आज का सवर्ण समाज और उसके हमदर्द व्याख्याता, इतिहासकार न यह चाहे और न ही यह चाहेंगे कि इतने बड़े समाज की आँखें खुले या यह अपने समाज के गौरवशाली इतिहास को जान पाए! कारण कि जिनके पास अपना इतिहास होता है- वह जल्दी झुकता नहीं है और न ही तोड़ने से टूटता है।
कुछ राज्यों में जाट निश्चित ही समृद्ध एवं शक्तिशाली हैं और वे जनरल है; पर उनकी पूरी संस्कृति ओबीसी की नजदीक है। जैसे गुजरात में ‘पटेल’। इसी वजह से उत्तर-प्रदेश में जाट ओबीसी के हिस्से बने और चौधरी चरण सिंह उनके बड़े नेता। पर जब आप पूरी समग्रता में जाएँगे तो यह निश्चित ही पाएँगे कि चौधरी छोटू राम और चौधरी चरण सिंह पूरे ओबीसी और किसानों के नेता थे।
गया के पास एक मानपुर जगह है, उसे कुशवाहा (कछवाहा) राजा मान सिंह ने बसाया था। फिर आप कैसे कह सकते हैं कि ओबीसी का अपना कोई इतिहास नहीं है? आप दक्षिण भारत में ओबीसी के अंतर्गत आने वाली रेड्डियों और महाराष्ट्र के कुनबियों की चर्चा करेंगे तो अपने आप इतिहास का सुनहरा पन्ना पलटने लगेगा।
ओबीसी समाज क्यों लड़ता है? क्यों टकराता है? यह एक बड़ा सवाल है। कारण कि ओबीसी साहित्य के पीछे जो कारण-कार्य का सिद्धांत कार्य कर रहा है, उसका उत्तर इन सवालों में छुपा हुआ है और इन्हें जाने बगैर ओबीसी साहित्य को और उसकी आलोचना पद्धति को समझा नहीं जा सकता,
जब ओबीसी समाज 'देता' है तो खुशी से उसके हृदय में उद्गार फूटते हैं और जब उसके श्रम को कोई लूटने की चेष्टा करता है या लूटता है तो उसके भीतर गुस्सा जन्म लेता है और वह अन्याय से टकराने में तनिक भी नहीं हिचकता।
ओबीसी साहित्य ज्ञान के सार्वजनीकरण में विश्वास कर जनता को गुलामी से मुक्त करना चाहता है। ताकि मानवता शर्मसार न हो और इंसान जीवन के एक-एक क्षण को जीकर खुशी अनुभव करे। अगर इस खुशी को, इंसान की आजादी को, उसके जीवन को सुंदर बनाने के क्रम में कोई ऐसी घटना जो पुरोहित एवं शासक वर्ग को नापसंद है, उसे वह अंजाम देने में हर्ष अनुभव करता है।
ओबीसी साहित्य की आलोचना पद्धति दलितों एवं द्विजवादियों की आलोचना-पद्धति से भिन्न है क्योंकि टकराना इसके मूल में है। इसे न तो भिक्षाटन पर जीना है और न चिरौरी पर। प्रेम और टकराहट इसकी खूबसूरती है। ओबीसी साहित्य आलोचना इस खूबसूरत द्वंद को स्वीकार करती है। इसी कारण ओबीसी एवं ओबीसी साहित्य की रचना प्रक्रिया जटिल होती हुई भी मानव एवं श्रम करने वालों के लिए प्रेरणा का स्राेत बनी हुई है।