27 अगस्त : दलित आंदोलनों के इतिहास में खास दिन !

स्वाधीनोत्तर भारत के दलित आंदोलनों के  इतिहास में  भोपाल सम्मलेन (12-13 जनवरी,2002) का एक अलग महत्व है, जिसमें  250 से अधिक शीर्षस्थ दलित बुद्धिजीवियों ने शिरकत किया था.उसमें दो  दिनों के गहन विचार मंथन के बाद 21 सूत्रीय भोपाल घोषणापत्र जारी हुआ था जिसमें अमेरिका की डाइवर्सिटी नीति का अनुसरण करते हुए वहां के अश्वेतों की भांति ही भारत के दलितों(एससी-एसटी)को सप्लायर, डीलर, ठेकेदार इत्यादि बनाने का सपना दिखाया गया था.किन्तु किसी को भी यकीन नहीं था कि डाइवर्सिटी नीति भारत में लागू भी हो सकती है.पर, भोपाल घोषणापत्र जारी करते समय किये गए वादे के मुताबिक, एक अंतराल  के बाद 27  अगस्त 2002 को, दिग्विजय सिंह ने अपने राज्य के छात्रावासों और आश्रमों के लिए स्टेशनरी, बिजली का सामान, चादर, दरी, पलंग, टाटपट्टी, खेलकूद का सामान इत्यादि का नौ लाख उन्नीस हज़ार का क्रय आदेश भोपाल और होशंगाबाद के एससी/एसटी के 34 उद्यमियों के मध्य वितरित कर भारत में ‘सप्लायर डाइवर्सिटी’ की शुरुआत कर दी थी .

आज के ही दिन दिल्ली के इंडिया इंटरनेश्नल सेंटर में आयोजित हुआ था: पहला डाइवर्सिटी डे !

दिग्विजय सिंह की उस छोटी सी शुरुआत से दलितों में यह विश्वास पनपा था कि यदि सरकारें चाहें तो सदियों से उद्योग-व्यापार से बहिष्कृत किये गए एससी/एसटी को उद्योगपति-व्यापारी बनाया जा सकता है.फिर क्या था ! देखते ही देखते डाइवर्सिटी लागू करवाने  के लिए ढेरों संगठन वजूद में आ गए जिनमें आरके चौधरी का बीएस-4 भी था.बाद में इसी उद्देश्य से उत्तर भारत के दलित लेखकों ने 15 मार्च,2007 को बहुजन डाइवर्सिटी मिशन (बीडीएम) की स्थापना किया,जिसका संस्थापक अध्यक्ष खुद यह लेखक है एवं जिसमें पूर्व केन्द्रीय मंत्री उस डॉ. संजय  पासवान की विराटतम भूमिका रही, जिन्होंने भोपाल घोषणापत्र जारी होने के बाद पहली बार संसद में डाइवर्सिटी अपनाने की मांग उठाया तथा बीडीएम की गतिविधियां चलाने के दिल्ली का अपना आवास मुहैया कराया.बहरहाल जिन दिनों बीडीएम के निर्माण के लिए लेखकों से विचार-विमर्श की प्रक्रिया चल रही थी, उन्ही दिनों डॉ. संजय पासवान ने डाइवर्सिटी पर एक बड़ा सम्मलेन आयोजित करने का मन बनाया.उसके लिए हमलोगों ने दलित आंदोलनों की कई महत्त्वपूर्ण तिथियों की उपेक्षा कर उस दिन को चुना जिस दिन मध्य प्रदेश में लागू हुई थी ‘सप्लायर डाइवर्सिटी’.2006 के 27 अगस्त को उस सम्मलेन का आयोजन डॉ.पासवान द्वारा संचालित ‘वंचित प्रतिष्ठान’ और एमेटी यूनिवर्सिटी के ‘एमेटी दलित सिनर्जी फोरम’  द्वारा दिल्ली के ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ में हुआ जिसमें दिग्विजय सिंह और भारत में डाइवर्सिटी के सूत्रपात्री चंद्रभान प्रसाद सहित पदमश्री डॉ.जगदीश प्रसाद, प्रो.वीरभारत तलवार, पत्रकार अभय कुमार दुबे, चर्चित दलित साहित्यकार डॉ.जय प्रकाश कर्दम, एमेटी विवि के एके चौहान और मैनेजमेंट गुरु अरिंदम चौधरी जैसे जाने-माने बुद्धिजीवियों ने शिरकत किया था. हमलोगों ने उस आयोजन का नाम दिया था ‘डाइवर्सिटी डे’ ,जिसमें डाइवर्सिटी पर इस लेखक की छः और डॉ संजय पासवान की एक किताब का विमोचन हुआ था.प्रचुर मात्रा में हुआ डाइवर्सिटी केन्द्रित किताबों का वह विमोचन डाइवर्सिटी डे अविच्छिन्न अंग बन गया.फलतः इस अवसर पर हर साल चार-छः किताबें विमोचित होती रही है.

खैर! बाद में जब 15 मार्च, 2007 को बीडीएम की स्थापना हुई, हमलोगों ने मध्य प्रदेश में लागू हुई सप्लायर डाइवर्सिटी से प्रेरणा लेने के लिए भविष्य में भी डाइवर्सिटी डे मनाते रहने का निर्णय लिया. इस तरह बीडीएम के जन्मकाल से ही हर वर्ष 27 अगस्त को देश के जाने-माने बुद्धिजीवियों की उपस्थिति में डाइवर्सिटी डे मनाने को जो सिलसिला शुरू हुआ ,वह आजतक अटूट है.यह आयोजन दिल्ली और पटना में एकाधिक बार हुआ , किन्तु 2012 का बहुत खास रहा जिसका आयोजन दलित पैंथर के संस्थापक नामदेव ढसाल के सौजन्य से मुंबई में हुआ था.

 अगला डाइवर्सिटी डे आयोजित होगा 6 दिसम्बर को 

मुंबई में डाइवर्सिटी डे का आयोजन नियत तिथि , 27 अगस्त को न होने से जो व्यतिक्रम घटित हुआ , उसके बाद कई मौके आये, जब अन्य तिथियों पर इसका आयोजन हुए. 2020 में तो कोरोना के कारण आयोजन ही नहीं हुआ. इस बार भी कोरोना की तीसरी लहर की संभावना को ध्यान में रखते हुए तिथि में बदलाव करना पड़ा .चर्चा थी कि अगस्त- से सितम्बर के मध्य कोरोना की तीसरी लहर आ सकती है, जो पिछले दो के मुकाबले और ज्यादा मारक होगी. ऐसे में कोरोना के भयावह अनुभव को ध्यान में रखते हुए कुछ माह पहले ही स्थिर कर लिया गया था कि अगर हालात ने इजाजत दिया तो 27 अगस्त के बजाय 6 दिसंबर को सोलहवें डाइवर्सिटी डे का आयोजन किया जायेगा. चूँकि इस बार डाइवर्सिटी डे के अवसर पर ही बीडीएम की महत्वकांक्षी योजना – शक्ति के स्रोतों के न्यायपूर्ण बंटवारे के लिए : बीडीएम का हस्ताक्षर अभियान- की शुरुआत करनी थी, इसलिए 3 महीने का अतिरिक्त समय मिलने के कारण हस्ताक्षर अभियान की तैयारियां भी थोड़ी धीमी पड़ गईं. किन्तु बीडीएम के इतिहास में इस दिन का अतिरिक्त महत्त्व होने के कारण ‘ हस्ताक्षर अभियान की  जो डिजायन 120 पृष्ठों की पुस्तक में पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है, वह पुस्तक- शक्ति के स्रोतों के न्यायपूर्ण बंटवारे के लिए :बीडीएम का हस्ताक्षर अभियान- प्रेस में चली गयी है ,उसकी प्रकाशन तिथि में उल्लेख है: 27 अगस्त, 2021 (बीडीएम का सोलहवां डाइवर्सिटी डे ). इस दिन की अहमियत को ध्यान में रखते हुए ही जिन दो खास किताबों का नया संस्करण निकाला जा रहा है, उनकी भी तिथि 27 अगस्त, 2021 ही दी गयी है. ये दो किताबें हैं- 1- हिन्दू साम्राज्यवाद के वंचितों की मुक्ति का घोषणापत्र: डाइवर्सिटी( मार्क्सवादियों से एक संवाद) और 2- बहुजन डाइवर्सिटी मिशन का घोषणापत्र! सब कुछ सामान्य  रहा तो आज के दिन प्रकाशित हो रही तीनों किताबों का विमोचन आगामी 6 दिसंबर को आयोजित होने वाले डाइवर्सिटी डे के दिन होगा .

बहरहाल जिस बीडीएम की हिस्ट्री में आज का दिन ‘ डाइवर्सिटी डे ‘ के रूप में चिन्हित है, बहुजन लेखकों का वह संगठन बीडीएम मुख्यतः साहित्य के ऊपर निर्भर रहकर डाइवर्सिटी का वैचारिक आन्दोलन चलाया है. इस कारण ही महज डेढ़ दशक पूर्व वजूद में आया यह संगठन साहित्य के लिहाज से देश के समृद्धतम संगठनों में से एक हो गया है. बीडीएम द्वारा प्रकाशित 100 के करीब किताबें ही भारत में भीषणतम रूप में फैली मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या – आर्थिक और सामाजिक विषमता के खात्मे पर केन्द्रित हैं. इस समस्या से पार पाने के लिए सभी किताबें ही शक्ति के स्रोतों- आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और धार्मिक- में सामाजिक और लैंगिक विविधता के प्रतिबिम्बन की आइडिया देश के योजनाकारों, राजनीतिक दलों और बुद्धिजीवियों के समक्ष पेश करती हैं.

डाइवर्सिटी के वैचारिक आन्दोलन का असर !

भोपाल घोषणा से जुड़ी टीम और बीडीएम से जुड़े लेखकों की सक्रियता से एससी/एसटी ही नहीं, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों में भी नौकरियों से आगे बढ़ कर उद्योग-व्यापार सहित हर क्षेत्र में भागीदारी की चाह पनपने लगी. संभवतः उद्योग-व्यापार में बहुजनों की भागीदारी की चाह का अनुमान लगा कर ही उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार ने जून 2009 में एससी/एसटी के लिए सरकारी ठेकों में 23 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा कर दिया. इसी तरह केंद्र सरकार ने 2011 में लघु और मध्यम इकाइयों से की जाने वाली खरीद में एससी/एसटी के लिए 4 प्रतिशत  आरक्षण घोषित किया गया . बाद में 2015 में बिहार में पहले जीतन राम मांझी और उनके बाद नीतीश कुमार सिर्फ एससी/एसटी ही नहीं, ओबीसी के लिए भी सरकारी ठेकों में आरक्षण लागू किया. यही नहीं बिहार में तो नवम्बर-2017 से आउट सोर्सिंग जॉब में भी बहुजनों के लिए आरक्षण लागू करने की बात प्रकाश में आई. किन्तु बहुजनों द्वारा सरकार पर जरुरी दबाव न बनाये जा के कारण इसका लाभ न मिल सका. हाल के वर्षों में कई राज्यों की सरकारों ने परम्परागत आरक्षण से आगे बढ़कर अपने-अपने राज्य के कुछ-कुछ विभागों के ठेकों, आउट सोर्सिंग जॉब, सप्लाई इत्यादि कई विभागों में आरक्षण देकर राष्ट्र को चौकाया है. कई राज्यों सरकारों ने आरक्षण का  50 प्रतिशत का दायरा तोड़ने के साथ निगमों, बोर्डो, सोसाइटियों में एससी/एसटी,ओबीसी को आरक्षण दिया : धार्मिक न्यासों में वंचित जाति के पुरुषों के साथ महिलाओं को शामिल करने का निर्णय लिया तो उसके पीछे डाइवर्सिटी का वैचारिक आन्दोलन ही है. साल भर पहले झारखण्ड की हेमत सोरेन सरकार ने 25 करोड़ तक ठेकों में एसटी, एससी, ओबीसी को प्राथमिकता दिए जाने की घोषणा कर राष्ट्र को चौका दिया था. निश्चय ही सरकार के उस फैसले के पीछे डाइवर्सिटी के वैचारिक आन्दोलन की भूमिका रही. जून 2021 के दूसरे सप्ताह में तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने वहां के 36,000 मंदिरों में गैर-ब्राह्मणों और महिलाओं की पुजारी के रूप में नियुक्ति का ऐतिहासिक निर्णय लेकर राष्ट्र को चौका दिया है. स्टालिन सरकार के इस क्रान्तिकारी फैसले के पीछे अवश्य ही डाइवर्सिटी आन्दोलन की भूमिका है. बहरहाल नौकरियों से आगे बढ़कर सीमित पैमाने पर ही सही सप्लाई, ठेकों, आउट सोर्सिंग जॉब में बिना बहुजनों के सड़कों पर उतरे ही, सिर्फ डाइवर्सिटी समर्थक लेखकों की कलम के जोर से कई जगह आरक्षण मिल गया. नौकरियों से आगे बढ़कर सप्लाई, ठेकों इत्यादि में आरक्षण के कुछ –कुछ दृष्टान्त साबित करते हैं कि डाइवर्सिटी अर्थात सर्वव्यापी आरक्षण की मांग सत्ता के बहरे कानों तक पहुंची और उसने ज्यादा तो नहीं, पर कुछ-कुछ अमल भी किया.

इस सिलसिले में हम विशेष रूप से आभार प्रकट करते हैं डॉ. संजय पासवान का, जिनके विशेष प्रयास से ही बीडीएम वजूद में आया. आभार प्रकट करते हूँ चंद्रभान प्रसाद, बुद्ध शरण हंस, डॉ. विजय कुमार त्रिशरण, इंजी.बृजपाल भारती, दिलीप मंडल, प्रो. वीरभारत तलवार, सुरेश केदारे, डॉ. राजबहादुर मौर्य, शीलबोधी, डॉ. जयप्रकाश कर्दम, ईश कुमार गंगानिया, डॉ. लालजी प्रसाद निर्मल, डॉ. पी एल संखवार, डॉ. कुसुम वियोगी, प्रदीप चौधरी, राजीव रतन, डॉ.पीएल आदर्श, डॉ. राजीव कुमार, निर्मल पासवान, सुदेश तनवर, वाई.एल. भारती, इंजी. सुनील सागर, इंजी सुमेध राजमूरत, डॉ. रामबिलास भारती, डॉ उमेश कुमार, बिनोद प्रसाद, राकेश पांडेय , डॉ. बीपी अशोक, जयपाल बी काम्बले,मिलिंद काम्बले, सुभाष गौतम, हीरालाल राजस्थानी, डॉ. लाल रत्नाकर, महेंद्र नारायण सिंह यादव, डॉ. अनिल यादव व अन्य शख्सियतों को, जिनके अपेक्षित सहयोग और सक्रियता के बिना भारत में डाइवर्सिटी की वैचारिक जमीन तैयार करना निहायत ही दुष्कर होता. हम आज के खास दिन के लिए  समस्त देशवासियों के साथ उपरोक्त डाइवर्सिटी नायकों को भूरि-भूरि बधाई देते हैं.