Sunday, July 7, 2024
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दख़ल संगठन ने महिलाओं के अधिकार बोध के लिए आयोजित किया मेरी रातें मेरी सड़कें

देर रात बनारस की जागरूक लड़कियाँ एवं महिलाएं सार्वजनिक स्थान पर जुटीं और गीत, कविता, नुक्कड़ नाटक आदि के माध्यम से नारी-विमर्श के मुद्दे को उठाया।

वाराणसी। कैंट रेलवे स्टेशन पर अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर दख़ल संगठन की ओर से महिलाओं-लड़कियों के लिए मेरी रातें-मेरी सड़कें का आयोजन किया गया।

महिला वक्ताओं ने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस हर साल 11 अक्टूबर को लैंगिक असमानता के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए मनाया जाता है। इस साल का विषय अब हमारा समय है : हमारे अधिकार, हमारा भविष्य है। बताया कि आज के दिन संयुक्त राष्ट्र से जुड़े और स्वतंत्र अन्य संगठन भी बाल विवाह, महिलाओं के खिलाफ हिंसा, शिक्षा तक पहुंच आदि विषयों पर सम्मेलन, चर्चा एवं कार्यक्रम आयोजित करते हैं।

कार्यक्रम का उद्देश्य बताते हुए काशी विद्यापीठ छात्रा और संगठन से जुड़ी शिवांगी ने बताया कि देश की आज़ादी मिले 75 साल हो गए। सभी को वोट डालने का अधिकार मिला। पढ़ने-लिखने, काम करने, कमाने का अधिकार मिला। संपत्ति में क़ानूनी हक़ मिला। अपने मर्जी का जीवन साथी चुनने का अधिकार मिला। लेकिन हम स्त्रियों के लिए हॉस्टल हो, माता-पिता का घर हो, ससुराल हो या पेइंग गेस्ट हाउस, रात होने से पहले ही हमें यहाँ पहुँच जाना पड़ता है। ये एक अनकहा कानून है। इसे हर लड़की को मानना ही होता है। शिवांगी ने बताया कि, ‘रात को पुरुष जो हैं वो कंट्रोल में नहीं रह पाते।’ तो जो कंट्रोल में नहीं रहता, उसके लिए सुरक्षित जगह बनाई जानी चाहिए। लोहे की जंजीर, हथकड़ी आदि होनी चाहिए। उन्हें न बांधकर, हम लड़कियों को ही रात को घर के अन्दर कर दिया जाता है। अब हमें यह स्वीकार नहीं है। हम बनारस की सड़कों और गंगा घाट पर, गीत-संगीत-कविता-कहानियों के साथ अपने हक़ की मांग के लिए जुटते हैं। आज इन्हीं बातों को सोचते-समझते हुए हम कैंट रेलवे स्टेशन पर जुटे हैं। हम चाहते हैं कि बनारस में हो रही ये बात देश विदेश से आने जाने वाले मेहमान भी सुने देखें और बराबरी के लिए किये जाने वाले इस कोशिश में सब जुड़ें।

कैंट रेलवे स्टेशन पर नुक्कड़ नाटक करती लड़कियाँ

कार्यक्रम में महिला हिंसा के मुद्दे को उठाते हुए नुक्क्ड़ नाटक का भावपूर्ण प्रदर्शन किया गया। विद्यापीठ और बीएचयू की छात्राओं ने गीत गाए और कविता पाठ किया। इसके बाद नारीवाद के मुद्दे को उठाते हुए प्लेकार्ड्स लेकर लड़कियों ने स्टेशन रोड पर मार्च निकाला।

प्रख्यात आंदोलनकारी मेधा पाटेकर भी महिलाओं के इस अनूठे कार्यक्रम में जुड़ी। उन्होंने कमला भसीन का गीत सुनाकर नारीवादी विमर्श के विषय पर अपनी बात रखी।

सभा के दौरान शिक्षिका प्रतिमा गोंड ने कहा कि भारत की स्त्री के हृदय में महासागर जैसा धीरज है। उसने खुद के साथ हुई बेईमानी की शिकायत नहीं की और सिर्फ अपने फायदे के बारे में कभी नहीं सोचा। उसने नदियों की तरह सबकी भलाई के लिए काम किया है और मुश्किल वक्त में हिमालय की तरह अडिग रही। मेरा स्पष्ट मानना है कि समाज में महिलाओं के साथ भेदभाव और अन्याय आज भी है।

मुंबई से आई युवा सामाजिक कार्यकत्री गुड्डी ने कहा कि स्त्री की मेहनत, गरिमा और उसके त्याग की पहचान करके ही हम लोग मनुष्यता की परीक्षा में पास हो सकते हैं। आजादी की लड़ाई और नए भारत के निर्माण के हर मोर्चे पर स्त्री, पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी है। वह उम्मीदों, आकांक्षाओं, तकलीफों और घर-गृहस्थी के बोझ के नीचे नहीं दबी।

कस्तूरबा, सरोजिनी नायडू, दुर्गा भाभी, सावित्री बाई फुले, सुचेता कृपलानी, अरुणा आसफ अली, विजयलक्ष्मी पंडित, राजकुमारी अमृत कौर और उनके साथ तमाम लाखों-लाखों महिलाओं से लेकर आज की तारीख तक स्त्री ने कठिन समय में हर बार महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, ज्योतिबा फुले, सरदार पटेल, बाबा साहब अंबेडकर और मौलाना आजाद के सपनों को जमीन पर उतार कर दिखाया है।

आज़ादी के 75 वर्ष बाद आज जब हम चाँद पर जा पहुंचे हैं तो ये हमारी जिम्मेदारी है कि ज़मीन पर संघर्ष कर रही महिला नेतृत्व को नीति निर्माण के मेज पर बराबर की हिस्सेदारी मिले। सड़कों पर सरपट दौड़ती गाड़ियों से लेकर खचाखच भरे सिनेमा हॉल तक लेकिन बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों से लेकर सरकारी कार्यालयों तक स्त्रियों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। ऐसी ही गैरबराबरी संसद, न्यायपालिका में भी देखने को मिलती है, जिसमें स्त्रियों की संख्या नगण्य है। इसलिए जरूरी है कि महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो।

सभा और मार्च में डॉ इंदु पांडेय, नीति, मैत्री, शालिनी, शिवांगी, आन्या, शबनम, दीक्षा, काजल, मृदुला आदि शामिल रहीं।

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