Sunday, September 15, 2024
Sunday, September 15, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमपूर्वांचलजमीन के मसले सुलझाने में असफल सरकार, जहर और आग के रास्ते...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

जमीन के मसले सुलझाने में असफल सरकार, जहर और आग के रास्ते न्याय तलाशता उत्तर प्रदेश

वाराणसी। बीते चार सितम्बर को जनता दर्शन के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि ‘लोग बहुत उम्मीद से हमारे पास आते हैं। ऐसे में जरूरी है कि उनकी हर समस्या का समाधान हो। अधिकारी समस्याओं को पूरी संज़ीदगी से सुनें और उसे हल करें। जमीन पर अवैध तरीके से कब्जा करने वालों के […]

वाराणसी। बीते चार सितम्बर को जनता दर्शन के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि ‘लोग बहुत उम्मीद से हमारे पास आते हैं। ऐसे में जरूरी है कि उनकी हर समस्या का समाधान हो। अधिकारी समस्याओं को पूरी संज़ीदगी से सुनें और उसे हल करें। जमीन पर अवैध तरीके से कब्जा करने वालों के खिलाफ उन्होंने कठोर कार्रवाई के निर्देश भी दिए थे।’

बावजूद इसके, आए दिन ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिससे यह मालूम चलता है कि प्रदेश सरकार के दिए गए आदेश-निर्देश सिर्फ दिखावा मात्र हैं। ज़मीन सहित अन्य शिकायतों के समाधान के लिए भाजपा शासन में महीने के पहले-तीसरे शनिवार को तहसील दिवस और दूसरे-चौथे शनिवार को थाना दिवस की व्यवस्था की गई। इस सब के बाद भी ज़मीन सम्बंधी समस्याओं का समाधान न होना, इन व्यवस्थाओं की सचाई बयाँ कर रहा है। हाल ही में हुआ नृशंस देवरिया कांड इस लापरवाही की उपज है। यूपी में एक सप्ताह के दौरान हुआ दो अन्य मामला भी अफसरों की लापरवाही की आईनादारी करता है। मामला कानपुर एवं वाराणसी का है, जहाँ समस्याओं का समाधान न होने और सरकारी महकमें की अनदेखी के कारण पीड़ित ने जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपकर उनके ऑफिस के बाहर ज़हर खा लिया वहीं दूसरी ओर, वाराणसी में एक महिला ने ज़मीन के विवाद का समाधान न होने पर खुद को आग लगा ली थी।

जानकारी के अनुसार, यूपी के कानपुर देहात थाना रूरा के मड़ौली गाँव में बीते फरवरी माह में ज़मीन से कब्जा हटाने के दौरान प्रमिला चिल्लाते हुए दौड़कर झोपड़ी में चली गई और उसने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। इसके बाद मौके पर उपस्थित पुलिस ने दरवाजा तोड़ दिया और इसी दौरान झोपड़ी में आग लग गई। महिला और उसकी बेटी अंदर थी। पुलिस फोर्स और अफसरों के सामने दोनों की जिंदा जलकर मौत हो गई। वहीं, दोनों को बचाने में पति कृष्ण गोपाल बुरी तरह झुलस गए। इस मामले में एसडीएम, कोतवाल और लेखपाल समेत अन्य कर्मियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था।

मृत महिला के पति कृष्ण गोपाल दीक्षित का आरोप है कि प्रशासन के लोगों ने गाँव के कुछ लोगों के कहने पर उनके घर में आग लगवा दी थी। हालांकि, जिलाधिकारी ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा था कि मामले की निष्पक्ष जाँच करवाई जा रही है।

दूसरी तरफ, मड़ौली कांड को लेकर सपा-कांग्रेस ने न्यायपालिका को ठेंगा दिखाते हुए चलाई जा रही भाजपा की बुलडोजर नीति पर भी सवाल उठाया था। साथ ही पीड़ित परिवार को न्याय न मिलने तक लड़ाई जारी रखने का ऐलान भी किया था। प्रशासन ने भी इस हाईप्रोफाइल मामले में एसआईटी टीम का गठन किया था। हरदोई के डिप्टी एसपी विकास जायसवाल के नेतृत्व में जाँच शुरू हुई और 15 दिन के बाद जाँच और मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

कानपुर प्रकरण में बेटे ने दर्ज कराई थी एफआईआर

मृतका के बेटे शिवम ने एफआईआर में बताया था कि विवादित जमीन उनके पास 100 से अधिक सालों से है। इस जमीन पर उनके दादा-बाबा ने बगीचा बनाया था। अब करीब 20 सालों से उनके माता-पिता इस जमीन पर पक्का मकान बनाकर रह रहे थे। एफआईआर के अनुसार, बीते 14 जनवरी को एसडीएम मेथा, पुलिस और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के साथ पूर्व में बिना नोटिस दिए मकान गिराने आए थे। जब एसडीएम से मकान गिराने सम्बंधी जानकारी मांगी गई तो उन्होंने कहा कि ‘तुम्हारी ग्राम सभा के अशोक दीक्षित ने तुम्हारे खिलाफ ग्राम सभा की जमीन पर अवैध तरीके से पक्का निर्माण कर रहने का आरोप लगाते हुये प्रार्थना पत्र दिया है।’ शिवम के अनुसार, उन्हें पूर्व में नोटिस-सूचना दिए बगैर, बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए ही उनका मकान गिरा दिया। फूस का छप्पर जिसमें बकरियाँ-गोवंश थे, उसे छोड़ा दिया गया था।

एफआईआर में शिवम के हवाले से बताया गया था कि इसके बाद वह अपने परिवार के साथ जिलाधिकारी कार्यालय पहुँचे। आरोप है कि यहाँ पीड़ित परिवार की सुनवाई नहीं की गई और बल्कि परिवार के लोगों के खिलाफ थाना अकबरपुर में बलवा का मुकदमा लिखवा दिया गया और जेल भेजने की धमकी देकर वहाँ से भगा दिया गया।

बीते 24 अक्टूबर को भी पीड़ित शिवम इस मामले को जिलाधिकारी को ज्ञापन देने गया था। उसने डीएम से कहा था कि ‘मेरी माँगें नहीं सुनीं जा रही हैं, वहीं आरोपियों द्वारा धमकी भी मिल रही है। वह कई बार कार्यालय आकर गुहार लगा चुका है पर कोई समाधान नहीं निकाला जा रहा है।’ शिवम यह गुहार लगाकर बाहर निकला और जेब में रखी चूहे मारने वाली दवा खा ली। अचेत होकर शिवम के गिरते ही कलेक्ट्रेट में हंगामा मच गया। मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने आनन-फानन में उसे जिला अस्पताल पहुँचाया। सूचना पाकर शिवम के पिता कृष्णगोपाल भी अस्पताल पहुँच गए। उन्होंने बताया कि मेरी पत्नी और बेटी की मौत के बाद परिवार को मुआवजा राशि, मकान और बेटे को सरकारी नौकरी देने का आश्वासन दिया गया था जो पूरा नहीं किया गया। आरोपी आज भी घूम रहे हैं और शासन-प्रशासन हमारी माँगों को नज़रअंदाज़ कर रहा है।

उल्लेखनीय है कि इस मामले में यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने उस वक्त कहा था कि अधिकारियों से बात की है, किसी भी दोषी को हम बख्शेंगे नहीं। प्रशासनिक अधिकारी हों या पुलिस के अधिकारी, कानपुर में झुग्गी-झोपड़ी पर जाकर जिन लोगों ने ऐसा काम किया है, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। उन्होंने जांच कमेटी भी बनाई थी लेकिन रिपोर्ट को लेकर आज भी पीड़ित परिवार सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट रहा है।

कानपूर के नृशंस प्रकरण में मृत महिलाओं की फाइल फोटो

वहीं, डीएम आलोक सिंह ने कहा कि अंश और उसके भाई शिवम को पाँच-पाँच लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी गई थी। अंश दीक्षित के नाम 0.281 कृषि पट्टा एवं 100 वर्ग मीटर का आवास पट्टा, शिवम दीक्षित के नाम 0.281 कृषि पट्टा एवं 100 वर्ग मीटर का आवास पट्टा किया जा चुका है। अंश नगर पंचायत अकबरपुर में आउटसोर्सिंग पर कार्यरत है। बाकी माँगों पर शासन से बात की जाएगी।

वाराणसी में न्याय के लिए महिला ने खुद को लगाई आग

दूसरा मामला प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का है। जिले के फूलपुर थाना क्षेत्र के करखियांव गाँव में बीते शनिवार को चकरोड के विवाद में एक महिला ने खुद पर पेट्रोल छिड़क कर आग लगा ली। कुछ ही देर में महिला पूरी तरह आग की लपटों में घिर गई। एक युवक ने महिला के कपड़े खींचकर उसे बचाया, हालांकि, तब तक महिला 20 प्रतिशत से ज्यादा जल चुकी थी। उसे पीएचसी पिंडरा से दीनदयाल के लिए रेफर कर दिया गया। जानकारी मिलते ही मौके पर एडीएम पिंडरा, डीसीपी गोमती जोन, एसीपी, थाना अध्यक्ष फूलपुर पहुँच गए।

फूलपुर एसओ दीपक राणावत के अनुसार, ‘थाना क्षेत्र के करखियांव निवासी पार्वती देवी (50) के पति कन्हैया की कुछ वर्ष पहले मौत हो चुकी है। उनके घर के सामने पहले से चकरोड बना हुआ है। महिला का दावा है कि चकरोड उसकी निजी भूमि पर बना है। पूर्व में उसके परिवार के सहमति से इसे बनाया गया था। चकरोड पर शनिवार को गांव के लोग मिट्टी डालकर उसे ठीक कर रहे थे। इस दौरान पार्वती पहुँच गई। उसने विरोध करना शुरू कर दिया। महिला ने बगल में स्थित आबादी की ज़मीन पर मिट्टी डालकर चकरोड बनाने की बात की।

पीड़ित महिला ने बताया कि गाँव के कई लोगों से उसकी बहस हो गई। इससे परेशान होकर उसने अपने घर पर खड़ी बाइक से पेट्रोल निकालकर खुद पर उड़ेल लिया। इसके बाद माचिस निकाल कर साड़ी में आग लगा ली। एक मिनट 29 सेकेंड के वायरल वीडियो में महिला कुछ लोगों के साथ बहस करती नजर आ रही है। इसके बाद अगले ही पल साड़ी में आग लगा लेती है। इसके बाद चीखने लगती है। कुछ ही पल में वह आग की लपटों में घिर जाती है। इस बीच कुछ दूरी पर मोबाइल पर बात कर रहा युवक दौड़कर आता है। वह महिला के कपड़े खींचकर उसे बचाता है।

महिला को गाँव के लोग पीएचसी पिंडरा ले गए। प्राथमिक उपचार के बाद उसे चिकित्सकों ने दीनदयाल अस्पताल के बर्न यूनिट के लिए रेफर कर दिया। चिकित्सक डॉ. प्रदीप कुमार ने बताया कि महिला की हालत अब ठीक है। वहीं, घटना के बाद सहायक पुलिस आयुक्त प्रबल प्रताप सिंह, एसडीएम पिंडरा प्रतिभा मिश्रा, एडीसीपी टी. सरवन, एसीपी प्रतीक कुमार, एसओ दीपक कुमार राणावत, कानूनगो व लेखपाल मौके पर पहुँच गए।

तेरह लोगों के खिलाफ दी गई तहरीर

मामले के बावत फूलपुर एसओ ने ‘गाँव के लोग’ को बताया कि विपक्षी एवं महिला दोनों पट्टीदार हैं। सम्पत्ति को लेकर विवाद था। 1995 में जमीन से चकरोड निकला था। उस दिन गाँव के लोग उसे बनाने जा रहे थे। इस पर महिला ने विवाद खड़ा कर दिया। महिला ने तेल छिड़कर आग लगा ली है। पार्वती के पुत्र रोहित कुमार ने 13 लोगों के खिलाफ नामजद तहरीर दी थी। उनकी गिरफ्तारी के बाद जेल भेज दिया गया है। उन्होंने कानूनी प्रक्रिया के तहत ज़मानत ले ली है।

इन दोनों मामलों में सरकार के सिस्टम पर एक बड़ा सवाल खड़ा दिया है। जनता को न्याय दिलाने को लेकर एक तरफ सरकार के बड़े-बड़े दावें है तो दूसरी तरफ मीडिया में सुर्खियाँ बनने वाले ऐसे मामले। कानपुर मामले पीड़ित शिवम ने कई बार जिलाधिकारी कार्यालय से लेकर राजनीतिज्ञों के यहाँ अपनी हाज़िरी लगाई बावजूद इसके उसकी माँगें आज तक नहीं मानी गईं। वहीं, वाराणसी के पार्वती मामले में भी ग्रामीणों का कहना है कि चकरोड का यह विवाद काफी पुराना है। इस मामले में कई बार पुलिस प्रशासन ने भी कार्रवाई की है।

अंतत: दोनों मामलों में पीड़ित की दशा, दुर्दशा में बदल गई है।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here