मौसम ने करवट बदला। फिजा में चारों तरफ गलन बढ़ी। गलन के साथ ही कुहरे ने भी वातावरण को अपनी आगोश में ले लिया। इससे किसानों की चिंताएँ बढ़ाने लगीं। शाम होते ही कोहरे की चादर वातावरण को अपनी आगोश में ले लेती है और सुबह दस बजे तक बनी रहती है। अगर यही स्थिति कुछ और दिनों तक बनी रही तो तिलहन दलहन की फसलों की बुआई का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।
वाराणसी के राजातालाब के किसान श्री प्रकाश सिंह रघुवंशी कहते हैं ‘इस समय यह जो कुहरा पड़ रहा है वह सारसो,आलू और अरहर की फसलों के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदेह साबित होगा। कुहरा पड़ने से सारसो और अरहर में लगे फूल सूख जाएंगे जिससे उनमें फल ही नहीं लगेगा। आलू की पत्तियाँ सूखने लगी हैं। इससे आलू जितना बड़ा (आकार) है उतना ही रह जाएगा। वह विकास नहीं करेगा। यह जरूर है कि ज्यादा कोहरा और ठंड पड़ने से गेहूं की खेती अच्छी होगी। क्योंकि गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए ठंडी बहुत जरूरी है नहीं तो उसमें दाने ही ठीक से नहीं आएंगे।’
कोहरे की बढ़ती धमक से चिरईगाँव ब्लॉक के तोफापुर गाँव के चिंतित लग रहे किसान बबलू कहते हैं ‘कोहरे के कारण हमारी फूलों की खेती बहुत प्रभावित हो रही है। फूल काले पड़ते जा रहे हैं और बढ़ नहीं रहे हैं। सामान्य दिनों की अपेक्षा इस समय आधे से भी कम फूलों की पैदावार हो रही है। जिन फसलों में फूल आ चुके हैं वे काले पड़ने लगे हैं। उनका विकास नहीं हो रहा है। ज्यादा बारिश की स्थिति में भी फूल धीरे धीरे पीले पड़ने लगते हैं। लेकिन शुक्र मनाइए की इस समय ज्यादा बारिश नहीं हो रही है। कोहरे की यही स्थिति बनी रही और मौसम इसी प्रकार से आँख मिचौली करता रहा तो हम तो खाने के लिए मोहताज हो जाएंगे। हालांकि इस समय जो बारिश हो रही है वह गेहूं के लिए तो फायदेमंद है लेकिन फूल की खेती के लिए नुकसानदेह है।’
मिर्जापुर जिले के किसान रामकुमार कहते हैं कोहरा ज्यादा होने की स्थिति में आलू और सारसो की फसल सबसे ज्यादा प्रभावित होती है। जब इनका फूल झड़ जाता है तो इनमें नाम मात्र के दाने आते हैं। मिर्जापुर के अहरौरा ब्लॉक पर तैनात कृषि विभाग के बुद्धि प्रकाश बताते है जब तापमान में गिरावट अधिक होती है और फसलों पर फल लगता है उस वक्त फसलों को कोहरे का पाला लगने का अधिक चांस रहता है । हवा नहीं चलती तो फसलों को दिक्कत हो सकती है।
इस प्रकार से देखा जाय तो एक किसान आए दिन मौसम की मार से परेशान रहता है। ज्यादा सर्दी पड़ने की स्थिति में एक फसल को फायदा तो दूसरी फसल को नुकसान होता रहता है। इसे वह खुशी खुशी सह लेता है, लेकिन देश के लोगों को भूखा नहीं रखता। मौसम की मार से उसकी कमर तो टूट जाती है लेकिन रोटी की मार से किसी की कमर ना टूटे इसके जतन में वह हमेशा लगा रहता है। लेकिन हमारे इस देश में किसानों की कोई पूछ नहीं। सरकार तक उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देती। देखा जाय तो किसान सरकार के समक्ष कब से अपनी फसलों का एक निर्धारित मूल्य(एमएसपी) लागू करने की मांग कर रहा है लेकिन सरकार उनकी मांगों की अनदेखी करती जा रही है।
देखा जाय तो पिछले एक दशक में किसानों की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है। चूंकि उनका भी अपना घर परिवार है। बाल-बच्चे हैं। परिवार की देखभाल के अलावा खेती की दोहरी ज़िम्मेदारी के बोझ से किसान के कंधे झुकते चले जाते हैं।किसानी के दौरान ही वह कर्जदार हो जाता है। कर्ज का पैसा न दे पाने से उपजे हालातों में वह आत्महत्या को ही सरल रास्ते के रूप में चुन लेता है। इधर कुछ समय से देश में किसानों की आत्महत्याओं की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। एनसीआरबी डेटा से पता चलता है कि 2014 और 2020 के बीच 6 वर्षों में किसान आत्महत्या की घटनाएं अधिक रही हैं। 2014 में 5,600 किसानों की आत्महत्या हुई, और 2020 में 5,500 किसानों की आत्महत्या हुई। यदि कृषि मजदूरों को 2020 की संख्या में जोड़ा जाए, तो आत्महत्याओं की संख्या बढ़कर 10,600 से अधिक हो जाएगा। इससे पहले की किसान किसानी से तौबा कर ले सरकार को किसानों के प्रति सकारात्मक सोच के साथ कोई ठोस रणनीति बनानी चाहिए जिससे किसान किसानी से दूर ना हो और लोगों के पेट की अग्नि रूपी ज्वाला बुझती रहे।
बहरहाल, जो भी हो। कोहरे के कारण पाले की मार का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव सरसो, आलू और फूलों की खेती पर होता है। दूसरी तरफ इस समय हुई बेमौसम बारिश गेहूं की फसल के लिए तो अमृत की वर्षा के समान है तो फूल वाली खेती के लिए नुकसानदेह। दोनों ही स्थितियां किसानों की कमर तोड़ने वाली होती हैं।