यह साहित्य बुद्ध का साहित्य भी नहीं है। आजीवक बुद्ध से पहले हुए और मक्खलि गोसाल सहित जिन पांच आजीवकों काे हम मानते हैं कि उन्होंने ब्राह्मणों के साहित्य-दर्शन को सबसे पहले चुनौती दी, वे सब ओबीसी जातियों के लोग थे। कोई नाई थे तो कोई यादव। वे सब श्रमण परंपरा के लोग थे।

ओबीसी साहित्य के मूल में ही सवाल उठाना है। आजीवकों की बात छोड़ते हैं। भारत के आजाद होने के पहले और उसके बाद की बात करते हैं। गुलामगिरी के रचनाकार जोतीराव फुले को याद करते हैं। उनके बाद के भिखारी ठाकुर ओबीसी साहित्यकार-कलाकार थे। वे नाई जाति के थे। उन्होंने जितनी रचनाएं रचीं, फिर चाहे वह ‘गबरघिचोर’ हो, ‘बेटीबेचवा’ हो या फिर ‘बिदेसिया’ हो, सवाल ही तो खड़ा करते हैं। हर बार वह उनलोगों से पूछते हैं जो खुद को शासक वर्ग का मानते हैं कि यदि तुम अपनी बेटी बेचते हो, तो तुम्हारी श्रेष्ठता कैसी है और कहां है?
आज मैं देर से जगा। सामान्यत: मैं छह से सात घंटे की नींद पूरी करता ही हूं। लेकिन आज मैंने इसे बढ़ाकर साढ़े आठ घंटे कर दिया। आंख भी तब खुली जब बगल में रहनेवाले एक मासूम की मासूम आवाज सुनायी दी। थोड़ी ही देर बाद घर से परिजनों का वीडियो कॉल आया तो मोबाइल में अपना चेहरा दिखा। अब हुआ यह कि मेरी पत्नी ने कहा कि चेहरा “भकुआएल” क्यों है।
नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।