीं किया और परिजनों को मरीज को ले जाने को कहा। परिजनों ने देखा तो उनके मरीज की मौत हो चुकी थी। परिजनों ने विरोध दिखाया तो मरीज की लाश को क़ब्ज़े में रखकर परिजनों को पिस्टल दिखाकर बाहर खदेड़ दिया गया।

परिजनों के हंगामे के बाद सीएमओ ने डॉक्टरों की एक जांच टीम गठित की। जांच में पाया गया कि बेहोशी की दवा ज़्यादा मात्रा में देने से मरीज की मौत हुयी। जिलाधिकारी गौरांग राठी के निर्देश पर पंजीकृत अस्पताल का पंजीकरण रद्द कर दिया गया। ढाई लाख जुर्माने के साथ डॉक्टर गणेश यादव पर 304-क का मुक़दमा दर्ज़ किया गया।

पिछले साल प्रयागराज शहर में जब डेंगू का प्रकोप चरम पर था तब एक प्राइवेट अस्पताल में 17 अक्टूबर, 2022 को डेंगू से ग्रसित प्रदीप पांडेय को प्लेटलेट्स की जगह मौसम्बी का जूस चढ़ाने की बात सामने आयी थी। मरीज की मौत के बाद मामला वायरल होने के बाद झलवा स्थित ग्लोबल अस्पताल को सील कर दिया गया था।

इस मामले सीएमओ ने385 स्वास्थ्यकर्मियों का वेतन रोका

28 जुलाई (2023) को भदोही जिले में संचारी रोग नियंत्रण और दस्तक अभियान में लापरवाही बरतने वाले 385 स्वास्थ्यकर्मियों का जुलाई महीने का वेतन रोक दिया गया है। गौरतलब है कि जिले में 31 जुलाई तक संचारी रोग नियंत्रण अभियान चलाया जा रहा है। इसी बीच, 17 से 31 जुलाई तक दस्तक अभियान के तहत स्वास्थ्यकर्मी घर-घर जाकर लोगों को संक्रमित बीमारियों के प्रति जागरूक करने का निर्देश दिया गया है। जहां स्वास्थ्यकर्मी लोगों को क्रमित बीमारियों के कारण, लक्षण और बचाव के बारे में बता रहे हैं। जिलाधिकारी गौरांग राठी की ओर स्वास्थ्य समिति की समीक्षा बैठक में संचारी रोग नियंत्रण अभियान की धीमी प्रगति पर नाराज़गी व्यक्त की गई थी।

प्राइवेट हॉस्पिटल में ऐसे लगती है मरीजों-तीमारदारों की भीड़

लखनऊ में हुई समीक्षा में भी जिले की प्रगति काफी खराब दिखी। जिस पर नाराज़ हुए सीएमओ ने अभियान में लापरवाही बरतने वाले 385 स्वास्थ्यकर्मियों (6 सीएचसी अधीक्षक, 6 बीसीपीएम, 6 बीपीएम, 6 सुपरवाइजर 184 एएनएम, 112 सीएचओ, 65 संगिनी) का एक महीने का वेतन रोकते हुए कहा है कि जब तक संचारी रोग नियंत्रण अभियान व दस्तक अभियान में सुधार नहीं होगा, तब तक वेतन बहाल नहीं किया जाएगा। उन्होंने अपर चिकित्साधिकारी और जिला मलेरिया अधिकारी को सख़्त हिदायत देते हुए अभियान की गति को तेज करने का निर्देश दिया है।

शुक्रवार को सीएमओ डॉ. चक ने उपकेंद्र और हेल्थ सेंटर मधु पट्टी का निरीक्षण किया। इस दौरान एचडब्ल्यूसी पर तैनात एएनएम तारा देवी ग़ैरमौजूद मिलीं। उनका एक दिन का वेतन रोकते हुए स्पष्टीकरण मांगा है। जबकि उपकेंद्र पर तैनात ज्योति सिंह मौके पर मौजूद मिलीं। दोनों सेंटर सुरियावां सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीन आते हैं। इससे पहले जून महीने में भी 18 स्वास्थ्य कर्मचारियों का वेतन रोका गया था।

भदोही सीएचसी के स्टाफ सीएमओ संतोष कुमार चक के हालिया कार्रवाई पर दलील देते हैं कि आठ बजे का अस्पताल है तो सीएमओ साहब इसी समय निरीक्षण करने पहुंच जाते हैं। अधिकांशतः कोई कितना भी करे, 10-15 मिनट विलम्ब हो ही जाता है। किसी एएनएम से टीकाकरण वगैरह में छोटी-मोटी ग़लतियां हो गई। जैसे कोई बच्चा छूट गया या कुछ और हो गया। दरअसल, टीकाकरण में भदोही का नंबर कुछ नीचे था इससे भी नाराज़ थे सीएमओ साहेब…।

सुशील मानव गाँव के लोग डॉट कॉम के भदोही स्थित संवाददाता हैं।

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