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गुजरात में अवमानना को लेकर चार पुलिसकर्मियों को 14 दिन की सजा

अहमदाबाद (भाषा)। गुजरात राज्य के खेड़ा जिले के उंधेला गांव में 4 अक्टूबर 2022 को गरबा कार्यक्रम हुआ था। कार्यक्रम के दौरान मुस्लिम समुदाय पर कथित तौर पर पथराव करने के आरोप लगे थे। इस घटना में कुछ ग्रामीण और पुलिसकर्मी घायल हुए थे। पुलिस ने इस मामले में 13 लोगों को पकड़ा था। इसमें […]

अहमदाबाद (भाषा)। गुजरात राज्य के खेड़ा जिले के उंधेला गांव में 4 अक्टूबर 2022 को गरबा कार्यक्रम हुआ था। कार्यक्रम के दौरान मुस्लिम समुदाय पर कथित तौर पर पथराव करने के आरोप लगे थे। इस घटना में कुछ ग्रामीण और पुलिसकर्मी घायल हुए थे। पुलिस ने इस मामले में 13 लोगों को पकड़ा था। इसमें पांच को पुलिसकर्मियों ने सार्वजनिक रूप से पीटा था। सोशल मीडिया में वीडियो वायरल होने के बाद हाईकोर्ट ने पुलिसकर्मियों के रवैए पर नाराजगी जताई थी। तत्कालीन डीजीपी आशीष भाटिया ने जांच के आदेश भी दिए थे। इसके बाद से यह पूरा मामला हाईकोर्ट में चल रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस पूरे मामले में तब खेड़ा पुलिस के रवैए की काफी लोगों ने सोशल मीडिया पर तारीफ भी की थी, लेकिन आरोपियों को पीटने वाले पुलिसकर्मी अब बैकफुट पर हैं और कोर्ट से आवमानना की कार्रवाई नहीं करने का आग्रह कर रहे हैं।

न्यायमूर्ति ए एस सुपेहिया और न्यायमूर्ति गीता गोपी की खंडपीठ ने चारों पुलिसकर्मियों को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया और उन्हें सजा के तौर पर 14 दिन जेल में बिताने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति सुपेहिया के नेतृत्व वाली पीठ ने इन पुलिसकर्मियों को, आदेश मिलने के 10 दिनों के भीतर अदालत के न्यायिक रजिस्ट्रार के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया है।

 पीड़ितों की तरफ से पुलिस की मुआवजे की पेशकश को ठुकराने के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले में 19 अक्टूबर को फैसला सुनाने का ऐलान किया है। इस मामले के सामने आने पर तत्कालीन पुडुचेरी की उपराज्यपाल किरण बेदी ने कुछ लोगों की सार्वजनिक पिटाई करने पर गुजरात पुलिस की खिंचाई की थी।

उच्च न्यायालय ने घटना की जांच के बाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम), खेड़ा द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में पुलिसकर्मियों की पहचान होने और उनकी भूमिका निर्दिष्ट होने के बाद उनके खिलाफ आरोप तय किए थे।

हाईकोर्ट ने गुरुवार को आरोपी पुलिसकर्मी ए वी परमार, डी बी कुमावत, लक्ष्‍मणसिंह कनकसिंह डाभी तथा राजुभाई डाभी को इस मामले में 14 दिन की सजा व दो-दो हजार रुपये का जुर्माना लगाया। न्‍यायालय ने इन पुलिसकर्मियों को मानव अधिकारों के उल्‍लंघन का दोषी बताते हुए उनके इस क्रत्‍य को अमानवीय बताया। साथ ही पुलिस विभाग की अपील पर सजा पर रोक के साथ दोषियों को उच्‍चतम न्‍यायालय जाने के लिए 90 दिन की छूट दी है।

हालांकि, शिकायतकर्ताओं के वकील आईएच सैयद ने इसका विरोध करते हुए कहा, ‘यदि इस तरह के कृत्य को मुआवजे, जुर्माना या माफी के माध्यम से माफ कर दिया जाता है, तो इससे अदालत की गरिमा प्रभावित होगी। यह गलत मिसाल भी कायम करेगा, क्योंकि इससे अन्य पुलिसकर्मियों को ऐसा काम करने का प्रोत्साहन मिलेगा।’

पीठ ने मामले को लंबित रखने के जानी के विचार को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पुलिसकर्मियों ने ‘हिरासत में लिये गए व्यक्तियों को खंभे से बांधकर और फिर ग्रामीणों के सामने उनकी पिटायी करके अमानवीय कृत्य किया।’

जिन पांच व्यक्तियों की पुलिसकर्मियों ने कथित तौर पर पिटायी की थी, उन्होंने उन चार पुलिसकर्मियों से आर्थिक मुआवजा लेने से इनकार भी कर दिया था, जिन्हें इस कृत्य के लिए अदालत की अवमानना का दोषी पाया गया था।

बाद में, मुख्य शिकायतकर्ता जाहिरमिया मालेक सहित पांच आरोपियों ने उच्च न्यायालय का रुख किया था और दावा किया था कि इस कृत्य में शामिल पुलिस कर्मियों ने गिरफ्तारी पर उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन करके अदालत की अवमानना की है।

शीर्ष अदालत ने 1996 के अपने ऐतिहासिक फैसले के तहत गिरफ्तारी और हिरासत के सभी मामलों में अनुपालन के लिए दिशानिर्देश जारी किये थे।

शुरुआत में कुल 13 पुलिसकर्मियों को आरोपी बनाया गया था। बाद में, घटना की जांच के बाद खेड़ा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में चार पुलिसकर्मियों को ही दोषी माना गया।

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