सवाल मुझे व्यक्तिगत तौर पर अच्छे लगते हैं। खासकर वे सवाल जो मुझसे मेरे बच्चे पूछते हैं। हालांकि उनके सभी सवालों का जवाब देना मेरे लिए संभव नहीं होता है। वजह यह कि उनके कई सवाल अटपटे से होते हैं। अब बच्चों के सवालों का जवाब भी उनके ही हिसाब से देने की चुनौती रहती है। लेकिन कल मेरी बड़ी बेटी साक्षी ने एक सवाल किया। उसके सवाल ने मुझे चौंकाया और मन को हर्षित भी किया। उसका सवाल था– पापा, मुद्रास्फीति किसे कहते हैं?
अब शायद ही कोई ऐसा हो जो अपने बच्चे के मुंह से ऐसा सवाल सुने और उसका जवाब ना दे। साक्षी अर्थशास्त्र की छात्रा नहीं है। उसे तो हिंदी और राजनीति शास्त्र पसंद है। फिर भी उसका उपरोक्त सवाल खासा दिलचस्प था। फिर मेरे लिए इसका कोई मतलब नहीं था कि यह शब्द उसने कहां से ग्रहण किया।
अब चुनौती मेरे पास थी कि मैं अपने बच्चे को सरलतम शब्द में यह समझाऊं कि मुद्रास्फीति कहते किसे हैं। सामान्य तौर पर तो यह कह सकता था कि मुद्रास्फीति महंगाई को समझने का एक आंकड़ात्मक तथ्य है, जिसके जरिए किसी अर्थव्यवस्था में समय के साथ विभिन्न माल और सेवाओं की कीमतों में होने वाली एक सामान्य वृद्धि का निरूपण होता है। अब यह परिभाषा हालांकि बहुत जटिल नहीं है लेकिन सहज भी नहीं। इसलिए मैंने साक्षी को रुपए की क्रयशक्ति के बारे में बताया कि कैसे रुपए की कीमत कम होती है। मतलब यह कि पहले उसे पिज्जा खाने के लिए डेढ़ सौ रुपए देने पड़ते थे और अब उसी पिज्जा के लिए उसे ढाई सौ रुपए खर्च करने पड़ते हैं। तो यह जो सौ रुपए का अंतर आया है, यह एक तरह से मुद्रास्फीति है और डेढ़ सौ रुपए के मुकाबले इस वृद्धि को मुद्रास्फीति दर कहेंगे।
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मुझे नहीं पता कि मेरे इस अति संक्षिप्त व्याख्यान को मेरी बेटी ने कितना समझा होगा। हालांकि उसने यह अवश्य कहा कि उसे यह समझ में आ गया है। लेकिन मैंने उसे इस संबंध में और सवाल पूछने को कहा है। मैं चाहता हूं कि वह इस तरह के और सवाल करे ताकि उसकी जहन में अब जो तस्वीर बने, वह एकदम स्पष्ट हो।
[bs-quote quote=”सामान्य तौर पर तो यह कह सकता था कि मुद्रास्फीति महंगाई को समझने का एक आंकड़ात्मक तथ्य है, जिसके जरिए किसी अर्थव्यवस्था में समय के साथ विभिन्न माल और सेवाओं की कीमतों में होने वाली एक सामान्य वृद्धि का निरूपण होता है। अब यह परिभाषा हालांकि बहुत जटिल नहीं है लेकिन सहज भी नहीं। इसलिए मैंने साक्षी को रुपए की क्रयशक्ति के बारे में बताया कि कैसे रुपए की कीमत कम होती है। मतलब यह कि पहले उसे पिज्जा खाने के लिए डेढ़ सौ रुपए देने पड़ते थे और अब उसी पिज्जा के लिए उसे ढाई सौ रुपए खर्च करने पड़ते हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
खैर, मेरे मन में यह उत्कंठा थी कि आखिर उसे शब्द मिला कहां से। पूछा तो जवाब मिला कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के एक बयान में इस बात का उल्लेख था कि भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत है और इसका परिचायक है मुद्रास्फीति दर का सात फीसदी होना।
दरअसल, बीते दो दिनों से केंद्रीय वित्त मंत्री महंगाई के सवाल पर संसद में घिरी हुई हैं। दो दिन पहले तो लोकसभा में उन्होंने महंगाई और गिरती अर्थव्यवस्था के सवाल को नकारते हुए दावा किया कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी विश्व के अनेक देशों से मजबूत है। उन्होंने यह भी कहा था कि रुपए को अवमूल्यन से बचाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने अनेकानेक कदम उठाए हैं, जिनके कारण डॉलर के मुकाबले रुपए की स्थिति अब और कमजोर नहीं होगी।
कल राज्यसभा में निर्मला सीतारमण ने जो कहा है, वह एक वित्त मंत्री की ऐतिहासिक मानसिक विक्षिप्तता का परिचायक ही है। उन्होंने कल उन देशों का नाम भी बताया जिनकी तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत स्थिति में है। ये देश हैं– पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका। अब कोई भी समझदार व्यक्ति उनके इस कथन पर उन्हें मानसिक रूप से बीमार ही कहेगा क्योंकि वह भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना उन देशों से कर रही हैं, जिनका सकल घरेलु उत्पाद यानी जीडीपी भारतीय जीडीपी की तुलना में 10-19 फीसदी के बीच है। आबादी और क्षेत्रफल के लिहाज से भी देखें तो भारतीय अर्थव्यवस्था के आगे उपरोक्त तीनों देश कहीं नहीं टिकते।
[bs-quote quote=”अब नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार जैसे बेवकूफ शासकों से क्या उम्मीद की जा सकती है? हां, निर्मला सीतारमण को इन सबसे बचना चाहिए। वह केंद्रीय वित्तमंत्री तो हैं ही, एक समझदार इंसान भी हैं। विषयों की जानकारी उनके पास है। उन्हें चाहिए कि मंत्रालय द्वारा तैयार किये गये जवाबों के बजाय अपनी समझ से बातों को कहें।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
खैर, मेरा मकसद पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश का अपमान करना नहीं है। ये तीनों देश हमारे पड़ोसी देश हैं और श्रीलंका तो इन दिनों विषमतम स्थिति का सामना कर रहा है। वहां ईंधन भी राशनिंग पद्धति से लोगों को दी जा रही है। बिजली की कटौती की जा रही है। वहां खाद्यान्न का संकट भी अभूतपूर्व है। लेकिन हम जब अपने देश की बात करते हैं तो स्थितियों को विषम ही पाते हैं।
दरअसल, केंद्रीय वित्त मंत्री आंकड़ों के जरिए यह साबित करने का प्रयास कर रही हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था नरेंद्र मोदी के राज में बहुत मजबूत है। हालांकि वह ऐसा कर नहीं पायीं और कल उन्हें यह मानना ही पड़ा कि अनेक वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं, इससे इनकार नहीं किय जा सकता है।
मैं तो अर्थशास्त्र का आदमी नहीं हूं। थोड़ी बहुत जानकारी रखता हूं और इन्ही जानकारियों के आधार पर मेरी अपनी थोड़ी बहुत समझ है। मैं केंद्रीय वित्त मंत्री के इस आंकड़े पर हैरान हूं कि अमेरिका में मुद्रास्फीति की दर 9 फीसदी और भारत में 7 फीसदी है। मतलब यह कि अप्रत्यक्ष रूप से निर्मला सीतारमण ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अमेरिकी अर्थव्यवस्था से अधिक मजबूत करार दिया। अब उनसे यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि यदि सचमुच ऐसा ही है तो डॉलर को रुपए के मुकाबले में कमजोर होना चाहिए न कि रुपए को डॉलर के मुकाबले में कमजोर होना चाहिए।
रफ़ी को सुनते हुए आज भी ज़माना करवटें बदलता है
लेकिन सरकारें ऐसा ही करती हैं। और नवउदारवादी दौर में सरकारों ने आंकड़ों में विकास की तकनीक का इजाद कर लिया है। इसका सबसे बेहतरीन नमूना मेरे गृह प्रदेश बिहार के सीएम नीतीश कुमार हैं, जिनके पास हर दावे के लिए आंकड़े हैं। उनके आंकड़े तो ऐसे हैं, जिनके लिए उन्हें प्रशस्ति पत्र दिया जा सकता है। अब ऐसा ही आंकड़ा है जीडीपी ग्रोथ रेट का। वे बिहार के जीडीपी ग्रोथ रेट को राष्ट्रीय ग्रोथ रेट से कंपेयर करते हैं और फिर अखबारों में अपनी फोटो छपवाते हैं।
अब नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार जैसे बेवकूफ शासकों से क्या उम्मीद की जा सकती है? हां, निर्मला सीतारमण को इन सबसे बचना चाहिए। वह केंद्रीय वित्तमंत्री तो हैं ही, एक समझदार इंसान भी हैं। विषयों की जानकारी उनके पास है। उन्हें चाहिए कि मंत्रालय द्वारा तैयार किये गये जवाबों के बजाय अपनी समझ से बातों को कहें। वजह वह भी जानती होंगी कि उनके मंत्रालय के अधिकारी उनसे अधिक पीएमओ के मन की बात सुनते और मानते हैं।
कल एक कविता जहन में आयी। शीर्षक दिया– सत्य।
आदमी के पास हर वक्त नहीं होते
खूबसूरत गुलबूटों से सजा पहाड़
हंसती-बहती नदियां
और मनोहारी समंदर।
आदमी और परिस्थितियां
दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं
और दोनों एक दूसरे को
आरे की तरह काटते हैं।
बाजदफा आदमी कर लेता है
परिस्थितियों से समझौता
और हर समझौते की नींव में
जमींदोज होते हैं कुछ उसूल
और खूब सारे अरमान।
लेकिन आदमी जड़ नहीं होता
परिस्थितियां भी स्थिर नहीं हेतीं
सब बदलते रहते हैं
यही सत्य है।
हां, यही सत्य है।
[…] […]