बहराइच। ‘जिन लोगों ने कभी हल छुआ तक नहीं, वे आज किसानों को जीरो लागत की खेती का ज्ञान दे रहे हैं।’ मेरे साथ बहराइच किसान मेले में घूमने आए गोंडा के किसान रोहित वर्मा ने मेला परिसर में घुसते हुये थोड़े व्यंग्य से कहा।
मेला परिसर में जो सबसे पहली चीज सामने आई वह थी, योगी-मोदी के कटआउटों की भरमार, गोया बहराइच किसान मेले में अगर ऐसे कटआउट न होंगे तो देखनेवाले विकास की सही तस्वीर नहीं देख पाएंगे। दूसरी चीज यह कि मंच से किसानों को गाय आधारित जीरो लागत वाली कृषि की बात समझाई जा रही थी। तमाम किसान वहां जुटे जरूर थे, लेकिन इस भाषण में उनकी कतई दिलचस्पी नहीं थी। वे पूरी-सब्जी का पैकेट लेते और बाहर आकर खाने में मशगूल हो जाते।
मंच पर मौजूद वक्ता यह बता रहे थे कि ‘विगत सरकारों ने किसानों से लगातार धोखाधड़ी की जबकि मोदी सरकार ने उनका सम्मान लौटाया है। नीम कोटेड यूरिया से लेकर स्थानीय बाज़ारों और वेयर हाउसों का विकास किया, जिससे किसानों की लागत दोगुनी-तिगुनी हो सके।’ वे इस बात पर खास ज़ोर दे रहे थे कि ‘अगर गाय आधारित खेती को बढ़ावा दिया जाय तो खेती की लागत जीरो हो सकती है।’
राम प्रसाद मौर्य बहराइच जिले के किसान हैं और वे इस बात पर थोड़े चिढ़ गए कि लोग मंच पाने के बाद कैसे अनाप-शनाप बकने लग जाते हैं। मौर्य का मानना है कि आवारा पशुओं ने लगातार किसानों को नुकसान पहुंचाया है और सरकार ने उन पर मियंत्रण का कोई प्रयास नहीं किया। गाय अब लाभकारी पशु नहीं रही, बल्कि वह बोझ होती जा रही है। वह इस बात को थोथी भाषणबाजी कहने लगे और मेरे साथ बतियाते हुये दूसरी ओर चले आए। उनका कहना था कि ‘गाय पर राज्य सरकार की नीति ने जितना किसानों का अहित किया है उससे कहीं अधिक गायों का नुकसान किया है। गाय तो किसानों की संपत्ति है, सदियों पहले उन्होंने इसे पालतू बनाया। किसानों की गायों से लोगों को दूध मयस्सर होता है, लेकिन भाजपा सरकार इसे धार्मिक पशु बनाकर क्या खेल कर रही है इसे लोगों को समय रहते चेत लेना चाहिए।’
देवीपाटन मण्डल के चार जिलों गोंडा, बलरामपुर, श्रावस्ती और बहराइच के किसानों का यह मेला कई मायनों में पूर्वी अवध की खेती-किसानी का मिजाज़ जानने का एक माध्यम भी बना है। एक तरफ यह बताता है कि कृषि-बागवानी जैसे श्रमजनित कामों को भी कैसे राजनीतिक जुमलेबाजी के चंगुल में रखा जा सकता है तो दूसरी तरफ यह कि इधर के दशकों में खेती में क्या बदलाव आए हैं? लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसान जुमलेबाजियों से थक चुका है। मेहनतकशी की अंतहीन शृंखला और इसके बावजूद वंचना और कर्ज के जाल ने उसे बुरी तरह तोड़ा है और अब वह कृषि-वाणिज्य में अपनी समुचित भागीदारी चाहता है। इसीलिए इस मेले में चलते हुये एक साथ कई विडंबनाओं के दर्शन होते हैं। हालांकि इसका सबसे सकारात्मक पक्ष यह है कि यह चार जिलों के किसानों को आपस में एकसूत्र में जोड़ रहा है।
किसानों के बीच प्रतियोगिता का भाव जगाने के लिए हुआ यह आयोजन
मेले के उद्घाटन के लिए आए देवीपाटन मण्डल के उद्यान उपनिदेशक डॉ. डीके वर्मा ने बातचीत में यह बताया कि ‘इस मंडलीय पुष्प प्रदर्शनी का आयोजन इसलिए किया गया है कि इस मंडल के जो 4 जिले हैं उनके किसान यहां अपने-अपने उत्पाद लाकर प्रदर्शित करें और साथ ही कृषि की नई जानकारियां लेकर यहां से जाएं और उनको इंप्लीमेंट करें। असल में यह मेला इसलिए आयोजित किया गया कि किसानों के बीच में जो लोग बहुत अच्छे उत्पाद पैदा कर रहे हैं, उनका कंपटीशन कराया जाए और उनको प्रोत्साहन दिया जाए। ताकि उन्नत और वैज्ञानिक फसलों तथा साकभाजी के प्रति लोगों का उत्साह बढ़े और उसका प्रचार-प्रसार हो। जो काश्तकार यहां पर आते हैं उनको प्रदर्शन नंबर दिया गया है। अगर उनका प्रदर्शन अच्छा होगा, तब उनको फर्स्ट, सेकंड और थर्ड का अवार्ड दिया जाएगा। इससे वे प्रोत्साहित होते हैं तथा और भी अच्छा कार्य करते हैं।’
किसानों की सहायता के विषय में डॉ. वर्मा ने बताया कि ‘राज्य सरकार की तरफ से साकभाजी और फलों की खेती कर रहे इन काश्तकारों को सहयोगस्वरूप राजकीय अनुदान दिया जाता है। वह एक अलग योजना है। लेकिन यह एक प्रयास है उनको प्रोत्साहित करने का है। उन्हें कोई पूछता नहीं है। इस आयोजन के माध्यम से हम अपने मंडल के काश्तकारों को प्रोत्साहित करना चाहते हैं। जो यहां आते हैं उनको पुरस्कार दिया जाता है। अनेक वीआईपी उनके कामों को देखते हैं। इस प्रकार वे प्रोत्साहित होते हैं और अच्छा कार्य करते हैं। अभी राजभवन में प्रादेशिक पुष्प प्रदर्शनी आयोजित की गई थी लेकिन यह देवीपाटन मंडल एक पिछड़ा इलाका है इसलिए यहां के किसानों का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता। जो अगड़े जनपद हैं। अगड़े डिविजन हैं सारे के सारे अवार्ड वे ही उठा ले जाते हैं। हमारा मंडल पीछे रह जाता है। इसको देखते हुये हमने यह आयोजन करने का निश्चय किया ताकि मण्डल स्तर पर जो हमारे काश्तकार छूट जाते हैं उन्हें इस तरह की प्रदर्शनी करके उनको प्रोत्साहित किया जाए। जनपद बहराइच में इसे किसान मेला के रूप में शुरू किया गया है। उसी का एक हिस्सा है मंडलीय पुष्प प्रदर्शनी। जनपदीय किसान मेला में अन्य विभागों ने भी भागीदारी की है। पशु विभाग और तमाम दूसरे ऐसे विभागों से लोग आए हुए हैं जो अपने-अपने क्षेत्र में नए-नए काम कर रहे हैं। वे उन कामों से किसानों को अवगत कराते हैं।’
डॉ. वर्मा कहते हैं कि ‘इस मेले में आपने देखा होगा कि किसान अनेक दुर्लभ अनाजों को भी यहां लाकर प्रदर्शित कर रहे हैं जिससे यह अंदाजा लगाना आसान है कि हमारे देश में किस तरह की फसली विविधता हुआ करती थी। रागी, कोदो और साँवा जैसे मोटे लेकिन लुप्तप्राय अनाज भी यहां प्रदर्शित किया गया है। इसकी खेती हमारे जिले में हो रही है। सरकार इसको बढ़ावा भी दे रही है। इस प्रकार मोटे अनाजों को बढ़ावा दिया जाना जरूरी है। अगर खपत बढ़ेगी तो किसानों की आय भी बढ़ेगी? वर्तमान में जो अनाज लुप्त प्राय हैं, वे हमारे स्वास्थ्य की जटिलताओं को देखते हुए बहुत जरूरी चीज हो गए हैं। अगर फिर से उनकी खेती शुरू होती है तो किसानों को अच्छा-खासा लाभ होगा और वे अपनी गरीबी तथा ऋणग्रस्तता से मुक्त हो सकते हैं। यह एक तरह से किसानों को इस बात का प्रोत्साहन देने का एक माध्यम भी है कि वे तमाम सारी स्थितियों का सामना करते हुए भी इस देश में फिर से लुप्तप्राय अनाज पैदा करें और इसका लाभ उनको ही नहीं, बल्कि समूचे समाज को मिले।’
वहीं मौजूद बहराइच के जिला उद्यान अधिकारी दिनेश चौधरी से भी हमारी बातचीत हुई। उन्होंने बताया कि ‘चार दिनों के इस आयोजन में मंडल के चारों जनपद से किसान शामिल हो रहे हैं। हम लोगों ने उनसे संपर्क करके यहां आने की गुजारिश की और काफी किसान, जो कि उन्नत किसान माने जाते हैं, लेकिन इस पिछड़े जनपद में कहीं खो से गए हैं। यह मेला उन्हें पहचान दिलाने का एक माध्यम भी है। किसान अपने-अपने उत्पाद लेकर यहां आए हैं और उन्होंने अपने-अपने स्टाल पर उसे रखा है। तमाम सारे लोग जो आ रहे हैं, वह इन चीजों को देख रहे हैं और उनको यह देखकर आश्चर्य भी हो रहा है कि किस तरीके से हमारी कृषि अभी विविधता पूर्ण है! खेती में अनेक ऐसी चीजें पैदा हो रही हैं जिनसे हम अच्छी तरह वाकिफ नहीं हैं। हम लोग किसानों को सम्मान देकर प्रोत्साहित करने का भी काम कर रहे हैं और इस मेले का उद्देश्य असल में यही है कि किसानों को सम्मानित किया जाए।’
मेले में बहुत-सी विविधता थी लेकिन एक उदासी भी थी
पूर्वी अवध का यह इलाका कई मामलों में अलग और समृद्ध है लेकिन यह छानबीन का विषय है कि इसके बावजूद यह पिछड़ा क्यों है। देवीपाटन मण्डल लखनऊ और गोरखपुर के बीच है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह ज़मीन अत्यंत उपजाऊ और समतल है। इसके बावजूद इसका पिछड़ापन क्यों बना हुआ है? मेले में मौजूद एक किसान से मैंने जब यह जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि ‘खेती में जितनी लागत है उतनी आमदनी हो पाना बहुत भाग्य की बात है। जिन लोगों के पास ज़मीन नहीं है उन्होंने मजदूरी के लिए बाहर का रास्ता लिया और जिनके पास बहुत ज़मीनें हैं वे सबसे ताकतवर हैं लेकिन छोटा अथवा मध्यम किसान खेती के अलावा कहाँ जाये? वह अब एक तरह से बँटाईदार बनकर रह गया है। इसके बावजूद आप देखेंगे कि उसने बहुत चीजें उगाई हैं।’
यह भी देखिये –
अनेक किसानों से बातचीत से यह पता चला कि वे बहुत मुश्किल से नए काम के लिए पैसा जुटा पाते हैं। उन्हें यह उम्मीद होती है आनेवाले समय में उनका काम बढ़ जाएगा और आजीविका सुदृढ़ होगी। यह बात उन अनेक उद्यमी किसानों को देखकर पता चलती थी कि वे एक बेहतर भविष्य के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं। इसके लिए कृषि के विकास के क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं से भी सहयोग लेते हैं और अनेक बार महाजनों से भी कर्ज़ लेते हैं। एक किसान ने बताया कि खेती ही एकमात्र आसरा है इसलिए कर्जे का फंदा भी गले में डालना पड़ता है। सच तो यह है कि उस कर्ज़ को चुकाते-चुकाते हमारे पास कुछ खास नहीं बच पाता। जो जरूरतें आज हैं वे कल भी बनी रहती हैं।
मेले में अनेक स्टालों पर घूमते हुए यह लगता है कि बहराइच का यह इलाका कई मामलों में समृद्ध है। हरी-भरी सब्जियां देखकर मन को एक अलग तरीके की खुशी मिल रही थी। एक स्टाल पर एक बड़ा-सा कोंहड़ा और बहुत बड़ी गोभी रखी हुई थी। पता लगा वह बहराइच के डीएम डॉ. दिनेश चंद्र की बागवानी से आई है और यह एक तरह से आश्चर्यचकित करने वाली बात थी कि उनकी बागवानी की अनेक सब्जियां यहां प्रदर्शित की गई थीं। इससे लगता है कि यदि अन्य जिलों के डीएम भी अपने कर्मचारियों को कृषि कार्य में लगाएँ तो डीएम कंपाउंड की बागवानी में आश्चर्यजनक विकास हो सकता है। डीएम साहब के बागवानी की सब्जियाँ लेकर बैठे कर्मचारियों को उम्मीद थी कि उनको प्रोत्साहित और सम्मानित किया जाएगा।
कई प्रकार के बंद गोभी व टमाटर के साथ शलजम, चुकंदर, शिमला मिर्च, बैंगन, कोहड़ा और भिंडी आदि अनेक सब्जियाँ थी। अनेक अंग्रेजी सब्जियां भी प्रदर्शित की गई थीं। पंडाल में एक ऐसी जगह भी थी जहां एक ही पौधे में आलू और टमाटर साथ लगे दिखाई पड़ रहे थे यानी जड़ में आलू और तने पर टमाटर। किसान उसके बारे में बताते हुए कह रहे थे कि यह पॉमैटो अभी हाल ही में विकसित की गई है।
इस मेले में बहुत कुछ प्रदर्शित था। इसमें रेशम के कीड़े और उसकी काम करने की प्रविधि आदि भी प्रदर्शित थीं। शहतूत का छोटा-सा पौधा और रेशम के कीड़ों की पूरी टोकरी वहां रखी हुई थी। हमें बताया गया कि किस तरीके से रेशम के कीड़े कोया उत्पादन करते हैं और फिर उनसे रेशम बनाया जाता है। रेशम कीट का कई चरणों में प्रदर्शन किया गया था। खासतौर से जब वह पत्तियां खाते हैं। आकार-प्रकार में भिन्न आलू की कई प्रजातियाँ थीं।
बहराइच के जरवल इलाके के किसान गुलाम मोहम्मद ने कश्मीरी रेड एप्पल प्रजाति का विकास किया था। यह असल में एप्पल बेर के नाम से प्रसिद्ध था।
इसी तरीके से हिमसोना टमाटर भी प्रदर्शित था जिसे राष्ट्रीय स्वर्ण जयंती पौधशाला नमनी, बहराइच में उगाया गाया गया था। ग्राम भगवानपुर बनकटी, ब्लाक इकौना (श्रावस्ती) के कृषक मशरूम फार्म के रामकुमार पाल और मनमोहन गोस्वामी ने अपने उत्पादों को यहां प्रदर्शित किया था। मशरूम कैसे उगाया जाता है, उसके लिए कितनी रोशनी अथवा अंधेरे और कितने तापमान की जरूरत होती? इन सारी चीजों को बताने के लिए कुछ चीजें रखी हुई थीं। मशरूम की कई प्रजातियां यहां प्रदर्शित थीं। कई तरह के अचार-मुरब्बे थे।
इस प्रकार मेले में फलों, सब्जियों और फूलों की विकसित की हुई नई प्रजातियों के साथ ही कई तरह के अतिरिक्त उत्पाद मसलन, शहद इत्यादि के साथ ही गाय और भैंसों के गर्भाधान के लिए अतिहिमकृत वीर्य के संरक्षण और उसके लाभ के बारे में भी एक स्टाल लगाया गया था। साथ ही दो भैंसें और दो गाय बँधी हुई थीं। मुर्गियों के कुछ अंडे थे। मुर्गियां पता नहीं कहां थीं, लेकिन अंडों को दिखाकर प्रदर्शनी में शामिल लोग यह बता रहे थे कि किस तरीके से हमारी मुर्गी अधिक अंडे देती है। इससे अधिक लाभ कमाया जाता है।
शहद के स्टाल पर कई तरह के स्वाद वाला शहद था। मसलन जामुन, अजवाइन या तुलसी के फ्लेवर वाला शहद वहाँ प्रदर्शित था। उत्पादक ने एक स्टिक पर शहर लपेटकर खाने को दिया ताकि हम उसका जायका ले सकें। हालांकि मुझे शक हुआ कि कहीं ऐसा तो नहीं कि शहद में उन्होंने इस तरह की चीजें अलग से मिला दी हों, लेकिन उन्होंने बताया कि वास्तव में वे मधुमक्खियों को फूलों का रस चूसने के लिए तुलसी, अजवाइन और दूसरे पौधों पर जाने के लिए वातावरण मुहैया कराते हैं।
भगवा रंग की जैकेट में एक किसान गुप्ताजी ने बताया कि उन्हें आज सम्मानित किया जा रहा है। पिछले साल की तरह इस बार भी वह सम्मानित हो रहे हैं।
किसानों की पीड़ा और माँग
दोपहर बीत रही थी। मेले की तमाम रौनक कम होने लगी थी। लोग वापस हो रहे थे। इस बीच कुछ किसानों से मेरी बातचीत हुई। बहराइच का एक किसान कई महीनों से किसान सम्मान निधि पाने के लिए भटकता मिला लेकिन उसे निधि की जगह आश्वासन ही मिलता रहा। उस उदास किसान ने दुखी स्वर में यह बताया कि संबंधित विभाग के लोग केवल दौड़ा रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ किया नहीं।
मेले में बहराइच जिले के किसान शिवशक्ति सिंह भी थे। उन्हें जैविक खेती का पितामह माना जाता है। अस्सी के लपेटे में चल रहे शिवशक्ति सिंह कुछ वर्ष पहले लकवा के शिकार हो गए थे। अब वे काफी हद तक ठीक हो चुके हैं लेकिन देर तक बातचीत करने में उन्हें परेशानी महसूस होती है।
उन्होंने बताया कि जैविक खेती के लिए उन्हें कई बार सम्मानित किया जा चुका है। लंबे समय तक उन्होंने औषधीय खेती की है। लेकिन श्री सिंह बहुत दुखी मन से कहते हैं कि सम्मान से किसी किसान का पेट नहीं भरता। जब तक वह अपनी उपज का पूरा मूल्य नहीं पाएगा तब तक उसकी स्थिति भिखारियों जैसी ही रहेगी।
वे कहते हैं कि ‘सरकार किसानों के अधिकार में ऐसी कोई जगह देने की पक्षधर नहीं है जहां वे अपनी उपज उचित दाम पर बेच सकें। वे मजबूर हैं कि अपना माल सस्ते में बेचें।’ वे कतिपय गुस्से में कहते हैं कि ‘मेरे सामने ही मुझसे खरीदकर व्यापारी हाथ के हाथ पाँच गुना दाम पर बेच देता है और मैं देखता रह जाता हूँ। बस मजदूरी ही हाथ आती है। अगर हमारे पास अपना आउटलेट हो तो हम भी अपनी फसल से इतना तो कमा ही सकेंगे कि सारी जरूरतें पूरी हो सकें। हमारी मेहनत के मुनाफे में हमारी भागीदारी होनी चाहिए।’