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‘सरना कोड बिल’ घोषित कराने को लेकर आत्महत्या की धमकी, चार लोग हिरासत में

जमशेदपुर (भाषा)। झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले में मंगलवार को एक आदिवासी संगठन के एक महिला सहित चार कार्यकर्ताओं को उनकी इस धमकी के बाद हिरासत में ले लिया गया कि खूंटी की अपनी यात्रा के दौरान यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरना को धर्म के रूप में मान्यता देने की घोषणा नहीं करते हैं तो […]

जमशेदपुर (भाषा)। झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले में मंगलवार को एक आदिवासी संगठन के एक महिला सहित चार कार्यकर्ताओं को उनकी इस धमकी के बाद हिरासत में ले लिया गया कि खूंटी की अपनी यात्रा के दौरान यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरना को धर्म के रूप में मान्यता देने की घोषणा नहीं करते हैं तो वे आत्महत्या कर लेंगे। एसएसपी किशोर कौशल ने यह जानकारी देते हुए बताया कि आदिवासी सेंगेल अभियान (एएसए) की पृथ्वी मुर्मू और विक्रम हेम्ब्रम को एहतियात के तौर पर हिरासत में ले लिया गया। संगठन ने एक बयान में दावा किया कि पुलिस ने दो और कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया है। इसने कहा कि बोकारो जिले के पेटेरवार थान क्षेत्र में चंद्रमोहन मारडी और सरायकेला-खारसंवा जिले के गम्हरिया के कान्हूराम टूडू को हिरासत में ले लिया गया। हालांकि, दोनों जिलों की पुलिस से इन लोगों की हिरासत की पुष्टि के सिलसिले में संपर्क नहीं किया जा सका है।

इस बीच, प्रेमशीला मुर्मू नामक एक अन्य एएसए नेता ने मंगलवार को ऐसी ही धमकी दी। सरना को पृथक धर्म के रूप में मान्यता देने की मांग करते हुए एएसए प्रमुख साल्खान मुर्मू ने कहा कि आदिवासी प्रकृति की पूजा करते हैं और वे हिंदू, मुसलमान या ईसाई नहीं हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें आशा है कि प्रधानमंत्री मोदी प्रकृति-पूजकों की भावना का सम्मान करेंगे और खूंटी में आदिवासी नेता बिरसा मुंडा की जयंती पर सरना धर्म (Sarna Code Bill) को मान्यता देने की घोषणा करेंगे। बुधवार को मोदी खूंटी जिले में उलीहाटू गांव में मुंडा की जन्मस्थली जाएंगे और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। प्रधानमंत्री खूंटी में तीसरे जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर एक कार्यक्रम में भाग भी लेंगे। इस कार्यक्रम में वह ‘विकसित भारत संकल्प यात्रा’ और ‘विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह मिशन’ की शुरुआत करेंगे।

आदिवासी सिंगल अभियान में जोनल हेड (संताल परगना) अमर मरांडी ने कहा कि झारखंड का आदिवासी समाज वर्ष 1980 से सरना धर्म को लेकर आंदोलनरत हैं। उस समय से लेकर आज तक ऐसा कोई राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री नहीं हुआ जिसको आदिवासियों ने अपना मांग पत्र न सौंपा हो। संवैधानिक नियमों को ध्यान में रखते हुए प्रकृति पूजक, अपना अधिकार माँग रहे हैं। यह आदिवासी खुद को हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई नहीं मानते हैं। ये लोग ‘सरना धर्म’ की माँग कर रहे हैं ताकि आदिवासी समाज इससे जुड़कर अपने सांस्कृतिक परम्परा को आगे बढ़ा सके। उन्होंने बताया कि 15 नवम्बर यानी बिरसा मुंडा की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झारखंड आ रहे हैं। मीडिया के माध्यम से मालूम चला है कि मोदी हम लोगो के लिए कई योजनाएँ लागू करेंगे। हमें योजनाएँ तो चाहिए ही लेकिन उससे पहले हमारी पहचान दे दीजिए। इसके लिए 2014 से अब तक पीएम को कम से कम 1000 बार पत्र लिखा गया है।

एक सवाल में जवाब में अमर मरांडी ने कहा कि आदिवासी समाज जानता है कि पीएम का यह कार्यक्रम चुनावी है। इसलिए वह आत्महत्या का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं और यही उनका आखिरी विकल्प भी है। ‘सरना धर्म’ के लिए आदिवासियों ने सरकार के दरबार में दशकों से हजारों बार प्रयास किया है। यही नहीं दिल्ली, राँची, असम, पटना, बिहार जैसे कई जिलों में आदिवासियों ने बैठकें भी की लेकिन हमें आजतक आश्वासन ही मिलता आया है। देश का नागरिक होते हुए हमें हमारे अधिकार नहीं दिए जा रहे हैं। सरना धर्म कोड की मांग का मतलब यह है कि भारत में होने वाली जनगणना के दौरान प्रत्येक व्यक्ति के लिए जो फ़ॉर्म भरा जाता है, उसमें दूसरे सभी धर्मों की तरह आदिवासियों के धर्म का ज़िक्र करने के लिए अलग से एक कॉलम बनाया जाए। इसी के साथ उन्होंने यह भी बताया कि अब तक चार लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है।

देश की राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू हैं तो आप लोगों को क्या लगता है पीएम मोदी आप लोगों की माँग को मान लेंगे? इस पर अमर मरांडी ने कहा कि यह सरकार को सोचना चाहिए। हम आदिवासियों से बातचीत करनी चाहिए। चूंकि सरकार के पास इंटेलिजेंस विभाग भी हैं वह उनसे पता करें कि हमारी क्या-क्या माँगे हैं। सरकार को इसकी जाँच करवानी चाहिए। इस बार हमें भी उम्मीद है कि सरकार हमारी माँगें मान लेगी।

क्या हैं सरना धर्म

अमन मरांडी ने बताया कि सरना धर्म, भारतीय धर्म परंपरा का एक आदि धर्म और जीवनपद्धति है। इस धर्म के अनुयायी छोटा नागपुर के पठारी भागों के बहुत से आदिवासी हैं। इस धर्म के अनुयायी झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा, असम और महाराष्ट्र में पाए जाते हैं। सरना धर्म को मानने वाले लोग प्रकृति की पूजा करते हैं। इसमें मूर्ति पूजा की बजाय प्रकृति पूजा का विधान है। आदिवासी लोग मुख्य रूप से प्रकृति यानी पहाड़, जंगल, मवेशी, वनस्पति और जीव-जंतुओं की पूजा करते हैं। वह बताते हैं कि आदिवासी इलाकों में हजारों साल से दूसरा कोई धर्म नहीं था। इसलिए जब दूसरे धर्म इन इलाकों में आए, तो पहचान के लिए एक नाम रखना ज़रूरी हो गया। सरना स्थल का मतलब पूजा स्थल है, के आधार पर प्रकृति पूजा पद्धति को सरना धर्म का नाम दे दिया गया।

गाँव के लोग
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