Saturday, July 27, 2024
होमस्वास्थ्यकुदरती इलाज का खज़ाना हैं जड़ी-बूटियां

ताज़ा ख़बरें

संबंधित खबरें

कुदरती इलाज का खज़ाना हैं जड़ी-बूटियां

बागेश्वर (उत्तराखंड)। विज्ञान की तरक्की ने इंसानी ज़िंदगी को बहुत आसान बना दिया है। इस तरक्की का सबसे अधिक लाभ मेडिकल क्षेत्र को हुआ है। इससे कई गंभीर बीमारियों का इलाज मुमकिन हो सका है। अगर हम शल्य चिकित्सा की बात छोड़ दें तो हज़ारों सालों से मनुष्य बीमारी को दूर करने के लिए प्राकृतिक […]

बागेश्वर (उत्तराखंड)। विज्ञान की तरक्की ने इंसानी ज़िंदगी को बहुत आसान बना दिया है। इस तरक्की का सबसे अधिक लाभ मेडिकल क्षेत्र को हुआ है। इससे कई गंभीर बीमारियों का इलाज मुमकिन हो सका है। अगर हम शल्य चिकित्सा की बात छोड़ दें तो हज़ारों सालों से मनुष्य बीमारी को दूर करने के लिए प्राकृतिक रुप से तैयार जड़ी-बूटियों पर निर्भर रहा है। आज भी एलोपैथ की धाक के बावजूद जड़ी बूटियों का महत्व कम नहीं हुआ है। हजारों वर्षों से मनुष्य रोग निदान के लिए विभिन्न प्रकार के पौधे को जड़ी बूटियों में प्रयोग करता रहा है। औषधि प्रदान करने वाले इनमें से अधिकतर पौधे जंगलों में पाए जाते हैं। जिसका उपयोग प्राचीन काल से मनुष्य उपचार के लिए करता आ रहा है। यह बूटियां बहुत गुणकारी होती हैं। इनमें से कई जड़ी बूटियों को अपने घर में भी उगाते हैं क्योंकि पौधो की जड़, तने, पत्तियां, फूल, फल, बीज यहाँ तक कि छाल का भी उपयोग घरेलू उपचार के लिए किया जाता है। हमारे जीवन में औषधियों का बहुत बड़ा महत्व होता है। औषधि अगर प्राकृतिक हो तो उसका स्वास्थ्य और शरीर पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है। ये प्राकृतिक औषधि बहुत गुणकारी होती है।

अगर हमें इन जड़ी-बूटियों के उपचार से कोई लाभ नहीं होता है तो इससे कोई हानि भी नहीं पहुंचती है। पहले समय में जब लोगों के पास सुविधाएं सुचारु रुप से उपलब्ध नहीं हुआ करती थीं तो उन्हें कोसों दूर चलकर डॉक्टरी इलाज के लिए जाने पड़ता था, लेकिन सुविधाएं नहीं हुआ करती थीं तब लोग प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से इलाज किया करते थे। आज भी बहुत से ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां लोग घरेलू जड़ी-बूटियों से अपना उपचार करवाते हैं। इन प्राकृतिक औषधियों से उपचार करना बहुत ही गुणकारी होता है। जैसे जुकाम, चोट, सांप के काटने पर, बच्चे की छाती में कफ जमना तथा फोड़े-फुंसी आदि प्रमुख हैं।

[bs-quote quote=”अरन्डी का पत्ता भी बहुत गुणकारी औषधि है। इसका इस्तेमाल गुमचोट, सूजन जैसे रोगों को दूर करने के लिए किया जाता है। अरन्डी के पत्ते पर सरसों का तेल लगाकर तवे पर गरम करके चोट पर लगाने से बहुत लाभ मिलता है। कुमरीया झाड़ भी एक औषधि है जिसके बहुत से लाभ हैं। इसे लगाने पर गहरे से गहरे घाव का रक्त बहना बंद हो जाता है और राहत भी मिलती है। यह बिल्कुल टीनचर आयोडिन की भांति होता है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक का चोरसौ गांव इसका उदाहरण है, जहां आज भी जड़ी-बूटियों से ही इलाज किया जाता है। इस संबंध में गांव की एक महिला मीना चंद पिछले लगभग 12 सालों से जड़ी-बूटियों के माध्यम से लोगों का इलाज कर रही हैं। वह बताती हैं कि जब बच्चे की छाती में बहुत अधिक कफ जमा हो जाता है तो छाती चोक हो जाती है। ऐसी अवस्था में शिशु स्तनपान तक नहीं कर पाता है। इससे कई बच्चों की जान तक चली जाती है। पहाड़ों में इस बीमारी को चुपड़ा कहते है। मीना जड़ी-बूटियों से चुपड़ा की दवाई बनाकर नवजात शिशु से लेकर 10 साल के बच्चों को मुफ्त प्रदान करती हैं। वह कहती हैं कि मुझे समाज सेवा करना बहुत अच्छा लगता है। गांव चोरसौ की हीरा देवी का कहना है कि मीना पिछले 14 साल से लोगों का जड़ी-बूटियों से घरेलू उपचार कर रही हैं। कमाउनी भाषा में इस औषधि को केरवा कहते हैं। यह सिर में, दाड़ी में फंगस लग जाने में या बाल उखड़ जाने पर इस्तेमाल किया जाता है। केरवा की लकड़ी को पीसकर काली मिर्च में मिला कर लगाने से ऐसे रोगों से आराम मिलता है और उस स्थान पर तुरंत बाल भी उग आते हैं। केरवा बहुत गुणकारी औषधि है। ये बरसात के मौसम में पाई जाने वाली बेल है।

अरन्डी का पत्ता भी बहुत गुणकारी औषधि है

रवि चन्द नौछर गांव में रहते हैं। इनका कहना है कि वह पिछले 17 सालों से घरेलू जड़ी-बूटियों से अलग-अलग रोगों का इलाज कर रहे हैं और अधिकतर लोग इनकी गुणकारी औषधियों का लाभ उठा रहे हैं। अरन्डी का पत्ता भी बहुत गुणकारी औषधि है। इसका इस्तेमाल गुमचोट, सूजन जैसे रोगों को दूर करने के लिए किया जाता है। अरन्डी के पत्ते पर सरसों का तेल लगाकर तवे पर गरम करके चोट पर लगाने से बहुत लाभ मिलता है। कुमरीया झाड़ भी एक औषधि है जिसके बहुत से लाभ हैं। इसे लगाने पर गहरे से गहरे घाव का रक्त बहना बंद हो जाता है और राहत भी मिलती है। यह बिल्कुल टीनचर आयोडिन की भांति होता है। आज के समय में हम जिसे बीटाडीन कहते है। इस बूटी का इस्तेमाल बीटाडीन बनाने में भी किया जाता है।

राजुली देवी गांव चोरसौ की रहनेवाली हैं। इनका कहना है कि में जड़ी-बूटियों द्वारा घरेलू उपचार करती हूँ, यह कार्य करते हुए लगभग 8 वर्ष हो चुके हैं। पहाड़ों में या फिर कुँमाऊनी में जिसे अतकपाली कहां जाता है। इसमें रोगी के आधे सिर में असहनीय दर्द होता है। जिसे माईग्रेन भी कहा जाता है। ऐसी ही जड़ी-बूटी के बारे में इन्होंने बताया जिसे पांच पत्तियां भी कहते हैं। यह फोड़े-फुंसी पर लगाने से राहत देते हैं। यदि कहीं पर गांठ बन जाती है तो यह उसमें भी इस्तेमाल की जाती है। गांव की सरस्वती देवी का कहना है कि मेरे 6 महीने के बेटे को अचानक एक दिन खांसी हुई। दूध पीने में भी उसे बड़ी दिक्कत हो रही थी। सांस भी नहीं ले पा रहा था। डॉक्टर को भी दिखाया, लेकिन दवाई से उसे उल्टी होने लगी, जिससे हम काफी परेशान हो गए फिर हमने जड़ी-बूटी के माध्यम से उसका इलाज करवाया और वह बहुत जल्द स्वस्थ हो गया।

यह भी पढ़ें…

सिंजाजेविना पहाड़ों और वहां के पशुपालक समुदायों की रक्षा की लड़ाई

गांव की मीना चंद का भी कहना है कि जड़ी-बूटी से इलाज के बाद ही हमारे बच्चे को आराम मिला। कभी कभी बड़ी-बड़ी बीमारियों का इलाज भी इन छोटी-छोटी जड़ी बूटियों से हो जाता है। गांव की पूनम कहना है कि मुझे 8 वर्षों से माइग्रेन की समस्या थी। मैंने बहुत इलाज करवाया लेकिन कोई भी नहीं असर नहीं हुआ। फिर जड़ी-बूटी के माध्यम से इलाज करवाया और आज 4 साल हो चुके हैं मुझे माइग्रेन के दर्द से हमेशा के लिए छुटकारा मिल गया है।

नीलम ग्रेंडी उत्तराखंड में पत्रकार हैं।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट की यथासंभव मदद करें।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

लोकप्रिय खबरें