सात चरणों में सम्पन्न होने वाले 2024 के लोकसभा की 543 सीटों मे से 102 सीटों के लिए पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को सम्पन्न हो गया। छतीसगढ़, मणिपुर और बंगाल के कुछ स्थानों पर हुई हिंसक घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो पहले चरण में 21 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की 102 सीटों पर हुआ चुनाव प्रायः शांतिपूर्ण रहा। पहले चरण में जिन राज्यों की सभी लोकसभा सीटों पर मतदान सम्पन्न हुए, उनमें तमिलनाडु(39), उत्तराखंड(5), अरुणाचल प्रदेश (2), मेघालय(2), अंडमान और निकोबार द्वीप समूह(1), मिजोरम(1), नगालैंड(1), पुडुचेरी(1), सिक्किम(1) और लक्षदीप(1) शामिल हैं। इसके अलावा राजस्थान के 12, उत्तर प्रदेश के 8, असम और महाराष्ट्र के 5-5, बिहार के 4, पश्चिम बंगाल के 3, मणिपुर के 2 और त्रिपुरा, जम्मू कश्मीर और छतीसगढ़ के एक-एक सीटों पर मतदान हुआ।
पहले चरण में कम हुए मतदान का कारण?
निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक पहले चरण में त्रिपुरा में वोट डालने वाले मतदाताओं का अनुपात सर्वाधिक 79.90 प्रतिशत रहा, जबकि बिहार में सबसे काम 47.49 प्रतिशत मतदाता ही वोट डालने के लिए घरों से निकले। जहां तक 2019 के मुकाबले 2024 में पड़ने वाले वोटों का सवाल है, इन सीटों पर इस बार 2019 के 69.09 प्रतिशत के मुकाबले 65. 5 प्रतिशत ही वोट पड़े। उत्तर प्रदेश जो देश की राजनीति की दिशा तय करता है, वहां भी जिन आठ सीटों पर मतदान हुआ, वहां 2019 के 67.27 के मुकाबले इस बार 61.91 प्रतिशत ही वोट पड़े। एक बड़ा अपवाद इस बार यह हुआ कि पूर्वी नगालैंड के छह जिलों में लोग मतदान करने निकले ही नहीं, क्योंकि आदिवासी संगठनों के शीर्ष निकाय ने अनिश्चित कालीन बंद का आह्वान किया था।
बहरहाल, पहले चरण का वोट जिन खास कारणों से चर्चा में है, वह है मतदान का कम प्रतिशत। 2019 के मुकाबले इस बार करीब चार प्रतिशत वोट कम पड़ने से चुनाव प्रक्रिया से जुड़े चुनाव आयोग, राजनीतिक दल इत्यादि चिन्ता में पड़ गए हैं। संभवतः इस चिन्ता के कारण ही पहले चरण के चुनाव के अगले दिन प्रधानमंत्री मोदी मतदाताओं से भी अपील किए कि वोट चाहे किसी को भी दें, पर मतदान जरूर करें। मतदान कम होने से राजनीतिक विश्लेषक चुनाव में किसी रुझान का पता लगाने में असमंजस में दिखे। अब तक राजनीतिक विश्लेषकों की यह सोच रही है कि ज्यादा मतदान सत्ता विरोधी रुख का परिचायक होता है, किन्तु इस बार के कम मतदान ने उनको असमंजस में डाल दिया। कारण, भाजपा नेताओं द्वारा संविधान बदलने के लिए 400 पार के आह्वान को आधार बनाकर विपक्ष द्वारा खड़ा किया गया यह नैरेटिव कि भाजपा इस बार सत्ता में आने पर संविधान बदल सकती है, वंचित वर्गों में सत्ता विरोधी रुझान पैदा कर दिया था।
शुरुआत में झिझकने के बाद यूट्यूब चैनलों पर अपनी बात रखने वाले अभय दूबे, शीतल पी सिंह, श्रवण गर्ग,आशुतोष, प्रो रविकांत, प्रभु चावला, अशोक वानखेडे, प्रो. रातनलाल, नवीन कुमार, नीरज भाई पटेल, संजीव चंदन सहित देश के तमाम बड़े – बड़े राजनीतिक विश्लेषक इस नतीजे पर पहुंचे कि कम मतदान इसलिए हुआ क्योंकि भाजपा के समर्थक पर्याप्त मात्रा में घरों से नहीं निकले। उनमें एक आत्मसंतुष्टि का भाव घर कर गया था। वे समझ रहे थे कि कुछ भी हो अंततः मोदी ही जीतेंगे, इसलिए वे गर्मी में घरों से बाहर निकलने की जहमत नहीं उठाए। दूसरी तरफ मोदी के अगली बार सत्ता में आने पर यह आखिरी चुनाव हो सकता है तथा 2025 में आरएसएस की स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने पर संविधान बदल कर मनुस्मृति का विधान लागू किया जा सकता है, इस आशंका ने दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को घर से बाहर निकल कर मतदान केंद्रों पर पहुचने के लिए विवश किया, ऐसा यूट्यूब पर सक्रिय पत्रकारों ने प्रायः एक स्वर में कहा। संविधान बचाने की चाह में जो सत्ता विरोधी रुझान पैदा हुआ, उसके फलस्वरूप राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र इत्यादि में 2019 के मुकाबले, 2024 में भाजपा की सीटों में भारी कमी आएगी, इस पर भी तमाम यूट्यूबर पत्रकार एकमत दिखे।
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बहरहाल, संविधान में बदलाव की आशंका से सत्ता विरोधी एक खामोश लहर चुनाव में क्रियाशील रही, इसका जायजा विभिन्न यूट्यूब चैनलों पर आए दर्शकों के कमेन्ट से लिया जा सकता है। इस लेखक का मानना है कि किसी भी घटना के असर का सही अनुमान लगाना हो तो उसके लिए विशेषज्ञों की राय पर निर्भर करने के बजाय यूट्यूब चैनलों पर आए दर्शकों के कमेन्ट से लगाया जा सकता है। पहले चरण के मतदान के असर का आंकलन करने के लिए इस लेखक ने दर्शकों के कमेन्ट को जरिया बनाया। परिणाम क्या रहा, निम्न टिप्पणियों के आधार पर उसका अनुमान लगाया जा सकता है।
आर्टिकल 19 चैनल पर नवीन कुमार ने पहले चरण के वोट पर जो वीडियों बनाया, उसका कैप्शन रहा, ‘मोदी तो गयो।’ नवीन कुमार ने भी पहले चरण के वोट का आंकलन करते हुए राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश में भाजपा की सीटें कम होने की आशंका जाहिर करते हुए बताया था कि वंचित वर्गों के लोग संविधान बचाने के नाम पर चुनाव में गोलबंद हुए। उनके चैनल पर लोगों का कमेन्ट रहा- ‘भाजपा को अपने समर्थकों को घर से निकालने में दिक्कत हो रही है।’ ‘मोदी जी को धन्यवाद। उन्होनें अकेले दम पर आरएसएस व भाजपा को जनता की नजरों में इतना गिरा दिया है कि अब भविष्य में सिर ऊंचा करने में पचासों साल लग जाएंगे।’ यदि बीजेपी चुनाव हारती है तो संविधान और लोकतंत्र बच सकता है।’ पूरे भारत में बीजेपी 176 से 184 में सिमट जाएगी।’ ‘सत्य हिन्दी’ का कैप्शन रहा, ‘हिन्दी पट्टी में मतदान, यूपी- राजस्थान में बुरी तरह फंसी भाजपा। मोदी का मतदाता भी समझ चुका है कि कहीं भी बटन दबाओ, वोट दो जाएगा मोदी को ही। तो वोट डालने कौन जाए, मोदी जी आराम से ईवीएम से जीत जाएंगे।
कम मतदान की स्थिति में किसको नुकसान ?
‘क्यों कम हुआ मतदान, किसे होगा नुकसान’ शीर्षक से रवीश कुमार ने जो वीडियो बनाया, उस पर लोगों का कमेन्ट रहा- ‘अब लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी की नहीं है, संविधान बचाने, शिक्षा अर्थव्यवस्था, रोजगार बचाने और अपने बच्चों का भविष्य बचाने का है।’ संविधान बचाने की लड़ाई में मेरा पहला वोट कांग्रेस को।’ ‘मेरा वोट 4 साल की नौकरी के खिलाफ; मेरा वोट एमएसपी के लिए; मेरा वोट संविधान बचाने के लिए।’ ये चुनाव बेरोजगारों, किसानों, किसानों, गरीबों, अग्निवीरों को न्याय दिलाने और संविधान बचाने का है।’ सत्य हिन्दी पर चर्चित पत्रकार श्रवण गर्ग के वीडियो के कैप्शन रहा, ‘कम वोट से नुकसान सिर्फ भाजपा को।’ चर्चित पत्रकार दीपक शर्मा ने अपने चैनल पर पहले चरण के चुनाव पर राय देते हुए कहा, ‘2024 का लोकसभा चुनाव आम चुनाव नहीं है। यह लोकतंत्र, संविधान और देश को बचाने का चुनाव है।’ उनके चैनल पर दर्शकों का कमेन्ट रहा, ‘अबकी बार का चुनाव आम चुनाव न होकर बाबा साहब का संविधान बचाने का चुनाव बन गया है।’
ग्राउन्ड पर बीजेपी पूरी तरह हार रही है, लेकिन ईवीएम की वजह से जीतेगी।’ संविधान बचाने का जो नैरेटिव विपक्ष ने खड़ा किया, वह दलित पिछड़ों को इंडिया के और करीब लाया है। बहरहाल, यदि हम यूट्यूब चैनलों द्वारा जारी वीडियो पर ध्यान दें साफ नजर आएगा कि यह चुनाव संविधान और लोकतंत्र बचाने पर केंद्रित हो गया है, जिसमें दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक योजनाबद्ध तरीके से वोट करेंगे। पहले चरण के बाद यह भी धारणा बन गई है कि मोदी जा रहे हैं। इसलिए नवीन कुमार, राजीव रंजन, नीलू व्यास ने जो वीडियो बनाया है, उसका कैप्शन नजर आ रहा है, ‘मोदी तो गयो।’ बहरहाल पहले चरण के चुनाव का रुझान देखते हुए जहां विपक्ष संविधान और लोकतंत्र बचाने का मुद्दा खड़ा करने में और मुस्तैद हो गया है, वहीं मोदी धर्म पर केंद्रित हो गए हैं। जिस तरह मोदी का धर्म-संस्कृति को मुद्दा बना रहे हैं, उसे देखते हुए कुछ विश्लेषक पुलवामा जैसा कुछ बड़ा होने की आशंका जाहिर करने लगे हैं।